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लेखन से कितनी करते थे कमाई?

अतीत : रूस के विश्वप्रसिद्ध लेखकों के जीवन के अनछुए पहलू अजामास नामक वेबसाइट ने हाल ही में यह पता लगाने की कोशिश की है कि अपनी विश्व प्रसिद्ध प्रमुख रचनाओं के लिए मिली रॉयल्टी से रूसी लेखक अपने जमाने में क्या-क्या खरीद सकते थे. इस आकलन से मालूम हुआ कि रूस के वे पहले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 30, 2016 8:23 AM

अतीत : रूस के विश्वप्रसिद्ध लेखकों के जीवन के अनछुए पहलू

अजामास नामक वेबसाइट ने हाल ही में यह पता लगाने की कोशिश की है कि अपनी विश्व प्रसिद्ध प्रमुख रचनाओं के लिए मिली रॉयल्टी से रूसी लेखक अपने जमाने में क्या-क्या खरीद सकते थे. इस आकलन से मालूम हुआ कि रूस के वे पहले पेशेवर लेखक अपनी रचनाओं के लिए बड़े-बड़े पारिश्रमिक पाते थे. ​ लियो तोलस्तोय अपनी रचनाओं के लिए सबसे ज्यादा रॉयल्टी पाने वाले लेखक थे. पढ़िए एक दिलचस्प रिपोर्ट.

अलेक्सांद्र पुश्किन की रॉयल्टी एक करोड़ पांच लाख रुपये के बराबर

विश्व प्रसिद्ध रूसी कवि अलेक्सांद्र पुश्किन को अपनी काव्य-उपन्यासिका ‘येव्गेनी-अनेगिन’ (1833) के प्रकाशन के लिए प्रकाशक से तब 12 हजार रूबल पारिश्रमिक के रूप में मिले थे.

अगर आज की कीमतों के हिसाब से इस धनराशि को बदला जाये, तो वह एक करोड़ पांच लाख रुपये या एक लाख 66 हजार डॉलर के बराबर होगी. तब पुश्किन इस रकम से 100 फैशनेबल कमीजें, 200 जोड़ी फैशनेबल दस्ताने, 80 किलो चाय खरीद सकते थे और मस्क्वा के केंद्र में एक साल के लिए एकमंजिला लकड़ी का बंगला किराये पर ले सकते थे और अपने दो बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठा सकते थे. पुश्किन के चार बच्चे थे. इसलिए दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च पुश्किन को अलग से निकालना पड़ा. वैसे भी पुश्किन के सिर पर सारी जिंदगी कर्जे लदे रहे. अपनी पत्नी के बारे में गंदे फिकरे सुनने के बाद उन्होंने फिकरे कसने वाले को द्वंद्व-युद्ध के लिए ललकारा और वे इस द्वंद्व-युद्ध में खुद मारे गये. अपने सारे कर्जे भी वे पत्नी के सिर पर छोड़ गये, जिनका भुगतान बाद में रूस के जार निकोलस प्रथम ने किया. हां, यह सच है कि पुश्किन वास्तव में बेहद फैशन करते थे और एक से एक शानदार और महंगे कपड़े पहना करते थे.

– इवान गोंचारोव की रॉयल्टी एक करोड़ रुपये के बराबर

रूसी लेखक इवान गोंचारोव को अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘अब्लोमफ’ के लिए दस हजार रूबल रॉयल्टी के रूप में मिले थे. आज की कीमतों के हिसाब से यह रकम एक करोड़ रुपये या एक लाख 58 हजार डॉलर बनती है. तब इवान गोंचारोव इस रकम से महोगनी की लकड़ी (रेडवुड) के बने दस सोफासेट, शहरों में सफर करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली 10 बर्फगाड़ियां, दो स्प्रिंग गाड़ियां, काला चमड़ा मढ़ी 19 दफ्तरी मेजें, सेबल के फर का कोट, 1200 चीनी मिट्टी के कप, अपने हाथों को धोने और उन्हें मुलायम बनाने के लिए 80 किलो सौंफ का साबुन और 17 बोतलें बादाम का पाउडर, सौ बड़े तरबूज, 10 बड़ी समुद्री मछलियां आदि खरीद सकते थे और सांक्त पितेरबुर्ग (सेंट पीटर्सबर्ग) में 12 बड़े हवादार कमरों वाला एक फ्लैट साल भर के लिए किराये पर ले सकते थे. इवान गोंचारोव ‘अब्लोमफ’ उपन्यास के अपने नायक की तरह आरामतलब और कामचोर नहीं थे. वे एक नौकरशाह और सक्रिय व्यक्ति थे, जिन्हें यात्राएं करना बहुत पसंद था. राजनयिक के अपने ओहदे पर रह कर उन्होंने सारी दुनिया की यात्रा कर ली थी. Âबाकी पेज 15 पर

