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चीन-पाक आर्थिक गलियारा: ग्वादर के बहाने ‘ग्रेट गेम’

।।पुष्परंजन, इयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक।। समुद्री सिल्क रोड रणनीति पर आगे बढ़ते हुए चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और आर्थिक गलियारे के साथ हिंद महासागर तक अपनी पहुंच बना ली है. इस परियोजना में ग्वादर और कराची से शिंजियांग को जोड़नेवाला मार्ग पाकिस्तानी कब्जेवाले कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान से भी होकर बनाने का […]

।।पुष्परंजन, इयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक।।

समुद्री सिल्क रोड रणनीति पर आगे बढ़ते हुए चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और आर्थिक गलियारे के साथ हिंद महासागर तक अपनी पहुंच बना ली है. इस परियोजना में ग्वादर और कराची से शिंजियांग को जोड़नेवाला मार्ग पाकिस्तानी कब्जेवाले कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान से भी होकर बनाने का प्रस्ताव है. ग्वादर में चीनी नौसेना की उपस्थिति तथा रूस की साझेदारी की खबरें भी हैं. ऐसे में यह परियोजना महज आर्थिक न होकर, भूराजनीतिक पहल बन जाती है. इन्हीं वजहों से भारत को इस पर आपत्ति है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के विविध पहलुओं पर आधारित संडे-इश्यू की यह प्रस्तुति…

रूस की खुफिया सेवा फेडरल सिक्योरिटी सर्विस (एफएसएस) के प्रमुख अलेक्सांद्र बोग्दानोव नवंबर के तीसरे हफ्ते ग्वादर बंदरगाह को देखने क्यों गये थे? इस सवाल का संतोषजनक उत्तर नहीं मिलने से कई कहानियां कूटनीतिक हलकों में बननी शुरू हो गयी हैं. पिछले महीने से ही ग्वादर बंदरगाह को चीनी माल की ढुलाई के वास्ते ‘ऑपरेशनल’ किया गया है. शिंचियांग से माल की पहली खेप इस मार्ग से विश्व बाजार के लिए भेजी गयी. रूसी खुफिया सेवा के प्रमुख के ग्वादर आने को लेकर यह कयास लगाया गया है कि मास्को ग्वादर बंदरगाह से जुड़ जाने में दिलचस्पी ले रहा है.

नयी धुरी का संकेत

रूस, चीन, पाकिस्तान की मास्को बैठक से एक माह पहले अलेक्सांद्र बोग्दानोव का ग्वादर आना एक नयी धुरी का संकेत दे रहा है, जिसमें तुर्की, ईरान, तुर्कमेनिस्तान ने भी दिलचस्पी दिखायी है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ दो दिन के वास्ते तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अशगबात गये थे. तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दवमुखमेदोव से बातचीत के बाद इसकी पुष्टि हुई है कि रूस अपने पड़ोसी तुर्कमेनिस्तान के बरास्ते ग्वादर तक के लिए सड़क मार्ग चाहता है. यह वह मार्ग है, जहां से तापी गैस पाइप लाइन को अफगा़निस्तान, पाकिस्तान होते हुए भारत के फजिल्का तक आना है. 168 किलोमीटर लंबाई वाली तापी सड़क पर रेल व फाइबर ऑप्टिक लाइन लगाने को भी हरी झंडी मिल गयी है.

तापी के जरिये महत्वाकांक्षी योजना

‘तापी’ को एक ऐसा महत्वपूर्ण सड़क, रेल, संचार व ऊर्जा मार्ग की तरह विकसित करने की तैयारी चल रही है, जो दक्षिण एशिया से मध्य एशिया, और यूरोप को जोड़ता है. तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया (तापी) परियोजना के वास्ते 1995 में हस्ताक्षर किया गया था. 1800 किलोमीटर गैस पाइपलाइन पर 10 अरब डॉलर को खर्च होना था. इस परियोजना से पाकिस्तान को रोजाना 1.3 अरब घनफीट गैस मिलती, और इतनी ही गैस भारत को मिलनी है. अफगानिस्तान को 0.5 क्यूबिक फीट गैस मिलेगी. इसके बदले भारत को 200 से 250 मिलियन डॉलर ट्रांजिट फीस पाकिस्तान को देनी होगी, और यही राशि पाकिस्तान, अफगानिस्तान के हवाले कर देगा. मतलब, पाकिस्तान को एक तरह से ट्रांजिट फीस नहीं देनी होगी. फिर भी भारत तापी के लिए तैयार बैठा है. पाकिस्तान का लक्ष्य तापी के जरिये 2019 में गैस प्राप्त कर लेना है. तापी पाइपलाइन अफगानिस्तान के हेरात, हेलमंड, कंधहार और पाकिस्तान के क्वेटा, मुल्तान से गुजरते हुए भारत के फजिल्का में पहुंचेगी.

