#Indian_rupee : थोड़े समय की परेशानी के बाद होगा बड़ा फायदा
संदीप बामजई, वरिष्ठ पत्रकार एवं आर्थिक मामलों के जानकार नकदी आधारित अर्थव्यवस्था वाले भारत में नकली नोटों के चलन और कालेधन के पनपते व लगातार विकराल होते तंत्र से लड़ने की चुनौती वर्षों से बनी हुई है. ऐसे में जाली नोटों, कालेधन और भ्रष्टाचार की जकड़ से मुक्त होने की दिशा में बड़ा और कड़ा […]
संदीप बामजई, वरिष्ठ पत्रकार एवं आर्थिक मामलों के जानकार
नकदी आधारित अर्थव्यवस्था वाले भारत में नकली नोटों के चलन और कालेधन के पनपते व लगातार विकराल होते तंत्र से लड़ने की चुनौती वर्षों से बनी हुई है. ऐसे में जाली नोटों, कालेधन और भ्रष्टाचार की जकड़ से मुक्त होने की दिशा में बड़ा और कड़ा फैसला लेते हुए सरकार ने 500 रुपये और 1000 रुपये की नोटों पर पाबंदी लगा दी है. अचानक लागू किये गये इस फैसले से आम भारतीयों का हलकान होना स्वाभाविक है.
सरकार ने बड़े नोटों को बैंक में जमा कर नये या कम मूल्यों के नोट प्राप्त करने का विकल्प दिया है. ऐसे में सरकार का अनुमान है कि अघोषित राशि बाहर आने के साथ-साथ घूसखोरी और अापराधिक धन पर लगाम कसने में मदद मिलेगी. लेन-देन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की सरकार की इस कवायद में उपजे सवालों और दूरगामी परिणामों पर केंद्रित है आज का यह विशेष पेज…
मौजूदा बड़े नोट बंद करने से भारत की कैश इकोनॉमी को भले थोड़ा झटका लगे, लेकिन इससे हवाला कारोबार पूरी तरह से बरबाद हो जायेगा. हवाला कारोबार भ्रष्टाचार का पर्याय है, इसलिए भ्रष्टाचार और कालेधन पर जरूर असर पड़ेगा.
पांच सौ और हजार रुपये के सभी पुराने नोटों को कानूनी तौर पर अमान्य करने का प्रधानमंत्री मोदी का निर्णय एक अच्छा और साहसिक निर्णय है. यह जल्दी में लिया गया निर्णय नहीं है, सरकार ने इसकी तैयारी पहले से कर रखी थी. हाल में खबर आयी थी कि रिजर्व बैंक एक ऐसी पायलट योजना पर काम कर रहा है, जिसके तहत देशभर में 10 प्रतिशत एटीएम से विशिष्ट रूप से सिर्फ 100 के नोट निकलेंगे.
बीते शनिवार को जब मैं एटीएम से पैसे निकालने गया, उसमें से सिर्फ सौ-सौ के नोट निकल रहे थे और प्रिंटआउट में लिखा आया था कि यह एटीएम पांच सौ और हजार रुपये के नोट नहीं देगा, सिर्फ सौ रुपये के नोट देगा. जाहिर है, सरकार ने इस बारे में काफी पहले से सोच रही थी. अब एक-दो दिन के बाद मार्केट में नये नोट आ जायेंगे, तब फिर से कैश मार्केट चल पड़ेगा. हालांकि, उसकी रफ्तार अभी कुछ धीमी होगी.
भारत की अर्थव्यवस्था एक खपत अर्थव्यवस्था है. ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में करेंसी के बदले जाने पर थोड़े समय के लिए लोगों पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है. हालांकि, लंबे समय के बाद इसका बहुत सकारात्मक असर देखने को मिलता है. अगर सब कुछ ठीक-ठाक और उम्मीदों के मुताबिक रहा, तो अगले वित्त वर्ष में हमारी अर्थव्यवस्था की विकास दर आठ प्रतिशत को छू सकती है.
पांच सौ और हजार रुपये के पुराने नोट बंद होने के बाद कुछ समय के लिए मार्केट से बड़ी मात्रा में नकदी गायब हो जायेगी. इसका असर यह होगा कि लोग कुछ दिनों के लिए खरीदारी बंद कर देंगे, बाहर जाना बंद कर देंगे.
