रक्षा खरीद में बिचौलिये: सौदों में दलाली को रोक पाना मुश्किल

!!सुशांत सरीन, रक्षा विशेषज्ञ!! अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद मामले में पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एसपी त्यागी की गिरफ्तारी ने रक्षा सौदों में बिचौलियों की भूमिका और रिश्वत की लेन-देन की समस्या की ओर देश का ध्यान फिर से खींचा है. आजादी के बाद से अब तक हुई अनेक बड़ी खरीदों पर सवाल उठते रहे हैं, कुछ मामलों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 11, 2016 7:54 AM
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!!सुशांत सरीन, रक्षा विशेषज्ञ!!

अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद मामले में पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एसपी त्यागी की गिरफ्तारी ने रक्षा सौदों में बिचौलियों की भूमिका और रिश्वत की लेन-देन की समस्या की ओर देश का ध्यान फिर से खींचा है. आजादी के बाद से अब तक हुई अनेक बड़ी खरीदों पर सवाल उठते रहे हैं, कुछ मामलों में जांच भी हुई और मुकदमे भी चले. पर, सजा के नाम पर कुछ उल्लेखनीय नहीं हो सका है. मौजूदा प्रकरण की पृष्ठभूमि में रक्षा सौदों में अवैध तरीके से धन बनाने और निर्णयों को प्रभावित करने के मसले पर विस्तृत चर्चा आज के संडे-इश्यू में…

रक्षा सौदों में दलाली को आज तक कोई नहीं रोक पाया है. दरअसल, इस दलाली को रोकने के लिए जो प्रोसीजर बनाये गये हैं, वे बहुत ही उलझाउ (कंप्लीकेटेड) हैं. दलाली पर नियंत्रण की प्रक्रिया एक भूलभुलइया की तरह है. दूसरी बात यह है कि किसी सौदे को लेकर एक कमिटी बैठती है, फिर उस कमिटी के ऊपर एक और कमिटी बैठती है यह तय करने के लिए कि उस कमिटी ने ठीक से काम किया या नहीं. उसके बाद भी कई कमिटियां बिठायी जाती हैं. अनेकों बैठकें होती हैं, ताकि सौदे में कोई गोरखधंधा न हो सके. लेकिन, विडंबना यह है कि इतना सब करने के बावजूद अरसे बाद पता यही चलता है कि सौदे में पीछे से कहीं कोई शख्स पैसा बना कर निकल चुका है और इस तरह रक्षा सौदों में दलाली सामने आती है. अब सवाल यह है कि आखिर रक्षा सौदों में दलाली को कैसे रोका जा सकता है.

इसे ऐसे भी समझा जा सकता है. मसलन, नोटबंदी का आइडिया तो बहुत अच्छा है, लेकिन अगर बैंक वाले ही अंदरखाने घूस लेकर लाखों के पैसे का लेन-देन करने लगेंगे और बाहर जनता परेशान रहेगी, तो इस आइडिया को पारदर्शी तौर पर कैसे कोई लागू कर सकता है. ऐसे में जो हालात देश की बेहतरी की तरफ जाना चाहिए, वह बिगाड़ की तरफ जाने लगता है. रक्षा सौदों में भी मूल समस्या यही है. एक डील के लिए कई कमिटियां बनती हैं, अनेकों बैठकें होती हैं, लेकिन उसी बीच कोई दलाली करके अपना पैसा बनाके निकल लेता है. इस ऐतबार से सरकार को तो यही लगता है कि इतनी कमिटियों और अनेकों बैठकों के बाद डील बड़ी साफ-सुथरी हुई है, कोई अनुचित लेन-देन नहीं हुआ है, इसमें कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई है, अब जल्दी ही सामरिक सामान आ जायेंगे और इस तरह सिस्टम निश्चिंत बैठ जाता है. लेकिन, अरसे बाद पता चलता है कि इटली में कोई केस चल रहा है कि उस डील में किसी ने घूस लिया था और तब हमें पता चलता है कि उस डील में दलाली हुई थी.

यहां मेरा सरकार से और रक्षा मंत्रालय से यही सवाल है कि आखिर आप दोनों के उस प्रोसीजर का क्या हुआ, जो आपकी नाक के नीचे की दलाली को नहीं पकड़ पाया. अगर इटली में केस नहीं चलता, तो यह कभी पता नहीं चलता कि हमारे रक्षा सौदे में दलाली हुई थी.

रक्षा सौदों में दलाली को समझने के लिए मैच फिक्सिंग के कुछ पहलुओं को देखा जा सकता है. मसलन, किसी जारी मैच को लेकर एक होता है उस मैच को फिक्स करना और दूसरा होता है किसी एक टीम की जीत-हार पर जुआ खेलना. अक्सर हम लोग इन दोनों चीजों को एक साथ जोड़ देते हैं और यही हमारी गलती है.

