सरकारी आदमी

अभिषेक कश्यप संपर्क : बंगला नंबर 57, धनबाद, झारखंड मोबाइल : 8986663523/9971479331 indiatelling@gmail.com रोज की तरह ठीक सुबह दस बजे सेठ बजरंगी लाल केडिया की सफेद फोर्ड आइकन बड़ा बाजार के हनुमान मंदिर के पास आकर रुकी. कार से उतर कर सेठ बजरंगी ने अपनी तय दिनचर्या के अनुसार हनुमान जी के आगे शीश नवाए, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 23, 2016 6:36 AM

अभिषेक कश्यप

संपर्क : बंगला नंबर 57, धनबाद, झारखंड

मोबाइल : 8986663523/9971479331

indiatelling@gmail.com

रोज की तरह ठीक सुबह दस बजे सेठ बजरंगी लाल केडिया की सफेद फोर्ड आइकन बड़ा बाजार के हनुमान मंदिर के पास आकर रुकी. कार से उतर कर सेठ बजरंगी ने अपनी तय दिनचर्या के अनुसार हनुमान जी के आगे शीश नवाए, फिर चमड़े का हैंडबैग, बढ़ी हुई तोंद और ढीली-ढाली पैंट संभालते हुए एक बजबजाती संकरी गली में घुस गये. इसी गली में एक करीब सौ साल पुराने मकान की दूसरी मंजिल पर उनकी गद्दी थी.

सेठ बजरंगी की तबीयत आज कुछ नासाज़ थी. पेट में रह-रह कर सुई-सा टीसता दर्द उठ रहा था. पेनक्रियाज में गड़बड़ी की वजह से डॉक्टर ने उन्हें तली हुई चीजें खाने से सख्त मना किया था. मगर ससुरी आदत है कि छूटती नहीं. सेठानी के चीखने-चिल्लाने के बावजूद सुबह नाश्ते में उन्होंने पकौड़ी खा ली.

‘अब भुगतो साले!’ मन-ही-मन उन्होंने खुद को कोसा. जैसे-तैसे हांफते हुए सीढ़ियां चढ़ कर गद्दी पर पहुंचे और पसर गए. नौकर गोपाल ने उन्हें पानी लाकर दिया- ”तबीयत तो ठीक है मालिक. ”

बिना कुछ बोले उन्होंने पानी का गिलास थामा और चमड़े के बैग से गोली निकाल कर गटक ली. थोड़ी देर में उन्हें कुछ राहत महसूस हुई, तो उठ बैठे. आवाज लगायी – ” गोपाल…!”

गोपाल ही नहीं उनकी आवाज सुन अकाउंटेंट बद्री भी भागा-भागा आया. सेठ बजरंगी ने गोपाल को चाय बनाने को कहा और अकाउंटेंट को कल के कारोबार का हिसाब लाने का आदेश दिया. फिर अलमारी खोल कर वह अपना खाता-पत्तर निकालने लगे.

सेठ बजरंगी चाय की चुस्की ले रहे थे कि उनका छोटा भाई पवन और उसके पीछे ड्राइवर दोपहर के लंच के लिए बडे-बडे टिफिन लिए हाजिर हुए. गद्दे पर तकिए की टेक लगा कर बैठते हुए पवन चिल्लाया – ”गोपाल…चाय दे.” फिर वह सेठ बजरंगी से मुखातिब हुआ- ”भाभी आवेगी किसीको साथ लेकर…कपड़ा दिलाना है…..”

बजरंगी सेठ के चेहरे पर ऐसे भाव थे, मानो उन्होंने कुछ सुना ही न हो. यह उनकी खास अदा थी. वह कम बोलते थे. उनके चेहरे पर हमेशा ऐसा निर्विकार भाव कायम रहता था, जिसे सुविधा के लिए आप मनहूसियत भी कह सकते हैं. उन्होंने फोन उठाया और देर तक फोन पर धंधे की बात करते रहे.

अकाउंटेंट बद्री पवन के साथ आकर बैठ गया और दोनों बीते दिन के कारोबार का हिसाब लगाने लगे. नौकर गोपाल उनके सामने चाय के दो प्याले रख कर बोला – ”पवन भईया, मैं नीचे से पान लेकर आता हूं.”

