समय रहते हार्ट अटैक का अनुमान लगाना होगा मुमकिऩ, लेजर थेरेपी से कैंसर का इलाज!

हाल के वर्षों में हार्ट अटैक और कैंसर का जोखिम बढ़ा है. हार्ट अटैक आने से पहले ज्यादातर मरीजों के लिए इसके गंभीर लक्षणों को समझना आसान नहीं होता, ताकि समय रहते इससे बचा जा सके. ज्यादातर मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि समय रहते यदि हार्ट अटैक का अनुमान लगाना मुमकिन हो जाये, तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 22, 2016 6:22 AM
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हाल के वर्षों में हार्ट अटैक और कैंसर का जोखिम बढ़ा है. हार्ट अटैक आने से पहले ज्यादातर मरीजों के लिए इसके गंभीर लक्षणों को समझना आसान नहीं होता, ताकि समय रहते इससे बचा जा सके. ज्यादातर मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि समय रहते यदि हार्ट अटैक का अनुमान लगाना मुमकिन हो जाये, तो बड़ी संख्या में लोगों की जान बचायी जा सकती है. ऐसे में एक नये ब्लड टेस्ट ने उम्मीद जगायी है, जिसके जरिये कम खर्च में 15 वर्ष पहले इसका अनुमान लगाया जा सकेगा. दूसरी ओर स्वस्थ ऊतकों को नुकसान पहुंचाये बिना वैज्ञानिकों ने कैंसर को खत्म करने में आरंभिक कामयाबी हासिल की है. आज के आलेख में जानते हैं हार्ट अटैक के जोखिम को समय रहते जानने और प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के संदर्भ में विकसित की गयी हालिया लेजर थेरेपी से जुड़ी तकनीक और संबंधित पहलुओं के बारे में …

15 वर्ष पहले हार्ट अटैक का अनुमान!

खून की सामान्य जांच के जरिये करीब 15 वर्ष पहले यह जाना जा सकेगा कि किसी इनसान में हार्ट अटैक का कितना जोखिम है. ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि महज 30 मिनट में खून की एक खास जांच से यह पता चल जायेगा.

सिर्फ पांच पाउंड यानी करीब 400 रुपये की इस जांच से डॉक्टरों को इस बारे में समझने में आसानी होगी और मरीज की जान बचाने के लिए वे उसे समुचित दवा लेने या लाइफस्टाइल में बदलाव करने का सुझाव दे पायेंगे. ‘डेली मेल डॉट को डॉट यूके’ के मुताबिक, ब्रिटेन में प्रत्येक वर्ष 1,88,000 लोगों को हार्ट अटैक आता है, जिसमें से करीब 70,000 लोगों की मौत हो जाती है. इस बीमारी के खानपान, धूम्रपान, ड्रिंकिंग और एक्सरसाइज जैसे लाइफस्टाइल से जुड़े कारकों को ध्यान में रखते हुए इनमें से ज्यादातर लाेगों को बचाया जा सकता है.

अनेक मामलों में मरीज को कुछ आरंभिक संकेत मिलने लगते हैं, लेकिन वे इसकी अनदेखी करते हैं. हृदय की मांसपेशियां जब क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो उनसे ब्लड स्ट्रीम में ट्रोपोनिन नामक प्रोटीन का लीकेज होने लगता है. किसी मरीज को हार्ट अटैक होने की दशा में बड़े अस्पतालों में ब्लड टेस्ट के जरिये डॉक्टर ट्रोपोनिन को डिटेक्ट करते हुए इलाज करते हैं. लेकिन, एडिनबर्ग एंड ग्लासगो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस नये अध्ययन में यह दर्शाया है कि ट्रोपोनिन टेस्ट का इस्तेमाल आरंभिक दौर में हो रहे नुकसान के संकेतों को समझने के लिए भी किया जा सकता है.

कॉलेस्ट्रॉल को खत्म करने के लिहाज से खास तौर पर यह जानकारी कारगर साबित हो सकती है, जिससे इनसान को भविष्य में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का जोखिम टाला जा सकेगा.