पाकिस्तान की गैस कूटनीति

तापी के बहाने पाकिस्तान गैस सप्लाई का बड़ा सा हिस्सा ले लेना चाहता है. तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दवमुखमेदोव से बातचीत के बाद नवाज शरीफ ने पत्रकारों को जानकारी दी कि तापी पाइप लाइन से चार सौ अरब घनफीट गैस की सप्लाई अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के लिए होगी, जिसमें से तीन सौ अरब घनफीट पाकिस्तान के हिस्से आना है. नवाज शरीफ की बात यदि सही है, तो तापी पाइप लाइन पाकिस्तान के लिए ‘हिंग लगे न फिटकरी’ साबित होने जा रही है. तापी के बरास्ते रूस जिस तरह से सड़क, रेल और संचार के लिए गंभीर है, उससे पाकिस्तान को फूटी कौड़ी नहीं खर्च करनी है, और उसे बैठे-बिठाये पश्चिम एशिया व यूरोप के लिए राजमार्ग मिलने जा रहा है. इससे अलग रूस, कराची से लाहौर तक गैस पाइपलाइन बिछा रहा है. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को ‘आइसोलेट’ करने का जो अश्वमेघ यज्ञ छेड़ रखा है, उस पर तो पानी फिरने जा रहा है.

बलूचिस्तान का सुरक्षा घेरा

सर्जिकल स्ट्राइक से पहले सबको याद होगा, बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग-थलग करने की चर्चा चैनलों पर जबरदस्त तरीके से हुई थी. ग्वादर, बलुचिस्तान का ऐसा महत्वपूर्ण बंदरगाह होने जा रहा है, जिसकी सुरक्षा के वास्ते चीन, रूस, तुर्कमेनिस्तान, ईरान यहां तक कि अफगानिस्तान साझा रूप से जिम्मेवार होंगे और उनमें खुफिया साझेदारी होगी. रूस के खुफिया प्रमुख चौदह साल बाद पाकिस्तान यदि आये, तो मकसद बलुचिस्तान में सुरक्षा बढ़ाना भी होगा, ताकि औद्योगिक माल की आवाजाही में कोई बाधा न पहुंचे. ऐसे में बलोच आंदोलन को बांग्लादेश की तरह मदद मिलना लगभग असंभव है. रूस की खुफिया सेवा फेडरल सिक्योरिटी सर्विस (एफएसएस) के प्रमुख अलेक्सांद्र बोग्दानोव को यह भी देखना था कि तापी और ग्वादर रूट से चेचन अतिवादियों को अफगानिस्तान, पाकिस्तान तक पहुंचने से कैसे रोका जा सकता है, या फिर आइसिस रूसी सीमाओं की ओर रुख न करे. चीन को भी इसी तरह की चिंता है. उसे डर है कि उइगुर अतिवादी शिन्चियांग से तुर्की तक इस मार्ग का इस्तेमाल शुरू न कर दें.

ग्रेट गेम में ईरान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान

कुछ माह पहले इस सवाल पर बहस हो रही थी कि क्या रूस और चीन, दक्षिण एशिया से लेकर सेंट्रल एशिया वाले इलाके में नये सिरे से ‘ग्रेट गेम’ करना चाहते हैं? इस सवाल का उत्तर अब मिलना शुरू हो गया है. इस ग्रेट गेम में ईरान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान का शामिल होना यह संकेत दे रहा है कि रूस इस बार ज़बरदस्त तरीके से इस इलाके में आने की तैयारी में है, जिसमें चीन, पाकिस्तान की बड़ी भूमिका होगी. इस नये कूटनीतिक ध्रुवीकरण ने अफगानिस्तान के समक्ष सवाल खड़ा कर दिया है कि वह किस ओर जाये. डोनाल्ड ट्रंप के बयानों की वजह से ईरान के पास रूस-चीन के क्षेत्रीय ध्रुवीकरण में शामिल होने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था.

