नयी कर प्रणाली: जीएसटी दरों पर सबकी नजर

बहुप्रतीक्षित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली को अमली जामा पहनाने की दिशा में दिल्ली में चल रही जीएसटी काउंसिल की तीन-दिवसीय बैठक बहुत महत्वपूर्ण है. केंद्र सरकार ने अगले वित्त वर्ष यानी एक अप्रैल, 2017 से इसे लागू करने का मन बना लिया है तथा इसकी संरचना से जुड़ी तमाम असहमतियों को दूर करने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 19, 2016 8:54 AM

बहुप्रतीक्षित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली को अमली जामा पहनाने की दिशा में दिल्ली में चल रही जीएसटी काउंसिल की तीन-दिवसीय बैठक बहुत महत्वपूर्ण है. केंद्र सरकार ने अगले वित्त वर्ष यानी एक अप्रैल, 2017 से इसे लागू करने का मन बना लिया है तथा इसकी संरचना से जुड़ी तमाम असहमतियों को दूर करने के लिए 22 नवंबर की सीमा तय की गयी है. करों की दर पर सहमति बनने के बाद ही केंद्रीय जीएसटी और एकीकृत जीएसटी के लिए विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किये जा सकेंगे.

यह सत्र 16 नवंबर से प्रारंभ हो रहा है. जीएसटी के लागू होने के बाद एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था इतिहास में पहली बार एकरूप बाजार के रूप में परिणत हो जायेगी. इससे न सिर्फ राजस्व की वसूली बढ़ेगी, बल्कि व्यापारिक और वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए मुश्किलें भी कम होंगी, जिन्हें फिलहाल कई तरह के संघीय और राज्यस्तरीय कर और शुल्क अदा करने पड़ते हैं. जीएसटी के जरूरी पहलुओं पर नजर डाल रहा है आज का इन डेप्थ…

जीएसटी काउंसिल की पिछले महीने की बैठक में केंद्र और राज्य के वित्तमंत्रियों ने बिक्री कर से जुड़े जरूरी मसलों को सुलझा लिया था. मंगलवार से शुरू हुई तीन दिवसीय बैठक के प्रमुख मुद्दे करों की दर निर्धारित करने, कम कर-संग्रह की स्थिति में राज्यों को मुआवजा देने और सेवा कर के आकलन से संबंधित हैं.

मुद्दे जिन पर बन चुकी सहमति

जीएसटी कौंसिल की पहली बैठक में क्षेत्रवार छूटों तथा नयी प्रणाली में पहाड़ी और पूर्वोत्तर के राज्यों की स्थिति पर निर्णय लिया जा चुका है. पंजीकरण और भुगतान के नियम, रिटर्न, रिफंड और इनवॉयस जैसे मामलों को भी निपटा लिया गया है.

केंद्र और राज्य इस बात पर भी सहमत हो गये हैं कि 20 लाख रुपये तक के वार्षिक राजस्व के व्यापारियों को नये राष्ट्रीय बिक्री दर के दायरे से बाहर रखा जायेगा. काउंसिल ने छोटे व्यापारियों पर दोहरे नियंत्रण को लेकर चल रहे विवाद का भी निपटारा कर लिया है. जीएसटी लागू हो जाने के बाद सालाना 1.5 करोड़ रुपये तक के राजस्व वाले डीलरों पर राज्यों का विशिष्ट नियंत्रण रहेगा.