इसके लिए उच्च कॉलेस्ट्रॉल वाले 3,000 ऐसे लोगों पर परीक्षण किया गया, जिनमें हृदय रोग का इतिहास नहीं रहा हो. शोधकर्ताओं ने पाया कि हार्ट अटैक के 15 वर्ष पहले ट्रोपोनिन के उच्च स्तर का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है और संबंधित जोखिम को जाना जा सकता है. हाइ ट्रोपोनिन पाये गये लोगों में इसका स्तर 2.3 गुना तक ज्यादा पाया गया.

बदल सकता है तरीका

वैज्ञानिकों ने पाया कि स्टैटिन पिल्स लेने से तेजी से ट्रोपोनिन का स्तर कम होता है और इसके अच्छे नतीजे सामने आये हैं. जिन लोगों में ट्रोपोनिन का स्तर 25 फीसदी तक कम पाया गया है, उनमें हार्ट अटैक का जोखिम तकरीबन पांच गुना तक कम पाया गया.

इस शोध अध्ययन के मुखिया और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के प्रोफेसर निकोलस मिल्स का कहना है, ‘ये नतीजे काफी रोमांचक हैं और मौजूदा समय में कोरोनरी हार्ट डिजीज के जोखिम से जुड़े मरीजों के इलाज के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है. जहां ब्लड कॉलेस्ट्रॉल लेवल और ब्लड प्रेशर हार्ट डिजीज के बढ़ते जोखिम से संबंधित है, वहीं ट्रोपोनिन हृदय को होनेवाले नुकसान को सीधे मापता है. ऐसे में ट्रोपोनिन की जांच डॉक्टरों के लिए सेहतमंद लोगों की संबंधित जोखिम का पता लगाने में भी मददगार साबित हो सकती है, जिससे साइलेंट हार्ट डिजीज का रक्षात्मक इलाज मुमकिन हो सकता है.’

हालांकि, अब तक यह प्रयोग मध्य-उम्र के पुरुषों पर ही किया गया है और इसमें किसी भी महिला को नहीं शामिल किया गया. ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन के मेडिकल डायरेक्टर प्रोफेसर नीलेश समानी कहते हैं, ‘मौजूदा समय में हार्ट अटैक से पीड़ित किसी मरीज को जब हॉस्पिटल लाया जाता है, तो ट्रोपोनिन टेस्ट के इस्तेमाल से उसकी जांच की जाती है और यह सामान्य प्रक्रिया है. लेकिन, अब यह उम्मीद जगी है कि ऐसे जोखिम को काफी वर्षों पहले ही जानने में कामयाबी मिल सकेगी.

पैच करेगा हृदय की मरम्मत

वैज्ञानिकों ने पिछले माह एक स्टिक-ऑन पैच विकसित किया है, जो आनेवाले समय में इनसान के क्षतिग्रस्त हृदय को मरम्मत करने में सक्षम हो सकेगा. कार्डियक एरेस्ट के बाद हृदय में कुछ ऐसे कारक दिखते हैं, जो अनियमित रूप से हृदय को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि स्केयर टिस्सू विद्युतीय आवेग में व्यवधान पैदा करते हैं, जो हृदय की धड़कन को प्रभावित करता है.

ब्रिटिश और ऑस्ट्रेलियाइ वैज्ञानिकों द्वारा डिजाइन किये गये इस नये पैच से हृदय के सभी हिस्सों में विद्युतीय आवेग को समुचित तरीके से बनाये रखा जा सकता है. पशुओं पर प्रयोग किये गये इस फ्लेक्सिबल पैच का परीक्षण सफल दर्शाया गया है और उम्मीद जतायी गयी है कि इस पैच के कामयाब होने से बिना स्टिच के हृदय की मरम्मत मुमकिन होगी.