पाक रक्षा निर्यात में रूस, चीन की मदद

टीवी बहस में हमारे फौजी कमांडर यही कहते रहे कि कटोरा पकड़ के खड़ा पाकिस्तान सूई तक नहीं बना सकता. उधर कराची में हुई रक्षा प्रदर्शनी ‘आइडियाज-16’ में पाकिस्तान ने दावा किया है कि वह एक अरब डॉलर के सैन्य साजो-सामान बाहर के देशों में निर्यात करना शुरू कर देगा. 2013 में जब ‘पीएमएल-नवाज’ की सरकार आयी थी, उस समय पाकिस्तान का रक्षा निर्यात सिर्फ अढ़ाई करोड़ डॉलर था. पाक रक्षा निर्यात के ग्राफ बढ़ाने में निश्चित रूप से रूस, चीन की बड़ी भूमिका रही है. पाकिस्तान के कामरा एयरोनॉटिकल कांप्लेक्स में नेक्स्ट जनरेशन का युद्धक विमान ‘सुपर मुश्शाक’ बनना शुरू हुआ है. ऐसे 52 सुपर मुश्शाक विमानों को खरीदने के लिए तुर्की ने हस्ताक्षर किया है. ग्वादर की सुरक्षा के लिए चीन और तुर्की से जो सुपरफास्ट जलयान खरीदे जा रहे हैं. ग्वादर और ‘तापी’ की वजह इस क्षेत्र की भू-सामरिक स्थितियां बदल रही हैं, जो नवाज शरीफ के लिए वरदान जैसा है. दुश्मन को कम आंक कर, और रूस पर अधिक भरोसा जताकर हमारे नेता एक बार फिर कूटनीतिक गलती कर रहे हैं! पाकिस्तान को अमेरिकी ऑर्बिट (ग्रहपथ) से बाहर निकालना रूस के लिए बड़ी चुनौती रही है. रूस ने पाकिस्तान को हथियार बिक्री पर प्रतिबंध आयद किया था, जिसे हटा लिया गया. इससे इस्लामाबाद को एमआई-35 मल्टीरोल हेलीकॉप्टर की बिक्री आसान हो गयी. रूस ने जान-बूझ कर साझा अभ्यास का ऐसा समय चुना, जब अमेरिका चुनाव में उलझा हुआ हो. यह समीक्षा का विषय है कि मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के बाद मास्को ने दिल्ली से दूरी बनानी क्यों शुरू की. वर्ष 2016 के आखिर में भारत से इतने बड़े रक्षा सौदे के बाद भी मास्को का झुकाव इस्लामाबाद के प्रति क्यों है? इस सवाल पर ‘मन की बात’ में चिंतन करना चाहिए. बीस नवंबर, 2014 को रूसी रक्षामंत्री सर्गे शोइगू इस्लामाबाद आये और पाकिस्तान से ऐतिहासिक रक्षा समझौता कर गये. रूस, पाक विमान सेवा ‘पीआइए’ को सुखोई कमर्शियल एयरक्राफ्ट लीज पर दे चुका है. थार और मुजफ्फराबाद के गुड्डू पावर प्लांट, स्टील मिलों को रूस अपग्रेड कर रहा है. इस नयी चौकड़ी में तुर्कमेनिस्तान, तुर्की, ईरान का शामिल होना सचमुच नींद उड़ानेवाली बात है!

क्या है सीपीइसी?

चीन ने अपने व्यापक हितों वाली परियोजना ‘वन बेल्ट, वन रोड’ के तहत वर्ष 2015 में सीपीइसी यानी चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के नाम से एक आर्थिक गलियारे को विकसित करने का फैसला लिया, जिससे पाकिस्तान के आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हित भी जुड़े हुए हैं. इसके निर्माण की पहल के पीछे चीन का यह भी मकसद है कि इसके जरिये यूरोप और अफ्रीका जैसी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से आसानी संपर्क कायम करते हुए व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा दिया जा सके. सीपीइसी के तहत चीन के पश्चिमोत्तर प्रांत शिंजियांग से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक रोड, रेल और पाइप लाइन के जरिये पहुंच कायम की जा सके. यह इकोनॉमिक कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान के विवादित क्षेत्र बलोचिस्तान होते हुए जायेगा. विविध रिपोर्ट्स के मुताबिक ग्वादर बंदरगाह को इस तरह से विकसित किया जा रहा है, ताकि वह 19 मिलियन टन कच्चे तेल को चीन तक सीधे भेजने में सक्षम होगा.

