गूगल लॉन्चपैड एक्सीलरेटर प्रोग्राम के लिए चुने गये सात उभरते भारतीय स्टार्टअप्स

स्टार्टअप सक्सेस स्टोरी लॉन्चपैड एक्सीलरेटर गूगल का एक खास कार्यक्रम है, जिसके तहत चुने गये स्टार्टअप्स को मेंटरशिप और इक्विटी-फ्री मदद के जरिये उनका सशक्तीकरण किया जाता है. इस कार्यक्रम के तीसरे बैच में कई भारतीय स्टार्टअप्स भी चुने गये हैं. 30 जनवरी, 2017 से अमेरिका में कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली स्थित गूगल के मुख्यालय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 12, 2016 6:58 AM
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स्टार्टअप सक्सेस स्टोरी
लॉन्चपैड एक्सीलरेटर गूगल का एक खास कार्यक्रम है, जिसके तहत चुने गये स्टार्टअप्स को मेंटरशिप और इक्विटी-फ्री मदद के जरिये उनका सशक्तीकरण किया जाता है. इस कार्यक्रम के तीसरे बैच में कई भारतीय स्टार्टअप्स भी चुने गये हैं. 30 जनवरी, 2017 से अमेरिका में कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली स्थित गूगल के मुख्यालय में यह कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा, जहां भारत से चुने गये सातों स्टार्टअप्स हिस्सा लेंगे. आज के आलेख में जानते हैं इनमें शामिल होनेवाले भारतीय स्टार्टअप्स समेत इस कार्यक्रम से जुड़े अन्य संबंधित पहलुओं के बारे में …
फ्लाइरोब : यह एक फैशन रेंटल सर्विस है, जो यूजर्स को उचित दाम में परिधान और एक्सेसरीज मुहैया कराती है. इसके माध्यम से कोई ग्राहक नामी-गिरामी डिजाइनरों के क्यूरेटेड कलेक्शन तक आसानी से अपनी पहुंच कायम कर सकता है. मौजूदा समय में इसकी सेवाएं दिल्ली और मुंबई में मुहैया करायी जा रही हैं.
हैशलर्न : यह एक ऑन-डिमांड मोबाइल-ट्यूटरिंग प्लेटफॉर्म है. टेस्ट की तैयारी कराने से लेकर यह प्रशिक्षकों और छात्रों को समुचित प्लेटफॉर्म के जरिये जोड़ने का काम करता है. आठवीं से लेकर बारहवीं तक के छात्रों को परीक्षा की तैयारी कराने के अलावा यह फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ जैसे विषयों को मुख्य रूप से शामिल करते हुए बोर्ड और अन्य प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करवाता है.
रेंटोमोजो : यह एक ऑनलाइन घरेलू एप्लाएंस और फर्नीचर रेंटल स्टार्टअप है. इसके अलावा इस स्टार्टअप ने हाल ही में मोटरसाइकिल भी किराये पर देना शुरू किया है. कुछ तय अवधि के लिए लाइफस्टाइल से जुड़ी अनेक चीजों को भी यह किराया-आधारित पहुंच कायम करवाता है.
कैप्चर सीआरएम : यह एक क्लाउड-आधारित तकनीक है, जो बिजनेस की प्रक्रिया को ऑटोमेटिक और तेज करता है. मोबाइल के इस्तेमाल से समुचित प्लेटफॉर्म के जरिये यह स्टार्टअप एफएमसीजी, हेल्थकेयर, रियल इस्टेट, होटल व अन्य सेक्टरों से संबंधित अपने क्लाइंट्स को बिक्री, मार्केटिंग, ऑपरेशंस, कलेक्शन और अन्य कार्यकलापों में विविध प्रकार से मदद मुहैया कराता है.
क्यूरोफाइ : यह एक डॉक्टर नेटवर्किंग एप्प है, जो डाॅक्टरों को सुरक्षित माहौल में संवाद की सुविधा मुहैया कराता है. साथ ही यह डॉक्टरों के प्रोफाइल के आधार पर ऑनलाइन मेडिकल डायरेक्टरी भी तैयार करता है. इसमें डॉक्टर भी अपनी तरफ से कई सूचनाएं मुहैया कराते हैं.
हैप्पी अड्डा स्टूडियोज : इस स्टार्टअप का प्रमुख उत्पाद बच्चों और युवाओं के लिए एक खास गेम- जलेबी है, जो विविध भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है. इसमें अनेक भाषाओं में जनरल नॉलेज के सवालों के सेट हैं, जिन्हें यूजर्स इच्छानुसार चुन सकता है.
