राष्ट्रपति चुनाव परिणाम आज, चीन में हिलेरी, रूस में ट्रंप लोकप्रिय

अंतरराष्ट्रीय राजनीति, सामरिक परिदृश्य और अर्थव्यवस्था को दिशा देने में महाशक्ति होने के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. यही कारण है कि आज पूरी दुनिया की नजर राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों पर जमी हुई है. नये अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने एक तरफ अनेक वैश्विक संकटों से निपटने की चुनौती होगी, वहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 9, 2016 6:16 AM
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अंतरराष्ट्रीय राजनीति, सामरिक परिदृश्य और अर्थव्यवस्था को दिशा देने में महाशक्ति होने के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. यही कारण है कि आज पूरी दुनिया की नजर राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों पर जमी हुई है. नये अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने एक तरफ अनेक वैश्विक संकटों से निपटने की चुनौती होगी, वहीं विभिन्न देशों में दो प्रमुख उम्मीदवारों को लेकर आशाएं और आशंकाएं भी हैं. कुछ चुिनंदा देशों की उम्मीदों और चिंताओं के विश्लेषण के साथ आज की विशेष प्रस्तुति…
अमेरिकी चुनाव को ऐसे देख रही है दुनिया
ट्रंप की ओर रूस का रुख
डेमोक्रेटिव सर्वरों की हैकिंग में क्रेमलिन की सहभागिता और विकीलिक्स के खुलासों के बारे में संभवत: भले कभी नहीं जाना जायेगा, लेकिन इस बार अमेरिकी चुनाव में रूस ने बड़ी भूमिका निभायी है. व्लादिमीर पुतिन व्यक्तिगत रूप से हिलेरी क्लिंटन को उनके सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के कार्यकाल के समय से ही पसंद नहीं करते हैं, जबकि ट्रंप उनके ‘अराजक उम्मीदवार’ के सांचे में पूरी तरह फिट बैठते हैं, जैसा कि उन्होंने अन्य पश्चिमी देशों में उम्मीदवारों के समर्थन में किया है. षड्यंत्रकारी सिद्धांतकार भले यह समझ सकते हैं कि ट्रंप क्रेमलिन के लिए ‘उपयोगी बेवकूफ’ के बजाय ‘कठपुतली’ साबित हो सकते हैं, लेकिन कई लोगों का मानना है कि हिलेरी के मुकाबले ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से रूस के लिए ज्यादा तनाव पैदा हो सकता है.
क्लिंटन के अाने से दोनों देशों के रिश्ते भले ही प्रगाढ़ न बनें, लेकिन कुछ मामलों में सीमित सहयोग और लंबे समय से चली आ रही आपसी अविश्वसनीयता जैसे प्रतिमान संभवत: ठंडे बस्ते में डाल दिये जायेंगे. अमेरिकी राजनीति का रुख व्यक्तित्वों के बजाय भू-राजनीितक हितों के अनुरूप संचालित होने के रूप में दर्शाया गया है और इसलिए ज्यादातर आम रूसी नागरिक को किसी के जीतने पर किसी बड़े बदलाव की अपेक्षा नहीं है. फिर भी टीवी पर पुतिन द्वारा ट्रंप के लिए सकारात्मक टोन दर्शाता है कि उनका झुकाव रीयल स्टेट टाइकून की ओर है. बीते दिनों किये गये एक सर्वेक्षण में 22 फीसदी रूसियों ने ट्रंप का, जबकि आठ फीसदी ने क्लिंटन का समर्थन किया था.
सीमा घेराबंदी के वादे से
मैक्सिको में ट्रंप का विरोध
ट्रंप को उभारने में किसी अन्य देश के मुकाबले मैक्सिको से जुड़ी समस्याओं ने शायद ज्यादा भूमिका निभायी है. ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत ही मैक्सिकाे से आनेवाले प्रवासियों से की. इन प्रवासियों को उन्होंने दुष्कर्मी और लुटेरा बताते हुए मैक्सिको से जुड़ी सीमा की घेराबंदी का वादा किया है. ट्रंप की दीवार और उनके वादे ने एक तरह से नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (नाफ्टा) को पलीता लगाया है और मैक्सिको के साथ वर्षों से चले आ रहे कारोबारी संबंधों में तल्खी पैदा की है.
