मोसुल की जंग :आइएस के खिलाफ खुला बड़ा मोर्चा
सामरिक और रणनीतिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण इराक के इस दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल से इसलामिक स्टेट का स्वयंभू खलीफा अल-बगदादी अपना सिक्का चलाता है. दुनियाभर में आतंकी वारदातों को अंजाम देनेवाले सबसे बड़े और खूंखार आतंकी संगठन इसलामिक स्टेट (आइएस) के किले पर चढ़ाई के लिए इराकी सेना 17 अक्तूबर से अभियान शुरू […]
सामरिक और रणनीतिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण इराक के इस दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल से इसलामिक स्टेट का स्वयंभू खलीफा अल-बगदादी अपना सिक्का चलाता है. दुनियाभर में आतंकी वारदातों को अंजाम देनेवाले सबसे बड़े और खूंखार आतंकी संगठन इसलामिक स्टेट (आइएस) के किले पर चढ़ाई के लिए इराकी सेना 17 अक्तूबर से अभियान शुरू कर चुकी है. लगभग 30 हजार इराकी सैनिक, कुर्दी पेशमर्गा लड़ाके, सुन्नी अरब कबीलाई और शिया लड़ाके आइएस के सफाये और जंग को निर्णायक अंजाम पर पहुंचाने के लिए मोसुल की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे में यदि मोसुल आइएस के कब्जे से मुक्त हो जाता है, तो क्या उसकी कमर टूट जायेगी या आतंकवाद के खिलाफ यह महज शुरुआत भर है? 10 से 15 लाख आबादीवाले मोसुल में चल रही 21वीं सदी की सबसे खूनी जंग क्या परिणाम लेकर आयेगी? ऐसे में उपजे तमाम सवालों और बनते-बिगड़ते हालातों पर केंद्रित है आज का इन दिनों…
इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर काबिज इसलामिक स्टेट के खिलाफ कार्रवाई के सिलसिले में मोसुल पर हमला एक निर्णायक मोड़ है. इस हमले के नतीजों पर न सिर्फ इस खतरनाक आतंकी संगठन का भविष्य निर्भर करता है, बल्कि मध्य-पूर्व में स्थायी शांति स्थापित करने की कोशिशों पर इनके दूरगामी असर होंगे. मोसुल इराक में इसलामिक स्टेट के कब्जे में सबसे बड़ा इलाका है. इसी शहर में अबु बकर अल-बगदादी ने इसलामिक स्टेट के खिलाफत की घोषणा की थी.
क्या हो रहा है मोसुल में
इराक का यह दूसरा सबसे बड़ा शहर मोसुल इसलामिक स्टेट के स्वयंभू खलीफा अल-बगदादी का ठिकाना है. लगभग 30 हजार इराकी सैनिक, कुर्दी पेशमर्गा लड़ाके, सुन्नी अरब कबीलाई और शिया लड़ाके 17 अक्तूबर से मोसुल की ओर बढ़ रहे हैं. इन लड़ाकों को अमेरिकी के नेतृत्ववाले फौज के लड़ाकू विमानों तथा सैन्य सलाहकारों की भरपूर मदद मिल रही है.
इस अभियान में कई हफ्ते लग सकते हैं. माना जाता है कि मोसुल के अंदर तीन से पांच हजार तक इसलामिक स्टेट के लड़ाके हो सकते हैं.
इराक के प्रधानमंत्री हैदर अल-अबादी का कहना है कि उनकी सेनाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं. इस लड़ाई में फंसे शहर के 15 लाख निवासियों की सुरक्षा बड़ी चिंता की बात है. ऐसी खबरें आ रही हैं कि इसलामिक स्टेट इन नागरिकों का इस्तेमाल ढाल के रूप में कर रहा है.
मोसुल के चारों तरफ बसे गांवों और मुख्य सड़कों पर इराकी सुरक्षाबलों और कुर्दी लड़ाकों का कब्जा होता जा रहा है. इसी बीच इसलामिक स्टेट ने पड़ोस में बसे शहर किरकुक के आसपास तेज लड़ाई छेड़ दी है. विभिन्न पर्यवेक्षकों का मानना है कि कई इलाकों को मुक्त करा लिया गया है. सैटेलाइट चित्र भी इनकी पुष्टि कर रहे हैं.
