बीसीसीआइ और लोढ़ा समिति : उलझे पेंच, तकरार बरकरार
िक्रकेट प्रबंधन पर खींचतान पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति ने न्यायालय से भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के प्रशासन पर नजर रखने के लिए पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई को पर्यवेक्षक बनाने की मांग की है. बोर्ड और समिति के बीच लंबे समय से चल रही खींचतान के […]
िक्रकेट प्रबंधन पर खींचतान
पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति ने न्यायालय से भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के प्रशासन पर नजर रखने के लिए पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई को पर्यवेक्षक बनाने की मांग की है. बोर्ड और समिति के बीच लंबे समय से चल रही खींचतान के सिलसिले में यह नया अध्याय है. समिति ने यह भी निर्देश देने की मांग की है कि बोर्ड का कामकाज पदाधिकारियों के हस्तक्षेप के बिना सीइओ द्वारा किये जायें. पर्यवेक्षकों का मानना है कि समिति के निर्देशों को मानने के अदालती आदेश पर बोर्ड के अड़ियल रवैये से नाखुश न्यायालय कठोर निर्देश जारी कर सकता है. इस पृष्ठभूमि में मौजूदा विवाद के महत्वपूर्ण पहलुओं पर एक नजर आज के इन-डेप्थ में…
अभिषेक दुबे
खेल पत्रकार
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त लोढ़ा समिति एक तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) से ब्यूरोक्रेट्स को हटाने की बात कर रही है और वहीं दूसरा उसने पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई को ऑब्जर्वर नियुक्त करने की सुप्रीम कोर्ट से सिफारिश की है. अगर भविष्य में जीके पिल्लई अॉब्जर्वर नियुक्त हो जाते हैं, तो उन्हें बीसीसीआइ में कई प्रकार की नियुक्तियां करने का अधिकार होगा, जो बीसीसीआइ कभी नहीं चाहेगा.
वहीं दूसरी तरफ बीसीसीआइ की दिक्कत यह है कि वह कोर्ट का सहयोग करने को तैयार नहीं दिख रहा है.
ऐसा इसलिए, क्योंकि लोढ़ा समिति के बनाये नियमों को लागू करने में बीसीसीआइ अरसे से आनाकानी करता अा रहा है. इस खींचतान के पीछे का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एक तरफ जहां बीसीसीआइ अपने अंदर सुधार लाना ही नहीं चाहता है, वहीं दूसरी तरफ लोढ़ा समिति चाहती है कि बीसीसीआइ में माइक्रो मैनेजमेंट हो. जबकि, इसकी कोई जरूरत ही नहीं है, क्योंकि इससे क्रिकेट खेल का काफी नुकसान हो सकता है.
ऐसे में जरूरी यह है कि दोनों पक्ष अपने-अपने रुख में थोड़ा बदलाव लाते हुए गतिरोध को खत्म कर किसी माकूल नतीजे पर पहुंचें, जहां दोनों को सहूलियत हो. जहां तक बीसीसीआइ में सुधार की बात है, तो इसके लिए लोढ़ा समिति चाहे, तो सुधार का कालक्रम तैयार कर सकती है, क्योंकि यह काम कुछ दिनों-महीनों में नहीं हो सकता है, उसके लिए चार-पांच साल का वक्त चाहिए. कहने का अर्थ है कि लोढ़ा समिति जिस मूलभूत सुधार की बात करती है, उसके लिए उसे कुछ समय बढ़ाना चाहिए. इसके साथ ही, बीसीसीआइ को भी इस काम में समिति का सहयोग करना चाहिए. दोनों पक्षों के अपने-अपने रुख से जिस तरह की परिस्थिति बनी हुई है, उससे फिलहाल साफ तौर पर क्रिकेट का अल्पकालिक नुकसान तो नहीं दिख रहा है, लेकिन इसका दीर्घकालिक नुकसान होने की संभावना तो है ही.
विश्व क्रिकेट में भारतीय क्रिकेट की जो छवि है, प्रबंधन से लेकर खेलों के आयोजन तक, उस पर असर पड़ सकता है. यह अभी से दिख भी रहा है, जिसमें बीसीसीआइ को आइसीसी से दूर रखने की कवायद की खबरें आ रही हैं. ऐसे में, जब अपने घर में ही क्रिकेट खेल और उसके प्रबंधन को लेकर सवाल उठेगा, तो बाहर भी सवाल उठना जाहिर है. इसलिए फिलहाल यह जरूरी है कि समिति और बीसीसीआइ एक-दूसरे के साथ सहयोग करें और क्रिकेट को बेहतर बनाने की दिशा में सोचें.