मैक्सिकाे में लोगों ने ट्रंप का मौन विरोध दर्शाया और उन्हें उद्दंड करार देते हुए अनेक जगहों पर उनके पुतले जलाये. लेकिन जिस राजनीतिक हस्ती से मैक्सिको के लोग सर्वाधिक नफरत करते हैं, राष्ट्रपति उससे गलबहियां करते नजर आये. मैक्सिको के राष्ट्रपति एनरिक पेना नीटो ने अगस्त में प्रेसिडेंशियल पैलेस में ट्रंप के साथ मंच साझा किया था, जिसकी लोगों ने व्यापक पैमाने पर निंदा की थी.
ट्रंप की तुलना वहां आंद्रेज मैनुएल लॉपेज ओब्रेडोर से की गयी, जो मैक्सिको के वाम पॉपुलिस्ट हैं और दो बार चुनावों में हार के बावजूद नतीजे को स्वीकार नहीं किया है. कुछ का यह भी मानना है कि ट्रंप ने उस विचार को ध्वस्त किया है जिसके तहत अमेरिका मैक्सिको के लिए मॉडल समझा जाता रहा है.
चीन में लोकप्रिय हैं हिलेरी
सत्ताधारी पार्टी द्वारा संचालित अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ‘पिछले लंबे अरसे से ज्यादातर अमेरिकी वहां के लोकतंत्र को गोल्ड स्टैंडर्ड की तरह समझते हैं. लेकिन मौजूदा चुनाव के दौरान ज्यादातर अमेरिकी इस प्रकार के लोकतंत्र से खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं.’ अखबार लिखता है, ‘चुनाव प्रक्रिया को देखते हुए चीन के लोग लोकतंत्र के अमेरिकी सिस्टम का मूल्यांकन कर सकते हैं.’
पिछले माह प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा जारी एक अध्ययन रिपोर्ट में दर्शाया गया कि चीन के लोग यदि वोट दे पातेे, तो हिलेरी शीर्ष पर होतीं. रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में 37 फीसदी लोगों ने क्लिंटन के प्रति सकारात्मक रुख दर्शाया है, जबकि 22 फीसदी ने ही ट्रंप का समर्थन किया. दूसरी ओर, ट्रंप के खिलाफ 45 फीसदी लोग थे, वहीं क्लिंटन का विरोध 35 फीसदी ने ही किया. ये आंकड़े बताते हैं कि ट्रंप ने आप्रवासियों के संदर्भ में जो नकारात्मक बयान दिये, इस कारण लोगों ने उन्हें नापसंद किया.
नागरिक अधिकारों से जुड़े मुद्दे पर चीन में हिलेरी की प्रशंसा की जाती है. वर्ष 1995 में बीजिंग में आयोजित संयुक्त राष्ट्र कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था- ‘ह्यूमैन राइट्स आर वीमेंस राइट्स एंड वीमेंस राइट्स आर ह्यूमैन राइट्स.’ महिला अधिकारों के समर्थकों ने उनकी जम कर तारीफ की थी. लेकिन कुछ लोगों को आशंका है कि सत्ताधारी दल गुपचुप तरीके से ट्रंप के जीत की कोशिश में है, ताकि चीन के सुपरपावर बनने की राह में आड़े आनेवाले प्रमुख विरोधियों को साधने में आसानी होगी.
इराक में नहीं ज्यादा तवज्जो
इराक इन दिनों इस्लामिक स्टेट से मोसुल को अपने कब्जे में लेने की लड़ाई में जुटा है, साथ ही वह अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारियों में भी व्यस्त है. यही वजह है कि इस देश में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को बहुत कम तवज्जो दी जा रही है. यह तो सच है कि इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जंग, खासकर मोसुल को अपने कब्जे में लेने के उसके वर्तमान अभियान में अमेरिकी सैन्य बल और उसके द्वारा दी जा रही वित्तीय सहायता इराक के लिए इस जंग को जीतने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है. गौरतलब हो कि मोसुल ही वह अंतिम जगह बची है, जिस पर जिहादी समूह की मजबूत पकड़ बनी हुई है.
