दशहरा पर विशेष: धर्म इसलाम और संस्कृति रामायण है

दशहरा पर विशेष : इस देश में भी अयोध्या और लोगों के दिलों में बसते हैं राम इस बार नवरात्रि और विजयादशमी के तुरंत बाद मुहर्रम मनाया जानेवाला है. वैसे तो हमारी संस्कृति शुरू से ही गंगा-जमुनी तहजीब की हिमायती रही है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे देश के बारे में बतायेंगे, जहां की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 10, 2016 7:18 AM
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दशहरा पर विशेष : इस देश में भी अयोध्या और लोगों के दिलों में बसते हैं राम
इस बार नवरात्रि और विजयादशमी के तुरंत बाद मुहर्रम मनाया जानेवाला है. वैसे तो हमारी संस्कृति शुरू से ही गंगा-जमुनी तहजीब की हिमायती रही है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे देश के बारे में बतायेंगे, जहां की 90 प्रतिशत आबादी इसलाम धर्मावलंबी है, लेकिन यह देश रामायण को जीता है. यहां के लोग न केवल बेहतर मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ते हैं, बल्कि इसके पात्र वहां की स्कूली शिक्षा का भी अभिन्न हिस्सा हैं.
दुनिया की सबसे ज्यादा मुसलिम आबादीवाला देश इंडोनेशिया, रामकथा यानी रामायण का दीवाना है. इस देश में अयोध्या भी है और यहां के मुसलिम भी भगवान राम को अपने जीवन का नायक और रामायण को अपने दिल के सबसे करीब किताब मानते हैं. भारत की तरह ही इंडोनेशिया में रामायण सबसे लोकप्रिय काव्य ग्रंथ है, लेकिन भारत और इंडोनेशिया की रामायण में अंतर है. भारत में राम की नगरी जहां अयोध्या है, वहीं इंडोनेशिया में यह योग्या के नाम से स्थित है. यहां राम कथा को ककनिन, या ‘रामायण काकावीन’ नाम से जाना जाता है.
भारतीय प्राचीन सांस्कृतिक रामायण के रचयिता आदिकवि ऋषि वाल्मीकि हैं, तो वहीं इंडोनेशिया में इसके रचयि‍ता कवि योगेश्वर हैं. इसमें उन्होंने सीता को ‘सिंता’ और लक्ष्मण को इंडोनेशियाई नौ सेना का सेनापति के रूप में प्रस्तुत किया है. इंडोनेशियाई संस्कृति में ‘रामायण काकावीन’ का मंचन करने की परंपरा भी रही है.
इंडोनेशिया की मुख्य भाषा इंडोनेशियाई है, जिसे स्थानीय लोग बहासा इंडोनेशिया के रूप में जानते हैं. अन्य भाषाओं में जावा, बाली, सुंडा, मदुरा आदि शामिल हैं. यहां प्राचीन भाषा का नाम कावी था, जिसमें देश के प्रमुख साहित्यिक ग्रंथ हैं.
श्रीरामकथा पर आधारित जावा की प्राचीनतम कृति ‘रामायण काकावीन’ है. यह सातवीं शताब्दी की रचना है. यहां की एक प्राचीन रचना ‘उत्तरकांड’ है, जिसकी रचना गद्य में हुई है. ‘रामायण काकावीन’ की रचना कावी भाषा में हुई है. गौरतलब है कि स्थानीय भाषा में काकावीन का अर्थ महाकाव्य होता है. कावी भाषा में कई महाकाव्यों का सृजन हुआ है. उनमें ‘रामायण काकावीन’ का स्थान सर्वोपरि है. इतना ही नहीं, इंडोनेशियाई रुपिया 20,000 के नोट पर हजर देवांतर के साथ भगवान गणेश की भी तसवीर छपती है. गौरतलब है कि इंडोनेशिया की स्वतंत्रता में हजर देवांतर का अहम योगदान माना जाता है. इस नोट के पीछे के हिस्से पर बच्चों से भरी कक्षा की तसवीर है. इंडोनेशिया में भगवान गणेश को कला, शास्त्र और बुद्धिजीवी का भगवान माना जाता है.
‘रामायण काकावीन’ 26 अध्यायों में विभक्त एक विशाल ग्रंथ है, जिसमें महाराज दशरथ को विश्वरंजन की संज्ञा से विभूषित किया गया है और उन्हें शैव मतावलंबी बताया गया है. इस रचना का आरंभ राम जन्म से होता है.
द्वितीय अध्याय का आरंभ बसंत वर्णन से हुआ है. रामायण काकावीन में शूर्पणखा-प्रकरण से सीता हरण तक की घटनाओं का वर्णन वाल्मीकीय परंपरा के अनुसार हुआ है. यहां यह जानना दिलचस्प है कि इंडोनेशिया में नौ सेना के अध्यक्ष को लक्ष्मण कहा जाता है. हनुमान इंडोनेशिया के सर्वाधिक लोकप्रिय पात्र हैं. हनुमान जी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भी हर साल इस मुसलिम आबादीवाले
देश की आजादी के जश्न के दिन बड़ी तादाद में राजधानी जकार्ता की सड़कों पर युवा हनुमान जी का वेश धारण कर सरकारी परेड में शामिल होते हैं. हनुमान को इंडोनेशिया में ‘अनोमान’ कहा जाता है.