खुदरा स्तर पर लोगों को परेशानी होगी, चीजें महंगी हो जायेंगी, लेकिन बाद के समय के लिए यह ठीक रहेगा. अगले छह महीने के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार आयेगा, खपत में तेजी आयेगी. इस समय ट्रैक्टर और गाड़ियों की बिक्री अच्छी चल रही है, जो और भी बढ़ेगी. हालांकि, ऐसे कारोबारी, जो कैश से ही अपना कारोबार करते हैं, उनके लिए काफी मुश्किल होगी. साथ ही ज्वैलरी कारोबारियों को भी इससे काफी परेशानी होनेवाली है, क्योंकि उनका भी ज्यादातर काम कैश के जरिये होता है.
भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में 20 प्रतिशत घरेलू कालेधन की अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी है, जिसे ‘शैडो इकोनॉमी’ कहा जाता है. भारत में इस वक्त कुल करीब 17 लाख करोड़ रुपये का कैश मार्केट में है, जिसका 80 फीसदी से अधिक हिस्सा मार्केट से बाहर हो जायेगा. इसका बीस प्रतिशत तो पूरी तरह से खत्म हो जायेगा. बाकी धीरे-धीरे जब सरकार के पास वापस पहुंच जायेगा, तब उम्मीद है कि इससे ब्याज दरों में कुछ कमी आये. ब्याज दरों में कमी आने से लोगों को घर आदि खरीदने में सुविधा होगी.
मौजूदा बड़े नोट बंद करने से भारत की कैश इकोनॉमी को भले थोड़ा झटका लगे, लेकिन इससे हवाला कारोबार पूरी तरह से बरबाद हो जायेगा.
हवाला कारोबार भ्रष्टाचार का पर्याय है, इसलिए भ्रष्टाचार और कालेधन पर जरूर असर पड़ेगा. सरकार द्वारा 2000 रुपये के नोट शुरू करने पर सवाल उठ रहे हैं. यह बात सही है कि बड़े नोट चलाये जाने से कालेधन का आकार भी बड़ा हो जाता है, लेकिन यह इतनी जल्दी नहीं होगा.
जब हम देश की वित्त-व्यवस्था से संबंधित बड़े फैसले को देखते हैं, तो सिर्फ प्रधानमंत्री नजर आते हैं, वित्त मंत्री अरुण जेटली कहीं नहीं दिखते. वहीं वित्त मंत्रालय के प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरबीआइ गवर्नर दिखते हैं. इन दोनों जगहों से वित्त मंत्री का गायब रहना एक बड़ा संकेत देता है.
इसका एक राजनीतिक संकेत भी है. अगले साल के शुरू में पंजाब और उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं. इन चुनावों में इस फैसले का असर जरूर पड़ेगा, क्योंकि चुनाव-प्रचार में खर्च होनेवाली धनराशि का एक बड़ा हिस्सा कैश के रूप में कालाधन होता है. कुल मिला कर देखें, तो सरकार का यह एक बोल्ड निर्णय है.
राजनीतिक बिजनेस मॉडल को सुधारे बिना नहीं रुकेगा कालाधन
शंकर अय्यर, वरिष्ठ पत्रकार एवं आर्थिक मामलों के जानकार
कालेधन और भ्रष्टाचार पर अंकुश के नजरिये से 500 और 1000 रुपये के नोट को बंद करने का मोदी सरकार निर्णय सही दिशा में एक ठोस कदम है. 1000 रुपये और पांच सौ रुपये के कुल 14.95 लाख नोट अमान्य कर दिये गये हैं. इनमें सारा कालाधन ही है, यह कोई कह नहीं सकता, क्योंकि हमारे देश में बहुत सारे कारोबार कैश में चलते हैं. किसान-मजदूर, सब्जी-आढ़त वाले और छोटे-बड़े दुकानदार वगैरह सभी कैश में कारोबार करते हैं. वर्ल्ड बैंक के आकलन के अनुसार भारत के जीडीपी का 20-21 प्रतिशत कालाधन है, इस आधार पर सरकार का अंदाज है कि इसमें से दस या पंद्रह प्रतिशत कालाधन निकल सकता है, लेकिन अभी यह देखना बाकी है कि कितना कालधन निकलेगा.
