अपनी जान की रक्षा के लिए आपको ही आगे आना होगा
अनुज कुमार सिन्हा इन दाे खबराें काे पढ़िए. एक : दीपावली के दिन दिल्ली में वायु प्रदूषण आम दिनाें की अपेक्षा आठ गुना. स्थिति इतनी खराब कि दूसरे दिन सवेरे सड़क पर 200 मीटर से आगे कुछ नजर नहीं आ रहा. दाे : वायु प्रदूषण से हर साल पांच वर्ष तक की उम्र के छह […]
अनुज कुमार सिन्हा
इन दाे खबराें काे पढ़िए.
एक : दीपावली के दिन दिल्ली में वायु प्रदूषण आम दिनाें की अपेक्षा आठ गुना. स्थिति इतनी खराब कि दूसरे दिन सवेरे सड़क पर 200 मीटर से आगे कुछ नजर नहीं आ रहा.
दाे : वायु प्रदूषण से हर साल पांच वर्ष तक की उम्र के छह लाख बच्चाें की माैत (यूनिसेफ की रिपाेर्ट).
ये दाेनाें खबरें सीधे ताैर पर आपसे भी जुड़ी हुई हैं. अब ताे मान लीजिए कि दीपावली में जाे बम-पटाखा आपने (या आपके पड़ाेसियाें ने) छाेड़ा-फाेड़ा, उसने अपना असर दिखाया आैर अब आप सभी इसका दुष्परिणाम झेलने के लिए तैयार रहिए. यह सिर्फ दिल्ली की बात नहीं है.
दिल्ली में संबंधित विभाग-मीडिया की चाैकसी के कारण यह आंकड़ा इतनी जल्दी आ गया. रांची, पटना, धनबाद, जमशेदपुर, काेलकाता समेत अनेक शहराें में भी दीपावली के दिन का आंकड़ा निकाल लीजिए. सामान्य दिनाें की तुलना में कई गुना अधिक वायु प्रदूषण मिलेगा. ये हालात किसी आैर ने नहीं, हमने आैर आपने बनाये हैं. पहले दिल्ली की उस रिपाेर्ट पर बात करें जिस पर पूरा देश चिंतित है. हवा में जिस पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) 10 की मात्रा 100 माइक्राेग्राम प्रति घनमीटर हाेनी चाहिए, वह 785 से ज्यादा मिला, यानी लगभग आठ गुना ज्यादा. कहीं-कहीं ताे यह 10-15 गुना भी ज्यादा था. यह खतरनाक है, जानलेवा है. साेचिए पटाखे-बम रात में चलाये गये, 12 घंटे बाद भी अगर गहरा कुहासा छाया हुआ था, 200 मीटर से आगे कुछ दिख नहीं रहा था, ताे अंदाजा लगा लीजिए कि असर कितना ज्यादा है.
ऐसी बात नहीं है कि दीपावली बीत जाने के बाद इसका असर खत्म हाे गया. जब पटाखे-बम जलाये जाते हैं, उस समय ताे इसका असर हाेता ही है, उसका अवशेष (जला हुआ हिस्सा) भी कम खतरनाक नहीं हाेता. छाेटे-छाेटे जाे कण हाेते हैं, वे फेफड़े में जाकर बैठ जाते हैं, खून तक पहुंच जाते हैं आैर इससे फेफड़े का कैंसर तक हाे सकता है. आप यह अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि इसका इतना घातक असर हाेता है. सांस की बीमारियां हाे सकती हैं. एक स्वस्थ व्यक्ति भी उस समय असहज महसूस करता है, नाक बंद करने लगता है, जब पास में पटाखे, बम या बारूद युक्त सामग्री जलती है.
भाग कर कहां जाइएगा, हर जगह ताे यही हालात था. कहीं ज्यादा ताे कहीं कम. याद कीजिए दिल्ली एक साल पहले दुनिया की सबसे प्रदूषित शहर बन गयी थी. इसमें सुधार के लिए सभी लग गये थे. अदालत इसकी निगरानी करने लगा था. कुछ सुधार हुआ, लेकिन वही हालात.
बिहार-झारखंड की बात करें ताे पहले से यहां धनबाद आैर पटना दाे ऐसे शहर हैं, जिनकी गिनती देश के शीर्ष प्रदूषित शहराें में हाेती रही है. यानी सालाें भर यहां वायु प्रदूषण का असर दिखता है. दीपावली की बात ताे आैर है. इसे ठीक करने की काेई याेजना नहीं दिखती, काेई प्रयास नहीं हाेता. यह ताे सिर्फ वायु प्रदूषण की बात है. जितनी तेज आवाज के पटाखे-बम छाेड़े गये, उसका कान पर गहरा असर पड़ता है.
धार्मिक आयाेजनाें के नाम पर तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाये जाते हैं. काेई राेकनेवाला नहीं है. कानून बना हुआ है, लेकिन पालन नहीं हाेता. जिसने भी राेकने का प्रयास किया, लाेग उलझ जाते हैं. बजानेवाले भी नहीं समझते कि खुद उन पर इसका बुरा असर पड़ता है. बाद में पछताने से क्या हाेगा?
अभी यूनिसेफ ने एक रिपाेर्ट जारी की है. वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर पांच साल से कम उम्र के बच्चाें पर पड़ता है. हर साल दुनिया में छह लाख से ज्यादा बच्चे इसी प्रदूषण से मर रहे हैं. हालात कहां तक बिगड़ चुका है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया में 300 मिलियन बच्चे इससे पीड़ित हैं. इनमें से 220 मिलियन ताे सिर्फ दक्षिण एशिया में हैं. भारत पर ताे इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है आैर यहां के बच्चे इसका शिकार हाे रहे हैं.
अब समय आ गया है, लाेग चेतें. दीपावली बीत चुकी है. आपने या आपके पड़ाेसियाें ने वायु में जहर घाेला, उसका खामियाजा अब आपकाे भुगतना पड़ेगा. संभव हाे कि आप चाैकस रहे हाें आैर आपने ऐसा कुछ नहीं किया, लेकिन जब आपके पड़ाेसियाें ने ऐसे बम-पटाखे फाेड़े ताे आपने मना भी नहीं किया. ऐसा नहीं हाेता कि जिस घर के लाेग वायु प्रदूषण फैला रहे हैं, उसका खामियाजा सिर्फ उसी परिवार काे भुगतना पड़ेगा. हम सब उसकी चपेट में आ चुके हैं. यह चेतने का वक्त है. गाैर करिए, यह कण खतरनाक है, जानलेवा है, कैंसर तक हाे सकता है. इतना जानने के बावजूद अगर आप चुप रहें या पुरानी गलतियां करते हैं, ताे भगवान ही बचा सकता है इस ब्रह्मांड काे. अपने लिए साेचिए, अपने परिवार, मित्र, समाज के बारे में साेचिए. पाश्चात्य देशाें में एेसे हालात नहीं हैं.
वहां लाेग अपने जीवन के बारे में सचेत हैं, आप अगर गलती करते हैं, ताे न सिर्फ आपकाे राेका जायेगा, बल्कि कानून के तहत आपसे हर्जाना भी वसूला जायेगा. प्रदूषण दुनिया का सबसे बड़ा आैर गहरा संकट है. आपकी थाेड़ी सी लापरवाही अापका जीवन ले सकती है अाैर आपका एक प्रयास लाखाें लाेगाें का जीवन (इसमें आपकी जान भी शामिल है) बचा सकता है. बस, जरूरत है-आपके सार्थक प्रयास की.