मुद्दे जिन पर बननी है सहमति

कर की दर : इस महत्वपूर्ण मसले पर ही उन वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का निर्धारण होना है, जो जीएसटी के अंतर्गत आयेंगे. करों की दर, जो राज्यों के लिए राजस्व निरपेक्ष होगी, पर केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति तथा राजनीतिक दलों की स्वीकार्यता बड़ी चुनौती है. पिछले साल मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की अध्यक्षतावाले पैनल ने अधिकतर वस्तुओं और सेवाओं पर 17-18 फीसदी कर, कम दर की वस्तुओं पर 12 फीसदी और लक्जरी वस्तुओं, शीतल पेय, तंबाकू आदि पर 40 फीसदी दर का सुझाव दिया था. सोने-चांदी जैसे महंगे धातुओं पर दो से छह फीसदी कर की सिफारिश की गयी थी. पिछले सप्ताह वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचानेवाली वस्तुओं पर लगनेवाले कर अन्य वस्तुओं से भिन्न होंगे. कांग्रेस ने करों को 18 फीसदी के स्तर पर रखने की मांग की है, लेकिन ऐसी उम्मीद नहीं है कि राज्य इसे स्वीकार कर लेंगे, क्योंकि इससे उन्हें करीब 12 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है. कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि भले ही जीएसटी काउंसिल मौजूदा बैठक में इस पर चर्चा करे, पर किसी अंतिम निर्णय की संभावना बहुत कम है, क्योंकि यह मसला राजनीतिक संवेदनशीलता से जुड़ा हुआ है और कांग्रेस के साथ आने तक सहमति के प्रयास जारी रहेंगे.

मुआवजे का निर्धारण : इस मसले पर भी आम सहमति बननी मुश्किल है. काउंसिल की पहली बैठक में कुछ विकल्पों पर बातचीत हुई थी, पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका था. रिपोर्टों के मुताबिक, एक प्रस्ताव यह है कि यदि बीते पांच सालों के तीन बेहतरीन सालों के औसत से राज्य की कर वसूली कम होती है, तो उसे मुआवजा दिया जायेगा. दूसरी राय के मुताबिक, इन पांच सालों के पहले और आखिरी सालों को छोड़ कर औसत निकाला जाये और इससे कम वसूली होने की स्थिति में राज्य को मुआवजा दिया जाये. तीसरी सलाह में एक आधार वर्ष और सभी राज्यों के लिए वृद्धि दर के निर्धारण की बात कही गयी है तथा उससे कम राजस्व वसूली होने पर मुआवजे का प्रावधान किया गया है. इस सुझाव में 2015-16 को आधार वर्ष के रूप में चिह्नित किया गया है. एक अन्य सुझाव में राजस्व वृद्धि की दर निर्धारित कर मुआवजा देने की बात कही गयी है. जीएसटी विधेयक में जीएसटी लागू होने के पहले पांच सालों में राज्यों को पूरा मुआवजा देने का प्रावधान है. यह राज्यसभा की चयन समिति ने जोड़ा था, जबकि पहले तीन सालों तक ही पूरा मुआवजा देने की बात कही गयी थी.

सेवा कर का आकलन : जीएसटी काउंसिल के सामने यह भी एक बड़ा सवाल है कि क्या सेवा कर देनेवालों के आकलन का अधिकार केंद्र के पास होना चाहिए. हालांकि पहली बैठक में इस पर निर्णय हो चुका था, पर अंतिम समय में दो राज्यों ने इससे असहमति जाहिर कर दी थी.

बहरहाल, जीएसटी प्रणाली के सामने कई अन्य समस्याएं भी हैं, जिन पर लिये गये निर्णयों पर इसकी सफलता निर्भर करती है. इनमें केंद्र और राज्यों में जीएसटी सचिवालय का गठन, कानूनों में संबंधित बदलाव आदि प्रमुख हैं. केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों को मजबूत बनाना और सहकारी संघवाद के लक्ष्य को पूरा करना ऐसे कारक हैं जो जीएसटी जैसी पहलों को सभी के लिए लाभप्रद बना सकते हैं.

जानिए क्या है जीएसटी
जीएसटी पूरे देश के लिए एक अप्रत्यक्ष कर है, जो भारत को एकीकृत साझा बाजार बना देगा. जीएसटी विनिर्माता से लेकर उपभोक्ता तक वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर एक प्रकार का एकल कर है. प्रत्येक चरण पर भुगतान किये गये इनपुट करों का लाभ, मूल्य संवर्धन के बाद के चरण में उपलब्ध होगा, जो प्रत्येक चरण में मूल्य संवर्धन पर जीएसटी को आवश्यक रूप से एक कर बना देता है. अंतिम उपभोक्ताओं को इस प्रकार आपूर्ति शृंखला में अंतिम डीलर द्वारा लगाया गया जीएसटी ही वहन करना होगा. इससे पिछले चरणों के सभी मुनाफे समाप्त हो जायेंगे.

