कैंसर और हार्ट अटैक के इलाज की जगी उम्मीद!

कैंसर और हार्ट अटैक से बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है. इन बीमारियों के उन्नत इलाज के लिए दुनियाभर में मेडिकल वैज्ञानिक अनेक परीक्षणों को अंजाम दे रहे हैं. इस दिशा में दो अलग-अलग परीक्षणों में शोधकर्ताओं को आरंभिक कामयाबी हाथ लगी है. आज के आलेख में जानते हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 15, 2016 1:33 AM
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कैंसर और हार्ट अटैक से बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है. इन बीमारियों के उन्नत इलाज के लिए दुनियाभर में मेडिकल वैज्ञानिक अनेक परीक्षणों को अंजाम दे रहे हैं. इस दिशा में दो अलग-अलग परीक्षणों में शोधकर्ताओं को आरंभिक कामयाबी हाथ लगी है. आज के आलेख में जानते हैं कैंसर और हार्ट अटैक से भविष्य में बचाव के लिए विविध शोधकर्ताओं द्वारा की जा रही इन्हीं कोशिशों के बारे में …
कैंसर को फैलाने में मददगार तथ्यों को समझने में वैज्ञानिकों ने कामयाबी हासिल की है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि चूहे के शरीर में फैल रहे कैंसर के लिए जिम्मेवार कोशिकाएं बेहद कमजोर हो जाती हैं और उनके ग्रोथ के लिए कुछ खास फैट की जरूरत होती है. शोधकर्ताओं ने यह दर्शाया है कि बसा को अवशोषित करनेवाली इन कोशिकाओं को ब्लॉक करने से चूहों में कैंसर को फैलने से रोका जा सकता है. साथ ही उन्होंने यह उम्मीद जतायी है कि इनसानों में भी कैंसर को रोकने की दिशा में अच्छे नतीजे सामने आ सकते हैं.
कैंसर से होनेवाली सबसे ज्यादा मौत के लिए मेटास्टेसिस यानी रूप-परिवर्तन या उपापचय को जिम्मेवार माना जाता है. वैज्ञानिकों को अब तक यह समझने में संघर्ष करना पड़ा है कि कैंसर कोशिकाएं शरीर में ऊर्जा वितरण की प्रक्रिया के दौरान कैसे और क्यों समूचे ब्लडस्ट्रीम में फैलती हैं और शरीर में कहीं एक जगह बैठ जाती हैं. पूर्व में यह माना जाता रहा है कि कैंसर के ईंधन का स्रोत सुगर होता है. लेकिन, इस वर्ष के आरंभ में आयी रिपोर्ट में दर्शाया गया कि मेटास्टेसिस पूरी तरह से इसके लिए जिम्मेवार हो सकता है. अब नये अध्ययन ने इस धारणा को बदला है.
वसा की अधिकता से पाया गया कैंसर से जुड़ा जोखिम!
शोधकर्ताओं ने चूहे में मुंह का कैंसर फैलने के लिए जिम्मेवार कोशिकाओं की पहचान की है और दर्शाया है कि वास्तव में वे फैटी एसिड्स हैं, जिसमें पाम ऑयल में बहुतायत में पाया जानेवाला पैल्मिटिक एसिड भी है, जो पूरे शरीर में फैल जाता है. उन्होंने इसका चित्रांकन किया है कि ज्यादातर मेटेस्टाइजिंग कोशिकाएं सीडी36 नामक रिसेप्टर प्रोटीन को उच्च रूप से अभिव्यक्त करती हैं, जो बसा को अवशोषित करने में मदद करता है. सीडी36 का उच्च रूप से अभिव्यक्त होना कैंसर के मरीजों में कमजोर मेडिकल देखरेख का नतीजा पाया गया है, इसलिए टीम ने फैसला लिया है कि अब यह देखा जायेगा कि रिसेप्टर को ब्लॉक करने से क्या हो सकता है.
