अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव आज : भारतीय-अमेरिकी मतदाता भी हैं महत्वपूर्ण
अमेरिका में एशियाई मूल के लोगों में चीनी और फिलीपीनी लोगों के बाद सर्वाधिक संख्या भारतीयों की है. करीब 32 लाख भारतीय मूल के लोग अमेरिका में हैं. वर्ष 2013 के आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 56 फीसदी लोग अमेरिकी नागरिक थे. तीन सालों में यह संख्या कुछ बढ़ी ही है. पारिवारिक आय और बेहतर […]
अमेरिका में एशियाई मूल के लोगों में चीनी और फिलीपीनी लोगों के बाद सर्वाधिक संख्या भारतीयों की है. करीब 32 लाख भारतीय मूल के लोग अमेरिका में हैं. वर्ष 2013 के आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 56 फीसदी लोग अमेरिकी नागरिक थे. तीन सालों में यह संख्या कुछ बढ़ी ही है. पारिवारिक आय और बेहतर रोजगार के कारण यह तबका राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है और दोनों प्रमुख पार्टियां-रिपब्लिकन और डेमोक्रेट-इन्हें अपने पाले में खींचने की लगातार कोशिश कर रहे हैं.
विभिन्न सर्वेक्षणों के रुझान बताते हैं कि भारतीय मूल के 55 से 65 फीसदी मतदाता डेमोक्रेट पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के पक्ष में मतदान कर सकते हैं. रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप से न सिर्फ अधिकतर भारतीय, बल्कि अन्य एशियाई लोग भी आशंकित हैं क्योंकि वे लगातार आप्रवासन नियमों को कठोर बनाने की बात करते रहे हैं.
वहीं दूसरी ओर, हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिका में काम या शिक्षा प्राप्त कर रहे लोगों के लिए नरम नीति बनाने का वादा किया है. मुसलिम और मेक्सिको के लोगों के बारे में ट्रंप के आपत्तिजनक रवैये से अन्य आप्रवासी समुदायों का चिंतित होना स्वाभाविक है क्योंकि आप्रवासन नीतियों में व्यापक बदलाव का सीधा असर उन पर भी पड़ेगा.
अमेरिका में पढ़नेवाले सबसे अधिक विदेशी छात्र भारत से हैं और ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से उनके रोजगार के अवसरों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. साथ ही, भारतीय एच1बी वीजा के लिए आवेदन करनेवालों में सबसे आगे हैं. वहां कार्यरत भारत समेत विभिन्न देशों के लोग कड़े वीजा नियमों के कारण अपने परिवार को साथ नहीं रख पाते हैं. हिलेरी क्लिंटन ने अपने घोषणापत्र में इनमें ढील देने का भरोसा दिया है. ट्रंप द्वारा आप्रवासियों और अन्य देशों पर अमेरिका की अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन में मुश्किल खड़ा करने के आरोप लगाने के कारण श्वेत अमेरिकियों के एक बड़े समूह में नस्लवादी और विभाजनकारी तेवर भी बढ़े हैं. इससे अल्पसंख्यक समुदायों में असुरक्षा की भावना
बढ़ी है.
आप्रवासियों समेत अधिकतर अमेरिकी मानते हैं कि रिपब्लिकन पार्टी धनी लोगों की पक्षधर है और मध्यवर्गीय अमेरिकी हितों के प्रति उदासीन है. इस पृष्ठभूमि में अनेक भारतीय मूल के मतदाता हिलेरी क्लिंटन या डेमोक्रेट पार्टी की नीतियों से असंतुष्ट होते हुए भी उन्हें समर्थन करने के लिए विवश है. इस संदर्भ में यह एक दिलचस्प तथ्य है कि अमेरिका में रह रहे भारतीयों की बड़ी संख्या भारत में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समर्थक है.
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे अधिक आर्थिक योगदान करनेवालों में आप्रवासी भारतीय भी शामिल थे. पिछले वर्ष सितंबर में मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी-भारतीयों का उनके प्रति समर्थन दिखा भी था. शायद यही कारण है कि मुसलिम समुदाय के विरुद्ध कट्टर रवैया रखनेवाले ट्रंप ने हिंदू राष्ट्रवादियों को अपने प्रचार अभियान से जोड़ा है. ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी हिंदू समूह ने घोषित रूप से राष्ट्रपति के उम्मीदवार को समर्थन दिया है. यह समूह पाकिस्तान से भारत के मौजूदा तनाव का भी राजनीतिक लाभ उठाने के लिए पाकिस्तान विरोधी प्रचार कर रहा है और हिलेरी क्लिंटन की नजदीकी सहयोगी हुमा आबेदीन के हवाले उन्हें पाकिस्तान-परस्त बता रहा है. लेकिन वास्तविकता यह है कि आबेदीन के पिता भारतीय थे और माता पाकिस्तानी हैं.