हालांकि, इस परियोजना की परिकल्पना 1950 के दशक में ही की गयी थी, लेकिन वर्षों तक पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता कायम रहने के कारण इस लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका. इसके मौजूदा स्वरूप की घोषणा चीन सरकार ने नवंबर, 2014 में की थी और अप्रैल, 2015 में इस दिशा में काम की शुरुआत की गयी. इस प्रोजेक्ट की लागत कई अरब डॉलर बतायी जा रही है. उम्मीद जतायी जा रही है कि इस आर्थिक गलियारे के निर्माण से पाकिस्तान में होनेवाले विदेशी निवेश की रकम में बढ़ोतरी होगी.

भारत की प्रतिक्रिया

चीन की वित्तीय मदद से बनायी जा रही इस परियोजना का भारत ने स्वागत नहीं किया है, क्योंकि यह कोरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर होकर गुजरता है. बीते सितंबर में एक द्विपक्षीय वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से सीपीइसी से जुड़ी भारत की चिंताओं से अवगत कराया था. चीन के राष्ट्रपति से उन्होंने कहा कि दोनों देशों को अपने रणनीतिक हितों के अनुकूल संवेदनशील होने की जरूरत है. चीन द्वारा ग्वादर में विकसित किये जा रहे बंदरगाह की प्रतिक्रिया स्वरूप भारत और ईरान के बीच द्विपक्षीय समझौते के तहत चाबहार बंदरगाह को विकसित करने पर सहमति जतायी है. दक्षिण एशिया की राजनीति से जुड़े विशेषज्ञों ने हाल के दिनों में इस संबंध में चेतावनी भी दी है कि भारत की ओर से यदि सीपीइसी पर किसी तरह का विरोध दर्ज किया गया, तो इससे भारत और चीन के बीच मौजूदा तनावपूर्ण संबंधों पर इसका असर पड़ सकता है.

(द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अद्रीजा रॉयचौधरी की रिपोर्ट से साभार)

क्या चीनी गलियारा 21वीं सदी की इस्ट इंडिया कंपनी है?

!!रहमान शाह, रिसर्च एसोसिएट, सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्यूरिटी स्टडीज, इस्लामाबाद, पाकिस्तान!!

हाल में जब एक पाकिस्तानी राजनेता ने संसद में चेतावनी दी कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के रूप में एक इस्ट इंडिया कंपनी आकार ले रही है, तो कुछ लोग जरूर परेशान हुए होंगे. यह बात योजना और विकास पर सीनेट की स्थायी समिति के अध्यक्ष सीनेटर ताहिर मशहदी ने कही थी और उनकी मुख्य चिंता इस गलियारे के लिए पाकिस्तान द्वारा चीन से भारी कर्ज को लेकर थी. मशहदी ने चीनी हितों के अनुरूप बिजली की दरें निर्धारित करने की मांग पर एेतराज जताया था. चूंकि पाकिस्तान का आधिकारिक विमर्श इस गलियारे को शानदार बता रहा है और ‘गेम-चेंजर’ जैसे विशेषण दे रहा है, तो इस आलोचना पर ध्यान देने की जरूरत है.

भले ही इस्ट इंडिया कंपनी और गलियारे की योजना के बीच ऐतिहासिक भिन्नताएं हैं, पर इसे लेकर जो समझौते हुए हैं, उनको लेकर कई गंभीर चिंताएं स्वाभाविक हैं. शर्तों और वित्तीय विवरण को लेकर पारदर्शिता का अभाव चिंता का सबसे बड़ा कारण है. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के गवर्नर ने भी कहा है कि उन्हें नहीं पता है कि 46 बिलियन डॉलर में से कितना कर्ज है, कितनी इक्विटी है और कितना सामान के रूप में आना है. उन्होंने अधिक पारदर्शिता की मांग की है. इसी तरह से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने भी आर्थिक गलियारे के संभावित नकारात्मक परिणामों को लेकर आगाह किया है.

