भारत में नोटों का इतिहास

पांच सौ और हजार के पुराने नोटों को हटा कर पांच सौ और दो हजार के नये नोटों का जारी होना भारत में कागजी मुद्रा के ढाई सदियों के इतिहास का नवीनतम चरण है. इस इतिहास में मुद्राओं के रंग-रूप और मूल्य कई बार बदले गये हैं तथा उनमें जालसाजी रोकने के लिए सुरक्षा के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 16, 2016 12:34 AM
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पांच सौ और हजार के पुराने नोटों को हटा कर पांच सौ और दो हजार के नये नोटों का जारी होना भारत में कागजी मुद्रा के ढाई सदियों के इतिहास का नवीनतम चरण है. इस इतिहास में मुद्राओं के रंग-रूप और मूल्य कई बार बदले गये हैं तथा उनमें जालसाजी रोकने के लिए सुरक्षा के उपाय किये जाते रहे हैं. मौजूदा फेरबदल की पृष्ठभूमि में रुपये की लंबी यात्रा पर इन-डेप्थ की प्रस्तुति…

ब्रिटिश बैंकों ने पहले छापे नोट

मुद्रा के तौर पर आज हम जिस रुपये का प्रयोग करते हैं उसका चलन भारत में सदियों से है. फर्क सिर्फ इतना है कि तब भारत में मुद्रा के तौर पर चांदी और सोने के सिक्के चलन में थे. यह चलन 18वीं सदी के पूर्वार्ध तक बरकरार था. लेकिन जब यूराेपीय कंपनियां व्यापार के लिए भारत में आयीं तब उन्होंने अपनी सहूलियत के लिए यहां निजी बैंक की स्थापना की. और फिर इसके बाद से ही चांदी और सोने की मुद्रा की जगह कागजी मुद्रा का चलन शुरू हो गया. भारत की सबसे पहली कागजी मुद्रा कलकत्ता के बैंक ऑफ हिंदोस्तान ने 1770 में जारी की थी.

इन ब्रिटिश कंपनियों का व्यापार जब बंगाल से बढ़कर मुंबई, मद्रास तक पहुंच गया, तब इन जगहों पर अलग-अलग बैंकों की स्थापना शुरू हुई. वर्ष 1773 में जहां बैंक अॉफ बंगाल और िबहार की स्थापना हुई, वहीं 1886 में प्रेसिडेंसी बैंक की स्थापना हुई. अब जब देश में बैंक बढ़े, तो कागजी मुद्रा का चलन भी आम हो गया. बैंक ऑफ बंगाल द्वारा तीन सीरीज में नोट छापे गये. पहली सीरीज एक स्वर्ण मुद्रा के रूप में छापी गयी यूनिफेस्ड सीरीज थी. यही सीरीज कलकत्ता में सिक्सटीन सिक्का रुपये के तौर पर छापी गयी. दूसरी सीरीज कॉमर्स सीरीज थी, जिस पर एक तरफ नागरी, बंगाली और उर्दू में बैंक का नाम लिखने के साथ ही एक महिला की तसवीर भी छपी थी और दूसरी तरफ बैंक का नाम लिखा था. तीसरी सीरीज 19वीं सदी के अंत में छापी गयी, जिसे ब्रिटैनिका सीरीज कहा गया, उसके पैटर्न में बदलाव हाेने के साथ ही कई रंगों का प्रयोग किया गया.

अंगरेजी शासन ने बनाया कानून

अब तक ये सारे रुपये राज्यों और ब्रिटिश व्यापारियों के सहयोग से स्थापित बैंकों द्वारा जारी किये जा रहे थे. वर्ष 1861 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भी विक्टोरिया पोर्ट्रेट सीरीज के तहत अपना कागजी मुद्रा जारी करना शुरू किया. हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने पेपर करेंसी एक्ट बनाने के बाद ही अपनी कागजी मुद्रा की शुरुआत की. ये कागजी मुद्रा 10, 20, 50, 100 और 1000 रुपये के थे. इन सभी नोटों पर महारानी विक्टोरिया की एक छोटी सी तसवीर भी लगी थी. इस प्रकार ब्रिटिश सरकार द्वारा पहली बार कागजी मुद्रा जारी किया गया. कहने की बात नहीं है कि बाद में यही मुद्रा भारत सरकार की आधिकारिक मुद्रा बनी.