सेठ बजरंगी लाल एंड कंपनी में लेडीज सूट के होलसेल का कारोबार होता था. कलकत्ता और पश्चिम बंगाल के कई इलाकों के खुदरा व्यावसायी उनकी गद्दी से माल ले जाते थे. सेठ बजरंगी ने दसवीं पास करने के बाद पिता की यह गद्दी संभाली थी. बड़े कठिन दिन थे वे. पिता की तबीयत खराब रहती थी और व्यापार की हालत खस्ता थी. कर्जों और देनदारियों से बुरा हाल था. तब सेठ बजरंगी माता-पिता, पत्नी और अपने दो छोटे भाईयों के साथ यहीं बड़ा बाजार की तंग गलियों में दो कमरे के जर्जर मकान में रहा करते थे. मगर कहते हैं, वक्त अच्छा हो या बुरा, बीत जाता है. सो बुरा वक्त बीत गया. किस्मत ने बाजी पलटी. कारोबार चल निकला. अब कलकत्ते के पॉश इलाके लैंसडाउन रोड पर सेठ बजरंगी की आलीशान कोठी है. कारोबार करोड़ों का हो चुका है. इकलौता बेटा अमेरिका में पढ़ता है.

मगर कारोबार जैसे-जैसे बढ़ा, सेठ बजरंगी के चेहरे की हंसी जाती रही. वह जब गद्दी पर बैठते, उनका निर्विकार भाव उनके मातहतों का भी स्थायी भाव बन जाता. उनके नौकर-चाकर चुपचाप सारा काम करते. बिना जरूरत एक शब्द नहीं बोलते. मगर सेठ बजरंगी की धर्मपत्नी इस नियम का अपवाद थी. सेठानी जब-तब गद्दी पर आ धमकती और सेठानी के आते ही गद्दी का माहौल बदल जाता.

आज भी वही हुआ. थोड़ी देर बाद छोटे कद की गोरी-गदबदी, सुंदर सेठानी चिड़िया-सी ‘चीं-चीं’ करती पूरी गद्दी में डोल रही थी. उनके साथ तीसेक साल का एक लड़का था. वह लड़का सेठ बजरंगी को नमस्कार कर उनके बगल में जा बैठा, मगर सेठ स्वभावत: उसकी उपस्थिति से निर्विकार बने रहे. सेठानी को यह बात अच्छी नहीं लगी. वह बोली – ”यह रजत है, मास्टरजी का लड़का…आपने पहचाना नहीं ?”

सेठजी ने ‘हूं-हां’ जैसा कुछ जवाब दिया जो उनके अलावा किसी के पल्ले नहीं पड़ा. सेठानी अपने देवर पवन से मुखातिब हुई – ”पवन भईया, कुछ अच्छे सूट पीस निकालिए न…रजत के घर शादी है….”

देवर ने तुरंत भाभी के हुक्म की तामील की. वह गद्दी से उठ कर सूट पीस निकालने गोदाम की तरफ चला गया.

सेठानी ने सेठ से पूछा – ”फ्रूट चाट मंगवाऊं आपके लिए?”

जवाब में सेठ बजरंगी ने उसी निर्विकार भाव से सर हिलाया जिसका मतलब हां-ना कुछ भी हो सकता था. लेकिन सेठानी ने इसे उनकी हां मानी.

”गोपाल भईया फरूट चाट लाइए और सैंडविच भी…” – सेठानी ने अपने साथ आए युवक से पूछा – ”सैंडविच खाते हैं न? यहां बहुत अच्छी मिलती है.”

पवन लेडीज सूट पीस का एक बड़ा-सा गठ्ठर उठा लाया. गठ्ठर खोल कर उसने सेठानी के सामने फैला दिया.

”रजत देखिए…ये सारा एकदम नया माल है…लेटेस्ट डिजायन.”

युवक अकबकाया हुआ-सा सेठानी का चेहरा देख रहा था.

”मगर आपको क्या समझ….औरत के कपड़े तो औरत ही पसंद कर सकती है…आप भाभी को ले आते ना.”

नौकर गोपाल फ्रूट चाट और सैंडविच लेकर आया तो सेठानी उठ कर गद्दी के पीछे बनी रसोई में चली गयी. कागज के प्लेटों में सेठानी ने सबके लिए नाश्ता सजाया फिर रसोई से निकलते हुए बगलवाले कमरे में कंप्यूटर पर बैठे अकाउंटेंट को आवाज दी – ”बद्री भईया, आइए नाश्ता लग गया.”

सभी नाश्ते के आनंद में डूबे थे कि तभी एक घटना घटी!

पचास के आसपास की उम्र का क्लर्क जैसा दिख रहा एक लहीम-शहीम शख्स जादूगर के खरगोश की तरह वहां बड़े रहस्यमयी अंदाज में प्रकट हुआ. उसके चेहरे पर मोटे फ्रेमवाला चश्मा था. भूरे रंग की चीकट पैंट और आधे बाजूवाली शर्ट पहन रखी थी.

