#Narendra Modi : समझौतों से जापान को आर्थिक लाभ अधिक
!!डॉ शमशाद अहमद खान, जापान मामलों के विशेषज्ञ!! भारत और जापान के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. दोनों देशों ने इन संबंधाें को नयी दिशा देने के उद्देश्य से साल 2006 में एक स्ट्रेटेजिक एंड ग्लोबल पार्टनरशिप पर हस्ताक्षर किये थे. इसमें यह तय हुआ था कि भारत और जापान के प्रधानमंत्री बारी-बारी से टोकियो […]
!!डॉ शमशाद अहमद खान, जापान मामलों के विशेषज्ञ!!
भारत और जापान के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. दोनों देशों ने इन संबंधाें को नयी दिशा देने के उद्देश्य से साल 2006 में एक स्ट्रेटेजिक एंड ग्लोबल पार्टनरशिप पर हस्ताक्षर किये थे. इसमें यह तय हुआ था कि भारत और जापान के प्रधानमंत्री बारी-बारी से टोकियो और दिल्ली में शिखर वार्ता करेंगे और आर्थिक, सामरिक, विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में नयी संभावनाओं को तलाश करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा
उसी सिलसिले कीएक कड़ी है. बतौर प्रधानमंत्री मोदी की यह दूसरी जापान यात्रा है. इस यात्रा में जो समझौते हुए हैं, उसमें सबसे अहम है सिविल न्यूक्लियर कोऑपरेशन. वैसे तो साल 2007 से दोनों देशों के बीच इस समझौते को लेकर बातचीत जारी थी.
जापान की मांग थी कि समझौते में एक ऐसा प्रावधान जोड़ा जाये, जो जापान को इस बात की इजाजत दे कि अगर भारत एक बार फिर से कोई परमाणु परीक्षण करता है, तो जापान इस समझौते को निरस्त कर देगा. लेकिन वहीं दूसरी तरफ भारत का यह कहना था, जिसने 2008 में ही परमाणु परीक्षण न करने का प्रण किया था, उसे ही बुनियाद मान ली जाये और समझौता निरस्त करने का कोई प्रावधान न जोड़ा जाये. लेकिन, जापान अपनी मांग पर अडिग रहा.
हाल के दौरे में दोनों देशों ने बीच का एक रास्ता निकाला है. इस समझौते में यह तय पाया है कि अगर भारत एक बार फिर से परमाणु परीक्षण करता है, तो जापान एक साल की नोटिस पर परमाणु समझौते को निरस्त कर देगा. लेकिन, व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाये, तो ऐसा कर पाना संभव नहीं है. क्योंकि, न्यूक्लियर तकनीक में अगर जापान की तकनीक का इस्तेमाल होता है, तो उसे दोबारा वापस नहीं दिया जा सकता. अब सवाल यह उठता है कि फिर जापान निरस्तीकरण वाला प्रावधान क्यों चाहता था.
इसके पीछे उसका मकसद यह था कि जापान का एक बड़ा तबका इस बात से नाराज था कि जापान एक ऐसे देश को अपनी परमाणु तकनीक दे रहा है, जिसने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किया हुआ है. दरअसल, यह जरूरी है कि यह परमाणु तकनीक उन्हीं देशों को दी जाये, जो एनपीटी पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. मगर, वाणिज्यिक महत्व को देखते हुए जापान ने यह फैसला लिया है और उसने अपनी जनता की राय को दरकिनार कर दिया है. इसके पीछे कारण यह है कि भारत का परमाणु बिजली का बाजार अनुमानित पांच बिलियन डॉलर का माना जाता है. जापान अपनी अर्थव्यवस्था बहाली के कई और तकनीकों को भारत समेत कई और देशों को बेचना चाहता है.
याद होगा कि भारत के तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव ने 2007 में जापान का दौरा किया था. उस दौरे में भारतीय रेलवे ने एक महत्वाकांक्षी योजना का ऐलान किया था कि जिसमें यह शामिल था कि भारत के कई बड़े शहरों के बीच बुलेट ट्रेन चलायी जायेगी. लेकिन, भारतीय रेलवे के पास पैसों की कमी के चलते इस योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. लेकिन, इस बीच जापान हमेशा यह कोशिश करता रहा कि भारत यह तकनीक खरीदे.
साल 2012 में तबके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब जापान गये थे, तब तय हुआ था कि मुंबई और अहमदाबाद के बीच पहली बुलेट ट्रेन चलायी जायेगी, लेकिन इसे आखिरी शक्ल साल 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के पहले जापान दौरे में दी गयी थी. अब जापान यह चाहता है कि भारत के कई अन्य शहरों के बीच भी बुलेट ट्रेन चलायी जाये. यहां यह देखना होगा कि आखिर जापान ऐसा क्यों चाहता है. इसके पीछे भी जापान का मकसद वाणिज्यिक ही है. जापान यह तकनीक भारत को इसलिए बेचना चाहता है, क्योंकि यहां इसकी संभावना है. जापान अपनी तकनीक बेच कर अपनी आर्थिक बहाली करना चाहता है, क्योंकि उसकी प्रतिद्वंद्विता चीन के साथ है.
दूसरी तरफ भारत के साथ कई समस्याएं हैं. मुंबई और अहमदाबाद के बीच चलनेवाली ट्रेन की जो भी लागत आयेगी, वह सारा खर्च जापान खुद उठायेगा. ऐसे में इसकी संभावना कम ही है कि अन्य पांच-छह शहरों में बुलेट ट्रेन चलायी जा सकेगी. जापान के साथ भारत सामरिक संबंध को बढ़ाना चाहता है और वहां से कुछ विशेष सामरिक तकनीक लेना चाहता है, जिसमें यूएस-2 नामक एक विमान शामिल है, जो जमीनी सतह के अलावा समुद्री सतह पर भी उतर सकता है. लेकिन यह तकनीक काफी महंगी है और एक यूएस-2 विमान की कीमत तकरीबन 6.5 बिलियन यूएस डॉलर है. भारत को जापान कुल 17 विमान बेचना चाहता है, जिसकी कीमत बहुत हो जायेगी. वहीं भारत यह चाहता है कि यूएस-2 को बेचने के बजाय जापान इसको भारत के साथ मिल कर बनाये, ताकि इस विमान की कीमत को कम किया जा सके. इस पर आम राय तो बन गयी है, लेकिन विरोधाभास अब भी बरकरार है.
इस दौरे में एक अहम बात यह भी रही कि जापान ने भारत के तीस हजार युवाओं को अपनी इंडस्ट्री के लिए मांगा है, क्योंकि जापान में बूढ़ों की तादाद ज्यादा है और जापान श्रम-संकट की समस्या से जूझ रहा है. बहुत दिनों से इस बात पर जोर दिया जाता था कि भारत और जापान दोनों देशों की जनता के बीच के रिश्ताें को मजबूत बनाया जाये, लेकिन इस सिलसिले में कोई ठोस पेशकश नहीं हो पायी है. कुल मिला कर, 2008 से लेकर 2016 तक भारत और जापान के बीच सामरिक और आर्थिक रिश्ते गहरे हुए हैं. उम्मीद की जाती है कि गहरे होते इन रिश्तों का सीधा-सीधा लाभ यहां की जनता को मिलेगा और उन्हें रोजगार उपलब्ध होगा.