अगर कोई मैच चल रहा है और उस मैच में एक टीम के जीतने पर कोई जुआ खेल रहा है कि फलां टीम जीत जायेगी- लगी शर्त. हो सकता है यह गैर-कानूनी हो, लेकिन यह मैच फिक्सिंग नहीं है. मैच फिक्सिंग वह है, जिसमें फिक्सर खिलाड़ियों से मिले होते हैं और जीत-हार के लिए पैसे का लालच देकर मैच को फिक्स करते हैं. जबकि, जुआ में जुआ खेलनेवालों का खिलाड़ियों से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता. कुछ ऐसा ही रक्षा सौदों में भी होता है. मसलन, एक तो यह कि सामरिक खरीद में जो हथियार लेने होते हैं, उसके लिए घूस दिया जाता है. जो चीज नहीं लेनी चाहिए थी, उसे भी ले लिया जाता है. या फिर उस चीज के वाजिब दाम के मुकाबले घूस ले-देकर ज्यादा दाम में सौदा हो जाता है. यह तो हुई एक तरह की दलाली. दूसरी तरह की दलाली यह है कि एक सौदे पर बात चल रही है और इस सौदे के बारे में एक व्यक्ति अंदरखाने यह पता करता है कि क्या हो रहा है, या कितना सही हो रहा है. इसमें एक बड़ी बारीक रेखा होती है, अगर वह इस तरफ हो गया तो ठीक, लेकिन अगर जरा सा भी उस तरफ हो गया, तो वह गैर-कानूनी काम कर रहा है.

लेकिन, कई दफा ऐसा व्यक्ति यह पता करता है कि सौदे में ज्यादा समय क्यों लग रहा है, या सरकार के कार्यालयों में फाइल आगे बढ़ रही है या नहीं, इसके लिए कंपनियां कुछ लोगों को रखती हैं. तकनीकी रूप से यह गैरकानूनी काम नहीं है. इनको इस काम के लिए कमीशन मिलता है. यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि देशभर में सेना को बहुत ही सम्मान की नजर से देखा जाता है. लेकिन, मैं यह जरूर कहूंगा कि सेना में भी कुछ लोग दूध के धुले नहीं हैं. सेना में आज भी अगर किसी शख्स के ऊपर अंदेशा हो जाता है कि इसने कोई गलत काम किया है, तो सेना ही एक ऐसी संस्था है जहां पर गलती के लिए सजा मिलती है और उसका कैरियर खत्म हो जाता है. उसके खिलाफ कार्रवाई होती है और जरूरत पड़ने पर कोर्ट मार्शल तक हो जाता है. यह आज भी होता है.

लेकिन, आप खुद सोचिये कि किसी गलत काम के चलते देश में कितने आइएएस अधिकारियों को सख्त सजाएं हुई हैं. दरअसल, रक्षा सौदों में एक स्तर पर ही सेना का जुड़ाव होता है, बाकी तो सरकार और रक्षा मंत्रालय के अधिकारी वगैरह बड़े स्तर पर जुड़े होते हैं. इन सौदों में हमारी राजनीति और ब्यूरोक्रेसी की सक्रिय भूमिका होती है. ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक दखल के चलते ही सेना को बदनामी झेलनी पड़ती है. अगर सेना के किसी अधिकारी को लाभ भी मिलता है, तो बस ब्रेड के उस टुकड़े के बराबर ही, जिसे हम काट कर फेंक देते हैं. आज तक जितने भी रक्षा सौदे हुए हैं, मैंने पता किया है किसी भी एक सौदे में ऐसा नहीं रहा कि किसी ने दलाली न खायी हो.

अब जहां तक अगस्ता वेस्टलैंड मामले में पूर्व वायु सेना प्रमुख एसपी त्यागी की गिरफ्तारी का मामला है, तो अगर त्यागी के खिलाफ कोई सबूत है कि इन्होंने गैरकानूनी काम किया है, तो त्यागी के खिलाफ कार्रवाई पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. लेकिन, मुद्दा यह है कि क्या ऐसा कोई सबूत है? मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि एक हालत में मान लीजिए कोई ‘अ’ व्यक्ति मेरे पास आया, वह मेरा दोस्त भी हो सकता है. उस ‘अ’ व्यक्ति ने मुझसे कहा कि मुझे किसी अधिकारी से मिला दीजिये, जरूरी काम है या उसकी कोई फाइल आगे नहीं बढ़ रही है. मैंने उसकी जरूरत को देखते हुए उसे एक जाननेवाले अधिकारी से मिला दिया. मुझे इतना नहीं पता कि उस ‘अ’ व्यक्ति का जरूरी काम कानूनी है या गैरकानूनी.

इंसानियत के तौर पर मेरा काम वहां खत्म हो गया. यहीं पर, अगर वह ‘अ’ व्यक्ति और सरकारी अधिकारी ने मिल कर कोई बड़ा घोटाला कर दिया. जब पकड़े गये तो मेरा नाम ले लिया गया कि मैं भी उसमें शामिल था. कुछ मेरी ही जगह पर एसपी त्यागी हो सकते हैं. फिर भी मैं कहता हूं कि अगर त्यागी जी ने कोई ऐसी सूचना दी, जिससे दलाली को अंजाम दिया गया और अगर उन्होंने उस सूचना के लिए घूस ली, तो फिर त्यागी को जेल जाना ही पड़ेगा. अभी तक यह नहीं पता कि सीबीआइ के पास त्यागी के खिलाफ क्या सबूत है. लेकिन, अगर ठोस सबूत है, तो उन पर कार्रवाई बनती है.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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