दीपावली इम्पैक्ट : आतिशबाजी से धुआं-धुआं हुआ शहर, सांस में समाया जहर

त्योहार आम जनजीवन में उल्लास की भावना भरते हैं, लेकिन उन्हें मनाने के तौर-तरीकों पर नियंत्रण न होने के चलते कई तरह की समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं. दीपावली मनाने के दौरान देश के ज्यादातर इलाकों में जम कर आतिशबाजी की जाती है, जिससे बड़े पैमाने पर वायु एवं ध्वनि प्रदूषण फैलता है, जो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 1, 2016 12:15 AM
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त्योहार आम जनजीवन में उल्लास की भावना भरते हैं, लेकिन उन्हें मनाने के तौर-तरीकों पर नियंत्रण न होने के चलते कई तरह की समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं. दीपावली मनाने के दौरान देश के ज्यादातर इलाकों में जम कर आतिशबाजी की जाती है, जिससे बड़े पैमाने पर वायु एवं ध्वनि प्रदूषण फैलता है, जो कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है.
वायु प्रदूषण को लेकर बढ़ती चिंता के मद्देनजर दीवाली से पहले भी आतिशबाजी न करने या सीमित रूप से करने का आह्वान किया जाता है, लेकिन साल-दर-साल के अनुभव बताते हैं कि इसका प्रभाव न के बराबर होता है. इसलिए दीपावली रोशनी और खुशियों के साथ-साथ प्रदूषित हवा की खतरनाक सौगात भी लेकर आती है. देश की राजधानी दिल्ली एवं अन्य शहरों में आतिशबाजी के चलते प्रदूषणके बढ़े स्तर पर एक विश्लेषणात्मक प्रस्तुति…
दीपावली के उत्सव के दौरान व्यापक आतिशबाजी के कारण रविवार रात और सोमवार सुबह देशभर में वायु प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा. इससे अगले दिन भी धुएं के चलते धुंध छायी रही और लोग जहरीली हवा में सांस लेने पर मजबूर हुए. राजधानी दिल्ली के सबसे संभ्रांत और खुले दूतावास इलाके में पीएम 2.5 का स्तर 999 तथा घनी आबादीवाले आनंद विहार में 702 तक पहुंच गया, जो कि 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के सुरक्षित बिंदु से कई गुना है.
पीएम 10 का स्तर भी 999 माइकोग्राम से ऊपर रहा, जो 100 माइक्रोग्राम की सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक है.यह स्थिति तब है, जबकि दिल्ली में पहले से ही प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर रहने के कारण विशेषज्ञों ने दीपावली की आतिशबाजी के असर के प्रति आगाह कर दिया था. उधर, मुंबई में पीएम 2.5 औसतन 494 के स्तर तक बढ़ गया, तो पुणे में 400, अहमदाबाद में 999, लखनऊ में 834 और कोलकाता में 378 दर्ज किया गया. बेंगलुरु में स्थिति कुछ बेहतर रही, लेकिन वहां भी सुरक्षित स्तर से तीन गुना अधिक प्रदूषण रहा. हवा में पीएम 2.5 और 10 का स्तर यानी खतरनाक महीन कणों का बढ़ना फेंफड़ों के लिए घातक है. आतिशबाजी से शीशे, क्रोमियम, जिंक आदि के महीन कण भी हवा में घुल जाते हैं. अन्य गैसों के साथ सल्फर डाइ ऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है. इससे सांस की बीमारियों के अलावा त्वचा से संबंधित शिकायतें भी बढ़ जाती हैं.
घर के भीतर तक प्रदूषण
वाहनों और उद्योगों के धुएं तथा कूड़े के निष्पादन के समुचित इंतजाम न होने के चलते ज्यादातर भारतीय शहरों में हवा पहले से ही दूषित है. पेड़-पौधों की कमी और खुले जगहों के अभाव ने भी इसमें योगदान दिया है. इसका असर न सिर्फ बाहरी वातावरण में है, बल्कि घर के भीतर भी नुकसान पहुंचानेवाले तत्व मौजूद हैं. इस मौसम में दिल्ली में पड़ोसी राज्यों से फसलों से संबंधित कचरा जलाने तथा तापमान और ऊमस में परिवर्तन से भी वायु प्रदूषण बढ़ जाता है. देश के कई शहरों में दशहरे के दौरान भी प्रदूषण में वृद्धि हुई थी.