प्रोस्टेट कैंसर को नष्ट कर सकती है लेजर थेरेपी

लेजर थेरेपी के जरिये प्रोस्टेट कैंसर के ट्यूमर्स को नष्ट किया जा सकता है. हाल में किये गये एक बड़े परीक्षण में पाया गया है कि यह तकनीक अपने मकसद में कामयाब हो सकती है. ‘डेली मेल डॉट को डॉट यूके’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस तकनीक के तहत लेजर द्वारा लाइट-सेंसिटीव केमिकल को सक्रिय करते हुए इसे कैंसर कोशिकाओं में पहुंचाया जायेगा. इससे मरीजों को ट्रॉमा सर्जरी या रेडियोथेरेपी से निजात मिल सकती है. इस परीक्षण के दौरान पाया गया कि अर्ली-स्टेज प्रोस्टेट कैंसर वाले आधे लोगाें का ट्यूमर पूरी तरह से नष्ट हो गया.

इजराइल के वैज्ञानिकों ने विकसित की तकनीक

वैस्कुलर-टारगेटेड फोटोडायनेमिक थेरेपी नामक इलाज का यह तरीका दो-तीन साल के भीतर अपनाया जा सकता है. इजराइल के विजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का विकास किया था, जिसके तहत गहरे समुद्र में मिलनेवाले एक बैक्टीरिया को उन्होंने प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों के खून में डाला.

मूल रूप से ‘लैंसेट ओंकोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित इस शोध रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के विशेषज्ञों ने इस नये तरीके का परीक्षण 473 रोगियों पर किया है. विविध देशों में किये गये परीक्षणों के दौरान वैज्ञानिकों ने मरीजों के शरीर में यह बैक्टीरिया डाला.

फिर बैक्टीरिया को लेजर की मदद से सक्रिय किया गया. परीक्षण के तहत आधे मरीजों का कैंसर खत्म हो गया. वैज्ञानिकों के मुताबिक इलाज के इस तरीके से केवल कैंसर कोशिकाएं ही नष्ट हुईं, जबकि स्वस्थ कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. फिलहाल कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें स्वस्थ कोशिकाएं भी नष्ट हो जाती हैं. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के कंसल्टेंट यूरोलॉजिस्ट मार्क एंबरटन के मुताबिक, यह नतीजे शुरुआती दौर के लोकलाइज्ड प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे पुरुषों के लिए अच्छी खबर है. उन्हें ऐसा इलाज मिल सकेगा, जो अंडकोष को नुकसान पहुंचाए बिना कैंसर को नष्ट कर देगा.

स्वस्थ ऊतकों को नहीं नुकसान

चूंकि एक्टिव ड्रग समूचे ब्लड स्ट्रीम में कारगर नहीं हो पाता है, लिहाजा कैंसर के उपचार की प्रक्रिया में अक्सर भीषण साइड इफेक्ट सामने आता है और इससे सेहतमंद ऊतकों को होनेवाले नुकसान को कम किया जा सकता है. यूनिवर्सिटी काॅलेज लंदन हाॅस्पिटल के कंसल्टेंट यूरोलॉजिस्ट और इस शोध में शामिल रह चुके प्रोफेसर मार्क एंबरटन का कहना है कि प्रोस्टेट कैंसर की आरंभिक अवस्था में पहुंच चुके लोगों के लिए ये नतीजे बेहद उपयोगी हैं, जिसके जरिये इलाज की ऐसी प्रक्रिया विकसित होगी, जो प्रोस्टेट को बिना हटाये या नष्ट किये हुए कैंसर को खत्म कर सकता है.

समुद्र तल से निकाले गये बैक्टीरिया का इस्तेमाल

इलाज में इस्तेमाल होनेवाले बैक्टीरिया डब्ल्यूएसटी 11 को गहरे समुद्र तल से निकाला गया. समुद्र में यह बैक्टीरिया बहुत ही कम रोशनी में जीवित रहता है. यहां सूरज की रोशनी बिलकुल नहीं पहुंच पाती और इतने कम प्रकाश को भी यह बैक्टीरिया ऊर्जा में बदल देता है. इस बैक्टीरिया को इनसान के शरीर में डालने के बाद लेजर ट्रीटमेंट देने पर बैक्टीरिया सक्रिय हो जाता है और खास किस्म का कंपाउंड छोड़ता है. फ्री रेडिकल्स से भरे ये कंपाउंड लेजर से सक्रिय होते हैं और आस-पास की कोशिकाओं को नष्ट करने लगते हैं.

प्रस्तुति कन्हैया झा

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