जीएसटी का प्रशासनिक स्वरूप

भारत के संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए जीएसटी के दो घटक होंगे- केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) और राज्य जीएसटी (एसजीएसटी). केंद्र और राज्य दोनों एक साथ मूल्य शृंखला पर वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) लगायेंगे. सामानों की प्रत्येक सप्लाइ और सेवाओं पर टैक्स लगाया जायेगा. केंद्र अपना केंद्रीय वस्तु और सेवा कर (सीजीएसटी) लगायेगा और कर संग्रह करेगा और राज्य, अपने राज्य के अंदर सभी कारोबार पर राज्य वस्तु और सेवा कर (एसजीएसटी) लगायेंगे. सीजीएसटी के इनपुट टैक्स क्रेडिट से हर चरण में आउटपुट पर सीजीएसटी देनदारी चुकायी जायेगी. इसी तरह इनपुट पर अदा किये गये एसजीएसटी से आउटपुट पर एसजीएसटी को अदा किया जा सकेगा. क्रेडिट के आड़े-तिरछे अतिरिक्त उपयोग की अनुमति नहीं दी जायेगी.

एक साथ सीजीएसटी तथा एसजीएसटी कैसे लगाया जायेगा?

केंद्रीय जीएसटी और राज्य जीएसटी एक साथ प्रत्येक वस्तु और सेवा आपूर्ति कारोबार पर लगाया जायेगा, लेकिन उन वस्तुओं और सेवाओं को छोड़ कर जो जीएसटी के दायरे से बाहर हैं और वैसे कारोबार को छोड़ कर जो न्यूनतम सीमा से कम हों. दोनों टैक्स सामान कीमत या मूल्य पर लगेगा, जबकि राज्य के वैट में वस्तु के मूल्य पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क सहित टैक्स लगाया जाता है.

संविधान (122वां संशोधन) विधेयक 2014 की विशेषताएं

वस्तु और सेवा कर विषय पर कानून बनाने के लिए संसद और राज्य विधायिकाओं को एक साथ शक्ति दी गयी.

केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर, अतिरिक्त सीमा शुल्क जिसे सामान्य रूप से काउंटर वेलिंग ड्यूटी कहा जाता है तथा विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क जैसे विभिन्न केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर इसमें समाहित हो जायेंगे.

राज्य वैल्यू एडेड टैक्स/ सेल टैक्स, मनोरंजन कर (स्थानीय निकायों द्वारा लगाये जानेवाले टैक्स से अलग), केंद्रीय बिक्री कर (टैक्स केंद्र लगाता है और संग्रह राज्य करते हैं), ऑक्ट्रॉय (चुंगी), एंट्री टैक्स, परचेज टैक्स, लग्जरी टैक्स तथा लॉटरी, सट्टे व जुए पर टैक्स.

संविधान के विशेष महत्व की घोषित वस्तुओं की अवधारणा समाप्त.

वस्तुओं और सेवाओं के अंतर-राज्य कारोबार पर एकीकृत वस्तु और सेवा कर लगाने का प्रावधान.मानवीय खपत के लिए नशीली शराब को छोड़ कर सभी वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी लगाया जायेगा. पेट्रोलियम उत्पादों पर बाद की तिथि से जीएसटी लगाया जायेगा. यह तिथि वस्तु और सेवा कर परिषद् की सिफारिश पर अधिसूचित की जायेगी.

पांच वर्षों तक राज्यों को वस्तु और सेवा कर लागू करने में हुए राजस्व नुकसान के लिए मुआवजा.

वस्तु और सेवा कर से संबंधित विषयों की जांच के लिए वस्तु और सेवा कर परिषद् का गठन तथा टैक्स दरें, टैक्स, सेस तथा सम्मिलित अधिभार छूट सूची तथा न्यूनतम सीमा, मॉडल जीएसटी कानून आदि पर केंद्र और राज्यों को सिफारिश. यह परिषद् केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करेगी और सभी राज्य सरकारें इसकी सदस्य होंगी.

