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इंडोनेशिया के मुकाबले भारत में काफी ज्यादा है स्टार्टअप

इ-कॉमर्स स्टार्टअप की संचालन लागत टेक इकोसिस्टम : भारत बनाम इंडोनेशिया भारत और इंडोनेशिया के टेक इकोसिस्टम में कई समानताएं हैं. हालांकि, इंडोनेशिया इस मामले में भारत से करीब पांच वर्ष पीछे है, लेकिन वह तेजी से भारत का अनुसरण कर रहा है. इंडोनेशिया में वेंचर कैपिटल के प्रवाह का स्तर आज वैसा ही है, […]

इ-कॉमर्स स्टार्टअप की संचालन लागत
टेक इकोसिस्टम : भारत बनाम इंडोनेशिया
भारत और इंडोनेशिया के टेक इकोसिस्टम में कई समानताएं हैं. हालांकि, इंडोनेशिया इस मामले में भारत से करीब पांच वर्ष पीछे है, लेकिन वह तेजी से भारत का अनुसरण कर रहा है. इंडोनेशिया में वेंचर कैपिटल के प्रवाह का स्तर आज वैसा ही है, जैसा भारत में वर्ष 2011 में था.
दोनों देशों में बतौर वीसी बड़े निवेश करनेवाले सिकोइया कैपिटल के पार्टनर पीटर केम्प्स, वेंचर कैपिटल फर्म बीनेक्स्ट के पार्टनर डर्क वान क्वेकबेक और इंडोनेशिया के टोकोपीडिया से जुड़नेवाले अमित लखोटिया के बीच ‘टेक इन एशिया जकार्ता 2016’ में एक संवाद आयोजित किया गया, जिसमें इन्होंने ‘भारत बनाम इंडोनेशिया’ से जुड़े कई अहम सवालों के जवाब और टिप्स साझा किये, ताकि इंडोनेशिया के उद्यमी भारत की गलतियां न दोहरायें. आज के आलेख में जानते हैं इन दोनों देशों के स्टार्टअप इकोसिस्टम के बारे में क्या सोचते हैं ये निवेशक …
भारत में अनेक महानगर हैं, लिहाजा संपत्ति के मामले में यहां व्यापक भौगोलिक वितरण है. लेकिन, इंडोनेशिया में संपत्ति जकार्ता और कुछ बड़े शहरों में केंद्रीत है, जो जावा द्वीप में स्थित हैं. लॉजिस्टिक्स के मामले में भी भारत में यह बेहतर तरीके से विकसित है. इंडोनेशिया में वस्तुओं का असमान वितरण दर्शाता है कि वहां डिस्काउंट की जरूरत कम है.
खर्च करने की क्षमता
पीटर कहते हैं, ‘भारत के मुकाबले इंडोनेशिया का उभरता मध्य वर्ग ज्यादा खर्च कर रहा है.’ उन्होंने यह देखा है कि इंडोनेशिया में लोग ज्यादा खर्च करने के इच्छुक हैं.
सेव और केले में तुलना
डर्क वान क्वेकबेक कहते हैं, ‘यह सेव और केले के बीच की तुलना है.’ उनकी फर्म ने पिछले कुछ वर्षों से भारत और इंडोनेशिया में अर्ली- स्टेज स्टार्टअप में निवेश करना शुरू किया है.
इंडोमैरेट की ताकत
वेंचर कैपिटल के प्रवाह के मामले में इंडोनेशिया भले ही भारत से पीछे हो सकता है, लेकिन संगठित खुदरा क्षेत्र में यह आगे है. इंडोनेशिया में इंडोमैरेट और अल्फामार्ट के कॉनवीनिएंस स्टोर चेन्स के हजारों आउटलेट्स हैं. इस स्टार्टअप्स ने पेमेंट या प्रोडक्ट डिलीवरी के लिए ऑनलाइन-टू-ऑफलाइन ट्रांजेक्शन प्वाॅइंट के तौर पर इन को शामिल किया है.
इंडोनेशिया में प्रतिभा की कमी
इंडोनेशिया के साथ बड़ी त्रासदी है कि भारत के मुकाबले वहां प्रतिभा की कमी है. अमित कहते हैं, ‘भारत में दो दशक पहले ही बड़ा बदलाव शुरू हो गया, जब बड़ी कंपनियों ने व्यापक पैमाने पर इंजीनियरों को नौकरी देनी शुरू की. आज भारत में करीब एक करोड़ इंजीनियर हैं, जबकि इंडोनेशिया में ऐसा नहीं है.