इतिहास बताता है कि रामायण का इंडोनेशियाई संस्करण सातवीं सदी के दौरान मध्य जावा में लिखा गया था. तब यहां मेदांग राजवंश का शासन था. लेकिन, रामायण के इंडोनेशिया आने से बहुत पहले रामायण में इंडोनेशिया आ चुका था. ईसा से कई सदी पहले लिखी गयी वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड में वर्णन है कि कपिराज सुग्रीव ने सीता की खोज में पूर्व की तरफ रवाना हुए दूतों को यवद्वीप और सुवर्ण द्वीप जाने का भी आदेश दिया था.
कई इतिहासकारों के मुताबिक यही आज के जावा और सुमात्रा हैं.बताते चलें कि इंडोनेशिया के ‘रामायण काकावीन’ में राम और रावण के युद्ध कौशन और रणनीति का भी बढ़िया वर्णन किया गया है. इसमें बताया गया है कि श्रीराम की सेना 7 संभागों में बंटी थी. इन संभागों के प्रमुख स्वयं प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, सुग्रीव, अंगद, हनुमान, नील और कपीश्वर थे. वहीं, दूसरी तरफ रावण की सेना के 10 संभाग थे. ‘रामायण काकावीन’ के अनुसार, लंका की सुरक्षा के लिए हवाई यंत्रों की देख-रेख रावण स्वयं करता था.
उसकी हवाई सेना वानरों की सेना की तुलना में ज्यादा मजबूत थी, इसलिए लंका पर हवाई हमला करना या थल मार्ग से हमला करना आसान नहीं था. यही वजह रही कि श्रीराम ने लंका पर हमला करने के लिए छापामार युद्ध की तकनीक अपनायी. रावण, छापामार व्यूह रचना से अनभिज्ञ था और इस तरह रावण की सेना राम की छापामार युद्ध नीति से घबरा गयी और अंत में उसकी हार हुई.
इंडोनेशिया को रामायण के मंचन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त है. पिछले वर्ष साल इंडोनेशिया के शिक्षा और संस्कृति मंत्री अनीस बास्वेदन भारत आये थे. यहां आकर उन्होंने कहा था, हमारी रामायण दुनियाभर में मशहूर है. हम चाहते हैं कि इसका मंचन करनेवाले हमारे कलाकार भारत के अलग-अलग शहरों में साल में कम से कम दो बार अपनी कला का प्रदर्शन करें. हम तो भारत में नियमित रूप से रामायण पर्व का आयोजन भी करना चाहेंगे.
अनीस इसी सिलसिले में केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा से भी मिले. दोनों ने इस प्रस्ताव पर गंभीरता से चर्चा की. इसके बाद अपने एक बयान में अनीस का कहना था, हम यह भी चाहते हैं कि भारतीय कलाकार इंडोनेशिया आयें और वहां पर रामायण का मंचन करें. कभी यह भी हो कि दोनों देशों के कलाकार एक ही मंच पर मिल कर रामायण प्रस्तुत करें. यह दो संस्कृतियों के मेल का सुंदर रूप होगा.
लेकिन, गौर करें तो यह सिर्फ पर्यटन की बात नहीं है. अगर मुसलिम आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश अपनी रामायण का मंचन भारत में करना चाहता है, तो बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता के इस दौर में इसके मायने सांस्कृतिक आदान-प्रदान से आगे जाते हैं.
90 प्रतिशत मुसलिम आबादी वाले इंडोनेशिया पर रामायण की गहरी छाप है. हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान फादर कामिल बुल्के ने 1982 में अपने एक लेख में कहा था, 35 वर्ष पहले मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गांव में एक मुसलिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देख कर पूछा था कि आप रामायण क्यों पढ़ते हैं? उत्तर मिला, मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूं.
दरअसल रामकथा इंडोनेशिया की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है. बहुत से लोग हैं जिन्हें यह देख कर हैरानी होती है, लेकिन सच यही है कि दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलिम आबादी वाला यह देश रामायण के साथ जुड़ी अपनी इस सांस्कृतिक पहचान के साथ बहुत ही सहज है. जैसे वह समझता हो कि धर्म बस इनसान की कई पहचानों में से एक पहचान है. इस बारे में एक दिलचस्प किस्सा भी सुनने को मिलता है. बताया जाता है कि इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो के समय में पाकिस्तान का एक प्रतिनिधिमंडल इंडोनेशिया की यात्रा पर था.
इसी दौरान उसे वहां पर रामलीला देखने का मौका मिला. प्रतिनिधिमंडल में गये लोग इससे हैरान थे कि एक इसलामी गणतंत्र में रामलीला का मंचन क्यों होता है. यह सवाल उन्होंने सुकर्णो से भी किया. उन्हें फौरन जवाब मिला कि ‘इसलाम हमारा धर्म है और रामायण हमारी संस्कृति.’
(इनपुट : स्क्रॉल से साभार)
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