बहरहाल, रिपब्लिकन हिंदू समूह का भारतीय समुदाय में असर बहुत कम है और ट्रंप अभियान से जुड़ने के कारण इसकी छवि और भी कमजोर हुई है. अमेरिका में बसे प्रवासियों के बीच, खासकर दक्षिण एशियाई लोगों में, आपसी सामाजिक और कारोबारी संबंध बहुत मजबूत हैं. अमेरिका में उनके हित दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय राजनीति से विशेष प्रभावित नहीं होते.
ऐसे में उनका राजनीतिक निर्णय वहां की नीतियों पर आधारित होता है. यही कारण है कि अनेक दक्षिण एशियाई सेलिब्रेटी, कलाकार, लेखक आदि ‘वोट अगेंस्ट हेट’ के नारे के साथ डोनाल्ड ट्रंप का विरोध कर रहे हैं. ‘वाशिंगटन पोस्ट’ की एक रिपोर्ट में विभिन्न सर्वेक्षणों के आधार पर कहा गया है कि 70 फीसदी भारतीय मतदाता हिलेरी क्लिंटन को वोट दे सकते हैं, जबकि डोनाल्ड ट्रंप को मात्र सात फीसदी वोट मिलने की संभावना है.
अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी समूह की आबादी
32 लाख आबादी है भारतीय-अमेरिकी समूह के लोगों की.
एशियाई आबादी में सबसे ज्यादा चीनी हैं अमेरिका में, उसके बाद फिलीपीनी. भारतीय मूल की आबादी यहां तीसरे नंबर पर है.
70 फीसदी भारतीय-अमेरिकी हिलेरी के समर्थक
नेशनल एशियन अमेरिकन सर्वे (एनएएएस) के हवाले से ‘अमेरिकन बाजार ऑनलाइन’ पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ज्यादातर भारतीय-अमेरिकी वोटर्स का समर्थन डेमोक्रेटिक पार्टी को मिलने की उम्मीद है. दूसरी ओर डोनाल्ड ट्रंप को महज सात फीसदी भारतीय-अमेरिकियों का समर्थन हासिल हो सकता है.
सर्वेक्षण के प्रमुख तथ्य
– इस सर्वेक्षण के तहत 2,238 एशियाई-अमेरिकियों और 305 हवाई और पेसिफिक के मूल निवासियों से बातचीत की गयी.
– हासिल किये गये आंकड़ों को ज्यादा-से-ज्यादा सटीक बनाने के लिए विविध समुदायों के लोगों से अंगरेजी के अलावा उनकी अपनी भाषा में बात की गयी.
– अंगरेजी में पूरी तरह से दक्ष नहीं रहे करीब 45 फीसदी लोगों से कैंटोनीज, मंदारिन, कोरियन, वियतनामी, टैगालोग, जापानी, हिंदी, हमोंग और कंबोडियाई भाषा में बातचीत की गयी.
– अमेरिका में एशियाई मूल के लोगों की बड़ी आबादी है और अनेक समूह हैं, लेकिन विविध समूहों के कारण राजनीतिक परंपरा भी अलग-अलग है.
– समझा जाता है कि वियतनाम मूल के अमेरिकी एेतिहासिक रूप से रिपब्लिकन के समर्थक हैं, जबकि जापानी मूल के अमेरिकी डेमोक्रेटिक के समर्थक हैं.
– नेशनल एशियन अमेरिकन सर्वे (एनएएएस) के डायरेक्टर कार्तिक रामकृष्णन कहते हैं, ‘रिपब्लिकन पार्टी खुद की इमेज को इस तरह प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रही है कि वह ज्यादा ऑपेन होने के साथ ज्यादा सहिष्णु भी है. और इसलिए उनकी पहुंच समुदाय के अधिकतम लोगों के बीच है.’
– कैलिफोर्निया के स्टेट लेजिस्लेचर चुनाव के दौरान वर्ष 2014 में एशियाई मूल के अमेरिकी लोगों ने रिपब्लिकंस की जीत में बड़ी भूमिका निभायी थी.
– सर्वेक्षण में पाया गया है कि एशिया के विविध देशों के अमेरिकी मूल के निवासियों में समूहों और क्षेत्रों के आधार पर मतों में विविधता है.
कमला हैरिस बन सकती हैं सीनेटर
वर्ष 2010 से कैलिफोर्निया की अटाॅर्नी जनरल रहीं कमला हैरिस का अमेरिकी कांग्रेस में भारतीय मूल की पहली सीनेटर बनना तकरीबन तय माना जा रहा है. आज होनेवाले चुनाव से पहले के अब तक के ज्यादातर सर्वेक्षणों में उनकी बढ़त दिखायी जा रही है. 51 वर्षीय हैरिस को प्रांत की नयी सीनेटर के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का पहले ही समर्थन मिल गया है.