भारत में बड़े तकनीकी विश्वविद्यालय हैं, जहां से निकले तकनीकी पेशेवरों को अमेरिका के बड़े संगठन अपने यहां नौकरी देते हैं.भारत के साथ एक बड़ा सकारात्मक पहलू यह भी है कि यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अंगरेजी में दक्ष है. वैसे इंडोनेशिया के लोग भी अब विदेशों में काम करके लौट रहे हैं और इस कारण बदलाव शुरू हुआ है.
भारत की गलतियों से सीख
इंडोनेशिया की स्टार्टअप इंडस्ट्री के लिए यह शायद बेहतर नहीं हो सकता कि फंडिंग के मामले में वे भारत का अनुसरण करें. पीटर कहते हैं, ‘भारत में बहुत-सी कंपनियां व्यापक धन उगाही कर चुकी हैं व बड़ी तादाद में लोगों को नौकरियां दे चुकी हैं और इनमें ठहराव-सा आ गया है.
इंडोनेशिया के टोकोपीडिया के मुकाबले भारत में इ-कॉमर्स स्टार्टअप की संचालन लागत करीब पांच गुना ज्यादा है. गो-जेक के मुकाबले ओला काफी बड़ा है.’ बतौर निवेशक सेकोइया ने गो-जेक और टोकोपीडिया में निवेश किया है. पीटर कहते हैं, ‘आर्थिक स्तर पर इंडोनेशिया मूलभूत रूप से ज्यादा मजबूत है.’
डिजिटल इकॉनोमी का शुरुआती दौर
इंडोनेशिया में डिजिटल इकॉनोमी की अभी शुरुआत ही हुई है और भारत की तरह वहां सॉफ्टवेयर के विकास का इतिहास नहीं रहा है. लेकिन, इंडोनेशिया का एक सकारात्मक पहलू यह है कि वहां ज्यादातर लोग हमेशा ऑनलाइन रहते हैं.
डर्क कुछ मजाकिया लहजे में कहते हैं, ‘भारत में तकनीकी उद्यमों की पहली खेप ने लोगों को ऑनलाइन होने के लिए शिक्षित किया था. शुरुआती दौर में भारत में एबीसीडी यानी एस्ट्रोलॉजी, बॉलीवुड, क्रिकेट व डिस्काउंट को ज्यादा तरजीह दी जाती थी. डिस्काउंट ने लोगों को ऑनलाइन शॉपिंग की ओर आकर्षित किया. लेकिन, टोकोपीडिया डिस्काउंट नहीं देता है. फिर भी जापानी फर्म बीनोस ने टोकोपीडिया में आरंभिक दौर में निवेश किया.’
प्रस्तुति – कन्हैया झा
कामयाबी की राह
फेलियर प्वॉइंट का आकलन पहले से करना जरूरी
असफलता ऐसी चीज है, जिसके बारे में स्टार्टअप चलानेवाला कोई भी इनसान नहीं सोचना चाहता है. लेकिन यदि आप स्टार्टअप के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आपके लिए इस बारे में भी सोचना जरूरी है. ऐसे बहुत कम ही स्टार्टअप देखे गये हैं, जिनका कम-से-कम कोई एक आइडिया या रणनीति असफल नहीं हुआ हो. असफलताओं से घबराये बिना जो लोग कारोबार में जुटे रहते हैं, उन्हें किसी एक या अन्य माध्यम से फायदा जरूर मिलता है.
यह भी निश्चित है कि असफलता का मूल्यांकन करने से आप अपने लिए उपयोगी आंकड़े निकाल सकते हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि कुछ ऐसी चीज है, जो ठीक से काम नहीं कर रही है और संभवत: आप उसके बारे में जान भी सकते हैं. ऐसे में आगे बढ़ने की राह में ये सूचनाएं आपके लिए दिशानिर्देश का काम कर सकती हैं.
समय रहते चेतने की जरूरत
एक खास रकम का निवेश करने या लंबी अवधि बीतने के बावजूद यदि आपके बिजनेस का कोई खास प्रोग्राम या उसका स्वरूप समुचित तरीके से काम नहीं कर हो, तो समझिये कि उसे बदलने का समय आ गया है. ‘फेलियर प्वॉइंट’ के सेट होने से आपको चेत जाना होगा और लंबे समय से अपनाये जानेवाले आइडिया के बजाय उसमें बदलाव लाना होगा.