प्लेमेंट : यह एक दो-तरफा बाजार है, जो बड़ी कंपनियों से काम लेता है और स्मार्टफोन के जरिये उसे आम लोगों को मुहैया कराता है. यह एक तरह से आउटसोर्सिंग का काम है, जो बीपीओ आदि करते हैं.
संबंधित सवाल-जवाब
– लॉन्चपैड एक्सीलरेटर के लिए स्टार्टअप को क्यों करना चाहिए आवेदन?
यह कार्यक्रम आपके तकनीकी स्टार्टअप को अनेक तरीकों से बेशुमार मौके मुहैया कराता है. कार्यक्रम की छह माह की अवधि के दौरान गूगल अपने इंजीनियरों, प्रोडक्ट मैनेजरों और विश्वसनीय विशेषज्ञों के जरिये विशेष जानकारी मुहैया कराता है. इस मेंटरशिप के जरिये स्टार्टअप अपने कारोबार को स्थानीय और वैश्विक बाजार में ज्यादा बेहतर तरीके से खुद को पेश कर सकते हैं और अपना दायरा बढ़ा सकते हैं.
– कौन है इसके आवेदन का पात्र?
लॉन्चपैड एक्सीलरेटर के तहत खास तौर पर ऐसी कंपनियों को फोकस किया जाता है, जिनका काेई प्रोडक्ट हो. मौजूदा समय में इसमें लैटिन अमेरिका के ब्राजील, अर्जेंटिना, कोलंबियो व मैक्सिको और एशिया के भारत, इंडोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और थाइलैंड के केवल तकनीकी स्टार्टअप्स को ही शामिल किया गया है.
– किस तरह की है चयन प्रक्रिया?
सबसे पहले आप आवेदन करें. गूगल अपनी ओर से आपके आवेदन का मूल्यांकन करेगा और उसके बाद एक घंटे के वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये कुछ स्टार्टअप्स के साथ गूगल टीम के सदस्य इंटरेक्ट होंगे. कई मामलों में फेस-टू-फेस इंटरव्यू भी किया जायेगा.
– इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए स्टार्टअप्स को कितनी खर्च करना होता है?
इस कार्यक्रम से संबंधित गतिविधियों में शामिल होने के लिए आपसे कोई रकम नहीं ली जायेगी. इतना ही नहीं, आपके स्टार्टअप की टीम से जुड़े दो से तीन लोगों के सिलिकॉन वैली में होनेवाले सभी खर्चों का वहन गूगल ही करेगा.
भारतीय स्टार्टअप्स की यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए उनकी क्षमता को तलाशने और उन्हें सफलता की आेर अग्रसर करने में हमें काफी खुशी होती है. किसी स्टार्टअप को आरंभिक या मध्यावधि के दौरान यदि अच्छे मेंटर्स की सलाह मिल जाये, तो उससे व्यापक फर्क पैदा हो सकता है.
पिछले एक वर्षों के दौरान 13 भारतीय स्टार्टअप्स इस प्रोग्राम में हिस्सेदारी निभा चुके हैं और इनमें से ज्यादातर ने इस कार्यक्रम से फायदा उठाया है व सफलतापूर्वक निवेश हासिल कर पाये हैं. चुने गये स्टार्टअप्स न केवल छह महीने के लिए मेंटरशिप प्रोग्राम का हिस्सा बनेंगे, बल्कि इन्हें हजारों डॉलर की रकम बतौर इक्विटी-फ्री फंडिंग के रूप में मुहैया करायी जायेगी. – पॉल रविंद्रनाथ जी, प्रोग्राम मैनेजर, लॉन्चपैड एक्सीलरेटर.
सीड फंडिंग मिलने के बाद इन गलतियों से बचना जरूरी
देखा गया है कि सीड फंडिंग हासिल करने के बाद उद्यमी अपने आइडिया को उस प्रकार लागू करने में विफल रहते हैं, जैसा कि वे उस बारे में पहले दावा कर चुके होते हैं. जैसे ही किसी वेंचर को सीड फंडिंग हासिल हो जाती है, तो वह विज्ञापन के दायरे में विस्तार और ज्यादा प्रतिभाशाली कर्मचारियों की नियुक्ति पर जोर देता है.
हालांकि, इनकी महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन इस संबंध में जल्दबाजी दिखाना सही नहीं है. सीड फंडिंग मिलने के बाद उद्यमियों को इस तरह की भूल करने से बचना चाहिए :
1. प्रोडक्ट की बजाय पीआर पर ज्यादा जोर : ज्यादातर उद्यमी यह समझते हैं कि पहले राउंड की वित्तीय मदद मिलना ही उनके कारोबार के लिए सबसे बड़ी सफलता है. इससे उनका संघर्ष थम जाता है और प्रोडक्ट की बिक्री से उनका फोकस कम हो जाता है और वे पीआस संबंधी कार्यकलापों की ओर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं. उद्यमी को समझना चाहिए कि निवेशकों को आमंत्रित करने से पहले उन्हें यह सुनिश्चित कर लेना होगा कि निवेश की रकम वापस भी करनी है.