जहां तक अर्थव्यवस्था पर असर की बात है, थोड़े समय के लिए असमंजस की स्थिति रहेगी, लेकिन लंबे समय के बाद कितना असर होगा, इसका अनुमान लगाने के लिए उन आंकड़ों को देखना होगा कि इस फैसले से अर्थव्यवस्स्था में से कितना कालाधन निकालने में कामयाबी मिली है. यह एक गणित है, जिसका आंकड़ा आने के बाद ही इस निर्णय के प्रभाव का आकलन किया जा सकता है.
दूसरी बात यह है कि इस निर्णय के बाद भी जरूरी नहीं कि कालाधन खत्म ही हो जाये. ऐसा इसलिए, क्योंकि भ्रष्टाचार के कारण पैदा होनेवाला कालाधन सिर्फ बड़े करेंसी नोट तक सीमित नहीं है. कालेधन की समस्या संस्थागत है और यह तब तक नहीं रुक सकता, जब तक घूस नहीं बंद हो जाता. यहां सबसे बड़ा मुद्दा है कि राजनीतिक बिजनेस मॉडल को कैसे सुधारा जायेगा, जो कालेधन पर ही टिका हुआ है. राजनीतिक पार्टियों को मिलनेवाले चंदे का कोई हिसाब-किताब ही नहीं है कि वह कहां से आता है कौन देता है. इस राजनीतिक बिजनेस मॉडल में जब तक सुधार नहीं होगा, तब तक कालेधन को इस देश से नहीं खत्म किया जा सकता.
हालांकि कुछ मामलों के मद्देनजर सरकार का यह एक ऐतिहासिक कदम तो है, लेकिन इससे रियल एस्टेट, ज्वैलरी, रसद बाजार, आदि को कुछ दिनों के लिए काफी परेशानी होगी. दूसरी बात यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सौ रुपये के नोट ज्यादा चलते हैं, बजाय पांच सौ या हजार रुपये के नोट के. फिलहाल पांच सौ और हजार रुपये के नोट के मार्केट से खत्म होने से लोग ज्यादातर सौ रुपये के नोट का इस्तेमाल करेंगे, ऐसे में कुछ दिनों तक करेंसी की कमी भी रह सकती है. उम्मीद है कि सरकार इसके लिए उचित व्यवस्था करेगी.
Rs 500 और 1000 के मौजूदा नोट बेकार होने का लोगों पर ऐसे होगा असर
दीपक कनकराजू, लेखक, वक्ता और डिजिटल मार्केटिंग सलाहकार
अब जबकि 500 और 100 रुपये के नोट चलन से बाहर हो गये हैं, लोगों पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक है.बैंकों से ऋण लेना होगा आसान : जिनके पास वैध तरीके से कमायी गयी ज्यादा नकदी होगी, वे इसे बैंक में जमा करायेंगे. इससे बैंकों के पास बड़ी मात्रा में रुपये जमा हों जायेंगे. वह ज्यादा लोगों को उधार दे पायेगा. इससे ऋण लेना आसान हो जायेगा और ब्याज दरों में कटौती होगी.
कुछ समय बाद रुपये का मूल्य बढ़ेगा
बैंकों द्वारा ज्यादा ऋण देने से रुपयों की बड़े पैमाने पर आपूर्ति होगी, फलत: भविष्य में मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. लेकिन, यह सब कुछ आहिस्ता-आहिस्ता होगा, एकाएक नहीं. एकाएक जो चीज होगी, वह है अपस्फीति यानी वस्तुओं के दाम में भारी गिरावट.
क्योंकि, जिन लोगों ने अवैध तरीके से पैसे कमाये हैं, वे उन्हें बैंक में जमा करने से डरेंगे. हालांकि इनमें से कई लोग काले धन को बैंक में जमा करवाने की कोशिश तो करेंगे, लेकिन इसके लिए उन्हें इसे अपनी आय घोषित करनी होगी और इस पर आयकर देना होगा. वहीं कई लोग डरकर ऐसा नहीं करेंगे. इससे अर्थव्यवस्था के कुल मुद्रा प्रसार में कमी आयेगी, जिससे अपस्फीति होगी और रुपये का मूल्य बढ़ेगा. लेकिन इससे बाजार में उपलब्ध वस्तुओं और चीजों में कमी नहीं आयेगी. हालांकि कुछ स्तरों पर मुद्रास्फीति और अपस्फीति में संतुलन कायम हो जायेगा.