इस मुद्रा को जारी करने के साथ ही ब्रिटिश सरकार ने देश के एक बड़े हिस्से को अलग-अलग मुद्रा क्षेत्र में बांट दिया. इस प्रकार सरकार द्वारा चलायी गयी कागजी मुद्रा इन क्षेत्रों में मान्य थी. ये क्षेत्र थे- कलकत्ता, बाॅम्बे, मद्रास, रंगून, कानपुर, लाहौर और कराची. जैसे-जैसे भारतवर्ष में ब्रिटिश साम्राज्य अपने पैर फैलाता गया, न सिर्फ रुपये के बनावट में बदलाव आया, बल्कि इस पर अलग-अलग कई भाषाओं में रुपये का नाम भी लिखा जाने लगा. वर्ष 1923 में ब्रिटिश सरकार की कागजी मुद्रा पर किंग जॉर्ज पांच का चित्र भी छपा, यह चलन आगे चल कर भी बरकरार रहा.

वर्ष 1935 में ब्रिटिश सरकार ने रुपये जारी करने का अधिकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को दे दिया. इसके बाद रिजर्व बैंक द्वारा 1938 में पहली बार नोट जारी किया गया. यहां यह जानना भी जरूरी है 1928 में नासिक में भारत का पहला प्रिंटिंग प्रेस लगाये जाने के पहले तक सारी कागजी मुद्राएं बैंक ऑफ इंग्लैंड से छप कर आती थीं.

आजाद भारत और कागजी मुद्रा

आधुनिक भारत के रुपये का इतिहास 1947 में आजादी के बाद से शुरू होता है. आजाद भारत का पहला नोट एक रुपये का था, जिसे1949 में जारी किया गया था. इस नोट पर सारनाथ का अशोक स्तंभ अंकित था. इसके बाद नोट में कई बदलाव हुए और उस पर गेटवे ऑफ इंडिया, बृहदेश्वर मंदिर के चित्र भी छापे गये. वर्ष 1953 में भारत सरकार द्वारा जो नोट छापा गया उस पर हिंदी भाषा में भी लिखा गया. इन नोटों के जारी होने के दशकों बाद 1996 और 2005 में जारी नोट पर महात्मा गांधी की फोटो छपनी शुरू हुई. इसके बाद रुपये की नकल को रोकने के लिए उसमें कई सारे सिक्योरिटी फीचर्स डाले गये. दृष्टिहीनों की सहूलियत के लिए भी आज के नोट में कई फीचर्स डाले गये हैं. आज की अगर बात करें, तो 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 2000 के कागजी नोट चलन में हैं.

रुपये की यात्रा

औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार ने कागजी मुद्रा कानून, 1861 के साथ मुद्रा उत्पादन का काम अपने हाथ में ले लिया और आज के रुपये की यात्रा शुरू हुई. अब सिर्फ शासन ही मुद्राएं जारी कर सकता था, बैंक नहीं. यह कानून इंडिया काउंसिल के वित्त सदस्य जेम्स विल्सन के विचारों पर आधारित था जो भारत में अंगरेजों के सलाहकार थे.

< वर्ष 1928 में नासिक में मुद्रालय खोले जाने से पहले सभी नोट बैंक ऑफ इंग्लैंड द्वारा छापे जाते थे. चार सालों के भीतर सभी भारतीय नोट इसी जगह से छापे जाने लगे थे.

< वर्ष 1935 में भारतीय धन के प्रबंधन की पूरी जिम्मेवारी नये बने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सुपुर्द कर दी गयी.

< वर्ष 1944 में जापानियों द्वारा नकली नोट बनाये जाने के डर से रिजर्व बैंक ने नोटों में पहली बार सुरक्षा धागे और वाटरमार्क का प्रयोग हुआ.

< वर्ष 1949 में स्वतंत्र भारत का पहला नोट एक रुपये की मुद्रा के रूप में छापा गया. इसके ऊपर सारनाथ के सिंहों वाले अशोक स्तंभ की तसवीर थी जो बाद में भारत का राष्ट्रीय चिह्न भी बना.

< नहीं पढ़ पानेवाले लोगों की सहूलियत के लिए 1960 के दशक में अलग-अलग रंगों में नोट छापे जाने लगे.

< वर्ष 1980 के बाद नोटों पर कला, संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान से संबंधित चित्र व्यापक तौर पर छापे जाने लगे. उससे पहले कुछ राष्ट्रीय स्मारकों के चित्र छापे गये थे.

< वर्ष 2011 में नोटों पर रुपये के नये चिह्न (")का प्रयोग प्रारंभ हुआ.

