अरविंद केजरीवाल! राष्ट्रीय हित पर समझौता नहीं होता

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता मयंक गांधी का इस्तीफा, कहा मयंक गांधी की पहचान आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और एक सामाजिक कार्यकर्ता की रही है़ महाराष्ट्र में सूचना के अधिकार, शासकीय कर्मचारियों के स्थानांतरण, नगर राज बिल आदि आंदोलनों के लिए वे कार्य कर चुके हैं. अन्ना हजारे की जन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2016 5:56 AM
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आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता मयंक गांधी का इस्तीफा, कहा
मयंक गांधी की पहचान आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और एक सामाजिक कार्यकर्ता की रही है़ महाराष्ट्र में सूचना के अधिकार, शासकीय कर्मचारियों के स्थानांतरण, नगर राज बिल आदि आंदोलनों के लिए वे कार्य कर चुके हैं. अन्ना हजारे की जन लोकपाल बिल मुहिम से शुरू से जुड़े रहनेवाले मयंक ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है़ उसके पीछे उन्होंने वजह यह बतायी है कि विकल्प की राजनीति पेश करने का दावा करनेवाली इस पार्टी की कार्यप्रणाली अन्य पार्टियों से जरा भी अलग नहीं है़
मैं इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका हूं कि आम आदमी पार्टी तथा अन्य पार्टियों के बीच कोई फर्क नहीं रह गया है. इसकी वजहें इस प्रकार हैं-
सर्जिकल स्ट्राइक
अरविंद केजरीवाल ने सर्जिकल स्ट्राइक के विषय में सुनते ही तुरंत भारत की थल सेना को तो बधाई का एक संदेश ट्वीट किया, पर अभद्रतापूर्वक उसमें सरकार को शामिल नहीं किया, जबकि यह सर्वविदित है कि हमारे लोकतंत्र में भारतीय सेनाएं सरकार की स्वीकृति के बगैर कुछ नहीं किया करतीं. इस तरह फैसला लेनेवाले को भी इसका श्रेय मिलना चाहिए, लेकिन चूंकि उसके मुखिया नरेंद्र मोदी हैं, अतः उन्होंने उन्हें बधाई नहीं दी.
उसके बाद, जैसे ही पाकिस्तानी प्रचार तंत्र इस स्ट्राइक पर सवाल उठाने में सफल हुआ, आप के नेताओं ने एक चाल चलने की सोची कि चूंकि मोदी इस सफलता को पंजाब का चुनाव जीतने के लिए इस्तेमाल करेंगे, इसलिए क्यों न लोगों के मन में एक शंका बो दी जाये, ताकि आप मोदी-विरोधी वोट समेट कर पंजाब फतह कर ले.
अतः एक चतुराई भरे वीडियो में केजरीवाल ने मोदी तथा सेना की तारीफ करते हुए उनसे इस स्ट्राइक के सबूत की मांग कर डाली, ताकि पाकिस्तान को उत्तर दिया जा सके. उन्होंने यह सोचा कि यदि सरकार सबूत नहीं दे सकी, तो इसकी विश्वसनीयता समाप्त हो जायेगी और पंजाब में आप आगे निकल जायेगी. यदि उसने वह दे दिया, तो चुनाव तक के सात महीनों के समय में उन्हें भाजपा के प्रति उपजी सद्भावना की तोड़ करने का वक्त मिल जायेगा. यह एक धूर्त राजनीतिक चाल थी.
किंतु बुद्धिमान तथा वस्तुपरक सोच के अधिकतर व्यक्तियों ने यह उलटबांसी समझ ली और आप की यह रणनीति बिल्कुल विपरीत पड़ी. इस वीडियो को सैन्य संचालन के महानिदेशक (डीजीएमओ) के प्रेस कॉन्फ्रेंस तथा सेना को दी गयी चुनौती माना गया. पाकिस्तान ने भी इसे ‘दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा पाकिस्तानी प्रचार के समर्थन’ के रूप में लिया. उधर, सीएनएन18 ने पाकिस्तानी पक्ष से यह खुलासा ले लिया किसर्जिकल स्ट्राइक हुआ था और इस तरह सेना द्वारा गोपनीय तथा सामरिक महत्व की सामग्री दिये बगैर उसकी कार्रवाई की पुष्टि हो गयी.
लेकिन, मेरे लिए इसका सबसे अहम असर यह हुआ कि आप ने अपने प्रति मेरी सारी सहानुभूति गंवा दी. मेरे उस सहकर्मी ने, जिसके साथ मैंने भारतीय झंडा लहराते हुए गले के बैठ जाने तक ‘भारत माता की जय’ के नारे बुलंद किये थे, वोटों के लिए राष्ट्रीय हितों की सौदेबाजी कर डाली. मेरी मान्यता है कि राष्ट्रीय हित से कोई समझौता नहीं किया जा सकता.
