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डिजिटल इंडिया की प्रगति की कहानी : अकेले सिखा दिया पूरे गांव को कंप्यूटर चलाना

कंप्यूटर ने निवालकर गजानन की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया. उसने अपने डिजिटल ज्ञान से तेलंगाना के एक गांव को पूरी तरह डिजिटल रूप से साक्षर कर दिया. पढ़िए उत्साह और ऊर्जा से भरे एक नौजवान की कहानी. तेलंगाना का एक गांव है अकोली. एक नये सवेरे के लिए तैयार यह गांव भारत के […]

कंप्यूटर ने निवालकर गजानन की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया. उसने अपने डिजिटल ज्ञान से तेलंगाना के एक गांव को पूरी तरह डिजिटल रूप से साक्षर कर दिया. पढ़िए उत्साह और ऊर्जा से भरे एक नौजवान की कहानी.

तेलंगाना का एक गांव है अकोली. एक नये सवेरे के लिए तैयार यह गांव भारत के विकास की नयी दास्तान लिख रहा है. यह सौ फीसदी डिजिटली साक्षर गांव बन गया है. इसका श्रेय जाता है 34 वर्षीय निवालकर गजानन को. 25 दिनों के कंप्यूटर साक्षरता कार्यक्रम के जरिये गजानन ने अकोली गांंव के लोगों की जिंदगी बदल दी. लोगों के मन में सपने भर दिये.

गनिता खेत मजदूरी करते-करते थक गया है. वह अब कंप्यूटर इंस्ट्रक्टर बनने के सपने देख रहा है. मात्र 12वीं पास दादा राव को गांव की चौहद्दी से बाहर रोजगार मिल गया है. राजकुमार और गीता पहले बहुत ही गरीब थे. उनके पास कोई रोजगार नहीं था. अब वे दोनों डिजिटल ज्ञान के प्रचारक बन गये हैं. तेलंगाना के दूरस्थ गांवों में घूम-घूम कर कंप्यूटर साक्षरता का संदेश देने में लगे हैं.

तेलंगाना में एक जिला है आदिलाबाद. गजानन इसी जिले के गिम्मा गांव के रहनेवाले हैं. उन्होंनेे इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग में डिप्लोमा लिया. यहीं कंप्यूटर चलाना सीखा. बिल भुगतान करना, रेकॉर्ड मेंटेन करना और सरकारी योजनाओं से लेकर देश-दुनिया की जानकारी संग्रहण करना सीखा. कंप्यूटर की इस बहुआयामी क्षमता ने गजानन को विस्मित कर दिया.

वर्ष 2010 में गजानन ने यह इरादा बनाया कि अपने गांंव के लोगो को कंप्यूटर का इस्तेमाल करना सिखायेगा. उसने एक कॉमन सर्विसेज सेंटर बनाया. इस सेंटर का उद्देश्य गांव के साधारण लोगों तक ‘इ-गवर्नेंस’ से जुड़ी सेवाओं की पहुंच बनाना था. एक छोटा-सा शुल्क लेकर गांव स्तरीय उद्यमियों ने गांव के अशिक्षित लोगों को इंटरनेट का इस्तेमाल सिखाया. उन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी. सरकार से मिलनेवाले लाभ को लेने की प्रक्रिया सिखायी.

वर्ष 2015 में भारत सरकार ने ‘डिजिटल इंडिया प्रोग्राम’ की घोषणा की. देश के हर घर में कम से कम एक डिजिटल साक्षर व्यक्ति बनाने के लक्ष्य को सामने रखकर नेशनल डिजिटल लिटरेसी मिशन लॉन्च किया. भारत सरकार की इस पहल से प्रभावित होकर गजानन ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम करनेवाले सरकारी कर्मचारियों को कंप्यूटर चलाने का प्रशिक्षण दिया. गजानन ने पाया कि प्रशिक्षण के बाद सभी कर्मचारी अपने रोज के काम में भी कंप्यूटर का इस्तेमाल करने लगे थे.

जिन बच्चों के साथ वे काम करते थे, उनसे संबंधित सभी आंकड़े संग्रहित करने लगे. पढ़ाई में उनकी प्रगति पर नजर रखने लगे. गांव की औरतों ने जो सीखा था, उसे अमल में लाने लगीं. आज इस गांव में काम करनेवाला स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र का हर सरकारी कर्मचारी डिजिटली साक्षर है.

गजानन का मन इतने से नहीं भरा. उसके मन में जो सपना तैर रहा था, वह था- पूरे गांव को डिजिटली साक्षर बनाना. गजानन ने महसूस किया कि शहरों मेें कंंप्यूटर चलाना सीखना आसान है.

किसी भी कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में एडमिशन ले लीजिए और क्लास एटेंड करिए. बस, सीख जायेंगे कंप्यूटर चलाना. मगर गांववालों के लिए कंंप्यूटर चलाना सीखना तो दूर का सपना है. सीखने में लगनेवाली फीस एक बाधा तो है ही, दूसरी बाधा यह है कि अधिकतर गांववाले खेती-किसानी करनेवाले हैं, वे एक दिन के लिए भी अपना खेत-बाड़ी नहींं छोड़ सकते हैं. मगर इन्हें अगर कंप्यूटर चलाना आ गया तो सबसे ज्यादा फायदा इनको मिलेगा. यह सोचकर गजानन ने गांववालों के लिए कंप्यूटर क्लास लगाने की शुरुआत की.

गजानन ने अपना आइडिया गांव के सरपंच के पास रखा. सरपंच ने अपना समर्थन दे दिया. एक महीने बाद जनवरी, 2016 में गांव के 160 घरों से एक-एक सदस्य का नामांकन करना शुरू किया. पंचायत-घर के एक छोटे कमरे में चार कंप्यूटर लगवाया. एक एलइडी स्क्रीन और दो वाइ-फाइ हॉटस्पॉट का इंतजाम किया. गांववालों का अलग-अलग ट्रेनिंग बैच बनाया. घर की गृहणियों, बच्चों और खेत-मजदूरों को सुबह में सिखाने की व्यवस्था की, तो खेत में काम करनेवाले किसानों को देर शाम से लेकर देर रात तक.

प्रशिक्षण को मजेदार बनाने के लिए ‘माइक्रोसॉफ्ट पेंट’ सॉफ्टवेयर चलाना सिखाया. इससे उन्हें माउस का इस्तेमाल करना आ गया. हर पांचवें दिन प्रतियोगिता आयोजित की जाती और सफल प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाता.

कोर्स पूरा होने के बाद गांववाले कंप्यूटर चलाना सीख गये. नेशनल डिजिटल लिटरेसी मिशन ने अपने आधिकारिक आकलन में इसे सही पाया और इस तरह अकोली शत प्रतिशत डिजिटली साक्षर गांव घोषित हो गया. इस पूरे अभियान का खर्च गजानन ने खुद उठाया था. भारत सरकार ने 65, 000 रुपये देकर उसे पुरस्कृत किया. उसने इस राशि से गांव में दो कंप्यूटर लेकर एक स्थायी कंप्यूटर सेंटर बना दिया है, जहां इंटरनेट सुविधा भी है. गजानन का जोश अभी कम नहीं हुआ है. अब वह अन्य दो गांवों को शत प्रतिशत डिजिटली साक्षर गांव बनाने के अभियान में लग गया है.

(इनपुट: द बेटर इंडिया डॉट कॉम)

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