लेखन से कितना…

उन्हें पैसे की भी कोई परवाह नहीं थी और उन्होंने अपनी रॉयल्टी ‘पल्लादा’ नामक एक फ्रिगेट जलपोत पर यात्रा करने में खर्च कर दी.

– फ्योदोर दोस्तोएवस्की की रॉयल्टी सत्तर लाख रुपये के बराबर

फ्योदोर दोस्तोयेवस्की को अपने उपन्यास ‘बौड़म’ (1868) के लिए प्रकाशक से पारिश्रमिक के रूप में सिर्फ सात हजार रूबल मिले थे, जो आज के 70 लाख रुपये या एक लाख डॉलर के बराबर होते हैं.

उसी समय उनके इस उपन्यास की नायिका नस्तास्या फिलीपव्ना एक लाख रूबल के नोट आग में झोंकती हुई दिखायी गयी है. तब इस छोटी-सी रॉयल्टी से फ्योदोर दोस्तोयेवस्की रूस की राजधानी मस्क्वा से दो सौ किलोमीटर दूर बसे रिजान शहर के पास बलूत का एक जंगल खरीद सकते थे, चार लोगों के बैठने लायक गाड़ी खरीद सकते थे, 10 अलमारियां खरीद सकते थे, महोगनी की लकड़ी में जड़े 10 आदमकद आईने खरीद सकते थे, 160 किलोग्राम सौंफ का साबुन खरीद सकते थे, दो काठ के पीपे खरीद सकते थे, 30 बोतल अमेरिकी रम, 160 किलो फिरंगी पनीर, मोरक्को के चमड़े का बैग और काली स्याही की एक बोतल भी खरीद सकते थे. लेकिन फ्योदोर दोस्तोएवस्की तभी यह सब खरीद पाते, अगर उन्हें जुआ खेलने की लत नहीं होती. फ्योदोर दोस्तोयेवस्की विदेशी कैसीनो में जुआ खेलने के लिए अक्सर विदेशों की यात्राएं किया करते थे.

लियो तोलस्तोय की रॉयल्टी दो करोड़ रुपये के बराबर

अपनी रचनाओं के लिए सबसे ज्यादा रॉयल्टी पाने वाले लेखक थे – लियो तोलस्तोय. अपने बड़े उपन्यास ‘आन्ना करेनिना’ (1875-77) के लिए उन्हें 20 हजार रूबल रॉयल्टी मिली थी. आज के जमाने के हिसाब से तब यह रकम दो करोड़ रुपये या तीन लाख डॉलर के बराबर बनती है.

वेबसाइट अरजामास के अनुसार, इस रकम से मास्को में शानदार मकान खरीदा जा सकता था, खूबसूरत घोड़ागाड़ी खरीदी जा सकती थी, महंगे सिगार, गमबूट, चमड़े के महंगे बैग, चीनी मिट्टी के बर्तन और खरबूजे आदि बहुत-सा सामान इस रकम में आ जाता. लेकिन लियो तोलस्तोय तो मन और जीवन से संन्यासी हो चुके थे. उन्हें शानदार जीवन जीना पसंद नहीं था. अपने गमबूट वे खुद सिला करते थे. तूला प्रदेश में स्थित उनकी जागीर यस्नाया पल्याना में उनका घर इतना छोटा है कि उसमें 30 आरामकुर्सियां समा भी नहीं सकेंगी और मास्को में बना उनका मकान भी ऐसा ही साधारण-सा है.

(साभार: रूस-भारत संवाद)

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