कानूनी प्रावधान की है सीमा
जानकार बताते हैं कि कानूनी तौर पर पटाखों को नियंत्रित करने के प्रावधान सीमित हैं और प्रशासनिक लापरवाही के कारण उन्हें भी ठीक से लागू नहीं किया जाता है. देर रात और बड़े पटाखे न चलाने के अदालती व प्रशासनिक आदेशों और निवेदनों पर लोग भी ध्यान नहीं देते हैं. ऐसे में आतिशबाजी की परिपाटी एक बड़ी चिंता में तब्दील होती जा रही है, जिसे रोकने के लिए समाज व सरकार को मिल-जुल कर प्रयास करना होगा. –
पार्टिकुलेट मैटर
पार्टिकुलेट मैटर या पीएम हवा में तैरनेवाले ठोस और द्रव ड्रॉपलेट्स का मिश्रण है. कुछ पीएम कई खास स्रोतों से सीधे वायुमंडल में छोड़े जाते हैं, जबकि इसके अनेक प्रारूपों का निर्माण जटिल रासायनिक प्रतिक्रियाओं का नतीजा है. ये पार्टिकल्स विविध आकार के होते हैं.
पीएम 10 : पार्टिकुलेट मैटर जिसका आकार 10 माइक्रोमीटर या उससे कम हो. उल्लेखनीय है कि 100 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले पार्टिकल्स सांस के जरिये फेफड़े में प्रवेश कर जाते हैं और स्वास्थ्य संबंधी समस्या पैदा करते हैं. इनसान के बाल का व्यास लगभग 100 माइक्रोमीटर होता है.
कैसे पैदा होता है : प्लास्टिक की बोतलों व इलेक्ट्रॉनिक सामान समेत अनेक प्रकार के कचरों को जलाने से यह पैदा होता है.
पीएम 2.5 : हवा में यह सबसे खतरनाक पार्टिकल्स है. यह आधे माइक्रॉन से भी कम व्यास का होता है. यह ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर व हृदय से जुड़ी अनेक बीमारियां पैदा करता है.
कैसे पैदा होता है : यह दो स्रोतों से पैदा होता है- आउटडोर व इनडोर. आउटडोर स्रोत कारों, बसों, ट्रकों जैसे सड़क परिवहन के साधनों समेत लकड़ी, तेल या कोयला आदि जलाने से जुड़े हैं, जबकि आंतरिक स्रोतों में मिट्टी तेल के लैंप, मोमबत्ती आदि जलाने से जुड़े हैं. –
फेफड़े को खराब कर देती है प्रदूषित हवा
वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव और जरूरी सावधानियां
डॉ संदीप नायर, एचओडी व सीनियर कंसल्टेंट, रेस्पिरेटरी डिपार्टमेंट, बीएलके हॉस्पिटल, दिल्ली
वायु प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. प्रदूषित हवा में सांस लेने से शरीर में अशुद्ध वायु प्रवेश करती है. यह वायु रक्त के माध्यम से हमारे शरीर के हर अंग में पहुंचती है और उसे क्षति पहुंचाती है. प्रदूषित वायु में सांस लेने से सबसे ज्यादा नुकसान फेफड़े को होता है. जब हम सांस लेते हैं, तो सांस के माध्यम से वायु सबसे पहले फेफड़ों में पहुंचती है.
यह अशुद्ध हवा दमा और सांस के रोगियों की दिक्कत बढ़ाने के साथ सामान्य लोगों के फेफड़े को भी खराब कर देती है. रक्त के माध्यम से प्रदूषित वायु हमारे हृदय में और अन्य अंगों तक पहुंचती है व उसे नुकसान पहुंचाती है. इस संबंध में हुए एक नये अध्ययन के अनुसार, प्रदूषित वायु के कारण अशुद्ध हुए रक्त को एक से दूसरी जगह पहुंचाने के क्रम में हमारी रक्त नलिकाएं यानी ब्लड वेसेल्स को भी क्षति पहुंचती है. नतीजा, दिल का दौरा और स्ट्रोक पड़ने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है. प्रदूषित वायु के कारण होनेवाली परेशानियों में आंखों में जलन और त्वचा का जल्द बूढ़ा हो जाना शामिल है. इससे बालों को भी काफी नुकसान पहुंचता है और वे भूरे व असमय सफेद हो जाते हैं.
बरतें ये सावधानी : प्रदूषित हवा से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए. अगर बाहर जाएं, तो चेहरे को ढक कर रखें, ताकि यह हवा सीधे हमारे फेफड़े तक न पहुंचे. जिन्हें दमा या सांस की तकलीफ है, वे नियमित रूप से अपनी दवा लेते रहें, क्योंकि इस समय अटैक पड़ने का खतरा सबसे ज्यादा होता है. वायु में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर बच्चों और बूढ़ों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है. ऐसा नहीं होने पर उनको अटैक पड़ सकता है, क्योंकि उनके सभी अंग बेहद नाजुक होते हैं और जल्दी प्रभावित होते हैं. कुहरा और प्रदूषित हवा मिल कर स्मोक बनाते है. ऐसे में बूढ़े, बच्चे या जिन्हें सांस की दिक्कत है, वे इस समय बाहर जाने से बचें.