पहले महंगाई कम होगी, फिर बढ़ेगी
आनेवाले छह महीने से एक साल के भीतर पहले दाम में गिरावट आयेगी, सोना भी सस्ता हो जायेगा, शेयर और वस्तुओं के दाम में गिरावट आयेगी. लेकिन, बाद में फिर जैसे-जैसे उधारी गतिविधि बढ़ती जायेगी, वैसे-वैसे बड़े पैमाने पर पैसों की आपूर्ति बढ़ेगी और धीरे-धीरे कर सभी चीजों के दाम बढ़ते चले जायेंगे. मुद्रास्फीति और अपस्फीति की दर क्या होगी, इस बारे में अभी कोई भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. मान लीजिए, अगर शत-प्रतिशत लोगों के पास 500 और 1000 रुपये के वैध रुपये हैं, तब मुद्रास्फीति होगी. लेकिन, अगर इसमें बहुत सारा काला धन है और उनमें से ज्यादातर लोग इस धन को जमा करने की बजाय नष्ट करने का फैसला लेते हैं, तब थोड़े समय के लिए अपस्फीति हो जायेगी, यानी वस्तुओं के दाम सस्ते हो जायेंगे.
रीयल एस्टेट में पहले गिरावट, फिर सुधार : इस उद्योग में धीमी गति से गिरावट आयेगी और तीव्र गति से सुधार होगा. इस उद्योग में सूचकांक मूल्य से संपत्ति की दर निर्धारित नहीं होती है, जैसा सोने का होता है. बल्कि बाजार में जमीन, घर आदि की कीमत मांग-आपूर्ति के नियम पर आधारित होती है.
इसे ऐसे समझिए, अगर आपके पास एक जमीन है, जिसे आपने पिछले साल एक करोड़ में खरीदा था, जिसका कल तक बाजार मूल्य 1.5 करोड़ रुपये था.
लेकिन अचानक पैसों के लिए आपको इसे बेचने की जरूरत हुई और तब आपको कोई खरीदार नहीं मिला, क्योंकि रियल एस्टेट में ज्यादातर खरीदार काला धन के जरिये लेन-देन करते हैं और संभावित खरीदारों के पास 1.5 करोड़ सफेद धन नहीं था. ऐसे में आपको अपनी जमीन कम दाम पर ही बेचनी होगी और फिर जमीन का वही बाजार मूल्य हो जायेगा. इस तरह उस पूरे इलाके में जमीन का दाम कम हो जायेगा. रियल एस्टेट में धीरे-धीरे गिरावट आती है, क्योंकि इस उद्योग पर धीरे-धीरे दबाव बनता है. अनुमान है कि रियल एस्टेट के दाम 2017 के अंत तक निम्नतम स्तर पर पहुंच जायेंगे और फिर उसके बाद महंगाई बढ़ने के साथ ही यह उद्योग फिर से पटरी पर आ जायेगा.
(योर स्टोरी डॉट काॅम से साभार)
14 लाख करोड़ रुपये के नोट यानी सर्कुलेशन में मौजूद 86 फीसदी भारतीय मुद्रा रद्दी हो गयी मोदी सरकार के एक बड़े फैसले से. इस फैसले को यदि आरबीआइ के आंकड़ों के आधार पर मूल्यों में आंकें, तो 500 रुपये के नोट की कीमत लगभग 7.85 लाख करोड़ और 1000 रुपये रुपये की कीमत 6.33 लाख करोड़ रुपये बैठती है. दरअसल, यह फैसला सरकार की उस नीति की सबसे मजबूत कड़ी है, जिसकी शुरुआत सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद शुरू की थी.
कालेधन के िखलाफमोदी सरकार के बड़े कदम
कालाधन, भ्रष्टाचार, बेनामी संपत्ति, जाली नोट जैसे गोरखधंधे लंबे समय से देश की अर्थव्यवस्था को न केवल पंगु बना रहे हैं, बल्कि आम आदमी की जिंदगी में बड़ी समस्या बन कर उभर रहे हैं. भ्रष्टाचार की ग्लोबल रैंकिंग में देश का 76वें पायदान पर होना चिंताजनक है. अब नोटों की जमाखोरी को खत्म कर और वर्चुअल मनी पर निर्भरता बढ़ा कर सरकार पारदर्शिता लाने का प्रयास कर रही है. इससे पहले मोदी सरकार ने पिछले ढाई वर्षों में कालेधन की अर्थव्यवस्था के खिलाफ कई बड़े कदम उठाये हैं.