माइलस्टोन को निर्दिष्ट करना जरूरी
फेलियर प्वॉइंट के निर्दिष्ट होने को ऐसे समझा जा सकता है. मान लीजिये आपने यहतय कर रखा है कि अपनी मौजूदा मार्केटिंग रणनीति का इस्तेमाल करते हुए आप अगले छह माह में 10,000 ग्राहकों तक पहुंचना चाहते हैं.
ऐसे में आपको अनेक सप्लायरों से संपर्क करना होगा. साथ ही आपको इसके लिए माइलस्टोन तय करना होगा और उसके अनुरूप निरंतर आगे बढ़ते रहना होगा. कुछ उद्यमी अपने कारोबार का फेलियर प्वॉइंट तय कर लेते हैं और वह समय आने पर वे खुद पूरी तरह उस कारोबार से निकल जाते हैं.
एक्शन प्लान
अपने स्टार्टअप में कुछ चीजों के लिए फेलियर प्वॉइंट को सेट करके रखिये. साथ कामयाबी के कम-से-कम एक या दो प्रमुख फैक्टर या माइलस्टोन की पहचान कीजिये. अपनी लेटेस्ट बिजनेस रणनीति को चुनते हुए एक्शन प्लान तैयार कर फेलियर प्वॉइंट सेट कीजिये.
(स्रोत : इंक42 डॉट कॉम)
स्टार्टअप क्लास
बैंकों में आ रही ज्यादा रकम, पर लोन की ब्याज दर कम होने की नहीं उम्मीद
– नोटबंदी से बैंकों के पास ज्यादा नकदी आ रही है़ इससे स्टार्टअप के लिए मिलनेवाले बैंक लोन की ब्याज दर कम हो सकती है? – डब्लू, पुपरी
मेरी समझ यह बताती है कि जो रकम जमा हो रही है, उसे जल्दी ही निकाल भी लिया जायेगा, क्योंकि ज्यादातर पैसा व्यापार में इस्तेमाल होनेवाला कैश है. इसका काली पूंजी से कम ही लेना-देना है.
इस कारण मुझे नहीं लगता कि बैंक में लोन की ब्याज दर पर कोईकमी आयेगी. साथ ही बैंक एक खास कारण से स्टार्टअप को लोन नहीं देते, वह है स्टार्टअप में कैश फ्लो की कमी. जब तक कोई स्टार्टअप ठीक तरीके से चलने नहीं लगता, तब तक कोई भी बैंक उस पर पैसे लगाने का जोखिम नहीं उठायेगा. बैंकों के पास चाहे कितना भी पैसा हो, लोन उसी को मिलेगा, जिसके व्यापार में जोखिम कम हो या फिर जिसके पास गिरवी रखने को कुछ हो.
नोटबंदी से पहले भी होता रहा है भरपूर कैशलेस लेन-देन
– नोटबंदी के मौजूदा दौर और भविष्य में कैशलेस लेन-देन की उम्मीद के बीच किस तरह के स्टार्टअप की शुरुआत करने से ग्रोथ हासिल की जा सकती है? – राजीव कुमार, दलसिंहसराय
नोटबंदी के पहले से भी कैशलेस लेन-देन के लिए काफी स्टार्टअप काम कर रहे हैं. पेटीएम और मोबिक्विक ऐसे ही कुछ स्टार्टअप हैं. मोबाइल पेमेंट छोटे शहरों में लोकप्रिय नहीं है. अनेक ऐसे स्टार्टअप हैं, जो अलग-अलग तरीके से यह काम कर रहे हैं.
(क) पेयू : यह स्टार्टअप व्यापारियों को कम दाम में डिजिटल पेमेंट लेने में मदद करता है. यह मोबाइल प्वाॅइंट ऑफ सेल कम दाम में व्यापारियों तक पहुंचाता है. ऑनलाइन सामान बेचने में भी मदद करता है. पांच लाख व्यापारी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.
(ख) एको : एको एक बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट है, जो दो शहरों के बीच पैसे के लेन-देन को आसान बनाता है. आपको अगर दूसरे शहर में पैसे भेजने हैं और आपके पास बैंक अकाउंट या ऑनलाइन बैंकिंग की सुविधा नहीं है, तो आपको एको के काउंटर (जो आपके बगल की दुकान भी हो सकती है) पर जाना होगा और एकाउंट नंबर दे कर पैसे जमा कर सकते हैं.
