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धरती का सबसे खतरनाक समय है यह

धरती का सबसे खतरनाक समय है यह दो-टूक : वैश्विक विकास को प्रोत्साहित करना ही एकमात्र रास्ता प्रख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का कहना है कि जितने भी संसाधन हैं, वे महज कुछ लोगों के हाथों में सिमटते जा रहे हैं. ऐसे में हमें यह सीखना होगा कि कैसे उन संसाधनाें का सबके बीच बंटवारा हो, […]

धरती का सबसे खतरनाक समय है यह
दो-टूक : वैश्विक विकास को प्रोत्साहित करना ही एकमात्र रास्ता
प्रख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का कहना है कि जितने भी संसाधन हैं, वे महज कुछ लोगों के हाथों में सिमटते जा रहे हैं. ऐसे में हमें यह सीखना होगा कि कैसे उन संसाधनाें का सबके बीच बंटवारा हो, जिसकी आज बहुत ज्यादा जरूरत है. दुनिया भर में राजनीति, कारोबार और अर्थव्यवस्था में मचे उथल-पुथल के बीच पढ़िए स्टीफन के अंगरेजी में लिखे लेख का हिंदी अनुवाद.
सैद्धांतिक भौतिकीविद् के रूप में मैंने कैंब्रिज में असाधारण सुविधापूर्ण जिंदगी बिताया है. दुनिया के महानतम विश्वविद्यालयों से घिरा कैंब्रिज एक विशेष प्रकार का शहर है. युवावस्था में इस शहर के जिस वैज्ञानिक समुदाय का मैं हिस्सा बना, वह तो और खास है.
उस वैज्ञानिक समुदाय के बीच जो अंतरराष्ट्रीय सैद्धांतिक भौतिकीविदों का एक छोटा समूह है, जिसके साथ मैंने लंबा कामकाजी वक्त बिताया है, वह इस विशिष्टता का शीर्ष होने का दावा कर सकता है. इसके साथ मेरी पुस्तकों से जो ख्याति मुझे मिली और मेरी बीमारी के कारण जो अकेलापन मिला, मैं महसूस करता हूं कि मेरा एकांत व्यापक ही होता जा रहा है.
इसलिए हाल में अमेरिका और ब्रिटेन के संभ्रांत वर्ग को स्पष्ट रूप से जो अस्वीकृति मिली है, वह औरों की तरह मेरी ओर भी निश्चित रूप से लक्षित है. ब्रिटिश मतदाताओं द्वारा यूरोपीय समूह की सदस्यता छोड़ने का फैसला और अमेरिकी जनता द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को अगले राष्ट्रपति के रूप में चुनने के बारे में चाहे हम जो भी सोचें, टिप्पणीकारों के मन में कोई संदेह नहीं रह गया है कि यह फैसला ऐसी क्रोधित जनता द्वारा लिया गया है, जो अपने नेताओं द्वारा कहीं मंझधार में छोड़ दी गयी महसूस कर रही है.
सभी इस पर सहमत होता दिख रहे हैं कि यह वह क्षण था, जब उपेक्षितों ने अपनी जुबान खोली, और विशेषज्ञों और संभ्रांतों की सलाह को हर जगह ठुकराने की आवाज पायी.
मैं भी इस नियम से परे नहीं हूं. ब्रेक्जिट मतदान से पहले मैंने चेताया था कि इससे ब्रिटेन में वैज्ञानिक शोध को नुकसान होगा, और समूह छोड़ने के लिए दिया गया मतदान हमें पीछे धकेल देगा, और मतदाताओं या उनके बड़े वर्ग ने मेरी बातों को अन्य राजनेताओं, ट्रेड यूनियनिस्टों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, कारोबारियों व मशहूर हस्तियों की बातों से गंभीरता से नहीं लिया, जिन्होंने देश को वही अनसुनी कर दी गयी सलाह दी थी. दोनों जगहों के मतदाताओं के फैसले से कहीं अधिक अब यह बात मतलब रखती है कि संभ्रांत लोग इन पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं.
क्या अब हमें इन फैसलों को त्वरित पॉपुलिज्म की अभिव्यक्ति मान कर खारिज कर दें, जो तथ्यों का संज्ञान ले पाने में असमर्थ रही, और जनता के उद्गार को उपेक्षित करने या उसकी इच्छाओं को सीमित करने की कोशिश करें? मैं यही कहना चाहूंगा कि यह एक भयंकर भूल होगी.
भूमंडलीकरण के आर्थिक प्रभाव और बढ़ते तकनीकी बदलाव के कारण पड़े इन मतों को निश्चित रूप से समझा जा सकता है. फैक्ट्रियों के ऑटोमेशन ने परंपरागत मैन्युफैक्चरिंग में नौकरियों को कम कर दिया है, और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का उपयोग बढ़ने से मध्य वर्ग के लिए नौकरियों की संभावनाएं भी कमतर होती जायेंगी.
यहां केवल देखभाल, रचनात्मक या सुपरवाइजरी जैसे काम रह जायेंगे. इससे आनेवाले समय में पूरी दुनिया में पहले से मौजूद आर्थिक विषमताओं की खाई और चौड़ी होती जायेगी. इंटरनेट और उससे जुड़े प्लेटफॉर्म व्यक्तियों के बहुत छोटे समूहों को ही खूब लाभ पहुंचा रहे हैं और इससे थोड़े लोगों को ही रोजगार मिल रहा है. यह अवश्यंभावी है, यह प्रगति है, लेकिन यह सामाजिक रूप से विनाशकारी भी है. वित्तीय संकट के संदर्भ में इसे रख कर देखने की जरूरत है जिसकी वजह से यह सच सामने आया कि वित्तीय क्षेत्र में काम करने वाले कुछ ही लोग बहुत ज्यादा कमा सकते हैं और हम जैसे बाकी लोग उनकी सफलता पर हस्ताक्षर करते और जब उनका लालच हमें बीच भंवर में डाल देता है, तो हमें उसकी कीमत चुकानी पड़ती है.