मूल रूप से विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित इस शोध रिपोर्ट के मुखिया सैल्वाडोर अजनर बेनीटा के हवाले से ‘साइंस एलर्ट’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उनका अनुमान है कि कुछ खास फैटी एसिड्स की मौजूदगी मेटेस्टेटिक कोशिकाओं पर निर्भर है. बेनीटा का कहना है, ‘हालांकि, हम अब तक नहीं जान पाये हैं कि सीडी36 के ब्लॉक होने का मैकेनिजम क्या होगा, लेकिन हासिल किये गये नतीजे इस दिशा में कारगर साबित हो सकते हैं. फिलहाल हमारी टीम इस दिशा में कार्यरत है और प्राप्त नतीजों के जरिये यह जानने का प्रयास कर रही है कि शरीर में कैंसर किस तरीके से फैलता है.’
चूहों पर किया गया सफल परीक्षण
चूहों में एंटीबॉडीज के साथ सीडी36 को ब्लॉक करते हुए मेटास्टेटिक ट्यूमर्स काे खत्म करने में करीब 15 फीसदी तक और शेष ट्यूमर्स को भी फैलने से रोकने में कम-से-कम 80 फीसदी तक कामयाबी मिली. उच्च-फैट वाला आहार लेने से चूहों के फेफड़ों और लिंफ नोड्स में बड़ा ट्यूमर होने का संकेत पाया था, जो सामान्य आहार लेनेवाले चूहों के मुकाबले ज्यादा बड़ा था.
हालांकि, इनसानों की कैंसर कोशिकाओं पर यह शोध किया जाना शेष है, इसलिए अभी यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि इनसानी मरीजों पर यह पूरी तरह से कारगर हो पायेगा या नहीं. और ऐसे में कैंसर फैलने से रोकने के लिए फैट का सेवन कम करने की सलाह नहीं दी जा सकती, क्योंकि कैंसर के मरीजों को सेहतमंद बने रहने के लिए उच्च-ऊर्जा वाले डाइट्स की जरूरत होती है. लेकिन यह टीम ऐसी एंटीबॉडीज को सृजित करने में जुटी है, जो इनसानों में सीडी36 के खिलाफ काम करेंगे और उम्मीद है कि आगामी पांच वर्षों में इसका क्लिनीकल ट्रायल पूरा हो जायेगा.
बेनीटा ने उम्मीद जताते हुए कहती हैं, ‘यह भले ही पहला चरण है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है और अब हम पहचान पाने में सक्षम हो चुके हैं कि ये कोशिकाएं मेटास्टेसिस के लिए जिम्मेवार होती हैं. ऐसे में हम इसके व्यवहार का विस्तार से अध्ययन कर सकते हैं. साथ ही इससे एक नयी एंटी-मेटास्टेसिस थेरेपी की संभावना के द्वार खोले हैं, जो फैटी एसिड्स में मौजूद कोशिकाओं की संबंधित चीजों को ब्लॉक करने पर आधारित होगी.’
हार्ट अटैक रोकने में मिल सकती है सफलता
शोधकर्ताओं ने एक खास किस्म का स्टिक-ऑन पैच विकसित किया है, जिसके जरिये हृदय में इलेक्ट्रिकल इंपल्स यानी विद्युतीय आवेग पैदा किया जा सकता है. इसके लिए इस पैच को हार्ट में फंसाया जा सकता है. इससे हार्ट अटैक की दशा में पैदा होनेवाले जोखिम को कम किया जा सकेगा. यह पॉलिमर पैच फ्लेक्सिबल होगा और ज्यादा दिनों तक कारगर रहेगा. इसे इस तरह डिजाइन किया गया है, ताकि हार्ट अटैक के बाद शरीर में हाेनेवाली गड़बड़ियों या जोखिम को तत्काल सुधार सकता है.
मूल रूप से ‘साइंस एडवांसेज’ में प्रकाशित रिपोर्ट के हवाले से ‘साइंस एलर्ट’ में बताया गया है कि ब्रिटेन के इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स के फैकल्टी ऑफ साइंस के सहयोग से इस पैच को विकसित किया है.
इंपीरियल कॉलेज के विशेषज्ञ सिआन हार्डिंग का कहना है, ‘हार्ट अटैक एक प्रकार का जख्म या आघात पैदा करता है, जो समूचे हृदय के विद्युतीय आवेग में व्यवधान पैदा करता है और उसकी गति को कम कर देता है. इससे दिल की धड़कन को गंभीर रूप से बाधा पहुंचती है. हमने जिस बिजली संचालित पॉलिमर पैच का विकास किया है, उसे इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए खास तौर से डिजाइन किया गया है.’ शरीर रचना विज्ञान के तहत आपने यह पढ़ा होगा कि हमारा हृदय इसलिए धड़कता है, क्योंकि साइनोएट्रियल यानी एसए नोड नामक अंग के सबसे ऊपर कोशिकाओं का गुच्छा होता है, जो मूल रूप से हमारे शरीर का प्राकृतिक पेसमेकर है.