”मिस्टर बजरंगी लाल केडिया?” उसने चारों तरफ नजर दौड़ायी.

उसकी मरियल आवाज में छुपे रौब-दाब को सेठ बजरंगी तुरंत पहचान गए.

”जी, बोलिए ”

”आप है बजरंगी लाल केडिया?”- उसकी बांग्ला टोनवाली मरियल आवाज का रौब अब कुछ और मुखर होकर सामने आया.

”जी बताइए.”

वह बिना कुछ बोले गद्दे पर सेठ बजरंगी लाल के पास जाकर बैठ गया. फिर बडे ग़र्व भरे इत्मीनान से अपनी शर्ट की जेब से आई-कार्ड निकाल कर सेठ की ओर बढ़ा दिया. सेठ कार्ड हाथों में लेकर ध्यान से देखने लगे.

सभी इस अनामंत्रित मेहमान को शंका भरी नजरों से देख रहे थे. चुलबुली सेठानी घबरा गयी.

सेठ बजरंगी ने कार्ड अपने भाई की ओर बढ़ा दिया. उसने एक नजर डाली, फिर कार्ड अकाउंटेंट के हवाले कर दिया. अकाउंटेंट एक खाते में कार्ड का नाम, नंबर आदि नोट करने लगा. सेठ बजरंगी का निर्विकार भाव फुर्र हो चुका था. वह सप्रयास मुसकरा रहे थे- ”बताइए साहब, कैसे आना हुआ?”

”ऐसे ही…अपना आने-जाने का काम है…सरकारी काम.”

”सो तो है…”- सेठ बजरंगी इस बार खुल कर मुस्कुराए.

”आपका सेल टेक्स का फाइल देखना था.”

”वो तो मेरे वकील के पास है…वकील बाहर गया है” एक पल को सेठ बजरंगी के चेहरे पर शिकन आयी, फिर सहज हो गये – ”गोपाल, चाय पिलाओ साहब को.”

गोपाल के पीछे सेठानी, सेठानी के पीछे उनके साथ आया युवक रसोई में आ गया.

युवक ने सेठानी से पूछा- ”कौन है ये ?”

”मैं क्या जानूं बाबा…सरकारी आदमी लगता है”- सेठानी के चेहरे पर दहशत थी ”गोपाल भईया, चाय मैं बनाऊंगी…आप भाग कर समोसे लाइए.”

चाय-समोसे के बाद सरकारी आदमी सरकारी नहीं रह गया. वह लालची भिखारी में बदल गया- ”कुछ सूट पीस खरीदना था?” उसकी आवाज में अब रौब-दाब नहीं, याचना थी.

”गोपाल, साहब को कपड़ा दिखाओ”- सेठ बजरंगी मुंह में पान दबाते हुए संभावित जीत पर मन-ही-मन प्रसन्न हो रहे थे.

सेठानी की जान में जान आयी. गोपाल की बजाए वह खुद बड़े उत्साह के साथ इस काम में लग गयी- ”किसके लिए चाहिए…बिटिया के लिए या भाभीजी के लिए?”

”बिटिया के लिए”

”रंग कैसा है बिटिया का…गोरी है कि सांवली?”- सेठानी का उत्साह देखते बनता था.

”थोड़ा सांवला है…”

”तो ये क्रीम कलरवाला पीस लीजिए…और ये लाइट ब्लू में भी बिटिया सुंदर दिखेगी.”

सेठानी की मदद से सरकारी आदमी ने तीन-चार जोड़ी कपड़े पसंद किये. जब कपड़े पैक होने लगे तो सरकारी आदमी ने गैरजरूरी औपचारिकता जतायी- ”इसके पैसे?”

”अरे, क्या बात करते हैं…आपकी बात होती, तो जरूर पैसे लेते; मगर बिटिया की बात है…बिटिया से भला कोई पैसे लेता है! जाइए, बिटिया को बोलिएगा कि अंकल ने गिफ्ट दिया” – सेठ बजरंगी ने मन-ही-मन उसे एक गंदी गाली दी, फिर आदतन भगवान का शुक्रिया अदा किया- ‘चलो सस्ते में जान छूटी!’

कपड़े का कर बड़े कृतज्ञ भाव से सेठ बजरंगी को नमस्कार किया.

सेठ बजरंगी के चेहरे पर फिर से वही निर्विकार भाव कायम हो गया, जिसे सुविधा के लिए आप मनहूसियत कह सकते हैं.

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