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आधुनिक तकनीकों के जरिये ग्रामीण व दूरदराज इलाकों में मुमकिन हो रहा मरीजों का इलाज

रिमोट मेडिकल डायग्नोस्टिक्स भारत में निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत बढ़ती जा रही है और ज्यादातर लोगों के लिए इसे हासिल कर पाना मुश्किल होता जा रहा है. हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्रों के अस्पतालों में ज्यादातर स्वास्थ्य सेवाएं नि:शुल्क मुहैया करायी जाती हैं, लेकिन ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में इनकी उपलब्धता कम होने […]

रिमोट मेडिकल डायग्नोस्टिक्स

भारत में निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत बढ़ती जा रही है और ज्यादातर लोगों के लिए इसे हासिल कर पाना मुश्किल होता जा रहा है. हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्रों के अस्पतालों में ज्यादातर स्वास्थ्य सेवाएं नि:शुल्क मुहैया करायी जाती हैं, लेकिन ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में इनकी उपलब्धता कम होने और गुणवत्तायुक्त इलाज की सुविधा नहीं मिल पाने के कारण यहां के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल करने में अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. आधुनिक तकनीकों के जरिये कुछ हद तक यह मुश्किल कम हो रही है. आज के आलेख में जानते हैं ऐसी मुहिम में जुटे कुछ संगठनों और उनकी कार्यप्रणाली के बारे में …

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं भले ही नि:शुल्क हैं. लेकिन, इसके तहत मुहैया करायी जानेवाली सेवाओं में अब तक बेहद कम निवेश हुआ है, जिस कारण इस क्षेत्र में कर्मचारियों और आधुनिक उपकरणों समेत बुनियादी ढांचे का अभाव है. दूसरी ओर करीब 60 फीसदी स्वास्थ्यकर्मी शहरी इलाकों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जबकि देश की करीब 70 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, जिसका एक बड़ा हिस्सा अब भी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से अछूता है.

ग्रामीण क्षेत्रों में लचर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर गैप यानी स्वास्थ्य क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में इस गैप को कम करने के लिए समीर सावरकर और राजीव कुमार ने न्यूरोसाइनेप्टिक कम्यूनिकेशंस नाम से हेल्थ टेक्नोलॉजी कंपनी की स्थापना की, जो दूरदराज के क्षेत्रों में क्लाउड-आधारित सेवाओं के माध्यम से प्वॉइंट ऑफ केयर डायग्नोस्टिक इक्विपमेंट और टेलीमेडिसिन के जरिये समुचित समाधान मुहैया कराती है.

रेमेडी (रिमोट मेडिकल डायग्नोस्टिक्स) नामक कम लागत में डिजिटल हेल्थ सोलुशंस मुहैया करानेवाले इस संगठन से 8,000 से ज्यादा स्वास्थ्य तकनीशियन जुड़े हुए हैं, जिनके पास कॉलेज की डिग्री नहीं है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ये डॉक्टर के लिए प्रॉक्सी की तरह काम करते हैं. (यानी डॉक्टर के दिशानिर्देश के मुताबिक मरीज का इलाज और उनकी जांच करते हैं व दवा मुहैया कराते हैं). देशभर में ये तकनीशियन 2,200 गांवों तक अपनी सेवाओं का संचालन करते हैं. देशभर में करीब पांच करोड़ आबादी तक इनकी पहुुंच कायम हो चुकी है.

सावरकर करते हैं, ‘रेमेडी हेल्थ वर्कर्स, हेल्थ क्लिनीक, फॉर्मेसियों, डायग्नोस्टिक लैबोरेटरियों, डॉक्टरों और केंद्रीय मेडिकल सुविधाओं से संबद्ध है. इसमें स्किल-सेट और बुनियादी ढांचों से जुड़े मसलों को इस तरीके से बनाया गया है, ताकि कम प्रशिक्षण मुहैया कराते हुए सेमी-स्किल्ड ऑपरेटर्स द्वारा इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा सकता है.’ यही कारण है कि वर्ष 2008 में गठित किये गये रेमेडी सोलुशंस का इस्तेमाल आज अनेक अस्पताल, क्लिनीक और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किया जा रहा है.

इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड

रेमेडी के इस्तेमाल से हेल्थ तकनीशियन ग्रामीण इलाकों में मरीजों को ऑडियो व वीडियो से कनेक्ट करते हैं और सुदूर स्थित डॉक्टरों से रीयल-टाइम परामर्श की सुविधा मुहैया कराते हैं. उदाहरण के लिए जब कोई मरीज गांव के इस सेंटर पर पहुंचता है, तो हेल्थ तकनीशियन उसके महत्वपूर्ण संकेतों या लक्षणों को समझते हैं, बेसिक डायग्नोस्टिक टेस्ट करते हैं और सभी संबंधित सूचनाओं को इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड में एकत्रित करते हैं. मरीज से संबंधित सभी सूचनाएं सुदूर बैठे डॉक्टर को भेजते हैं, जो प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करते हुए रोगनिदान के लिए जरूरी परामर्श देते हैं.

समीर सावरकर और राजीव कुमार दोनों ही आइआइटी, मद्रास से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन में इंजीनियर हैं. इन दोनों ने ही मिल कर यह देशी तकनीक विकसित की है, जिसके तहत मरीज को दूर बैठे डॉक्टर की मदद से इलाज से संबंधित परामर्शी सेवाएं मुहैया करायी जाती हैं.

आज देश-दुनिया में इस कॉन्सेप्ट के आधार पर अनेक समूह कार्यरत हैं, जो कुछ इसी तरह के मेडिकल डायग्नोस्टिक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं और लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करा रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, दोनों ही का मानना है कि तकनीक के इस्तेमाल से देश के दूरदराज के पिछड़े इलाकों तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करायी जा सकती हैं.

सावरकर कहते हैं, ‘हमारे लिए चुनौती यह थी कि सवा अरब की आबादी वाले देश में स्वास्थ्य सेवाओं को कैसे प्रभावी बनाया जाये. ऐसे में लोगों को तकनीक-आधारित स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हुए न केवल कारोबार की शुरुआत की गयी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की जिंदगी में बड़ा फर्क देखने में आ रहा है.’ भारत के अलावा बांग्लादेश, सेनेगल, केन्या और घाना समेत आठ अन्य विकासशील देशों में रेमेडी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है.

(फॉर्ब्स डॉट कॉम पर प्रकाशित

सुपर्णा दत्त डी’कुन्हा के लेख से साभार)

इंटेलहेल्थ कर रहा एप्प के जरिये इलाज

जाॅन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के छात्रों ने इंटेलहेल्थ का गठन करते हुए एक ऐसा एप्प विकसित किया है, जिसके जरिये ग्रामीण इलाकों में लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करायी जा रही है.

इंटेलहेल्थ के फाउंडर और सीइओ नेहा गाेयल का कहना है कि बेसिक जानकारी के साथ प्रशिक्षित हेल्थ वर्कर्स दूरदराज के क्षेत्रों में लोगों को डायबिटीज या अस्थ्मा जैसी समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करते हैं. यह एप्प अनुकूलित नॉलेज इंजन का इस्तेमाल करता है, जिसके जरिये प्राथमिक देखभाल की समग्र चीजें जुड़ी होती हैं.

