धरती, मनुष्य और मनुष्यता को बचाने की बेचैनी

साहित्य सोपान के आज के अंक में हम आपके लिए लेकर आये हैं विविध विषयों को समेटती कुछ किताबें. विभिन्न प्रकाशन संस्थानों की ओर से हमारे पास आयीं इन किताबों में दार्शनिकों के संसार, प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह के शिक्षक रूप, झारखंड के लैंड मैनुअल और पूर्व राष्ट्रपति कलाम के जीवन पर उपन्यास, नोबल पुरस्कारविजेता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 25, 2016 12:26 AM
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साहित्य सोपान के आज के अंक में हम आपके लिए लेकर आये हैं विविध विषयों को समेटती कुछ किताबें. विभिन्न प्रकाशन संस्थानों की ओर से हमारे पास आयीं इन किताबों में दार्शनिकों के संसार, प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह के शिक्षक रूप, झारखंड के लैंड मैनुअल और पूर्व राष्ट्रपति कलाम के जीवन पर उपन्यास, नोबल पुरस्कारविजेता कैलाश सत्यार्थी की रचना शामिल हैं.
सोफी का संसार
रचनाकार : जॉस्टिन गार्डर
प्रकाशक : राजकमल पेपरबैक्स, नयी दिल्ली
पृष्ठ : 456
मूल्य : "300
जॉस्टिन गार्डर ने रहस्यात्मक उपन्यास ‘सोफी का संसार’ लिखकर पाश्चात्य दर्शन के विकास का सजीव चित्रण निहायत मौलिक रूप में प्रस्तुत किया है. इस उपन्यास की रचना में उन्होंने जादुई कथा-संरचना, सांस्कृतिक इतिहास लेखन तथा दार्शनिक चिंतन की विधाओं का एक अदभुत सर्जनात्मक संयोजन किया है.
गार्डर ने इस पुस्तक के लेखन में पाश्चात्य दर्शन के विकास के इतिहास के महत्त्वपूर्ण प्रसंगों की चर्चा के माध्यम से विश्व, जीवन और मानवीय अस्तित्व से जुड़े रहस्यों पर अपनी गहन विवेचना को पेश किया है. इस पुस्तक में सुकरात-पूर्व चिंतकों से लेकर बीसवीं सदी के मशहूर दार्शनिक ज्यां पाल सार्त्र तक का वृत्तांत है. यह पुस्तक अंगरेजी भाषा में लिखी सोफीज वर्ल्ड का हिंदी अनुवाद है. इसका हिंदी अनुवाद और संपादन सत्यपाल गौतम ने किया है.
नामवर के नोट्स
रचनाकार : शैलेश कुमार, मधुप कुमार, नीलम सिंह
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली
पृष्ठ : 136
मूल्य : "350
यह पुस्तक नामवरजी के छात्रों की पेशकश है. जवाहरलाल नेहरू यनिवर्सिटी के एमए के1991-93 बैच के छात्रों की इस प्रस्तुति में नामवरजी के कक्षा-‌व्याख्यानों को व्यवस्थित करके रखा गया है. इसका विषय संस्कृत काव्यशास्त्र है. संस्कृत काव्यशास्त्र की गुत्थियों पर हिंदी में उपलब्ध पुस्तकों में यह बोधगम्य है.
इस पुस्तक में संस्कृत काव्यशास्त्र के निर्माण के परिदृश्य को सामने रखते हुए आचार्यों की साधना को काव्य की आस्वाद-प्रक्रिया और रचना प्रक्रिया के संदर्भ में देखने की कोशिश की गयी है. पुस्तक में सिर्फ नोट्स हैं, संपूर्ण व्याख्यान नहीं. इस नोट्स में भरतमुनि से लेकर अभिनवगुप्त पादाचार्य तक की छवि दिखेगी. छात्रों द्वारा अपने अपने शिक्षकों के नोट्स प्रकाशित कराना अपने आप-में अनूठी बात है. हालांकि पश्चिम के देशों में ऐसा होता है. इस पुस्तक में नामवरजी के शिक्षक-रूप की झलक मिलती है.