गलियारे की परियोजना को लेकर नवाज शरीफ सरकार का रवैया चीनी निवेश पर श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के रुख की तरह है. राजपक्षे ने अपने चुनाव क्षेत्र हम्बनतोता में विभिन्न परियोजनाओं के लिए चीन से अरबों डॉलर का कर्ज लिया था जिसका कोई वाणिज्यिक औचित्य नहीं था. फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार, अगली सरकार से चीन ने कहा कि हमारा पैसा दे दो, हमें तुम्हारे खाली हवाई अड्डों की जरूरत नहीं है. अब चीनी कर्ज को लौटाने के लिए श्रीलंका सरकार आइएमएफ की मोहताज है. दिलचस्प है कि चीन-पाकिस्तान गलियारे की तरह हम्बनतोता परियोजनाओं के कर्ज की ब्याज दरों के बारे में पारदर्शिता का अभाव था. उल्लेखनीय है कि हम्बनतोता भी गलियारे की तरह चीन के समुद्री सिल्क रोड रणनीति का हिस्सा है.

जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, हम्बनतोता के हालत से बचने के लिए सरकार को समुचित आर्थिक और राजनीतिक रवैया अपनाना होगा. पाकिस्तान को चाइना कार्ड को जरूरत से अधिक बेचने की हरकत से बाज आना चाहिए. यदि पारदर्शिता नहीं बरती गयी, तो दोनों देशों की दोस्ती और भरोसे को बहुत नुकसान होगा.
(द डिप्लोमेट में छपे लेख का अंश. साभार)

आर्थिक गलियारा : पाकिस्तान के लिए वरदान या विनाश

!!हनान जफर, टिप्पणीकार!!

माना जा रहा है कि पाकिस्तान और चीन के बीच 46 बिलियन डॉलर की बड़ी लागत से बनने वाली द्विपक्षीय विकास परियोजना- चीन-पाक आर्थिक गलियारा (सीपीइसी)- दक्षिण एशिया के भूराजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव लाने वाला साबित होगा. इस गलियारे का उद्देश्य चीन के उत्तरी-पश्चिमी झिनजियांग प्रांत के काशगर से पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह के बीच सड़कों के 3000 किमी विस्तृत नेटवर्क और दूसरी ढांचागत परियोजनाओं के माध्यम से संपर्क स्थापित करना है. दस्तावेजों के अनुसार, इसे 2030 तक पूरा होना है, आैर यह दोनों देशाें के लिए फायदेमंद होगा. इस गलियारे के निर्मित हो जाने के बाद चीन ऊर्जा आयात करने के लिए वर्तमान के 12,000 किमी लंबे रास्ते के मुकाबले छाटे रास्ते का इस्तेमाल करेगा. इससे प्रति वर्ष चीन के लाखों डाॅलर की बचत होगी. साथ ही, हिंद महासागर तक इसकी पहुंच भी आसान हो जायेगी. पाकिस्तान को उम्मीद है कि इससे उसका इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित होगा और बदले में उसके जल, सौर, उष्मा और पवन संचालित ऊर्जा संयंत्रों के लिए 34 बिलियन डॉलर की संभावित प्राप्ति होगी, जिससे उसकी गंभीर ऊर्जा संकट में कमी आयेगी या वह पूरी तरह से खत्म हो जायेगी.

भविष्य में सीपीइसी का हिस्सा बनने को लेकर ईरान, रूस और सऊदी अरब भी काफी उत्साहित हैं. इस संभावना ने इस बहुप्रचारित आर्थिक गलियारे के रहस्य को और बढ़ा दिया है. वहीं, इस समझौते का कम प्रचारित पक्ष है- इस सौदे के तहत चीन पाकिस्तान को आठ पनडुब्बी की आपूर्ति भी करेगा, जिससे पाकिस्तान की नौसैनिक शक्ति काफी बढ़ जायेगी.

पाकिस्तान में चीन की रुचि सिर्फ आर्थिक फायदे तक ही सीमित नहीं है. पूर्ण रूप से संचालित ग्वादर बंदरगाह से चीन को सिर्फ व्यावसायिक फायदा ही नहीं होगा, बल्कि इससे इसे बड़े पैमाने पर सामरिक और भूराजनीतिक लाभ भी होगा. हालांकि, वर्तमान में ग्वादर को केवल व्यावसायिक हितों के लिए विकसित किया जा रहा है, लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि भविष्य में इसे एक पूर्ण सुसज्जित नौसैनिक अड्डे के तौर पर विकसित किया जाये. ऐसी स्थिति में चीन को इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रणनीतिक लाभ मिल सकता है. जैसा कि सर्वविदित है, पाकिस्तान इन दिनों चरमपंथ, आतंकवाद और भ्रष्टाचार के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है, ऐसे में उसका इरादा इस परियोजना से न केवल आर्थिक लाभ लेना होगा, बल्कि चीन की सरपरस्ती में अपनी वैश्विक छवि को सुधारना भी होगा. हालांकि, पाकिस्तान को सीपीइसी से होनेवाले अनुमानित लाभ के साथ इसके संभावित नकारात्मक प्रभावों को भी संतुलित करना होगा.