कब क्या हुआ
क्रिकेट बोर्ड और लोढ़ा समिति के बीच तनातनी
भारत में क्रिकेट संचालन की स्थिति को देखते हुए, लोढ़ा समिति ने उसके संचालन तरीके में बदलाव की सिफारिश की है. उच्चतम न्यायालय ने समिति की ज्यादातर सिफारिशों को मान लिया है. तीन अक्तूबर को उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआइ और लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने से संबंधित मामले में अपना अंतिम निर्णय सुनाया था.
जनवरी, 2015 : उच्चतम न्यायालय ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआइ) पर नजर रखने और उसमें सुधार की अनुशंसा के लिए समिति का गठन किया.
4 जनवरी, 2016 : लोढ़ा समिति ने बीसीसीआइ के शासन व प्रशासकीय संरचना में बड़े बदलावों का सुझाव दिया, जिनमें कार्यरत मंत्रियों, नौकरशाहों, 70 साल से अधिक उम्र के व्यक्तियों को बोर्ड या राज्य संघ में कोई भी पद न देने व खिलाड़ी संघ बनाने की भी सिफारिश भी शामिल थी.
7 जनवरी, 2016 : बीसीसीआइ ने सभी राज्य संघों को लोढ़ा समिति की रिपोर्ट का अध्ययन कर 31 जनवरी तक बोर्ड को रिपोर्ट भेजने को कहा.
4 फरवरी, 2016 : न्यायालय ने बीसीसीआइ को 3 मार्च तक लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा.
22 फरवरी, 2016 : मुंबई क्रिकेट संघ उच्चतम न्यायालय पहुंचा.
2 मार्च, 2016 : बीसीसीआइ ने उच्चतम न्यायालय में शपथपत्र दाखिल किया.
3 मार्च, 2016 : उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआइ के शपथपत्र पर आपत्ति जतायी.
5 अप्रैल, 2016 : अदालत ने पैसों के वितरण को लेकर बीसीसीआइ की कटु आलोचना की.
8 अप्रैल, 2016 : कोई सुधार करने से मना करने पर बीसीसीआइ को उच्चतम नयायालय की फटकार.
19 अप्रैल, 2016 : न्यायालय ने एक-राज्य-एक-मत (वन-स्टेट-वन-वोट) को लेकर भी बीसीसीआइ को झिड़की दी.
26 अप्रैल, 2016 : न्यायालय ने कठोर भाषा का इस्तेमाल करते हुए बीसीसीआइ और राज्य संघों को सुधार करने को कहा.
29 अप्रैल, 2016 : न्यायालय ने बीसीसीआइ व राज्य संघों के प्रशासनिक पदों पर 70 साल से अधिक उम्र के व्यक्तियों के आसीन होने की लोढ़ा समिति की सिफारिशों से सहमति जतायी.
2 मई, 2016 : न्यायालय ने बीसीसीआइ व राज्य संघों को लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने का निर्देश दिया.
18 जुलाई, 2016 : न्यायालय ने लोढ़ा समिति की ज्यादातर सिफारिशों को मान लिया और इसे लागू करने के लिए बीसीसीआइ को चार से छह महीने का वक्त दिया.
20 जुलाई, 2016 : लोढ़ा समिति ने बीसीसीआइ को सभी राज्य संघों को वार्षिक चुनाव कराने से मना किया.
2 अगस्त, 2016 : बीसीसीआइ ने लोढ़ा समिति के साथ बातचीत करने के लिए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के नेतृत्व में एक
लीगल पैनल बनाया.
7 अगस्त, 2016 : न्यायाधीश काटजू ने 18 जुलाई, 2016 को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये आदेश को असंवैधानिक व अवैध करार दिया.
31 अगस्त 2016 : लोढ़ा समिति ने आइपीएल गवर्निंग काउंसिल को दी गयी अपनी सिफारिशों को वापस लिया.
