Loading election data...

हताश हो रहे हैं कश्मीरी किसान

चिंता : लगातार कम होता केसर का उत्पादन महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश के बाद अब कश्मीर से भी किसानों की हताशा की खबरें आ रही हैं. ये किसान केसर पैदा करते हैं. कश्मीर बेशकीमती केसर के लिए भी जाना जाता है. केसर का जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है. इससे करीब 20 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 8, 2016 8:29 AM

चिंता : लगातार कम होता केसर का उत्पादन

महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश के बाद अब कश्मीर से भी किसानों की हताशा की खबरें आ रही हैं. ये किसान केसर पैदा करते हैं. कश्मीर बेशकीमती केसर के लिए भी जाना जाता है. केसर का जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है. इससे करीब 20 हजार परिवारों की रोजी-रोटी चलती है. पढ़िए कश्मीर की नयी मुश्किल पर एक रिपोर्ट.

कश्मीर में केसर उपजाने वाले किसान उत्पादन में लगातार कमी से परेशान हैं. जैसे-जैसे केसर के परिपक्व जामुनी रंग के फूल तोड़ने के दिन नजदीक आ रहे हैं, पुलवामा जिले के लेथीपोरा के किसानों को उत्पादन की फिक्र होने लगी है.

श्रीनगर से करीब 20 किमी दूर पामपोर शहर के पास लेथीपोरा केसर (सैफरोन) की खेती के लिए विख्यात है. यहां के ज्यादातर लोग आर्थिक रूप से केसर की खेती पर ही निर्भर हैं. चंधारा, समबोरा, लाडु, कोनिबाल व अोंडोरस जैसे

गांव केसर की खेती के लिए ही जाने जाते हैं.

पैमपोर इन्हीं गांवों की बदौलत केसर बाजार के रूप में मशहूर है. केसर बेशकीमती है. इसे किंग अॉफ स्पाइसेस (मसालों का राजा) कहा जाता है. इसका उत्पादन इरान व स्पेन के अलावा भारत के कश्मीर में होता है. पूरे कश्मीर में सिर्फ पुलवामा केसर का उत्पादक जिला है. कश्मीर के अलग-अलग हिस्से विभिन्न बागवानी उत्पादों के लिए मशहूर हैं. उत्तरी शहर सोपोर तथा दक्षिणी शहर सोपलान सेब के लिए. मध्य जिला बदगाम बादाम (एलमंड) तथा उत्तरी जिला कुपवाड़ा अखरोट (वालनट) के लिए.

दरअसल केसर का जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है. बागवानी उत्पादों के बाद केसर ही राज्य का सबसे बड़ा उद्यम है. इससे करीब 20 हजार परिवारों की रोजी-रोटी चलती है. कश्मीर में केसर की खेती का इतिहास 500 ईस्वी से शुरू होता है. भारत में केसर की खेती में इसका एकाधिकार है.

फिर भी भारत को केसर का आयात करना पड़ता है. देश में हर वर्ष 10 से 15 टन मीट्रिक टन केसर का उत्पादन होता है, जबकि मांग करीब 40 मीट्रिक टन की है. हर वर्ष नवंबर के शुरुआत में खेत केसर के गुलाबी फूलों से भर जाते हैं तथा किसान चाय की तरह टोकरियां लिए केसर के फूल तोड़ते हैं.

सिर्फ उत्पादन में कमी ही इस सुनहले व खुशबूदार फसल की समस्या नहीं है. केसर की खेती का रकबा भी तेजी से घट रहा है. एक किसान अहमद के मुताबिक, वर्ष 2000 की तुलना में अब 10 फीसदी क्षेत्र में ही केसर लगाये जाते हैं. पुलवामा के गुलाम नबी रेशी ने कहा कि 20-25 वर्ष पहले केसर के खेत नोट छापने की मशीन की तरह थे. पर अब हालात बदल गये हैं.

1990 में केसर का उत्पादन ऐतिहासिक रहा था. तब करीब 5700 हेक्टेयर खेतों से 15.5 टन केसर का उत्पादन हुआ था. पर इसके बाद हर वर्ष अगस्त व सितंबर में के या अत्यधिक बारिश से केसर की फसल बरबाद होती रही है. एक किसान दिलावर रेशी ने बताया कि 1999-2000 तक कश्मीर में 1000-1200 मिमी सालाना बारिश होती थी, जो अब घटकर 600-800 मिमी रह गयी है. केसर के खेत भी पांच हजार हेक्टेयरसे घट कर वर्ष 2006 तक 2880 हेक्टेयर रह गये हैं. अाबादी व शहरीकरण बढ़ने से ऐसे हुआ है.

वर्ष 2010 से केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय केसर मिशन की शुरुआत की. इसके तहत 373 करोड़ रु के ड्रिप इरिगेशन व अन्य प्रोजेक्ट शुरू किये गये थे. पर अाज तक इस इरिगेशन सिस्टम ने काम करना शुरू नहीं किया है.

कश्मीर के किसानों की एक दूसरी समस्या केसर में मिलावट की है. लेथीपोरा निवासी नूर मोहम्मद के अनुसार इससे कश्मीर का केसर बाजार प्रभावित होता है. अब कश्मीर के किसान असली केसर के बारे में जागरूकता ला रहे हैं. कई देशज ग्राहक केसर की खरीदारी सीधे कश्मीर जाकर करते हैं.

(विलेज स्क्वेयर से साभार)

Next Article

Exit mobile version