एसए नोड जब इलेक्ट्रिकल इंपल्स भेजता है, तो प्रत्येक हार्ट चैंबर खास तरीके से सिकुड़ते हैं, जिससे पूरे हृदय में और फिर उसके जरिये पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह बनाये रखा जाता है. लेकिन, जब किसी को हार्ट अटैक आता है, तो स्कैर टीस्सू इलेक्ट्रिकल इंपल्स पैदा करनेवाले सिगनल की गति कम करते हैं, जिससे इसमें व्यवधान आता है और अनियमित हार्टबीट समेत हृदय से जुड़ी अन्य परेशानियां शुरू हो जाती हैं.
हार्ट अटैक की दशा में जेनरेट होगा इलेक्ट्रिकल इंपल्स चूहों पर परीक्षण के जरिये शोधकर्ताओं ने पाया कि जब पैच को अटैच किया गया था, तो समूचे हृदय में विद्युतीय आवेग को सुधारा जा सका, जो हार्ट अटैक जैसी हालत पैदा होने पर उससे जुड़ी दिक्कतों को कम करने में सक्षम हो सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स के संबंधित शोधकर्ता डेमिया मेवड का कहना है, ‘हृदय की बीमारियों से बचाव के लिए हमने हार्ट अटैक के मरीजों पर इसका परीक्षण करने पर विचार किया है. इन मरीजों में इस पैच को इस तरह सेट किया जायेगा, ताकि ये सेहतमंद और क्षतिग्रस्त ऊतकों के बीच सेतु का काम कर सकते हैं. हालांकि, यह पैच अभी शाेध के बेहद आरंभिक चरण में है. लेकिन, इस तकनीक का इस्तेमाल संबंधित ऊतकों को पहचानने और इस गुत्त्थी को सुलझाने में किया जा सकता है.’
चिटोसन के इस्तेमाल से बनाया गया पैच
यह पैच चिटोसन से बना है, जो क्रैब शेल्स यानी केकड़े की खोपड़ी में पाया जाता है और पॉलीएनीलिन नामक पॉलीमर को कंडक्ट करता है. चिटोसन का इस्तेमाल खेती में सीड ट्रीटमेंट और बायोपेस्टीसाइड बनाने के लिए किया जाता है, जो पौधों को फंगल इनफेक्शन से लड़ने में मदद करता है. इसके अलावा, पॉलीएनीलिन के जरिये विद्युतीय आवेग पैदा करने के लिए उसमें फाइटिक एसिड भी मिलाया जाता है.
मेवड का कहना है, ‘विकसित किया गया यह पैच टांका-रहित है, जो इस दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है. अब तक बनाये गये मिलते-जुलते पैच आम तौर पर महज एक दिन तक के लिए ही कारगर होते हैं, लेकिन हमने यह दर्शाया है कि नया विकसित किया गया यह पैच दो सप्ताह से ज्यादा समय तक विविध फिजियोलॉजिकल दशाओं में स्थिर रहते हुए अपना काम करता है. साथ ही इसमें किसी स्टिच की जरूरत नहीं होती, लिहाजा यह कम हमलावर होने के साथ हृदय को बहुत कम नुकसान पहुंचाता है और हृदय की धड़कनों के साथ यह बेहद नजदीक से मूव करता है.’
इंपीरियल कॉलेज लंदन के मॉली स्टीवेंस का कहना है, ‘यह पैच हमें इस बात को समझने में मदद करेगा कि हार्ट में प्रवाहित होनेवाली सामग्रियां ऊतकों के साथ कैसे इंटरेक्ट करती हैं और विद्युतीय आवेग पर उसका क्या असर पड़ता है. साथ ही इससे यह भी जाना जा सकेगा कि हार्ट अटैक की दशा में शरीर में किस तरह के फिजियोलॉजिकल बदलाव आते हैं.’
कन्हैया झा
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