मेरा अतीत
आपातकाल की घटना भारत के इतिहास में एक काला अध्याय है. मैं इसके विरुद्ध चल रहे राष्ट्रीय संघर्ष में कूद पड़ा था और हम विजयी हुए. पूरे राष्ट्र ने जश्न मनाया, पर वह टिकाऊ न रह सका.
जनता ने जनता पार्टी को बढ़-चढ़ कर समर्थन दिया, मगर इसके नेताओं में बड़प्पन के अभाव ने देश को दगा दे दिया. राष्ट्र ने देखा कि किस तरह राजनेताओं ने सारे सिद्धांत ताक पर रख चुनावी जीतों पर नजरें गड़ा दीं. आज के अन्ना हजारे की तरह तब जेपी सारी गिरावट के मूकदर्शक रहे और अच्छे लोग राजनीति से विदा लेने लगे. लालू तथा मुलायम सरीखे आपातकाल के हमारे नायकों ने राजनीति के वही पुराने खेल आरंभ कर कई चुनाव जीते.
तब मैं युवा और अनुभवहीन था तथा मेरी उन नेताओं अथवा उनके समर्थकों तक ऐसी पहुंच न थी कि मैं उनके सुधार की कोशिशें कर सकता या फिर उन्हें राष्ट्र की पीड़ा से परिचित करा सकता. सत्ता तथा यश में मेरी कोई अभिरुचि नहीं थी, सो मैं शैक्षिक दुनिया और अपने सामान्य जीवन में वापस हो गया, मगर राष्ट्र तो ठगा गया.
वर्तमान परिदृश्य
कई दशकों बाद, भारत एक अगले राष्ट्रीय आंदोलन के लिए तैयार हुआ. इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन, आप तथा दिल्ली में उसकी विजय कुछ सिद्धांतों की बुनियाद पर टिकी थी. यह कहनेवाले विशेषज्ञों तथा टिप्पणीकारों को अपने शब्द वापस लेने पड़े कि समझौता, धनबल का इस्तेमाल और विभेदकारी एजेंडे का सहारा लिये बगैर चुनाव नहीं जीते जा सकते.
ऐसा प्रतीत हुआ, मानो स्वच्छ धनराशि, सिद्धांतों और शालीनता की एक नयी क्रांति ही सन्निकट हो. राष्ट्र में एक बार फिर जश्न का माहौल था. मेरी तरह अनेक व्यक्तियों ने अपनी नौकरी अथवा अध्ययन छोड़ दिये. सैकड़ों वालंटियर, जिनमें से कई तो दिहाड़ी पर काम करनेवाले ऐसे लोग थे, जिनके माता-पिता रुग्ण थे अथवा उनके परिवार संकटकाल से गुजर रहे थे, कई अन्य अपनी जमीन-जायदाद बेच कर अथवा अपनी नौकरी या अध्ययन से लंबी छुट्टी लेकर कुछ चुनिंदा, स्वार्थी और दंभ से भरे नेताओं की नहीं, बल्कि राष्ट्र की सेवा के उद्देश्य से इस आंदोलन में शामिल हुए.
दिल्ली में शानदार जीत हासिल कर इसके नेतृत्व ने सारा श्रेय स्वयं बटोर लिया और अभिमानपूर्वक यह समझ लिया कि उनके पास चुनाव जीतने से लेकर बाकी सभी उत्तर मौजूद हैं. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं, साध्य को साधन से ऊपर तथा हर कीमत पर चुनावी जीत की सोच ही ध्येय वाक्य बन बैठी. राजनीतिक तिकड़म तथा बंगलों के अंदर रचे जानेवाले षड्यंत्र शुरू हो गये.
नये किस्म के सिद्धांतों ने पुराने पर हावी होकर इतनी वास्तविकता हासिल कर ली कि हम नफरत से भर गये. समझौते किये जाने लगे.
सरलता, विनम्रता, शोभनीयता तथा एक नयी राजनीतिक संस्कृति की जगह नरेंद्र मोदी, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और मीडिया जैसे विरोधियों के प्रति अशोभनीय भाषा के इस्तेमाल ने ले ली. बयानों और टीवी बहसों में दंभ का प्रदर्शन, वीआइपी काफिलों में यात्राएं, सभी नुक्कड़ों पर चेहरे दिखाते बैनरों का लगाया जाना, निम्नतम स्तरों पर जाकर हर एक पर दोष तथा आरोप मढ़ना, खुद को पीड़ित बताते हुए सहानुभूति पाने का खेल खेलना, आंतरिक बैठकों में दबंग रक्षकों के साथ आना, और खासकर सोशल मीडिया पर कई-कई अकाउंट बना कर पुराने सहकर्मियों को श्रीहीन करने की प्रवृत्ति हावी हो गयी. सरलता तथा शालीनता का सारा लबादा उतार फेंका गया. जिन चीजों से हमें नफरत हुआ करती थी, हमने उन्हें ही स्वयं में समाहित कर लिया.