कौन-कौन से कर होंगे शामिल

केंद्रीय स्तर

केंद्रीय उत्पाद शुल्क

अतिरिक्त उत्पाद शुल्क

सेवा कर

अतिरिक्त सीमा शुल्क, आमतौर पर जिसे काउंटरवेलिंग ड्यूटी के रूप में जाना जाता है, औरसीमा शुल्क का विशेष अतिरिक्त शुल्क.

राज्य स्तर पर

राज्य मूल्य संवर्धन कर/ बिक्री कर

मनोरंजन कर

केंद्रीय बिक्री कर

चुंगी और प्रवेश कर

खरीद कर

विलासिता कर, और

लॉटरी, सट्टा और जुआ पर कर.

किसको क्या होगा लाभ : व्यापार और उद्योग के लिए

अनुपालन में आसानी : एक मजबूत और व्यापक सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली भारत में जीएसटी व्यवस्था की नींव होगी, इसलिए पंजीकरण, रिटर्न, भुगतान आदि जैसी सभी कर भुगतान सेवाएं करदाताओं को ऑनलाइन उपलब्ध होंगी, जिससे इसका अनुपालन बहुत सरल और पारदर्शी हो जायेगा.

कर दरों और संरचनाओं की एकरूपता : जीएसटी यह सुनिश्चित करेगा कि अप्रत्यक्ष कर दरें और ढांचे पूरे देश में एक समान हैं. इससे व्यापार आसान हो जायेगा. दूसरे शब्दों में, जीएसटी देश में कामकाज को कर तटस्थ बना देगा, फिर चाहे व्यापार करने की जगह का चुनाव कहीं भी किया जाये.

करों पर कराधान (कैसकेडिंग) की समाप्ति : मूल्य शृंखला और समस्त राज्यों की सीमाओं से बाहर टैक्स क्रेडिट की सुचारु प्रणाली से यह सुनिश्चित होगा कि करों पर कम-से-कम कराधान हो. इससे व्यापार करने में आनेवाली छुपी हुई लागत कम होगी.

प्रतिस्पर्धा में सुधार : लेन-देन लागत घटने से व्यापार और उद्योग के लिए प्रतिस्पर्धा में सुधार को बढ़ावा मिलेगा.

विनिर्माताओं और निर्यातकों को लाभ : जीएसटी में केंद्र और राज्यों के करों के शामिल होने और इनपुट वस्तुओं और सेवाएं पूर्ण और व्यापक रूप से समाहित होने और केंद्रीय बिक्रीकर चरणबद्ध रूप से बाहर हो जाने से स्थानीय रूप से निर्मित वस्तुओं और सेवाओं की लागत कम हो जायेगी. इससे भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की अंतरराष्ट्रीय बाजार में होनेवाली प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी होगी और भारतीय निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा.

केंद्र और राज्य सरकारों के लिए

सरल और आसान प्रशासन : केंद्र और राज्य स्तर पर बहुआयामी जीएसटी लागू करके अप्रत्यक्ष करों को हटाया जा रहा है. जीएसटी सभी अन्य प्रत्यक्ष करों की तुलना में प्रशासनिक नजरिये से बहुत सरल और आसान होगा.

कदाचार पर बेहतर नियंत्रण : मूल्य संवर्धन की शृंखला में एक चरण से दूसरे चरण में इनपुट कर क्रेडिट कर सुगम हस्तांतरण जीएसटी के स्वरूप में एक अंत:निर्मित तंत्र है, जिससे व्यापारियों को कर अनुपालन में प्रोत्साहन दिया जायेगा.

अधिक राजस्व निपुणता : जीएसटी से सरकार के कर राजस्व की वसूली लागत में कमी आने की उम्मीद है. इसलिए इससे उच्च राजस्व को बढ़ावा मिलेगा.

उपभोक्ताओं के लिए

वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य के अनुपा‍ती एकल एवं पारदर्शी कर : केंद्र और राज्यों द्वारा लगाये गये बहुल अप्रत्यक्ष करों या मूल्य संवर्धन के प्रगामी चरणों में उपलब्ध गैर-इनपुट कर क्रेडिट के कारण आज देश में अनेक छिपे करों से अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की लागत पर प्रभाव पड़ता है. जीएसटी के अधीन विनिर्माता से लेकर उपभोक्ताओं तक केवल एक ही कर लगेगा, जिससे अंतिम उपभोक्ता पर लगनेवाले करों में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा.