मानवीय संकट
मोसुल पर कब्जे की लड़ाई के तेज होने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दो लाख से अधिक लोग पहले दो हफ्ते में ही विस्थापन के लिए मजबूर हो सकते हैं. शहर से भागनेवाले लोगों को शरण देने के लिए मोसुल के दक्षिण, पूर्व और उत्तर में अस्थायी शिविर लगाये जा रहे हैं. अब तक पांच हजार से अधिक लोग अपने घरों को छोड़ कर भाग चुके हैं. एक आकलन के मुताबिक आगामी दिनों में विस्थापित शरणार्थियों की संख्या 10 लाख से अधिक हो सकती है. जनवरी, 2014 में इराक में इसलामिक स्टेट के हमलों की शुरुआत के बाद से 32 लाख लोग पहले ही विस्थापन का शिकार हैं. वर्ष 2006 से 2008 के बीच के संघर्षों के परिणामस्वरूप अन्य 10 लाख लोग शरणार्थी जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं.
क्यों महत्वपूर्ण है मोसुल
मोसुल की आबादी 20 लाख से अधिक है. इराक एक शिया-बहुल देश है, पर यह शहर सुन्नी समुदाय का सबसे बड़ा केंद्र है. जब तक इस पर अल-बगदादी के लड़ाकों का कब्जा रहेगा, इसलामिक स्टेट देश के बड़े हिस्से को नियंत्रण में रख सकता है. मोसुल में हार से पहले इसलामिक स्टेट पर पूरी जीत का दावा नहीं किया जा सकता है.
मोसुल की आबादी से वसूला जानेवाला राजस्व अल-बगदादी की आय का बड़ा स्रोत है. यहीं पर इस गिरोह का रासायनिक हथियारों का उत्पादन केंद्र है. भौगोलिक रूप से भी यह इलाका बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि तुर्की के कुर्द क्षेत्रों, ईरान और सीरिया को जानेवाले रास्ते यहीं से होकर गुजरते हैं. शासन तंत्र के रूप में अल-बगदादी की खिलाफत की वैधता के लिए भी यह जरूरी है कि उसके नियंत्रण में एक इलाका हो जहां बड़ी आबादी का निवास हो.
बुरा साल रहा है 2016 अल-बगदादी के लिए
इस साल इराक में इसलामिक स्टेट को करारा झटका लगा है. जनवरी में अनबर प्रांत की राजधानी रमादी पर इराकी सुरक्षाबलों का कब्जा हुआ, तो जून में फल्लुजा उसके हाथ से निकल गया. इस शहर पर उसका सबसे अधिक समय तक कब्जा रहा था. जुलाई के अंत तक उसने इराक और सीरिया में अपना 12 फीसदी क्षेत्र गंवा दिया था. अब मोसुल की बारी है. सीरिया में कुछ दिन पहले ही दबिक पर तुर्की समर्थित विद्रोहियों की जीत हुई है. यह इसलामिक स्टेट के लिए बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक क्षटका है क्योंकि उसका दावा था कि इसी शहर में वह अपने विरोधियों से अंतिम निर्णायक लड़ाई लड़ेगा. उसकी ऑनलाइन पत्रिका का नाम भी इसी शहर के नाम पर है. इसलामिक स्टेट की राजधानी माने जानेवाले सीरियाई शहर रक्का पर भी कुर्दी लड़ाकों का दबाव लगातार बढ़ रहा है. ऐसे संकेत हैं कि अमेरिका और उसके सहयोगी इस शहर पर भी बड़े हमले की योजना बना रहे हैं.
मोसुल की लड़ाई क्यों निर्णायक है?
सा ल 2014 के अंत में इसलामिक स्टेट (आइएस) के खिलाफ शुरू किये गये जवाबी हमले में इराकी सेना और उसके सहयोगी उत्तरी और पश्चिमी इराक के कई शहरों को मुक्त कराने में सफल रहे हैं. अत: 17 अक्तूबर की सुबह शुरू हुई मोसुल की लड़ाई जेहादियों को पीछे हटाने में महत्वपूर्ण पड़ाव हो सकती है. लेकिन, मोसुल के लिए केंद्रित लड़ाई में आइएस के साथ कोई अन्य मुठभेड़ नहीं की जा रही है. फिर क्यों इराक के अंदर और बाहर कई लोग मोसुल को निर्णायक लड़ाई मान रहे हैं?