मीडिया का प्रबंधन जोरदार शब्दों, नाटकीयता, अभिनय और दोषारोपण जैसे कारकों पर आधारित होता है.अच्छी अथवा बुरी खबरों की अहमियत नहीं होती़ करोड़ों की कीमतों के एयर और प्रिंट टाइम हासिल करने के लिए मीडिया के कुशल प्रबंधन की कला आनी चाहिए. मीडिया तो भोला है, जिसे एक्शन और विवादों की दरकार है. इसका धूर्तता से इस्तेमाल होने लगा. हमारे बहुत से समर्थक अथवा जनसाधारण ने, जो आप की ओर दिलचस्पी से देखा करते थे, अब हमें गंभीरता से नहीं लेने लगे.
चूंकि अगले आम चुनाव में एक गंठबंधन बना कर आप भाजपा को चुनौती देनेवाली प्रमुख पार्टी बनना चाहती है, रणनीति यह बनी है कि हरेक चीज के लिए सीधे मोदी पर आक्रमण किया जाये, ताकि केजरीवाल मोदी के प्रमुख विपक्षी नजर आ सकें. इसलिए मोदी को ‘कायर तथा मनोविकृति का शिकार’ बताना आपको मीडिया का जबरदस्त प्रचार तो दिलाता ही है, साथ ही प्रधानमंत्री के मुकाबले खड़ा भी करता है. एक ही बिंदु पर केंद्रित यह आक्रमण रणनीतिक रूप से तो अत्यंत लाभप्रद हो सकता है, पर इसके कुछ प्रमुख नुकसान भी झेलने पड़ सकते हैं, जो यह है कि आप वैसी कई घटनाओं को नजरअंदाज करने लगते हैं, जो राष्ट्र पर अपने प्रभाव डालती हैं, क्योंकि उनके लिए मोदी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
स्वराज की अवधारणा को तिलांजलि
दिल्ली के चुनावों के बाद स्वराज की अवधारणा को तो जैसे कुर्बान ही कर दिया गया. यहां तक कि इसे पार्टी के संविधान से भी बाहर कर दिया गया. राज्य स्तर के किसी भी नेता को आगे नहीं बढ़ने दिया गया. जिन विधायकों को दिल्ली के विकास के लिए चुना गया था, वे पार्टी की स्थानीय इकाइयों पर अपनी अहमियत थोपते हुए विभिन्न राज्यों की यात्राएं कर रहे हैं. महाराष्ट्र में पार्टी की कमिटी तथा टीम सबसे बेहतर थी, जिसे 1 अक्तूबर, 2015 को भंग कर अब उसे दिल्ली के एक व्यक्ति द्वारा संचालित किया जा रहा है.
गुजरात, राजस्थान, पंजाब, गोवा तथा दूसरे राज्यों में भी यही स्थिति है. मैंने अरविंद की किताब में स्वराज की नयी परिभाषा ढूंढ़ी, किंतु सफल न हो सका. एक नयी नीति बनी कि पार्टी को एक आवाज में बोलना चाहिए, पर यह व्यक्तिपूजा का स्थान न ले सकी. किसी भी आजाद आवाज को न केवल पार्टी से हटाया जाने लगा, बल्कि उसे कुछ इस तरह निकाल बाहर किया गया कि किसी और को आवाज उठाने की हिम्मत ही न हो. योग्यता की जगह वफादारी ने ले ली. जो पार्टी वालंटियर आधारित हुआ करती थी, उसने अब एक नयी नीति अपना ली कि ‘एक जायेगा, तो दस आयेंगे.’
पारदर्शिता तथा भागीदारी की छुट्टी
मार्च 2015 के जिस बैठक में योगेंद्र यादव तथा प्रशांत भूषण को पार्टी से बाहर किया गया, मैंने उसकी कार्यवाही जारी करने की मांग की, जिसे खारिज कर दिया गया. मैंने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर एक ब्लॉग लिखा. मैं जानता था कि वे सब मेरे पीछे पड़ जायेंगे और मेरा राजनीतिक भविष्य समाप्त हो जायेगा, पर मैंने इस कीमत पर भी इसे लिखने का फैसला किया.
पर मुझे यह नहीं पता था कि वे मुझ पर कुछ ओछे और झूठे व्यक्तिगत आरोप लगाने की हद तक नीचे जाने के साथ ही मेरे तिरस्कार के लिए पूरी महाराष्ट्र इकाई को ही भंग कर देंगे. उस बैठक की कार्यवाही अब तक भी जारी नहीं की गयी है.
