मोबाइल की एक क्लिक में एंबुलेंस हाजिर

इमरजेंसी रिस्पांस मैनेजमेंट के लिए एक नया मोबाइल एप्प अगर घर में किसी बीमारी से संबंधित आपात स्थिति पैदा हो जाये तो मरीज को तुरंत अस्पताल पहुंचाने के लिए गाड़ी की तलाश करना अमूमन बहुत ही परेशानी भरा और तकलीफदेह मानसिक अनुभव होता है. गूगल में काम करने वाले दो पूर्व कर्मचारियों ने तय किया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 22, 2016 6:37 AM
an image
इमरजेंसी रिस्पांस मैनेजमेंट
के लिए एक नया मोबाइल एप्प
अगर घर में किसी बीमारी से संबंधित आपात स्थिति पैदा हो जाये तो मरीज को तुरंत अस्पताल पहुंचाने के लिए गाड़ी की तलाश करना अमूमन बहुत ही परेशानी भरा और तकलीफदेह मानसिक अनुभव होता है. गूगल में काम करने वाले दो पूर्व कर्मचारियों ने तय किया कि अब इसके लिए लोगों को और मानसिक पीड़ा न उठानी पड़े. पढ़िए एक रिपोर्ट.
घर में एक दुर्घटना हो गयी थी. अस्पताल, वह भी बहुत बड़ा, महज 10 मिनट की दूरी पर था. फिर भी उसकी जान बचायी न जा सकी, क्योंकि समय पर एंबुलेंस पहुंच न सका था. इस एक दुखदायी घटना ने जैमोन जोस को हिला कर रख दिया. जोस भारत के एक बड़े शहर हैदराबाद में एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनी गूगल मैप्स ऑपरेशन में काम करते थे.
इस एक घटना से जोस ने सोचा कि मेरे जैसे कई और लोग होंगे, जिन्हें ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ता होगा. क्यूं न कुछ ऐसा किया जाये कि जो मेरे साथ हुआ, ऐसा किसी के साथ न हो. फरवरी, 2016 में जोस ने गूगल की नौकरी छोड़ दी और अपनी कंपनी ‘फर्स्ट कनसल्ट टेक्नोलॉजीस प्राइवेट लिमिटेड’ बनायी. इसी कंपनी के तहत एक स्टार्टअप ‘एम्बी’ शुरू किया. इसका काम जरूरतमंदों को एंबुलेंस उपलब्ध कराना था.
एक दूसरी घटना. घर में मां काफी बीमार रहा करती थी, सो मां के देखभाल के इरादे से रोहित गूगल डब्लिन छोड़ कर वापस हैदराबाद आ गये. बीमारी के दौरान अपनी मां को अस्पताल ले जाने के लिए रोहित को एंबुलेंस तलाशने में अक्सर परेशानियों का सामना करना पड़ता था. यहां तक कि जब मां अंतिम सांसें गिन रही थीं, उस पल में भी रोहित अपनी मां के पास नहीं थे, बल्कि घर के बाहर एंबुलेंस मंगाने के लिए लगातार कॉल कर रहे थे.
इस दौरान रोहित एप्पल के हैदराबाद ऑफिस में काम कर रहे थे. मां के निधन के सदमे से रोहित अभी उबरे भी न थे कि घर में एक और घटना घट गयी. रोहित के पिता अचेत होकर गिर पड़े. 20 मिनट तक इमरजेंसी सर्विसेज एक एंबुलेंस नहीं खोज पायी. इन दोनों घटनाओं ने रोहित के मन पर काफी असर डाला. अब, रोहित भी जैमोन जोस की कंपनी में जाकर जुड़ गये. रोहित के पास मौका था कि वो फिर से गूगल या एप्पल के साथ विदेशों में जुड़ कर काम कर सकते थे, मगर रोहित के मन ने उसे जोस के पास भेज दिया. अब एम्बी का काम अपनी रफ्तार पकड़ने लगा.
प्रोडक्ट रिसर्च के दौरान उन्होंने पाया कि भारत के बड़े शहरों में एंबुलेंस तो हैं, मगर कोई स्ट्रीमलाइन सुविधा नहीं दे पाता है, क्योंकि सभी एंबुलेंस अस्पताल और फ्लीट ओनर्स के बीच बंटे हुए हैं. सबके अलग-अलग फोन नंबर हैं. अगर आपको एंबुलेंस चाहिए तो सबसे अलग-अलग फोन करके पूछिए कि उनके पास अभी एंबुलेंस उपलब्ध है या नहीं. वे ऐसी किसी तकनीक का इस्तेमाल भी नहीं कर रहे थे कि बता सकें कि अभी एंबुलेंस कहां है. एक एंबुलेंस को आने में 40 से 60 मिनट तक लगते थे. इस मामले में छोटे शहरों में उपलब्ध सुविधाओं की तो बस आप कल्पना ही कर सकते हैं.
इस मॉडल में प्रति किलोमीटर के हिसाब से ग्राहक से किराया लिया जायेगा. एम्बी इसमें से अपना कमीशन लेगा. ग्राहक और सर्विस प्रोवाइडर के बीच पूरी पारदर्शिता रखने से दोनों संतुष्ट होंगे. अभी एम्बी मार्केट में उपलब्ध एंबुलेंसों का नेटवर्क बनाने में लगा है. एम्बी के पास एक कॉल सेंटर है, जो ग्राहक से संपर्क में रहता है. जल्द ही एक यूजर एप्प लाया जायेगा. यह मोबाइल एप्प गाड़ियों और उनकी लोकेेशंस पर नजर रखेगा. ग्राहक जान सकेंगे कि उनका एंबुलेंस कहां है और कब तक पहुंचेगा.
एम्बी के नेटवर्क में हैदराबाद और बेंगलुरु के कई बड़े अस्पताल और प्राइवेट एंबुलेंस ओनर्स भी जुड़ गये हैं. डॉ नागेेश्वर राव ओमनी हॉस्पिटल्स के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर हैं. वह बताते हैं कि हमारे जैसे बड़े हॉस्पिटल्स में भी एंबुलेंस सर्विसेज का कोई बढ़िया नेटवर्क नहीं है. जरूरत के समय एंबुलेंस न हीं मिल पाता है. एंबुलेंस चालकों को भी इस सेवा से सुविधा हुई है. अब वे लोकेशन देख सकते हैं, दूरी जान सकते हैं. ग्राहक की पूरी जानकारी मिल जाती है.
आपात-स्थिति में मरीज को अस्पताल नहीं पहुंचा पाने से हर कोई भयभीत होता है. एम्बी की कोशिश है कि लोगों के जीवन से निजी ट्रेजडी को टाल सकें और उनके प्रिय परिजनों को जल्द चिकित्सकीय सुविधाएं मिल सके.
(इनपुट: द बेटरइंडिया डॉट कॉम)
Exit mobile version