< पिछले दिनों जारी 2000 और 500 के नोटों पर ‘स्वच्छ भारत’ अभियान का चिह्न है. पांच सौ के भूरे नोट पर लाल किला और दो हजार के गुलाबी नोट पर मंगलयान मुद्रित है.

ये नोट भी थे चलन में

भारत में करेंसी नोट्स के प्रचलन का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. मौजूदा समय में भले ही आपको आधुनिक किस्म के और अनेक खासियतों से सुसज्जित व डिजाइनर नोट्स दिख रहे हैं, लेकिन आज से महज एक सदी पहले हालात कुछ दूसरे तरह के थे. भारत में अनेक प्रकार के धातुओं के सिक्कों का चलन काफी पहले से रहा है, लेकिन कागज के नोटों का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो हाल के वर्षों तक वस्तु-विनिमय प्रणाली व्यापक तौर पर प्रचलित रही है. जानते हैं भारतीय इतिहास में विविध काल में कैसे-कैसे नोट थे प्रचलन में :

पुर्तगालियों ने गोवा में चलाया अपना नोट

पश्चिम भारत में गोवा क्षेत्र को पुर्तगालियों ने वर्ष 1510 में अपने कब्जे में ले लिया था. भारत से होने वाले व्यापार में उस समय पुर्तगालियों का एकाधिकार था और और डच व अंगरेजों के भारत आने से पहले एक शताब्दी से भी ज्यादा समय तक यह कायम रहा. गोवा, दमन और दीव क्षेत्र वर्ष 1961 तक पुर्तगालियों के अधीन था. पेपर करेंसी के तौर पर जारी किये गये पहले इंडो-पुर्तगीज नोट को ‘रुपिया’ कहा गया था, जो वर्ष 1883 के करीब चलन में आया था.

इन नोटों में पुर्तगाल के राजा का पाेर्ट्रेट दर्शाया गया था. इन्हें 5, 10, 20, 50, 100 और 500 के मूल्य में जारी किया गया था. वर्ष 1906 में पुर्तगाल के कब्जेवाले भारतीय इलाकों में पेपर मनी जारी करने की जिम्मेवारी ‘बैंको नेशनल अल्ट्रामरीनो’ की थी. आरंभिक समय में इन नोटों पर जारी करनेवाले बैंक की मोहर होती थी. कुछ नोट्स में भारतीय सभ्यता और संस्कृति से संबंधित प्रतीकों को भी दर्शाया गया था.

फ्रांसीसी करेंसी

केरल का माहे, तमिलनाडु के कराइकल, पुद्दुचेरी, आंध्र प्रदेश का यनम और पश्चिम बंगाल का चंद्र नगर फ्रांस का उपनिवेश थे. इन्हें ‘इस्टेब्लिशमेंट्स फ्रांसिसेज डेंस ल’इंडे’ यानी भारत में फ्रांसीसी इस्टेब्लिशमेंट कहा जाता था. इन फ्रेंच कॉलोनियों में पेपर मनी जारी करने की जिम्मेवारी बैंक ऑफ इंडोशाइन को सौंपी गयी थी.

इसमें एक रुपये के नोट प्रथम विश्व युद्ध के बाद और पांच रुपये के नोट वर्ष 1937 के बाद जारी किये गये थे. इनमें मोजियर डुप्ले (भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य के संस्थापक) के नाम से जारी किये गये 50 रुपये के नोट को खास तरीके से डिजाइन किया गया था.

हैदराबाद ने भी जारी किया था रुपया

हैदराबाद एक मात्र ऐसा राज्य था, जिसके पास वर्ष 1916 से ही पेपर करेंसी थी और वह 1952 तक प्रचलन में थी. ये नोट वर्ष 1939 तक प्रिंट किये गये थे, जिनमें ‘हिजरी’ युग से जुड़े हुए और डेक्कन इलाके में प्रचलित ‘फासली’ वर्षों का इस्तेमाल किया गया था. ये नोट उर्दू और वहां की अन्य स्थानीय भाषाओं (कन्नड़, तेलुगु, मराठी आदि) में प्रिंट किये गये थे.

बर्मा में चला जापानी रुपया

बर्मा की कठपुतली सरकार ने भारतीय रुपयों का इस्तेमाल शुरू किया, जो जापान की इंपीरियल सरकार द्वारा जारी किये गये थे. म्यांमार (बर्मा) जब ब्रिटिश शासन के अधीन था, उस समय वहां भारतीय रुपया प्रचलन में था और जापान के आक्रमण तक इस देश में यही स्थिति थी. ये अलग-अलग मूल्य के थे और एक, पांच और 10 रुपये के रूप में जारी किये गये थे.

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