1 सितंबर, 2016 : समिति ने दिशा-निर्देशों की दूसरी सूची जारी की और बीसीसीआइ को 15 दिसंबर तक वार्षिक बैठक कराने व 30 दिसंबर तक नयी आइपीएल गवर्निंग काउंसिल गठित करने का निर्देश दिया.
12 सितंबर, 2016: इंटनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आइसीसी) ने बीसीसीआइ-लोढ़ा समिति के बीच चल रहे विवादों में शामिल होने से इंकार कर दिया.
21 सितंबर, 2016 : बीसीसीआइ ने आम बैठक बुलायी और लोढ़ा समिति के कुछ आदेशों को मानने से
इनकार कर दिया.
28 सितंबर, 2016 : उच्चतम न्यायालय ने लोढ़ा समिति की स्टेटस रिपोर्ट पर बीसीसआइ को चेतावनी दी और समिति की सिफारिशों को लागू करने का
आदेश दिया.
1 अक्तूबर, 2016 : विशेष बैठक में बीसीसीआइ समिति की कुछ सिफारिशों को मानने पर सहमत हो गया, पर कई बातों को अस्वीकार कर दिया.
3 अक्तूबर, 2016 : समिति ने यस बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र काे बीसीसीआइ को पैसे देने से मना किया.
6 अक्तूबर, 2016 : उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआइ को आदेश दिया कि वह अदालत को यह वचन दे कि वह 7 अक्तूबर से लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करेगा.
7 अक्तूबर, 2016 : उच्चतम न्यायालय ने राज्य संघों को समिति की सिफारिशों के लागू होने तक काई पैसे न देने का अंतरिम आदेश दिया.
15 अक्तूबर, 2016 : बीसीआइ ने आपात बैठक कर समिति की सिफारिशों को लागू करने में
असमर्थता जतायी.
18 अक्तूबर, 2016: न्यायालय ने बीसीसीआइ द्वारा दाखिल समीक्षा याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी.
21 अक्तूबर, 2016 : एक आदेश जारी कर न्यायालय ने बीसीसीआइ की वित्तीय स्वतंत्रता और शक्ति पर रोक लगा दी.
2 नवंबर, 2016 : बीसीसीआइ ने पांच राज्यों से पूछा कि क्या वे भारत-इंगलैंड टेस्ट मैच का आयोजन
करने में सक्षम हैं.
7 नवंबर, 2016 : बीसीसीआइ भारत-इंगलैंड टेस्ट क्रिकेट मैच के संचालन के लिए राज्य क्रिकेट संघों को पैसे देने के लिए उच्चतम न्यायालय पहुंचा.
22 नवंबर, 2016 : लोढ़ा समिति ने उच्चतम न्यायालय में नयी स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई को क्रिकेट बोर्ड का पर्यवेक्षक बनाने की मांग की.
लोढ़ा समिति रिपोर्ट
बीसीसीआइ की संरचना और संविधान से जुड़े प्रमुख मसले
– मौजूदा समय में बीसीसीआइ के 30 पूर्णकालिक सदस्य हैं, जबकि बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड व पूर्वोत्तर के छह राज्यों का कोई प्रतिनिधि नहीं है.
– दूसरी ओर गुजरात और महाराष्ट्र जैसे भी राज्य हैं, जिनके बीसीसीआइ में तीन पूर्णकालिक प्रतिनिधि हैं और वे अपने राज्यों के खास क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व
करते हैं.
– वर्तमान में बीसीसीआइ का रजिस्ट्रेशन तमिलनाडु सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत बतौर सोसायटी किया गया है. जबकि विभिन्न राज्य क्रिकेट एसोसिएशंस में से कुछ ने कंपनीज और कुछ ने सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन करा रखा है.
मुख्य सिफारिशें
क्रिकेट में मैच फिक्सिंग और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश जस्टिस लोढ़ा के नेतृत्व में एक पैनल का गठन किया था. इस कमिटी द्वारा की गयी मुख्य सिफारिशें इस प्रकार हैं :
– आइपीएल के सीओओ सुंदर रमन के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं पाये गये.
– बीसीसीआइ को आरटीआइ यानी राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट के दायरे में
लाया जाये.
– निर्धारित नियमों के साथ बेटिंग यानी सट्टेबाजी को कानूनी अमलीजामा पहनाया जाये. खिलाड़ियों और बीसीसीआइ के अधिकारियों को बोर्ड के समक्ष अपनी संपत्ति घोषित करनी चाहिए, ताकि सट्टेबाजी पर निगरानी रखी जा सके.