2. निवेशकों के संपर्क में नहीं रहना : अपने बिजनेस रूपी साम्राज्य के लिए भले ही उद्यमी उसका मालिक हो, लेकिन उसे अपने निवेशकों से नियमित संपर्क बनाये रखना चाहिए. निवेशकों की आेर से मिलनेवाली प्रत्येक सलाह उसके लिए लाभदायक हो सकती है. आम जनता भी निवेशक हो सकती है और वह बिजनेस की गुणवत्ता को बढ़ा सकती है, लिहाजा हमेशा उसके संपर्क में बने रहना चाहिए.
3. खर्चों में बुद्धिमानी नहीं दिखाना : देखा गया है कि सीड फंडिंग हासिल होने के बाद उद्यमी ज्यादा उत्साहित हो जाते हैं और अतिउत्साह में कई बार गलत दिशा में रकम खर्च करने लगते हैं. बिना रिटर्न का आकलने किये हुए वे मार्केटिंग और विज्ञापन पर ज्यादा खर्च करने लगते हैं. यह सही नहीं है.
4. तेजी से नियुक्ति : फंड मिलते ही उद्यमी अक्सर सभी विभागों में अच्छी सैलरी पैकेज पर कर्मचारियों की नियुक्ति शुरू कर देते हैं. उद्यमी को इसके लिए बहुत सोच-समझ कर फैसला लेना चाहिए.
5. एक बार में ज्यादा चीजों पर फोकस : रकम हाथ लगते ही उद्यमी चाहता है कि अब रातों-रात उसका कारोबार फैल जाये और इस कवायद में वह एक साथ ज्यादा चीजों की ओर ध्यान देने लगता है. लेकिन, यह कारोबार के लिए ठीक नहीं माना जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि बारी-बारी से सभी चीजों को सुलझाना चाहिए.
स्टार्ट अप क्लास
छोटे पैमाने पर शुरू करके बड़ा बना सकते हैं तकनीक आधारित शिक्षण-प्रशिक्षण कारोबार
– सवाल 1 : छोटे शहरों में गुणवत्तापूर्ण सेटेलाइट आधारित सेवाओं द्वारा शिक्षण-प्रशिक्षण का भविष्य कैसा है? इसे शुरू करने में लागत और जरूरी संसाधनों के बारे में बताएं.
– देवाशीष, देवघर
आपका सवाल काफी अच्छा है. यह मानी हुई बात है कि छोटे शहरों के बच्चे संसाधनों की कमी के कारण अच्छे शिक्षण संस्थानों से वंचित रह जाते हैं. जिनके पास संसाधन हैं, वे कोटा या दिल्ली जैसे शहरों में जा कर शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं.
लेकिन, एक तरफ तो यह खर्चीला है, और साथ ही इसका उनके मानसिक हालात पर भी अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता. परिवार के साथ न होने और प्रतियोगिता के भारी दबाव के कारण इन शहरों में छात्रों को डिप्रेशन जैसी बीमारियां बहुत ज्यादा होती हैं. अगर आप इस व्यवसाय में उतरना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले बाजार का अध्ययन करना पड़ेगा. मेरे हिसाब से कोचिंग का रिमोट मार्केट काफी अच्छा रहेगा छोटे शहरों में. इसके लिए आपको बड़े कोचिंग संस्थानों से बात कर संबंध स्थापित करने होंगे. दूसरी जरूरत आपको व्याव्यसायिक कॉन्ट्रैक्ट की होगी. इसके तहत फीस का एक हिस्सा कोचिंग संस्थानों को देना होगा.
तीसरी जरूरत आपको तकनीक की होगी. आज के जमाने में आपको सेटेलाइट फीड की तकनीक की जरूरत नहीं है. हाइ स्पीड ब्रॉडबैंड तकनीक का इस्तेमाल कर आप कोचिंग क्लास का सीधा प्रसारण अपने यहां कर सकते हैं. इसके साथ ही सवाल जवाब के लिए एक रिवर्स फीड का भी इंतजाम करना होगा. इस व्यवसाय का मुख्य खर्च तकनीक ही होगी. साथ ही आपको लोकल मार्केटिंग में भी थोड़ा खर्च करना होगा. लेकिन, आप इसको छोटे पैमाने पर शुरू कर जल्द ही बड़ा कर सकते हैं.