सीपीइसी से होनेवाले लाभ

आर्थिक और अवसंरचनात्मक विकास : चूंकि यह गलियारा समूचे पाकिस्तान से होकर गुजरेगा, ऐसे में सीपीइसी के माध्यम से यहां के सभी प्रांतों के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर होने का मौका मिलेगा. इस महत्वाकांक्षी परियोजना की रूपरेखा के अनुसार, इसके निर्मित होने से नयी सड़कों, राजमार्गों, रेलवे, हवाई अड्डाें और बंदरगाहों का निर्माण भी होगा और वे विकसित भी होंगे. उम्मीद है कि इससे खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे प्रांत विकास के मामले में पंजाब को काफी पीछे छोड़ देंगे. इतना ही नहीं, जब यह परियोजना पूर्ण रूप से विकसित हो जायेगी, तो इससे बड़े पैमाने पर रोजगार भी सृजित होगा. उम्मीद तो यह भी है कि चीन के इस प्रस्तावित निवेश से पाकिस्तान का सकल घरेलू उत्पाद 15 प्रतिशत तक बढ़ कर 274 बिलियन डॉलर तक पहुंच जायेगा.

ऊर्जा संकट से छुटकारा
पाकिस्तान की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था का यहां के स्थानीय ऊर्जा संकट से सीधा संबंध है. यह देश अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में बुरी तरह नाकाम रहा है. गौर करनेवाली बात तो यह है कि इस संकट का लंबे समय से कोई समाधान नहीं निकाला गया है, जिस कारण सकल घरेलू उत्पाद में लगभग दो प्रतिशत की कमी आ चुकी है. इस ऊर्जा संकट को देखते हुए सीपीइसी कुल 10,500 मेगावाट की दूसरी ऊर्जा परियोजनाएं भी शुरू करेगी और इन परियोजनाओं का काम तेज गति से होगा, ताकि इन्हें 2018 तक पूरा किया जा सके. एक विशिष्ट योजना के तहत, थार रेगिस्तान में 6,600 मेगावाट की 10 परियोजनाओं को विकसित किया जायेगा, जो इस बेहद दूर-दराज के इलाके को पाकिस्तान की ऊर्जा राजधानी में बदल देगा.

संयुक्त राज्य पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता से मुक्ति
अपनी सामरिक और वित्तीय जरूरतों के लिए अमेरिका पर पाकिस्तान की जरूरत से ज्यादा निर्भर ने इस देश का अहित ही किया है. अमेरिका का बेहद नजदीक सहयोगी होने के बावजूद पाकिस्तान के अमेरिका साथ संबंध बहुत ज्यादा मैत्रीपूर्ण नहीं रहे हैं. पाकिस्तान की आम जनता भी यह मानती है कि वाशिंगटन गिरगिट की तरह रंग बदलता है और अपने इसी स्वभाव के कारण इसनेे हमेशा पाकिस्तान को धोखा दिया है. वाशिंगटन को लेकर इस तरह की साेच पाकिस्तान के राजनैतिक गलियारे में भी साझा की जाती है. ऐसे में सीपीइसी, पाकिस्तान को चीन के रूप में कहीं ज्यादा भरोसेमंद दोस्त के साथ काम करने का मौका उपलब्ध करा रहा है, जिस पर पश्चिमी प्रभाव नहीं है.