वित्तीय मदद के तहत अकेले 2016 में ही यूएस ने इराकी बलों के प्रशिक्षण और हथियारों के लिए 1.6 बिलियन डॉलर की सहायता राशि दी है. यूएस के रक्षा सचिव, ऐश कार्टर ने कहा है कि वह इराक के पुनर्निर्माण के लिए हर संभव सहायता देंगे. हालांकि ट्रंप ने मोसुल में अमेरिका द्वारा दी जा रही सहायता की आलोचना की है और स्पष्ट तौर पर कहा है कि अमेरिका को दूसरे देशों, खासकर उन देशों को जो अमेरिका से घृणा करते हैं, को देने वाली सहायता में कटौती करनी चाहिए. जबकि हिलेरी आइसिस के खिलाफ जंग लड़ रहे इराक को सहायता देने के पक्ष में हैं. वैसे इराकी जो अमेरिकी चुनाव पर करीब नजर रखे हुए हैं, वे क्लिंटन की जीत चाहते हैं. उत्तरी कुर्दिस्तान, जहां रिपब्लिकन ज्यादा लोकप्रिय हैं, वहां भी कट्टरपन और अनियंत्रित जुबान के कारण ट्रंप नापसंद किए जा रहे हैं.
ईरान के िलए कम नहीं होंगी िदक्कतें
तेहरान में लोगों का ऐसा मानना है कि अमेरिकी चुनाव में जीत चाहे किसी की भी हो, ईरान को हर हाल में मुश्किल वक्त का सामना करना पड़ेगा. हिलेरी क्लिंटन जीती तब भी, क्योंकि वे बराक ओबामा के मुकाबले ईरान पर ज्यादा हमलावर रही हैं. लेकिन इसके बावजूद यहां के लोग क्लिंटन को ट्रंप के मुकाबले कम तेज-तर्रार मानते हैं.
चुनावी धांधली के बारे में ट्रंप की बातचीत ने कट्टरपंथियों को खुश होने का मौका दे दिया है, वाशिंगटन के उन आरापों को याद दिला दी है जो उसने 2009 में ईरान में हुए चुनाव के बारे में कही थी कि इस चुनाव में धांधली हुई है. इस बीच, ट्रंप के उत्तेजक बोल और मीडिया के इस्तेमाल ने उन्हें अपने राष्ट्रपति मोहम्मद अहमदीनेजाद की याद दिला दी है.
भले ही क्लिंटन ने ओबामा के मातहत सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के तौर पर कार्य किया है, लेकिन मुख्य तौर पर वह आर्थिक प्रतिबंधों की शिल्पकार ही रही हैं, जिसने इराक को वापस बातचीत की मेज पर आने के लिए बाध्य किया था, यही उनकी उपलब्धि है. लेकिन पिछले साल जिस व्यक्ति ने परमाणु करार सुनिश्चित किया, उसका श्रेय क्लिंटन को नहीं बल्कि उनके उत्तराधिकारी जॉन केरी को जाता है.
ईरान के लोग क्लिंटन द्वारा एबीसी को 2008 में दिये एक साक्षात्कार के दौरान इराक पर की गयी टिप्पणी को अब तक नहीं भूले हैं, जिसमें क्लिंटन ने कहा था कि अगर वे अमेरिका की राष्ट्रपति होतीं, तो ईरान पर आक्रमण कर देतीं.
ट्रंप से फासिस्ट मुसोलिनी की तुलना करते हैं इटली के लोग
अमेरिका समर्थक इटलीवासियों में हिलेरी क्लिंटन को लेकर विशेष उत्साह है. एक पोल के मुताबिक, 63 प्रतिशत इटैलियन मतदाता ट्रंप पर हिलेरी को वरीयता देने के पक्ष में हैं. इटैलियन ट्रंप की तुलना इटली के दो पूर्व नेताओं फासिस्ट बेनिटो मुसोलिनी और सिलिवियो बर्लुस्कोनी से करते हैं. तीन चुनावों को जीतने के बाद मशहूर व्यवसायी मीडिया मुगल बर्लुस्कोनी का टैक्स व सेक्स स्कैंडल में कैसे पतन हुआ, यह सबको पता है.
ट्रंप के बारे में धारणा है कि वह अमेरिका के बर्लुस्कोनी हैं. ‘ला रिपब्लिका’ के स्तंभकार विट्टोरियो जूकोनी कहते हैं कि दोनों नेताओं में महिलाओं को यौन की वस्तु समझने और टैक्स से बचने जैसी आदतों में काफी समानता है और दोनों में अपनी ही आत्मघाती प्रवृत्तियों से बरबाद हो जाने के लक्षण हैं. इटली के प्रधानमंत्री और डेमोक्रेटिक पार्टी के मुखिया माटियो रेंजी हिलेरी के लिए डेमोक्रेटिक नॉमिनेशन जीतने से पहले ही अपना समर्थन जता चुके हैं.