बड़ा कारोबार है टूर ऑपरेटर का, पूंजी की बहुत ज्यादा जरूरत
– ट्रैवल एजेंट व टूर ऑपरेटर के सहयोग से विविध धार्मिक स्थलों के भ्रमण के लिए टूर पैकेज सर्विस शुरू करना चाहता हूं. इस व्यवसाय का भविष्य कैसा है? संबंधित चुनौतियों व अवसरों के बारे में बताएं.
– करिया, दुर्गापुर
देखिये ट्रेवल और टूर ऑपरेटर के साथ धार्मिक ट्रेवल और टूरिज्म एक पुराना व्यवसाय है, जिसमें काफी बड़े-बड़े नाम और कंपनियां काम करती हैं. इस इंडस्ट्री में पैर जमाने के लिए आपको काफी पूंजी की जरूरत पड़ेगी. साथ ही ऑनलाइन बुकिंग के जमाने में मेकमायट्रिप जैसी कंपनियां इस व्यापार में काफी आगे निकल चुकी हैं. मेरी सलाह रहेगी कि आप इस व्यापार में ना ही उतारें, तो ज्यादा अच्छा है.
तीसी और मड़ुआ का औद्योगिक उत्पादों के निर्माण में इस्तेमाल
– सुना है कि विविध औद्योगिक उत्पादों के निर्माण के लिए अनेक कंपनियां तीसी और मड़ुआ जैसी फसलें खरीदती हैं. यदि ऐसा वाकई में है, तो इन कंपनियों के बारे में बताएं और कैसे इनसे संपर्क किया जा सकता है?
– कृष्ण कुमार, सुरसंड
तीसी और मड़ुआ ऐसे पदार्थ हैं, जिनका दवाओं में कंपाउंड की तरह इस्तेमाल होता है या फिर टेबलेट के खोल में इस्तेमाल होता है. चूंकि दवा का निर्माण एक महंगी प्रक्रिया है, इसलिए सबसे उत्तम क्वाॅलिटी के पदार्थ ही इस्तेमाल होते हैं. आप इसके लिए किसी भी दवा कंपनी से संपर्क कर सकते हैं. भारत में 5,000 से ज्यादा दवा कंपनियां हैं. इस संबंध में विस्तृत जानकारी आपको इंटरनेट से मिल सकती है.
बढ़ रहा है आॅर्गेनिक फार्मिंग का कारोबार
मैं जैविक पद्धति से पैदा की गयी सब्जियों को पैक करके बेचने का कारोबार शुरू करना चाहता हूं. जरूरी संसाधनों और शिक्षण-प्रशिक्षण के बारे में जानकारी दें. – देव कुमार, रांची
आॅर्गेनिक फार्म प्रोड्यूस एक उभरता हुआ बाजार है, जो बड़े शहरों में काफी प्रचलित हो रहा है. लोग रासायनिक खाद द्वारा पैदा किये गये अन्न और सब्जियों से दूर जाना चाह रहे हैं, इसीलिए वे आॅर्गेनिक फार्म प्रोड्यूस के लिए ज्यादा से ज्यादा दाम देने को तैयार हैं. इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि साधारण चावल जो 30-40 रुपये किलो मिलता है, यदि आॅर्गेनिक हो तो 100-120 रुपये किलो तक बिकता है. इससे जुड़े संसाधनों और तकनीकी जानकारी के लिए आपको निम्न चीजें करनी होंगी :
(क) ट्रेनिंग : सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर नामक संस्था पिछले कुछ वर्षों से बिहार में किसानों को आॅर्गेनिक खेती करने की ट्रेनिंग प्रदान करती है. साथ ही पैकेजिंग और मार्केटिंग में भी सहायता देती है.
(ख) सब्सिडी : वर्ष 2012 में बिहार सरकार ने आॅर्गेनिक फार्मिंग को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की थी. यह सहायता बीजों में सब्सिडी और खाद संयंत्र के निर्माण में मदद के लिए थी.
(ग) पैकेजिंग और मार्केटिंग : आपको पैकेजिंग और मार्केटिंग के लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है. आपको बिग बाजार जैसे 1-2 बड़े रिटेल कंपनियों से कॉन्ट्रेक्ट कर के उनके हिसाब से पैकेजिंग करनी होगी. वे खुद-ब-खुद आपका सारा माल खरीद लेंगे.
(घ) निर्यात : भारत सरकार आॅर्गेनिक फार्म प्रोड्यूस के निर्यात को प्रोत्साहन देती है. आप खाद्य मंत्रालय से संपर्क कर इसके बारे में ज्यादा जानकारी ले सकते हैं.
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