इससे भारतीय अमेरिकी समुदाय के तौर पर कमला का ऊपरी सदन का सदस्य बनने की संभावनाएं मजबूत हो गयी हैं. कमला ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अलावा कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी व हेस्टिंग्स कॉलेज ऑफ लॉ से पढ़ाई की है. वर्ष 1990 से 1998 तक कैलिफोर्निया के एलामेडा काउंटी में डिप्टी डिस्ट्रिक्ट एटॉर्नी के तौर पर काम करने के बाद वर्ष 2000 तक उन्होंने सैनफ्रांसिस्काे डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी के ऑफिस में क्रिमिनल यूनिट में मैनेजिंग अटॉर्नी की भी भूमिका निभायी. इसके बाद 2003 तक सैनफ्रांसिस्काे सिटी अटॉर्नी के ऑफिस में चीफ ऑफ द कम्युनिटी एंड नेबरहुड डिविजन के तौर पर कार्य किया.
अमेरिका के ऑकलैंड में 20 अक्तूबर, 1964 को जन्मी कमला के पिता जमैका मूल के हैं, जबकि उनकी मां चेन्नई की रहनेवाली हैं और वे 1960 के दशक में ही अमेरिका चली गयी थीं. कमला को कैलिफोर्निया का पहला एशियाइ-अमेरिकी अटॉर्नी जनरल भी माना गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इनकी सुंदरता की तारीफ करते हुए कहा कि वह देश की सबसे खूबसूरत अटॉर्नी जनरल हैं. हालांकि, इसके बाद विवाद बढ़ जाने से ओबामा ने माफी भी मांग ली. कमला ने विली ब्राउन से शादी की, लेकिन कुछ महीने बाद ही वे अलग हो गये.
भारतीय-अमेरिकी उम्मीदवार मैदान में
डेमोक्रेटिक पार्टी के अमी बेरा अमेरिकी कांग्रेस में एक मात्र भारतीय-अमेरिकी हैं और इस सदन के लंबे इतिहास में इस समुदाय से सिर्फ तीसरे प्रतिनिधि हैं. पेशे से चिकित्सक बेरा कैलिफोर्निया का प्रतिनिधित्व करते हैं और वे फिर से चुनावी मैदान में हैं. लेकिन आठ नवंबर के चुनाव में कुछ अन्य भारतीय-अमेरिकी कांग्रेस के लिए निर्वाचित हो सकते हैं. ऐसे तीन उम्मीदवारों पर एक नजर-
रो खन्ना
तकनीकी मामलों के वकील और अर्थशास्त्र के प्रवक्ता 40 वर्षीय रो खन्ना कैलिफोर्निया से डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार हैं. भारतीय आप्रवासियों की संतान खन्ना के चुनाव क्षेत्र में अमेरिका के किसी अन्य क्षेत्र से अधिक भारतीय-अमेरिकी बसते हैं और यह राज्य डेमोक्रेटिक पार्टी का परपंरागत गढ़ भी है. वे ओबामा प्रशासन के तहत वाणिज्य विभाग में अमेरिकी निर्यात को बढ़ाने की जिम्मेवारी भी निभा चुके हैं. कर्ज मुक्त कॉलेज शिक्षा, समान काम के लिए समान वेतन, सार्वभौमिक प्री-स्कूल, 15 डॉलर प्रति घंटे न्यूनतम मजदूरी, बेघरबार लोगों की मदद जैसे मुद्दों पर उनके रुख ने मतदाताओं को गहरे तक प्रभावित किया है. उन्होंने बड़े कॉरपोरेशनों, लॉबी करनेवाले और धनी लोगों के समूह से चंदा लेने से भी मना कर दिया है. मैनुफैक्चरिंग और सॉफ्टवेयर सेक्टर के लिए उनकी नीतियां भी खूब सराही गयी हैं.
प्रमिला जयपाल
51 वर्षीया जयपाल फिलहाल वाशिंगटन के स्टेट सीनेट की सदस्या हैं और अगर वह मौजूदा चुनाव में विजयी होती हैं, तो कांग्रेस में कदम रखनेवाली वे पहली महिला भारतीय-अमेरिकी होंगी. आप्रवासियों के अधिकारों के लिए लंबे समय से सक्रिय रहनेवाली जयपाल को उनके प्रगतिशील मूल्यों में दृढ़ विश्वास के लिए जाना जाता है. वे भारत में पैदा हुई थीं और 16 वर्ष की उम्र में वहां पढ़ाई के लिए गयी थीं. डेमोक्रेट पार्टी में कांग्रेस सदस्य के उम्मीदवार के चयन के लिए हुए चुनाव में भारी बहुमत से जीती थीं.
राजा कृष्णमूर्ति
पेशे से वकील और उद्यमी कृष्णमूर्ति इलिनॉय से डेमोक्रेट उम्मीदवार हैं. मध्यवर्गीय परिवारों की समस्याओं और रोजगार सृजन के मुद्दे पर वे पिछले साल भर से लगातार प्रचार कर रहे हैं. पार्टी के भीतर उम्मीदवार के लिए हुए चुनाव में 43 वर्षीय कृष्णमूर्ति को 60 फीसदी से अधिक मत मिले थे जो उनकी लोकप्रियता का संकेत है.