कानुपर रेल हादसा: संरक्षा व सुरक्षा में चूक का नतीजा

अरविंद कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सलाहकार, भारतीय रेल ट्रेन बेपटरी क्यों हुई, इसकी वजह का अभी साफ तौर पर खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन पटरियों का टूट-फूट ही इसकी मुख्य वजह है. हो सकता है कि रेलवे के रख रखाव में कहीं कमी रही हो. कानपुर देहात में इंदौर-पटना एक्‍सप्रेस गाड़ी की भयानक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 21, 2016 6:31 AM
अरविंद कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सलाहकार, भारतीय रेल
ट्रेन बेपटरी क्यों हुई, इसकी वजह का अभी साफ तौर पर खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन पटरियों का टूट-फूट ही इसकी मुख्य वजह है. हो सकता है कि रेलवे के रख रखाव में कहीं कमी रही हो. कानपुर देहात में इंदौर-पटना एक्‍सप्रेस गाड़ी की भयानक दुर्घटना से देश सन्न है. रेलवे जहां एक ओर कायाकल्प का दावा कर रहा है, वहीं सबसे बड़े रेल हादसों में एक का होना चिंताजनक है. हाल में रेल मंत्रालय ने शून्य दुर्घटना के साथ यह दावा किया था कि उसका संरक्षा रिकॉर्ड बेहतर हो कर यूरोपीय देशों के बराबर हो गया है. पर इंदौर-पटना एक्‍सप्रेस ट्रेन हादसे ने तमाम कमजोरियों को उजागर कर दिया है. ट्रेन बेपटरी क्यों हुई, इसकी वजह का अभी साफ तौर पर खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन पटरियों का टूट-फूट ही इसकी मुख्य वजह है. हो सकता है कि रेलवे के रख रखाव में कहीं कमी रही हो, या फिर तापमान में गिरावट के नाते यह हुआ हो, लेकिन असली बात रेल संरक्षा आयुक्त की जांच में सामने आयेगी.
यह ध्यान देने की बात है कि पिछले दो दिनो में इंदौर-पटना एक्सप्रेस के साथ तीन गाड़ियां पटरी से उतर चुकी हैं. इसमें एक मालगाड़ी थी. कुल दुर्घटनाओं में गाड़ियों का पटरी से उतरने की घटनाओं का अधिक होना चिंता का विषय है. रेल पटरियों के ढीले पड़ जाने से दुर्घटनाओं की आशंका भी बन जाती है. वैसे तो पटरियों की सघन जांच और दूसरे उपाय हो रहे हैं और आदमी तथा मशीनें लगी हैं.
यह ध्यान रखने की बात है कि भारतीय रेल के सबसे व्यस्त गलियारों की दशा तक ठीक नहीं है, तो बाकियों का क्या कहें. रेलवे के सात उच्च घनत्व वाले मार्गों दिल्ली-हावड़ा, दिल्ली-मुंबई, मुंबई-हावड़ा, हावड़ा-चेन्नै, मुंबई-चेन्नै, दिल्ली-गुवाहाटी और दिल्ली-चेन्नै के 212 रेल खंडों में से 141 खंड भारी संतृप्त हो गये हैं. इन खंडों पर क्षमता से काफी अधिक रेलगाड़ियां दौड़ रही हैं.
इन खंडों पर ही सबसे अधिक यात्री और माल परिवहन होता है. रेल मंत्री नयी रेलगाड़ियों की घोषणा करते समय इस बात को भी जानने की कोशिश नहीं करते कि किसी खंड पर नयी गाड़ी चलायी भी जा सकती है या नहीं. इन खंडों पर रेलवे के मुलाजिमों को बहुत अधिक व्यस्त रहना पड़ता है. गैंगमैन शहीद होते हैं. फिर भी हालात नियंत्रण के बाहर है.
आज रेल पटरियों के बेहतर रखरखाव के साथ तीन हजार रेल पुलों को भी तत्काल बदलने की जरूरत है. इनमें से करीब 515 पुलों की हालत बेहद चिंताजनक है. हंसराज खन्ना जांच समिति ने एक सदी पुराने सभी असुरक्षित पुलों की पड़ताल एक टास्क फोर्स बना कर करने और पांच साल में उनको दोबारा बनाने की सिफारिश की थी. लेकिन, इस पर तंगी के नाम पर काम नहीं बढ़ा.
भारतीय रेल ने 1995 में बीती सदी के सबसे भयानक फिरोजाबाद रेल दुर्घटना के बाद कई उपाय किये. रेलवे मंत्रालय ने संरक्षा के लिए काफी धन भी खर्च किया. सबसे अधिक काम अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में नीतीश कुमार के रेल मंत्री रहते सृजित हुई 17 हजार करोड़ रुपये की संरक्षा निधि से हुआ था. अक्तूबर, 2001 में बनी इस निधि का फायदा काफी समय तक रेल को मिला. बाद में हालत चिंताजनक होती गयी.
हाल के सालों में टक्कररोधी उपकरणों की स्थापना, ट्रेन प्रोटेक्शन वार्निंग सिस्टम, ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम, सिगनलिंग प्रणाली का आधुनिकीकरण और संचार प्रणाली में सुधार किया गया, लेकिन यह सब छोटे-छोटे खंडों तक सीमित हैं, जबकि जरूरत पूरी प्रणाली की ओवरहालिंग की है.
रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए काफी काम करने की दरकार है. सैम पित्रोदा कमेटी ने पांच सालों में 19000 किमी रेल लाइनों के नवीनीकरण और 11,250 पुलों को आधुनिक बनाने को कहा था. जकि डॉ अनिल काकोदकर की अध्यक्षता में बनी संरक्षा समीक्षा कमेटी ने सुरक्षा- संरक्षा को चाक चौबंद करने को एक लाख करोड़ रुपये के निवेश की वकालत की. समितियों की रिपोर्टों की तरह यह भी धूल फांक रही हैं और सुरेश प्रभु भी कमेटियां पर कमेटियां बनाते चले जा रहे हैं. जरूरत है कि नयी चुनौतियों के लिहाज से रेलवे को चाक-चौबंद किया जाये, ताकि ऐसे हादसे फिर न हों.

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