समग्र कर भार में राहत : निपुणता बढ़ने और कदाचार पर रोक लगने के कारण अधिकांश उपभोक्ता वस्तुओं पर समग्र कर भार कम होगा, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा.

एक्सपर्ट व्यू: वन इंडिया, वन मार्केट, वन टैक्स

संदीप बामजेई, वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार

अगले वित्त वर्ष से संभावित नयी कर प्रणाली (जीएसटी) की दरों को लेकर जीएसटी काउंसिल की तीन दिवसीय बैठक दिल्ली में चल रही है. इसमें विचार-विमर्श के बाद जीएसटी की दरों पर फैसला 20 अक्तूबर को संभव है और यह दर 20 से 22 प्रतिशत रहने की संभावना है. हालांकि, मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की अध्यक्षतावाली समिति ने जीएसटी की मानक दर 17-18 प्रतिशत रखने का सुझाव दिया था. लेकिन, इस मानक दर पर विचार या सहमति की संभावना नहीं दिख रही है. इसके पीछे कुछ राज्यों का दबाव है. कुछ राज्य तो 22 प्रतिशत से भी ज्यादा मानक टैक्स की दर चाहते हैं. इसकी मुख्य वजह है जीएसटी लागू होने पर राज्यों के राजस्व में होनेवाली कमी की पूर्ति का सवाल, कि इस कमी की पूर्ति आखिर कैसे होगी. राज्यों को सबसे ज्यादा राजस्व पेट्रोल, डीजल और तंबाकू उत्पादों से मिलता है. दिल्ली में जहां डीजल 52 रुपये प्रति लीटर मिलता है, वहीं मुंबई में 56 रुपये प्रति लीटर, केरल में 58 रुपये प्रति लीटर. अब तक तो ऑक्ट्रॉय (चुंगी), एक्साइज (राज्यकर), सेल टैक्स (व्यापार कर) आदि सभी अलग-अलग लगाते हैं, लेकिन जीएसटी लागू हो जाने पर इन सबको मिला कर एक टैक्स कर दिया जायेगा, जिससे यह टैक्स 20-22 प्रतिशत के ऊपर पहुंच सकता है. आशंका है कि ऐसे में महंगाई को बढ़ने से रोक पाना मुश्किल होगा. यही वजह है कि अब तक पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, क्योंकि इससे माल ढुलाई भाड़ा बढ़ जाता है. आप चाहे बाल कटाएं, मोबाइल का बिल भरें या बाहर खाना खाएं, आज हर सेवा के लिए आपको टैक्स देना पड़ता है. इसका मतलब यह हुआ कि आज जिन सेवाओं पर टैक्स 15 प्रतिशत है, वह एक अप्रैल, 2017 से जीएसटी लागू होने के बाद 22 प्रतिशत यानी डेढ़ गुना हो जायेगा. मध्यवर्ग और निचले तबके के लिए तो यह हाहाकार की स्थिति होगी. यहां एक बात जरूर है कि जीएसटी लागू होने के बाद ‘कुछ समय’ के लिए तो यह राज्यों को नुकसान पहुंचानेवाला होगा, लेकिन बाद में इससे देश के सभी राज्यों को फायदे हो सकते हैं. क्योंकि, जीएसटी लागू होने और इसके सही तरीके से व्यवहार-व्यापार में जारी रहने से कुछ समय बाद एक स्थिति ऐसी बनेगी कि ‘वन इंडिया, वन मार्केट, वन टैक्स’ हो जायेगा. अब यह कहना मुश्किल है कि वह ‘कुछ समय’ एक साल का होगा, दो साल का होगा या इससे भी ज्यादा का होगा. इन्हीं सालों में राज्यों के राजस्व का कुछ नुकसान हो सकता है, लेकिन ‘वन इंडिया, वन मार्केट, वन टैक्स’ के बाद स्थिति सुधर जायेगी. फिर भी मैं कहूंगा कि आनेवाले वर्षों में राज्यों को भले फायदे हों, उपभोक्ताओं की परेशानी तो हर हाल में बढ़नेवाली है.
(बातचीत पर आधारित)

Next Article

Exit mobile version