1 उच्चतम न्यायालय की निगरानी में एसआइटी का गठन
सरकार ने मई 2014 में पहली ही कैबिनेट बैठक में कालेधन पर एसआइटी के गठन का फैसला कर लिया था. उच्चतम न्यायालय की निगरानी में गठित किये विशेष जांच दल (एसआइटी) में पूर्व न्यायाधीश एमबी शाह के अलावा दो अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की गयी थी.
2 द ब्लैक मनी (अन डिस्क्लोज्ड फॉरेन इनकम एंड असेट्स) एंड इंपोजिशन ऑफ टैक्स एक्ट, 2015विदेशों और टैक्स हेवेन में जमा कालेधन की समस्या से निपटने के लिए इस अधिनियम को 1 जुलाई, 2015 को लागू किया गया. विदेशों से प्राप्त आय पर 30 प्रतिशत का कर लगाने, कर चोरी पर 3 से 10 साल के कारावास की सजा, विदेशी आय की रिटर्न फाइल नहीं करने पर 10 लाख तक जुर्माने जैसे प्रावधान किये गये.
3 बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन विधेयक
संसद ने अगस्त माह में बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 को अपनी मंजूरी दे दी. यह 1 नवंबर, 2016 से लागू हो गया है. इससे बेनामी संपत्तियों की हेराफेरी पर रोक लगाने और निगरानी करने में मदद मिलेगी. अधिनियम के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण के गठन की भी व्यवस्था की गयी है. आयकर विभाग के अनुसार इससे बेनामी लेन-देन (निषेध) अधिनियम, 1988 का नाम बेनामी संपत्ति लेन-देन निषेध अनिधिनियम, 1988 (पीबीपीटी एक्ट) हो जायेगा.
4 दोहरे कराधान से बचाव समझौते (डीटीएए)/ कर सूचना आदान-प्रदान समझौते (टीआइइए)
सरकार ने कालेधन पर शिकंजा कसने के लिए स्विट्जरलैंड के साथ ऑटोमेटिक इन्फॉरमेशन एक्सचेंज एग्रीमेंट और मॉरीशस सहित कई देशों के साथ डबल टैक्स एवाइडेंस एग्रीमेंट (डीटीएए) किया है. 30 जून, 2016 तक दर्ज आंकड़ों के अनुसार सरकार ने 139 देशों के साथ तीन प्रकार के बेहद महत्वपूर्ण कर समझौते डीटीएए, टीआइइए और बहुपक्षीय समझौते (मल्टीलेटरल कन्वेशन) किये हैं. इसके अलावा ओइसीडी काउंसिल भी अगले वर्ष यानी 2017 से कर और विदेशी खातों से जुड़ी सूचनाओं को साझा करने के लिए सहमत हो गयी है.
5 इनकम डिस्क्लोजर
स्कीम, 2016
देश में मौजूद कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था से निपटने के लिए सरकार ने इनकम डिक्लेरेशन स्कीम (आइडीएस) लेकर आयी. स्कीम के तहत 1 जून से 30 सितंबर, 2016 तक तय किये गये कर का भुगतान और 45 प्रतिशत पेनाल्टी के साथ कालेधन व संपत्तियों का खुलासा करने का प्रावधान किया गया. लेकिन इससे मात्र 65,250 करोड़ रुपये की ही घोषणा हुई.
6 मल्टी-एजेंसी ग्रुप का गठन
पनामा पेपर्स लीक्स में अघोषित संपत्तियों के खिलाफ जांच के लिए सरकार ने मल्टी एजेंसी ग्रुप (एमएजी) का गठन किया. इसमें सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी), भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ), प्रवर्तन निदेशालय (इडी) और फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट (एफआइयू) के अधिकारियों को बतौर जांच अधिकारी शामिलकिया गया.
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी)
आर्थिक सुधारों की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) घरेलू कालेधन की समस्या से निपटने में बेहद मददगार साबित होगा. भले ही इसे अप्रत्यक्ष कर सुधार की दिशा में उठाये गये कदम के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन कालाधन पैदा करनेवाले तंत्र पर यह सबसे अधिक चोट करेगा. जीएसटी रिटर्न के लिए पैन और आधार का इस्तेमाल लेन-देन के विवरण पर निगरानी रखने में आयकर विभाग के लिए मददगार होगा.