झारखंड लैंड मैनुअल
रचनाकार : रश्मि कात्यायन
प्रकाशक : क्राउन पब्लिकेशन्स, रांची पृष्ठ : 500
मूल्य : "550
लेखक के तीस वर्षों की निरंतर मेहनत का नतीजा है यह किताब. लेखक कानून विशेषज्ञ हैं. लेखक के अनुसार यह झारखंड के भूमि-अधिकारों से संबंधित कानूनों पर से धुंध हटाने की कोशिश है. झारखंड की जमीन में देश-दुनिया की काफी दिलचस्पी दिखती है और इसको लेकर समाज में एक उत्तेजना बनी रहती है.
किसी भी समाज को अपनी हुकूमत स्थापित करने के लिए लैंड पर नियंत्रण रखना अति आवश्यक होता है. इसी अवधाारणा से झारखंडी समाज, रूढ़ि, प्रथा एवं रूढ़िगत अधिकारों से अपने को लैस कर सामूहिकता और सहभागिता के सिद्धांतों पर सामुदायिक संसाधनों का सामुदायिक उपभोग करने के लिए जनतांत्रिक सामाजिक संरचना खड़ी करती है. जमीन पर यह सामाजिक नियंत्रण ही स्वशासन है.
इस मैनुअल को आठ हिस्सों में बांटा गया है. शब्दों के चयन में झारखंडी भाषाओं का प्रयोग किया गया है. इसमें आप पायेंगे: झारखंड के भूमि संबंधों का इतिहास और उनके कानूनी सिद्धांत, विल्किनसन्स रूल्स, छोटानागपुर भूधृति अधिनियम(1869), छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम(1908), संताल परगना काश्तकारी (पूरक प्रावधान) अधिनियम(1949), झारखंड में सर्वे एवं बंदोबस्ती, संताल परगना में सर्वे सेट्लमेंट और राजस्व शब्दों की शब्दावली.
झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001
रचनाकार : रश्मि कात्यायन
प्रकाशक : क्राउन पब्लिकेशन्स, रांची
पृष्ठ : 465
मूल्य : "450
पंचायत व्यवस्था झारखंड के लिए कोई नयी चीज नहीं है. नयी चीज है उसका कानूनी रूप. झारखंड के लोगों ने तो अपनी पंचायत व्यवस्था की मान्यता अंगरेजों से वर्ष 1796 में ही करवा ली थी. धीरे-धीरे(1833,1854, 1869, 1872, 1903, 1908, 1949) इन लोगों ने झारखंड के काश्तकारी कानूनों में ही ग्रामसभा की प्रधानता को मान्यता दिला ली.
झारखंड विधानसभा ने निश्चित सिद्धांतों और संवैधानिक मूल बातों को बहुत हद तक झारखंड पंचायत राज अधिनियम, 2001 में सम्मिलित कर राज्य के अनुसूचित क्षेत्र एवं गैर अनुसूचित क्षेत्र की सामाजिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक अनूठा पंचायत राज ढांचा प्रस्तुत किया है. झारखंड पंचायत राज अधिनियम(2001) की जानकारी 17 अध्यायों में समेटी गयी है. इसके अलावा इसी खंड में संताल परगना, पहाड़िया, कोलहान, मुंडारी खुंटकट्टी, भुईंहरी और खड़िया क्षेत्र में परंपरिक स्वशासन व्यवस्था से संबंधित सूचनाएं दी गयी हैं. पुस्तक में झारखंड पंचायत निर्वाचन नियमावली(2001) पर भी पर्याप्त जानकारी दी गयी है.
आवाज दो कि रोशनी आए
रचनाकार : वसीम अकरम
प्रकाशक : शब्दारंभ, दिल्ली
पृष्ठ : 112
मूल्य : "150
‘त्रिवेणी’ शैली में लिखी गयी कविताओं को संकलन है- आवाज दो कि रोशनी आए. कविताओं में युवा मन का विक्षोभ और विषाद तो दिखता ही है, आशाएं और आकांक्षाएं भी नजर आती हैं. ये कविताएं कवि की संवेदना का परिचय देती हैं. भारत में ‘त्रिवेणी’ शैली की शुरूआत मशहूर रचनाकार गुलजार ने की है. त्रिवेणी की पहली दो पंक्तियां एक-दूसरे से जुड़ती हैं, पर अर्थ का संचार तीसरी पंक्ति करती है. वसीम पेशे से पत्रकार, मगर दिल और दिमाग से एक शायर और अफसानानिगार हैं.