हवा में पार्टिकुलेट मैटर बढ़ने से असर
पार्टिकुलेट मैटर कितना नुकसान पहुंचायेगा यह उसके आकार पर निर्भर करता है. हालांकि, सभी साइज के पार्टिकुलेट मैटर शरीर के लिए नुकसानदेह होते हैं, लेकिन पीएम 2.5 माइक्रॉन से छोटे आकार के मैटर ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं, क्योंकि वे सांस के साथ सीधे हमारे फेफड़ों में चले जाते हैं. आम तौर पर हवा में पीएम की मात्रा 60 से 65 होनी चाहिए, जो प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ 400-500 तक चली जाती है, जो खतरनाक होती है. हवा में पीएम की मात्रा बढ़ने से वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे विषैले गैसों की मात्रा भी बढ़ जाती है. पटाखों और वाहनों से निकलनेवाले धुंओं में अत्यधिक मात्रा में पायी जाने वाली ये गैसें बहुत ज्यादा नुकसानदेह
होती हैं. (बातचीत पर आधारित)-
वायु प्रदूषण
वायुमंडल में मौजूद हवा में हानिकारक पार्टिकुलेट्स व बायोलॉजिकल अणुओं की मात्रा बढ़ने से जब लोगों को एलर्जी समेत कई जानलेवा बीमारियां होने लगती हैं और फसलों व पर्यावरण को नुकसान होने लगता है, तो उसे वायु प्रदूषण कहा जाता है. कई बार प्राकृतिक स्रोतों से भी यह प्रदूषण फैलता है, लेकिन जीवाश्म ईंधन समेत विभिन्न कृत्रिम कारक इसके लिए मुख्य जिम्मेवार समझे जाते हैं.
एयर पॉल्युटेंट : एयर पॉल्युटेंट हवा में मौजूद ऐसे पदार्थ हैं, जो इनसान और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए घातक होते हैं. यह पदार्थ ठोस कणों, लिक्विड ड्रॉपलेट्स या गैस के रूप में हो सकते हैं, जो प्राकृतिक और मानव-जनित, दोनों ही कारणों से पैदा होते हैं.
मानव-जनित प्रमुख पॉल्युटेंट
– सल्फर ऑक्साइड – नाइट्रोजन ऑक्साइड – कार्बन मोनोऑक्साइड
– मीथेन – क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स
– अमोनिया – रेडियोएक्टिव पॉल्युटेंट्स .
ध्वनि प्रदूषण भी खतरनाक
मशीनों और सड़क व वायु परिवहन के विविध साधनों से पैदा होनेवाली आवाज के कारण ध्वनि प्रदूषण पैदा होता है. औद्योगीकरण के बाद से दुनियाभर में इसमें वृद्धि हुई है. भारत में अनेक मौकों पर पटाखों और लाउडस्पीकरों से निकलनेवाली तेज आवाज से इस प्रदूषण में और ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है. हालांकि, सरकार ने इसके लिए नियम और अधिनियम बनाये हैं, लेकिन उनका समुचित पालन न होने के कारण यह बढ़ता जा रहा है.
स्वास्थ्य पर असर
– श्रवण बाधा : ध्वनि प्रदूषण का सबसे खतरनाक असर श्रवण बाधा है यानी इससे इनसान बहरा हो सकता है. लगातार 100 डेसीबेल से ज्यादा आवाज के बीच रहने से इनसान स्थायी रूप से बहरा हो सकता है.
– बोलने पर असर : इससे इनसान के स्वाभाविक रूप से बोलने का तरीका प्रभावित होता है और बोलने में दिक्कत होती है. खासकर रोड ट्रैफिक और एयरो प्लेन से होनेवाले ध्वनि प्रदूषण के कारण यह समस्या ज्यादा होती है.
– थकान और मानसिक बीमारियां : लगातार तेज ध्वनि के संपर्क में रहने पर इनसान मानसिक रूप से जल्द थक जाता है, जिसका असर कई तरह की मानसिक बीमारियों के रूप में सामने आता है.
– अन्य नुकसान : इससे हाइपरटेंशन और हृदय के धड़कने की गति में अनियमितता समेत अनेक अन्य शारीरिक और मानसिक नुकसान देखे गये हैं.
एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) के आंकड़ों को समझिए
एक्यूआइ स्तर स्वास्थ्य पर संभावित असर
0- 50 अच्छा न्यूनतम असर.
51-100 संतोषजनक संवेदी व्यक्तियों को सांस लेने में कुछ मुश्किल होना.
101- 200 नियंत्रण में फेफड़ा, अस्थ्मा और हृदय रोगियों को सांस लेने में दिक्कत.
201- 300 खराब ज्यादातर लोगों में सांस संबंधी दीर्घकालीन असर.
301- 400 बहुत खराब लंबी अवधि तक इसकी चपेट में आने से सांस की बीमारी का खतरा.
401- 500 घातक सेहतमंद लोगों को प्रभावित करने के साथ बीमारी वालों पर गंभीर असर.
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