भारतीय चिंता
भारत और पाकिस्तान के बीच कभी न खत्म होनेवाली शत्रुता ने इस पूरे क्षेत्र में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न कर दी है. सीपीइसी के पाकिस्तान-शासित कश्मीर और गिलगिट बाल्टिस्तान, जिसे भारत अपना अभिन्न और अविभाज्य अंग मानता है और मानता है कि उस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है, से गुजरने पर नयी दिल्ली खुल कर नाराजगी जता चुका है. पाकिस्तान लगातार भारत पर आरोप लगाता आया है कि बलूचिस्तान में विद्रोह को बढ़ावा देकर भारत इस परियोजना में खलल डालने का षड्यंत्र रच रहा है. हालांकि, भारत इस आरोप का जोरदार खंडन करता रहा है. भारत-पाक के बीच अच्छे संबंध न होने से दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता मुश्किल है. समृद्ध दक्षिण एशिया केवल तभी संभव है, जब मजबूत सैन्य शक्ति वाले ये दोनों देश राजनीतिक तनातनी और दुश्मनी को भूला कर एक-दूसरे के साथ मिल कर काम करें. इस दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम सीपीइसी को भारत के पंजाब प्रांत के साथ जोड़ना होगा और तब सीपीइसी आइसीपीइसी बन जायेगा. हालांकि, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह सोच महज फंतासी के सिवा और कुछ भी नहीं है.

सीपीइसी के खतरे

यद्यपि सीपीइसी से पाकिस्तान को एक वृहत आर्थिक लाभ मिलेगा, परंतु इसकी क्षमता और आर्थिक औचित्य को लेकर कई शंकाएं हैं. साथ ही, पाकिस्तान को इन दिनों अनेक अांतरिक और बाहरी राजनैतिक चुनौतियां से जूझना पड़ रहा है, जो गलियारे के विकास में बाधक बन सकते हैं.

संप्रभुता को खतरा
सीपीइसी के निर्माण कार्यों की वजह से पाकिस्तान में कार्यरत चीनी श्रमिकों, अधिकारियों और इंजीनियरों की सुरक्षा में यहां हजारों की संख्या में चीनी सुरक्षाकर्मी तैनात हैं (पाकिस्तान द्वारा सुरक्षा दिये जाने के बावजूद) और इतनी बड़ी बात को पाकिस्तान ने नजरअंदाज किया हुआ है. यह आश्चर्यजनक है. पाकिस्तान की धरती पर इतनी बड़ी संख्या में विदेशी सैनिकों का होना, पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के लिए चिंता का विषय होना चाहिए, खासकर चीन की नयी साम्राज्यवादी सोच और इसे साकार करने को लेकर अफगानिस्तान में किये जा रहे प्रयत्नों को देखते हुए. विकास की आड़ में इस परियोजना को लेकर चीन जिस तरह से पाकिस्तान के प्राकृतिक संसाधानों, खासकर बलूचिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है, उससे यहां के कई लोग चिंतित हैं.

बलूचिस्तान विद्रोह और आंतरिक विवाद
इस गलियारे के सफल होने की कुंजी बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह के पास है और पाकिस्तान की आकांक्षा इस क्षेत्र का आर्थिक मुखिया बनने की है. हालांकि बलूचिस्तान को अलग राष्ट्र बनाने को लेकर उठती आवाज और इस कारण सेना के रूख को लेकर पैदा हुआ विवाद भी इस गलियारे के लिए कई चुनौतियां पेश कर रहा है. बलूचिस्तान के नागरिक सीपीइसी का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इससे इलाके के जनसांख्यिकीय संतुलन में बड़े पैमाने पर बदलाव आने की उम्मीद है जो इस क्षेत्र के खिलाफ जायेगा. अगर यह गलियारा सफलतापूर्वक बन कर तैयार हो गया, तो उम्मीद है कि पाकिस्तान के दूसरे प्रांत के अनेक लोग अपना प्रांत छोड़ कर बलूचिस्तान आकर बस जायेंगे.इसी वजह से विभिन्न सीपीइसी परियोजना के लिए काम कर रहे चीनी इंजीनियरों और अधिकारियों पर बलूच विद्रोही समूहों द्वारा अनेक हमले हो चुके हैं.

वहीं कई प्रतिबंधित संगठन भी इस परियोजना को लेकर धमकी दे रहे हैं, हालांकि उनका मकसद इस आड़ में पाकिस्तान के साथ अपना हिसाब बराबर करना है. इसके साथ ही खैबर पख्तूनख्वा और सिंध जैसे प्रांत के अनेक राजनीतिक संगठन भी इस गलियारे की वास्तविक रूपरेखा को बदलने को लेकर अपनी जिंता जता चुके हैं. उनका मानना है कि इस गलियारे में जान-बूझ कर बदलाव किया गया है, ताकि पंजाब प्रांत को आर्थिक लाभ पहुंचाया जा सके.
(द डिप्लोमेट से साभार)

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