कामयाबी उतनी नहीं मिलेगी, जितना पीटा जा रहा ढोल
अभिजीत मुखोपाध्याय, अर्थशास्त्री
आजकल हमलोग जिस कालेधन की चर्चा कर रहे हैं, उसमें दो चीजें शामिल हैं- ब्लैकमनी और ब्लैक ट्रांजेक्शन. दोनों ही दशाओं में टैक्स की चोरी की जाती है यानी सरकार को टैक्स चुकाये बिना बड़े पैमाने पर नकदी संग्रह करके रखी जाती है और नकद लेन-देन किया जाता है.
ब्लैक ट्रांजेक्शन से ब्लैक इकोनॉमी तैयार होती है. फिलहाल, यह कहना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1000 और 500 रुपये के नोट बंद करने के जो कदम उठाये हैं, उससे ब्लैकमनी नियंत्रित हो जायेगी, क्योंकि एक मोटे अनुमान के तहत कुल प्रचलन में रही नकदी का करीब 80 फीसदी तक भले ही 500 और 1,000 रुपये के नोट रहे हों, लेकिन जिनके पास अकूत दौलत है, वे इसे नकदी के तौर पर संग्रहित नहीं रखते. देश-विदेश में ज्यादातर कालाधन रीयल एस्टेट में निवेश समेत अनेक अन्य तरीकों से संग्रहित है.
जहां तक ब्लैक ट्रांजेक्शन की बात है, तो इसमें कारोबारियों का एक बड़ा तबका शामिल है. लेकिन, ज्यादातर बड़े कारोबारी सरकार द्वारा दी जानेवाली अनेक छूट, सब्सिडी और राहत आदि का फायदा उठाना जानते हैं और बड़े लेन-देन के बावजूद कम टैक्स चुका कर बच जाते हैं.
फिलहाल, इस फैसले से सबसे ज्यादा असर उन छोटे व मंझोले कारोबारियों पर होगा, जिनका ज्यादातर लेन-देन खांटी नकदी में होता है. सब्जी विक्रेता, खुदरा दुकानदार जैसे छोटे कारोबारी अपनी रकम बैंकों में ज्यादा नहीं रखते हैं और इससे नकदी का प्रवाह बना रहता है. अब ऐसे कारोबारियों को भी अपनी रकम बैंकों में जमा करनी होगी और इस तरह टैक्स एजेंसियों को आसानी से जानकारी मिल सकती है कि किसका कितना लेन-देन है.
इस तरह उन्हें टैक्स नेट के दायरे में लाया जा सकेगा. लेकिन, बड़ी मछलियां अनेक जुगाड़ से खुद को बचा लेंगी और छोटी मछलियां पकड़ में आ जायेंगी. इस तरह इस योजना का असल मकसद कामयाब होगा, इसमें संदेह है और जितना ढोल पीटा जा रहा है, उतनी सफलता नहीं मिल पायेगी. यह योजना कालेधन को डंप करने के लिहाज से सही है, लेकिन इसके लागू करने के तरीके में थोड़ा बदलाव होना चाहिए था. बेहतर होता कि रद्द किये गये 1,000 और 500 के नोट को बैंकों में बदलने के लिए कुछ समय दिया जाता, ताकि लोगों को मुश्किलें नहीं झेलनी पड़ती. शहरों में भले ही एक बड़ा तबका डेबिट व क्रेडिट कार्ड जैसी प्लास्टिक मनी और ऑनलाइन बैंकिंग का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन गांवों-कस्बों में बहुत कम लोग इसका इस्तेमाल करते हैं.
हालांकि, डिजिटाइजेशन से भुगतान की प्रक्रिया निर्बाध गति से जारी रहेगी, लेकिन आगामी कुछ दिनों तक नकद खरीदारी पर व्यापक असर पड़ेगा और कुछ दिनों के लिए ही सही, रोजमर्रा की बहुत सी चीजों की कीमतों में वृद्धि होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. साथ ही देशभर में अगले कुछ दिनों तक आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती आ सकती है, जिससे एक छोटे समय के लिए मुद्रास्फीति पर इसका असर पड़ सकता है.