हिलेरी क्लिंटन को मिला ब्रिटेन का समर्थन
यदि िब्रटेन समर्थित उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन जीतती हैं, तो विदेश विभाग कार्यालय सबसे ज्यादा राहत की सांस लेगा. माना जाता है कि वह भरोसेमंद राष्ट्रपति के रूप में यूरोप से भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई हैं. सीरिया संकट व रूस द्वारा पैदा समस्या से निपटने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी.
ब्रिटेन का मानना है कि ब्रेक्जिट के बाद िब्रटेन की विदेश नीति अलग-थलग पड़ने की आशंकाओं को खत्म करने में अमेरिकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी. दूसरे नजरिये से देखें, तो ब्रेक्जिट जितनी आसानी से होगा, व्हाइट हाउस को उतनी ही प्रसन्नता होगी. साथ ही विदेश सचिव बोरिस जॉनसन सीरिया नीति के मुद्दे पर क्लिंटन को व्यक्तिगत रूप में समर्थन का संकेत दे चुके हैं.
जर्मनी में हिलेरी हैं पसंद
यदि हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप जर्मन राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार होते हैं, तो निश्चित ही हिलेरी सूपड़ा साफ कर देतीं. पोलिंग इंस्टीट्यूट इंफ्राटेस्ट डिमैप द्वारा अक्तूबर में किये गये सर्वे से स्पष्ट है कि 86 फीसदी जर्मन नागरिक पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री के पक्ष में हैं. इससे पहले दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फ्युर ड्यूशलैंड के सर्वे में भी यह स्पष्ट हो गया था कि उसके चार में से मात्र एक ही समर्थक ट्रंप के पक्ष में था.
जर्मनी में यह धारणा बन चुकी है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से मौजूदा वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल और विकराल रूप ले सकती है. निर्यातक देश के रूप में जर्मनी को इससे खासा नुकसान होगा. यहां तक कि जर्मन अखबार ‘डाइ वेल्ट’ ने डोनाल्ड ट्रंप को जर्मनी की समृद्धि के लिए खतरनाक होने का अंदेशा जता दिया है. जर्मन चांसलर ने शायद ही कभी अमेरिकी चुनाव पर कोई टिप्पणी की हो, जबकि ट्रंप ने कई मौकों पर उन पर निशाना साधते हुए जर्मनी को बरबाद करने का आरोप लगाया. मार्केल ने प्रतिकार के कई मौकों को नजरअंदाज कर दिया. हालांकि, जर्मन विदेश मंत्री फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमियर ने खुले तौर कहा था कि यूएस चुनाव पर तटस्थ नहीं रहा जा सकता है. वह इस बात से डरे हुए हैं कि यदि रिपब्लिकन पार्टी सत्ता में आती है, तो दुनिया का क्या होगा.
िहलेरी िक्लंटन से ज्यादा उम्मीदें हैं मध्य-पूर्व के लोगों को
मध्य-पूर्व में कई लोग इस बात को लेकर चौकन्ने हैं कि ओवल ऑफिस में जो नया राष्ट्रपति बैठेगा, वह इस क्षेत्र को लेकर किस तरह की नीतियां बनायेगा. हालांकि वाशिंगटन के परंपरागत सहयोगी चाहते हैं कि इस बार जो राष्ट्रपति चुना जाये वह बराक ओबामा से ज्यादा तेज-तर्रार हो. ईरान के साथ परमाणु करार और सीरिया में बशर-अल-असद के शासनकाल में अमेरिकी सैन्य बलों की तैनाती को लेकर ओबामा की अनिच्छा ने उनकी छवि को प्रभावित किया था.
मध्य-पूर्व के क्षेत्र में क्लिंटन को अधिकांश लोग जानते-पहचानते हैं, और मानते हैं कि वे लंबे समय से अमेरिका के सहयोगी रहे देशों और क्लाइंट का बचाव करेंगी. वहीं ट्रंप के बारे में यहां लोगों को कम जानकारी है. और जो जानते हैं, उनका मानना है कि वो अस्थिर प्रकृति के हैं और इस क्षेत्र को अस्थिर कर देंगे. अमेरिका में मुस्लिमों के आने पर प्रतिबंध लगाने वाली ट्रंप की उत्तेजक टिप्पणियों ने भी उनके प्रति लोगों में अविश्वास उत्पन्न किया है.
वहीं इस क्षेत्र में ऐसे लोग भी हैं, जो ट्रंप की उम्मीदवारी को पश्चिमी लोकतंत्र के प्रतीक के तौर पर देखते हैं, जहां मूल्यों में विकृति आ गयी है.
– (द गार्डियन के िवश्लेषण पर आधािरत)
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