शारदीय नवरात्र, नौवां दिन, सिद्धिदायिनी दुर्गा का ध्यान
सिद्धों, गंधर्वों, यक्षों, असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होनेवाली सिद्धिदायिनी दुर्गा सिद्धि प्रदान करनेवाली हों. संपूर्ण जगत देवीमय है-9 नवम नवरात्र को मां दुर्गा के स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. इस दिन दूध, खजूर और धान का लावा नैवेद्य के रूप में चढ़ाया जाता है. इससे सर्व-सुख और सिद्धि प्राप्ति की […]
सिद्धों, गंधर्वों, यक्षों, असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होनेवाली सिद्धिदायिनी दुर्गा सिद्धि प्रदान करनेवाली हों.
संपूर्ण जगत देवीमय है-9
नवम नवरात्र को मां दुर्गा के स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. इस दिन दूध, खजूर और धान का लावा नैवेद्य के रूप में चढ़ाया जाता है. इससे सर्व-सुख और सिद्धि प्राप्ति की कामना पूर्ण होगी. शक्ति तत्व के द्वारा ही संपूर्ण ब्रह्माण्ड संचालित होता है. शक्ति के अभाव में न तो एकोअहं बहुस्याम् सदृश सिद्धांतों की सार्थकता संभव है और न ही महादेव की महादिव्यता सुमूर्त हो सकती है, क्योंकि शिव का एक रूप ही अर्द्धनारीश्वर है.
इसलिए महाकवि कालिदासरघुवंश महाकाव्य का श्रीगणेश करते हुए कहते हैं- वागर्थविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये। जगतः पितरौ वंदे पार्वतीपरमेश्वरी।।
संपूर्ण विश्व का बड़ा से बड़ा व्यक्तित्व क्यों न हो, किन्तु शक्ति से रहित होने पर वह तदविहीन हो जाता है. क्या कभी सुनने में आता है कि मैं विष्णुहीन हूं या ब्रह्महीन हूं. जबकि सभी लोग शक्ति से विरहित होने पर स्वयं को शक्तिहीन होना मानते हैं.
मार्कण्डेय पुराण में कल्याणमयी दुर्गा देवीके लिए विद्या और अविद्या दोनों शब्दों का प्रयोग हुआ है. ब्रह्मा की स्तुति में महाविद्या तथा देवताओं की स्तुति में लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये संबोधन आये हैं. अ से लेकर क्ष तक पचास मातृकाएं आधारपीठ हैं, इनके भीतर स्थित शक्तियों का साक्षात्कार शक्ति-उपासना है. शक्ति से शक्तिमान का अभेद-दर्शन, जीव में शिवभाव का उदय अर्थात शिवत्व-वोध शक्ति उपासना की चरम उपलब्धि है.
ययेदं भ्राम्यते विश्वं योगिभिर्या विचित्यते ।
यदभासा भासते विश्वं सैका दुर्गा जगन्मयी ।।
जिसके द्वारा यह संसार चक्र चलता रहता है, योगीजन जिसका सदैव चिंतन करते हैं, जिसके प्रकाश से यह समस्त जगत प्रकाशित हो रहा है, यही जगदव्यापी दुर्गा तत्व है. अर्थात समस्त जगत देवीमय है. एक ही महाशक्ति दुर्गा कभी रौद्र, तो कभी सौम्य रूपों में विराजित होकर नाना प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं. इच्छा से अधिक वितरण करने में समर्थ इन आदिशक्ति का स्वरूप अचिन्त और शब्दातीत है. पर भक्तों के लिए इनकी कृपा हमेशा मिलती है.
अतः मां से प्रार्थना करें-
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव।।
(समाप्त)
प्रस्तुति : डॉ एन के बेरा