स्वच्छ निधि से किनारा
स्वच्छ निधि को भी छोड़ दिया गया. जब मैं पार्टी में था, तो मैं दाताओं से बस यही कहा करता था कि हम दान के एक-एक रुपये का हिसाब रखते और अपना बैलेंस शीट तथा आय-व्यय विवरणी समय पर तैयार किया करते हैं. ऐसे आरोप लगे हैं कि निर्वाचन आयोग को दी गयी विवरणी तथा दान सूची के बीच 14 करोड़ रुपयों का अंतर है. इसलिए पिछले 13 सप्ताहों से दान सूची को पार्टी की वेबसाइट से हटा लिया गया है. 31 मार्च, 2014 के बाद से बैलेंस शीट तथा तथा व्यय सूची प्रदर्शित नहीं की गयी है. इसका अर्थ यह है कि पिछले 30 महीनों से पार्टी निधि का लेखा सार्वजनिक नहीं किया गया है.
दिल्ली के प्रशासन की बदहाली
दिल्ली का प्रशासन बदहाल है. फ्लाइओवर, सड़कें, अस्पताल तथा अन्य बड़े कार्यों की बजाय एक मॉडल क्लासरूम, एक स्कूल में एयरकंडीशनिंग लगाने और कुछ मुहल्ला क्लिनिक स्थापित करने जैसे कार्य उजागर किये जा रहे हैं. दिल्ली के ऐसे सैकड़ों लोगों से मेरी मुलाकातें हुई हैं, जो पिछली शानदार चुनावी जीत की रीढ़ रह चुके हैं और जो अब क्रुद्ध हैं, ठगा महसूस कर रहे हैं.
विधायक पार्टी के कार्यों से दूसरे राज्यों के दौरे कर रहे हैं, जबकि शिखर का नेतृत्व पंजाब, गोवा तथा गुजरात के चुनाव जीतने में मशगूल है. विधानसभा के चुनावों में 54 प्रतिशत के वोट प्रतिशत के मुकाबले दिल्ली नगर निगम के चुनावों में यह गिर कर 29 प्रतिशत पर आ गया. दिल्ली को ही पार्टी का आधार और युवावर्ग को इसकी रीढ़ माना जाता रहा है. अपने पक्ष के किसी ओपिनियन पोल के नतीजे प्रचारित करते हुए शानदार जीत की संभावनाओं के ढिंढोरे पीटने की अपनी मानक रणनीति का सहारा लेने के बावजूद पिछले साल के दिल्ली विवि चुनावों में आप की समाप्ति ही हो गयी.
मेरा लक्ष्य
मैं अहम मुद्दे उठाने की कोशिशें जारी रखूंगा, ताकि पार्टी उनका संज्ञान ले और स्वयं को सुधारने की चेष्टा करे. यदि एक नये भारत के निर्माण का यह प्रयोग विफल होकर सिर्फ चुनावी जीतों में बदल जाता है, तो राष्ट्र हताश हो उठेगा और फिर दशकों बाद ही कहीं जाकर हमारे देशवासी किसी नये आंदोलन अथवा पार्टी पर यकीन कर सकेंगे. मैं भाजपा अथवा कांग्रेस में देश को रूपांतरित कर पाने की संभावनाएं नहीं देखता.
उन अनेक लोगों की तरह, जिन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया अथवा जिन्हें हटा दिया गया, मैं किसी और पार्टी में शामिल नहीं हुआ, न ही कोई गुट ही बनाया है. मेरा कोई भी व्यक्तिगत अथवा राजनीतिक लक्ष्य नहीं है (मैंने चुनावी राजनीति छोड़ रखी है). मुझे किसी व्यक्ति से कोई शिकायत नहीं है.
मेरा यह ध्येय विशुद्ध रूप से स्वार्थरहित है कि मैं पार्टी पर एक अंकुश रखूं, क्योंकि देश ऐसी एक और विफलता गवारा नहीं कर सकता.
मैं आध्यात्मिक उन्नति के लिए ध्यान और चिंतन करता एवं पढ़ता-लिखता रहता हूं. मैं मराठवाड़ा के सूखाग्रस्त बीड जिले के 15 गांवों में विकास का एक ऐसा मॉडल बनाने की कोशिशों द्वारा राष्ट्र-निर्माण में अपना योगदान कर रहा हूं, जो दोहराने योग्य हो. बौद्धिक स्तर पर मेरी मंशा अंतःकरण के रक्षक की भूमिका अदा करने की है. राष्ट्र का स्थान हमेशा सर्वोपरि, पार्टी का उसके बाद तथा व्यक्तियों का बिल्कुल अंत में ही होना चाहिए.
(एनडीटीवी के ब्लॉग से साभार)
(अनुवाद : विजय नंदन)
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