आजाद बचपन की ओर
रचनाकार : कैलाश सत्यार्थी
प्रकाशक : प्रभात पेपरबैक्स, नयी दिल्ली
पृष्ठ : 240
मूल्य : "250
यह पुस्तक बीजों, चिनगारियों, नींव के पत्थरों और विचारों का संकलन है. अस्सी के दशक से लेकर पिछले कुछ वर्षों तक के दौरान बाल मजदूरी, बाल दुर्व्यापार, दासता, यौन उत्पीड़न, अशिक्षा अाद विषयों पर लेखों का यह पुस्तकाकार रूप है. अपने लेखकीय में कैलाश सत्यार्थी लिखते हैं-“ ये ऐसे ऐतिहासिक दस्तावेज हैं, जिन्होंने भारत में ही नहीं, दुनिया भर में बाल श्रम के खिलाफ आंदोलन को जन्म दिया.
साधारण लोगों से लेकर बुद्धिजीवियों, कानून निर्माताओं तथा संयुक्त राष्ट्र संघ तक में हलचल पैदा की. मैंने 35 सालों में इन्हीं विचारों की ताकत को संगठनों व संस्थाओं के निर्माण, सरकारी महकमों के गठन, शोध-प्रबंधों, कारपोरेट जगत की नीतियों, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कानूनों और सरकारी बजटों में परिवर्तित होते देखा है.”
कैलाश सत्यार्थी पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें नोबल शांति पुरस्कार के अलावा डिफेंडर फॉर डेमोक्रेसी, इटैलियन सीनेट मेडल, रॉबर्ट एफ केनेडी अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार सम्मान, फ्रेडरिक एबर्ट मानव अधिकार पुरस्कार और हार्वर्ड ह्यूमेनेटेरियन सम्मान जैसे विश्वप्रसिद्ध पुरस्कार मिल चुके हैं. रोटी, खेल पढ़ाई और प्यार- हर बच्चे के बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकार हैं, जिन्हें हरहाल में उन्हें मिलना सुनिश्चित करना होगा.
ये जो जिंदगी है
रचनाकार : ओपरा विनफ्रे
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
नयी दिल्ली
पृष्ठ : 216
मूल्य : "350
मनुष्य के दिल-दिमाग का बारीक अध्ययन कर जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्र बताने और सकारात्मक सोच विकसित करने में दक्ष विश्वप्रसिद्ध ‌व्यक्तित्व ओपरा विनफ्रे की यह पुस्तक पठनीयता से भरपूर है. सालों से उन्होंने सर्वाधिक रेटिंग वाले अपने बहुचर्चित टॉक-शो के जरिए इतिहास रचा है, अपना खुद का टेलीविजन शुरू किया है.
वह अपने देश की पहली अफ्रीकी-अमेरिकी अरबपति बनी हैं. उन्हें हार्वर्ड यबनिवर्सिटी से मानद उपाधि और प्रेसीडेंशियल मेडल फॉर फ्रीडम से सम्मानित किया जा चुका है. अपने सारे अनुभवों से उन्होंने जीवन के सबक चुने हैं, वे ‘ओ ओपरा मैगजीन’ के स्तंभ ‘वॉट आय नो फॉर श्योर’ में प्रस्तुत हुए हैं.
अब पहली बार इन वैचारिक रत्नों का पुनर्लेखन, अद्यतन संग्रह करके एक पुस्तक में पेश किया गया है, जसमें ओपरा विनफ्रे ने अपने आंतरिक उदगार प्रकट किये हैं. प्रसन्नता, लचक, संवाद, आभार, संभावना, विस्मय, स्पष्टता और शक्ति के भावों के रूप में संगठित ये लेख दुनिया की सर्वाधिक असाधारण महिला के दिल और दिमाग की दुर्लभ, सशक्त और आंतरिक झलक प्रस्तुत करते हैं. इस पुस्तक में अोपरा विनफ्रे निर्भीक, मर्मस्पर्शी, प्रेरक और बार-बार परिहासपूर्ण शब्दों का उपयोग करती हैं, जो सच की ऐसी चमक देते हैं कि पाठक उन्हें बार-बार पढ़ना चाहते हैं. यह अंगरेजी पुस्तक ‘व्हाट आइ नो फॉर श्योर’ का हिंदी अनुवाद है. इसका अनुवाद वीरेन वर्मा ने किया है.