– एक राज्य, एक वोट का प्रस्ताव. इसके अलावा किसी भी तरह की प्रॉक्सी वोटिंग नहीं होनी चाहिए.
– बीसीसीआइ के किसी भी पद पर कोई भी व्यक्ति लगातार दो कार्यकाल से ज्यादा नहीं रह सकता है.
– बोर्ड का अध्यक्ष किसी भी दशा में दो साल से ज्यादा इस पद नहीं रहेगा.
– पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई, मोहिंदर अमरनाथ, डायना एडुलजी और अनिल कुम्बले के नेतृत्व में एक स्टीयरिंग कमेटी गठित करने की सिफारिश की गयी.
– आइपीएल और बीसीसीआइ के लिए पृथक गवर्निंग बॉडी गठित किया
जाना चाहिए.
– रेलवेज, सर्विसेज और यूनिवर्सिटीज का बतौर एसोसिएट मेंबर बोर्ड से निष्कासन होना चाहिए. साथ ही उनके वोटिंग अधिकार खत्म होने चाहिए.
– जुर्माना और सुधारों को भी प्रमुख टास्क के रूप में शामिल किया जाये.
प्रशासन से जुड़े प्रमुख मसले
– अध्यक्ष का पावर सेंटर के रूप में होना.
– महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं होना.
– पद पर आसीन रहने की असीमित समयावधि.
– पद से हटाने का कोई प्रावधान नहीं.
बीसीसीआइ की मुख्य आपत्तियां
– बोर्ड ने अपनी एक विशेष बैठक में लोढ़ा समिति की कुछ सिफारिशों को बदलाव के साथ स्वीकारा था, जबकि उसे समिति की सिफारिशों के मुताबिक नया मेमोरेंडम तैयार करना था.
– खिलाड़ियों के संगठन के एक पुरुष और एक महिला खिलाड़ी को बोर्ड की सर्वोच्च काउंसिल में प्रतिनिधित्व देने पर उसे एेतराज है.
– पूर्वोत्तर के राज्यों को पूर्ण मताधिकार देने की सिफारिश को बोर्ड ने अस्वीकार कर दिया है. बोर्ड ने इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आइसीसी) के दिशा-निर्देशों के अनुरूप एसोसिएट सदस्यों को मताधिकार देने की बात कही है. इस दिशा-निर्देश में मतों का विभाजन तीन-एक के अनुपात से करने का प्रावधान है. आइसीसी में तीन एसोसिएट और एफिलिएट सदस्यों का एक वोट होता है.
– आइपीएल और नेशनल कैलेंडर में 15 दिनों का अंतर रखने की सिफारिश को बोर्ड ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया है कि तय कार्यक्रमों के कारण इस प्रावधान को 2017 में लागू करना संभव नहीं है.
– वर्ष 2016-17 में कोई नया निर्णय लेने की समिति की मनाही के बावजूद क्रिकेट बोर्ड ने पुरुष और महिला टीमों के चयनकर्ताओं के खाली पदों पर नियुक्तियां की है और अजय शिर्के को बोर्ड का सचिव चुना है. प्रशासनिक ढांचे में बदलाव और पदाधिकारियों की उम्र 70 वर्ष तक सीमित करने के प्रस्ताव को भी बोर्ड ने नकार दिया है. बोर्ड का कहना है कि इन्हें तुरंत लागू कर पाना संभव नहीं है और समिति ने बदलावों के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया है.
– मौजूदा समय में तकरीबन प्रत्येक ओवर के बाद कॉमर्शियल ब्रेक लिया जाता है. कमिटी ने इसके लिए केवल ड्रिंक, लंच या चाय का समय रखे जाने की सिफारिश की है. लेकिन, ओवरों के बीच लिये जानेवाले छोटे (करीब 15 सेकेंड) काॅमर्शियल ब्रेक से बीसीसीआइ को बहुत ज्यादा आमदनी होती है, जो उसकी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा है. इस रकम से बीसीसीआइ टैलेंट सर्च प्रोग्राम और काेचिंग संचालित करता है और गांवों व छोटे शहरों से श्रेष्ठ खिलाड़ियों की तलाश करता है.