कुल मिलाकर देखें, तो वित्तीय विषमता की विस्तृत होती जा रही दुनिया में जी रहे हैं, जहां बहुत सारे लोग अपने जीवन स्तर के साथ अपने जीविकोपार्जन की क्षमता को भी विलुप्त होते हुए देख सकते हैं. ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं है कि वे एक नये दौर की तलाश में हैं, ट्रंप और ब्रेक्जिट जिसका प्रतिनिधित्व करते हुए प्रतीत हो सकते हैं. यह भी उल्लेखनीय है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के वैश्विक फैलाव का एक अनपेक्षित परिणाम है कि इन विषमताओं की स्पष्ट प्रकृति पहले की अपेक्षा आज कहीं ज्यादा प्रत्यक्ष हो उठी हैं. संचार के लिए तकनीक प्रयोग करने की क्षमता मेरे लिए एक स्वतंत्रतापूर्ण और सकारात्क अनुभव रहा है.
इसके बिना मैं बीते कई सालों से काम नहीं कर पाता. लेकिन, इसका यह भी अर्थ है कि दुनिया के सबसे समृद्ध इलाके के धनवान लोगों का जीवन दुखद रूप से हर उस व्यक्ति के सामने आ गयी है, जिसके पास एक फोन है. और, चूंकि सब-सहारा अफ्रीका में आज जितने लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध है, उससे कहीं ज्यादा लोगों के पास टेलीफोन है, इसका मतलब यह भी है कि लगातार बढ़ती इस धरती की आबादी में शायद ही कोई विषमता से बच सकेगा. इसके नतीजे साफ देखे जा सकते हैं- उम्मीद पाले गांव के गरीब शहरों और बदहाल बस्तियों का रूख कर रहे हैं.
और फिर जब उन्हें इंस्टाग्राम निर्वाण नहीं मिलता, तो वे विदेशों की ओर गमन करते हैं, जहां बेहतर जीवन की तलाश में पहले से ही आर्थिक प्रवासियों की बड़ी संख्या मौजूद है. ये प्रवासी उन देशों के बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था पर नया दबाव बनाते हैं, इससे सहिष्णुता का नुकसान होता है और राजनीतिक पॉपुलिज्म को बल मिलता है. मेरे विचार से इसका चिंताजनक पहलू यह है कि पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है कि हम मिल-जुल कर काम करें. हमारे सामने पर्यावरण से जुड़ी बड़ी चुनौतियां हैं- जलवायु परिवर्तन, खाद्य उत्पादन, अत्यधिक आबादी, कई प्रजातियों का विलुप्त होना, महामारियां, महासागरों का अम्लीकरण. हम सबको यह याद रखने की जरूरत है कि वर्तमान में हम मानवता के विकास के सबसे भयावह पल से गुजर रहे हैं.
आज हमने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है, जिसके सहारे हम धरती को ही नष्ट कर रहे हैं. लेकिन इस विनाश से बचने के लिए हमने कोई तकनीक विकसित नहीं की है. हो सकता है कुछ सौ सालों में तारों के ऊपर मानव बस्तियां बसा ली जाये, लेकिन अभी रहने के लिए हमारे पास धरती ही एकमात्र ग्रह है और इसे सुरक्षित रखने के लिए हम सबको मिल कर काम करने की जरूरत है. इसके लिए हमें राष्ट्र के भीतर और राष्ट्रों के बीच दीवारें खड़ी करने की बजाय उसे तोड़ने की जरूरत है. अगर हमें एक साथ मिल कर काम करने का मौका मिल गया, तो दुनिया के नेताओं को यह समझने की जरूरत होगी कि वे असफल हो चुके हैं और कईयों को असफल कर रहे हैं.
असल बात तो यह है कि जितने भी संसाधन हैं, वे महज कुछ लोगों के हाथों में सिमटते जा रहे हैं, ऐसे में हमें यह सीखना होगा कि कैसे उन संसाधनाें का सबके बीच बंटवारा हो, जिसकी आज बहुत ज्यादा जरूरत है. जब नौकरी ही नहीं, बल्कि सारे उद्योग खत्म हो रहे हैं, तब हमें लोगाें को नयी दुनिया के अनुकूल बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करना होगा और उन्हें तब तक वित्तीय सहायता देनी होगी. रोजगार और बेहतर जीवन की तलाश में अपने देश को छोड़ कर दूसरे देश में जाने की वर्तमान में जो स्थिति है, अगर समुदाय और अर्थव्यवस्था उससे निपट नहीं सकते हैं, तो हमें वैश्विक विकास को और प्रोत्साहित करना होगा क्योंकि यही एक रास्ता है, जिसके जरिये लाखों प्रवासियों को इस बात के लिए राजी किया जा सकता है कि उनके अपने घर में ही अपने भविष्य की तलाश करें.
हम ऐसा कर सकते हैं, मानव जाति को लेकर मैं बेहद आशावादी हूं, लेकिन इसके लिए लंदन से लेकर हॉवर्ड और कैंब्रिज से लेकर हॉलीवुड तक के सभी अभिजात्यों को अपने इस साल से सबक सीखने की जरूरत होगी. आखिर, सीखना विनम्रता की निशानी भी तो है.
(साभार: द गार्जियन)

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