(ग) इ-पैसा : इ-पैसा ने एक ऐसी मशीन बनायी है, जो मोबाइल फोन से जोड़ते ही उसको कार्ड स्वाइप मशीन बना देती है.
छोटे शहरों में वेडिंग प्लानर के लिए हैं मौके
– वैवाहिक समारोहों का आयोजन करने के िलए इवेंट मैनेजिंग स्टार्टअप शुरू करना कैसा रहेगा़ इससे संबंधित चुनौतियों व अवसरों के बारे में बतायें. – संजय कुमार, पटना
विवाह भारतीय समाज के लिए एक समारोह है, जिसमें लोग काफी पैसा खर्च करते हैं. इसमें अलग-अलग तरह की सेवाओं की जरूरत होती है. कोई एक व्यापारी यदि सभी तरह की सेवाओं को पूरा करे, तो मुश्किलें आसान हो जाती हैं.
अवसर : अवसर अब सिर्फ मंझोले और छोटे शहरों में ही है, क्योंकि बड़े शहरों में वेडिंग प्लानिंग और इवेंट में अनेक बड़ी कंपनियां पहले से काम कर रही हैं, जिनके पास पूंजी और ग्राहक दोनों ही मौजूद हैं. साथ ही ‘डेस्टिनेशन वेडिंग’ छोटे शहरों में काफी प्रचलित होनेवाला है. इस तरफ आप कुछ काम करें तो अच्छी सफलता प्राप्त कर पायेंगे.
(ख) चुनौती : बड़े शहरों में सफल हो चुके इवेंट और वेडिंग प्लानर अब धीरे-धीरे छोटे शहरों में भी पांव पसार रहे हैं. अगर सफल होना है, तो जल्दी ही यह काम शुरू करना पड़ेगा. दूसरी चुनौती होगी काम जानने वालों को ढूंढना. छोटे शहर में वेडिंग प्लानिंग और इवेंट मैनेजमेंट का काम जानने वाले लोग कम हैं. छोटे शहरों में ज्यादा खर्च करनेवाले ग्राहक कम होते हैं़ ज्यादातर छोटे काम ही मिलेंगे, जिसमें मुनाफा कम होगा. चौथी चुनौती है खाली समय. विवाह या इवेंट वर्ष में 4-5 महीने का उद्योग है. बाकी समय कुछ और काम मिलना मुश्किल होगा.
तकनीकी फर्म से ले सकते हैं टीम
– स्टार्टअप शुरू करने के लिए मेरे पास एक बेहतरीन आइडिया है, लेकिन तकनीकी टीम नहीं है़ मैं इसे कैसे शुरू कर सकता हूं? – सौरव कुमार
तकनीकी टीम जुगाड़ करना कोई मुश्किल काम नहीं है. आप कॉन्ट्रैक्ट पर काम करनेवाली छोटी तकनीकी फर्म को काम पर लगा सकते हैं. यह फर्म चार-छह महीने के लिए अपनी टीम आपको दे देंगी और साथ ही तकनीकी सहायता भी प्रदान करेंगी. आप ऑनलाइन खोज कर काफी ऐसी फर्म का पता लगा सकते हैं.
सरकारी मदद का साझेदारी से नहीं कोई लेना-देना
– साझेदारी में लघु व मध्यम आकार के उद्यम की शुरुआत कैसे की जा सकती है, ताकि सरकार के संबंधित विभाग से आर्थिक मदद हासिल हो सके? – राकेश पांडेय, औरंगाबाद
सरकारी मदद का साझेदारी से कोई लेना-देना नहीं है. लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय सरकारी मदद किसी ऐसे छोटे और मध्यम उद्योग को देता है, जो उनके बनाये पैमाने पर खरे उतरते हैं. आपको अगर साझेदारी में उद्यम शुरू करना है, तो अपने साझेदार के साथ एक पार्टनरशिप डीड बनानी होगी और कोर्ट में रजिस्टर करवानी होगी. साथ ही सेल्स टैक्स और सर्विस टैक्स रजिस्ट्रेशन और पैन नंबर लेना होगा. इसके बाद आप उद्यम शुरू कर सकते हैं.

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