सही सवाल पूछते हुए हेल्थ वर्कर को ये समुचित दिशानिर्देश देते हैं और रोगनिदान संबंधी विस्तृत सूचनाएं एकत्रित करते हैं. इस पूरे सिस्टम को साक्ष्य आधारित तरीकों का इस्तेमाल करते हुए डॉक्टरों की टीम द्वारा विकसित किया गया है. इसमें ओपेन सोर्स इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड सिस्टम के इस्तेमाल से भरोसेमंद संचार सेवाओं के जरिये मरीज और डॉक्टर के बीच संपर्क कायम किया जाता है. इसके सॉफ्टवेयर को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है, ताकि महज 2जी डाटा कनेक्शन के जरिये दूरदराज के क्षेत्रों में इस सिस्टम को संचालित किया जा सके.प्रस्तुति – कन्हैया झा

रेमेडी सोल्युशंस की प्रमुख खासियतें

1. विकासशील देशों के अनुकूल समाधान :

– महत्वपूर्ण पैरामीटर्स की रीयल-

टाइम माप.

– देसी तरीके से विकसित किया गया.

– पेटेंटेड डिजाइन.

– महज दो वाट की ऊर्जा की जरूरत.

2. सुरक्षा और गुणवत्ता के लिए चिकित्सीय रूप से मान्य :

– रेमेडी को भारत के कई प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थानों से मान्यता हासिल हो चुकी है.

– ऑडिट और गुणवत्ता से संबंधित फीडबैक के लिए मैकेनिज्म का इंतजाम.

3. हेल्थकेयर इकोसिस्टम से जुड़ाव :

– हेल्थकेयर इकोसिस्टम के आखिरी छोरों को एकीकृत करने में सक्षम.

– रिमोट क्लिनिक्स, सेंट्रल मेडिकल फैसिलिटी, डायग्नोस्टिक सेंटर, हॉस्पिटल और फार्मेसी को पूरी तरह से इस नेटवर्क से उद्यमिता के रूप में जोड़ा जा सकता है.

– कई विशेषज्ञों से परामर्श के तौर पर मदद.

– सर्वर एंड क्लाउड पर डाटा स्टोरेज.

4. यूजर फ्रेंडली सिस्टम :

– बेहद आसानी से संचालित होनेवाला सिस्टम, जिसे पारा मेडिक्स और यहां तक कि नॉन-मेडिको भी इसे संचालित कर सकते हैं.

– इंटरनेट, इंट्रानेट, वाइ-फाइ, डाटा कार्ड के जरिये किया जा सकता है संचालन.

– काॅम्प्रीहेंसिव यूजर फ्रेंडली इएमआर.

– डाटा सुरक्षा : यूजर रोल के आधार पर अधिकार और सुविधाएं.

5. सिस्टम की मुख्य बातें :

– उच्च रूप से मॉड्यूलर और अनुकूलित.

– बायोमेट्रिक आइडेंटिफिकेशन.

– मौजूदा एचआइएमएस के साथ एकीकृत.

(स्रोत : न्यूरोसाइनेप्टिक डॉट कॉम)

रेमेडी हेल्थकेयर इकोसिस्टम

डॉक्टर : योग्य डाॅक्टर दूर बैठे मरीजों को परामर्श देते हैं

टेली-मेडिसिन सेंटर : कम लागत में डायग्नोस्टिक्स और कंसल्टेशन का सेट-अप मुहैया कराना, जिसे न्यूनतम बुनियादी ढांचों के जरिये संचालित किया जाता है.

मोबाइल हेल्थ वर्कर : नर्स, मिडवाइफ आदि की क्षमताओं को बढ़ाते हुए विविध स्वास्थ्य सेवाओं का समाधान और वहां तक लोगों की पहुंच आसान बनाना.

हॉस्पिटल : दूरदराज के इलाकों के लोगों के लिए पहुंच आसान बनाते हुए स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना.

फार्मेसी : क्वालिटी मेडिसिन और हेल्थ प्रोडक्ट्स तैयार कर लोगों को मुहैया कराना.

डायग्नोस्टिक लैब : मौजूदा बुनियादी ढांचे की मदद से बड़ी आबादी तक गुणवत्तायुक्त रोगनिदान की सेवा मुहैया कराना.

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