जेहादी समूहों द्वारा जून 2014 में मोसुल पर कब्जे के बाद यह शहर आइएस के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मुख्य केंद्र रहा है. इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल की मुख्य मसजिद की मिंबर को आइएस लीडर और स्वघोषित खलीफा अबू बक्र अल-बगदादी अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया. आकार, सामरिक और ऐतिहासिक वजहों से यह शहर आइएस के कब्जेवाले अन्य स्थानों, यहां तक कि सीरिया के रक्का से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. इसकी शरण में आने के लिए दस हजार से अधिक सुन्नी इराकी कैंपों से विस्थापित हो गये. मोसुल हाथ से निकलते ही आइएस से टैक्स बेस और तेल क्षेत्र छिन जायेंगे और इससे ग्रुप की संसाधनों पर पकड़ ढीली पड़ जायेगी. लेकिन, आइएस के पतन के इतर भी मोसुल का विशेष महत्व है.
करीब 700 ईसा पूर्व जब सेन्नाचेरिब ने इस शहर को अपनी राजधानी बनाया था, तब से इस शहर पर जिसने भी शासन किया, वह पूरे क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व जमाये रखा, चाहे वो असीरियन हों, बेबीलोनियन हों, अरब हो, तुर्क सुल्तान हों या ब्रिटिश साम्राज्य हो. इक्कीसवीं सदी में भी यह सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. आइएस के खात्मे के बाद क्षेत्रीय शक्तियों का मानना है यदि मोसुल को जीता नहीं जा सकता है, तो भी कम-से-कम यह शहर विरोधियों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण होगा. तुर्क इसे पश्चिमी देशों में ईरान के बढ़ते प्रभाव पर अवरोध के रूप में देखते हैं.
अरबों को इस बात की आशंका और भय है कि नव-तुर्क अकांक्षाओं को पाले तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआं इस शहर पर अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं. आपस में जूझते इराकी अरब और कुर्दों का मानना है कि उत्तरी इराक पर नियंत्रण के लिए मोसुल बेहद महत्वपूर्ण है. इस बीच मोसुल अमेरिका (जो अपने प्रयासों को तेज किये हुए है) और रूस के बीच बड़ी लड़ाई को प्रदर्शित करता है. अगर योजना के स्तर पर देखें, तो अमेरिका इराक में अपने अभियानों और रूस की सीरिया के अलेप्पो शहर में गतिविधियों के बीच की खाई को हाइलाइट करेगा. यह धार्मिक-जातीय मिश्रण और व्यापारिक चरित्र में मोसुल की तरह ही सीरियाई शहर है. यदि अमेरिका के नेतृत्व में घेराबंदी के बीच हमले लंबे खिंचते हैं और पुराने मोसुल शहर व इसके निवासियों की बरबादी जारी रहती है, तो इसके समकक्ष शहर में भी ऐसे हमलों को बढ़ावा मिलेगा.
बहुत कुछ शहर की सुन्नी आबादी पर निर्भर करेगा. निश्चित तौर पर आइएस-इराक के बाद मोसुल की आबादी शहर में आइएस की बढ़े प्रभावों का जवाब देने से बचेगी. शहर से नियंत्रण हटने के बाद निर्वात भरने के लिए बाहरी लोगों से लड़ाई हो सकती है. इराकी प्रधानमंत्री हैदर अल-अबादी द्वारा स्थानीय अभियान को नेतृत्व के लिए नाजिम अल-जबौरी को लोकल सुन्नी जनरल बनाने के बावजूद कई सुन्नी भयभीत हैं कि अलेप्पो की तरह मोसुल में सुन्नियों के प्रमुख क्षेत्र को बरबाद करने के लिए वैश्विक शक्तियां ईरानी शासन को मदद कर रही हैं. जून में फालूजा में इराक के पुन: दाखिल होने के बावजूद भरोसा दिलाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया और नरसंहार के आरोप लगते रहे. लेकिन, यदि शिया लड़ाकों को मोसुल से दूर रख कर न्यायसंगत सत्ता की बागडोर शहर के निवासियों के हाथ में आ जाये, तो इराक अभी भी बदलाव की शुरुआत कर सकता है और इस क्षेत्र को सांप्रदायिक युद्ध से बचाया जा सकता है.
(दि इकोनॉमिस्ट की संपादकीय टिप्पणी/साभार )