कलाम की आत्मकथा
रचनाकार : डॉ रश्मि प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
नयी दिल्ली
पृष्ठ : 232
मूल्य : "400
यह भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास है. इसे पढ़ने के दौरान आप जानेंगे कि कलाम साहब का जीवन अनूठा था. वे सभी धर्म, जातियों और संप्रदायों के ‌व्यक्ति प्रतीत होते थे. विज्ञान, प्रौद्यगिकी और विकास के लिए उन्होंने अदभुत काम किये. साथ-साथ उन्होंने बच्चों और युवाओं के मस्तिष्क को प्रज्वलित करने के काम में भी अपनी खास भूमिका अदा की. डॉ कलाम सभी मुद्दों को मानवीयता की कसौटी पर परखते थे. उनका मानवतावाद मनुष्यों की समानता के आधारभूत सिद्धांत पर आधारित था. अपनी सादी वेशभूषा, खास केशसज्जा और मृदु-स्नेहपूर्ण स्वभाव के कारण वे सभी के खास थे. यह उपन्यास सुरुचिपूर्ण ढंग से कलाम साहब के जीवन और मनोभावों और उनके कार्यों से परिचित करायेगा. यह उपन्यास विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए नयी राह बनाने का काम करेगा.
डॉ कलाम पर्यावरण के प्रति भी खासे जागरूक रहा करते थे और दूसरों को भी जागरूक किया करते थे. थुंबा जैसी जगह को भी उन्होंने अपने प्रयासों सेेे हराभरा कर दिया. इस उपन्यास की रचनाकार डॉ रश्मि अपनी बात में लिखती हैं- “जब मैंने इन्हें और करीब से जाना तो पाया कि इनकी जीवन-गाथा किसी रोचक उपन्यास के नायक की कहानी से कम नहीं है. उसी क्षण मेरे मस्तिष्क में इस विचार ने जन्म लिया कि इस चमत्कारिक प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व पर अपनी लेखनी चलाकर धन्य होना है और मैंने उपन्यास-लेखन का कार्य प्रारंभ कर दिया. ”
शम्भु बादल की चुनी हुई कविताएं
चयन : बलभद्र प्रकाशक : विकल्प प्रकाशन
दिल्ली
पृष्ठ : 152
मूल्य : "180
इस पुस्तक में शम्भु बादल की कविताओं का चयन आलोचक बलभद्र ने किया है. वह शम्भु बादल की कविता-यात्रा से गहरा परिचय रखते हैं. शम्भु बादल की कविताएं अकेलेपन से सार्थक संवाद की कविताएं हैं. अकेलेपन को काव्य-विषय बनाने के बजाय अकेलेपन से उबरने की कोशिश और प्रक्रिया को वे काव्य विषय बनाते हैं. अपने शब्दों को अपने भावों और विचारों के अनुसार तौल-तौल कर रखनेवाले वे बेहद सचेत किस्म के कवि हैं.
वे प्रचलित मुहावरों के इस्तेमाल के साथ-साथ नये-नये मुहावरे भी गढ़ते चलते हैं. इन कविताओं में भारत के सबसे उत्पीड़ित, दमित और दलित मनुष्य का चेहरा साफ दिखाई देता है. शम्भु जी की कविताओं में चरित्रों की जीवन-वेदना और उनका संघर्ष दिखाई देता है. उनकी कविताओं के आदिवासी चरित्र खास तौर पर ध्यान खींचते हैं.
जंगल पहाड़ के पाठ
रचनाकार : महादेव टोप्पो
प्रकाशक : अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ : 96
मूल्य : "100
पिछले करीब दो-तीन दशकों से हिंदी साहित्य में जल, जंगल, जमीन और जमीर से जुड़े मुद्दों और सवालों ने आदिवासी-लेखन को एक अलग पहचान दी है. आज देशभर में, लगभग हर भाषा में यह लेखन मुखर है. आदिवासी सवालों पर महादेव टोप्पो 80 के दशक से ही लिखते रहे हैं.
उनके लेख, कविता आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ-साथ अनेक संग्रहों में संग्रहीत भी हैं, लेकिन स्वतंत्र संग्रह का यह पहला अवसर है. इस पुस्तक में वर्ष 1980 से 2014 तक लिखी कविताओं में से चयनित जंगल पहाड़ के परिवेश और अनुभव की कविताएं हैं. इस संग्रह की अधिकतर कविताएं धरती, मनुष्य और मनुष्यता को बचाने के लिए चिंतित और बेचैन नजर आती हैं.
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