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मैं योगी हूं, निष्काम कर्मयोगी हूं और इस राष्ट्र के लिए उपयोगी हूं

योगगुरु के रूप में अपनी यात्रा शुरू करनेवाले बाबा रामदेव अपनी लोकप्रियता और प्रभाव से आज देश के सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण उपस्थिति बन गये हैं. राष्ट्रीय मुद्दों पर उनकी बातें ध्यान से सुनी जाती हैं तथा कई दफे वे चर्चा और विवादों का कारण भी बनती हैं. योग, गुरुकुल, आरोग्यशाला, आयुर्वेद और पतंजलि के […]

योगगुरु के रूप में अपनी यात्रा शुरू करनेवाले बाबा रामदेव अपनी लोकप्रियता और प्रभाव से आज देश के सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण उपस्थिति बन गये हैं. राष्ट्रीय मुद्दों पर उनकी बातें ध्यान से सुनी जाती हैं तथा कई दफे वे चर्चा और विवादों का कारण भी बनती हैं. योग, गुरुकुल, आरोग्यशाला, आयुर्वेद और पतंजलि के उपभोक्ता उत्पाद बाबा के व्यापक प्रभाव क्षेत्र के विभिन्न पहलू हैं. वे राजनीति में नहीं हैं, पर उनके बयानों से राजनीति अछूती नहीं है. उनके प्रशंसकों के साथ उनके आलोचकों की संख्या भी बड़ी है. उनके व्यक्तित्व और गतिविधियों के विविध आयामों पर योगगुुरु बाबा रामदेव से विस्तृत बातचीत की प्रभात खबर के अंजनी कुमार सिंह ने…

हरियाणा के एक छोटे गांव से विश्व प्रसिद्ध योग गुरु बनने के लिए आपको किस प्रकार संघर्ष करना पड़ा और इन संघर्षों ने कैसे आपके जीवन को प्रभावित किया?

(गंभीर होकर सोचने की मुद्रा में) देखो, यह सच है कि हमने अभावों, संघर्षों और चुनौतियों के बीच अपनी यात्रा शुरू की. और, कुछ पाने के लिए कभी कुछ नहीं किया. अपने कर्म को अपना धर्म मान कर किया. इसलिए मैं बोलता हूं कि मैं एक योगी हूं और एक कर्मयोगी हूं. सफलता, समृद्धि, सम्मान, सत्ता, संपत्ति और संबंध- इन सब चीजों को कभी मैं अपना लक्ष्य नहीं बनाया. ये सभी चीजें बाइप्रोडक्ट के रूप में है. फल के रूप में ये सभी चीजें नहीं है. इसलिए कहूंगा कि सभी व्यक्ति कर्म करें. कर्म करने के लिए भगवान को समान रूप से ज्ञान शक्ति दी हुई है.

एक योगी से उद्योगपति बनने का रास्ता कितना कठिन रहा है? इन दोनों में से आपके ज्यादा करीब कौन सा है?

मैं योगी हूं. कर्मयोगी हूं. और राष्ट्र के लिए उपयोगी हूं. अब इसको कोई कैसे लेता है, इस पर निर्भर करता है. आचार्य बालकृष्ण जी इस पतंजलि के अनपेड सीइओ, मैनेजिंग डायरेक्टर और शेयर होल्डर हैं. अपने लिए कोई चाह ही नहीं है. तो जिसको निष्काम सेवा कहा है, वेदांत में तो हमारे लिए समृद्धि सेवा के लिए है. व्यापार के लिए नहीं, उपकार के लिए है.

पतंजलि एक बड़ा ब्रांड बन गया है, अपने ब्रांडों की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए पतंजलि किस प्रकार के उपाय करती है, जिससे लोगों का भरोसा पतंजलि उत्पाद के प्रति बना रहे?

इसमें तीन चीजें हैं. एक है रॉ मेटेरियल. चाहे वह फूड है, चाहे वह हर्बल कॉस्मेटिक है. उसके अलावा दूसरा यह होता है कि आपके पास चेक एंड बैलेंस होना चाहिए. मेरे पास चेक हैं. हमारे पास वर्ल्ड क्लास के इंफ्रास्ट्रक्चर है. दो सौ से ज्यादा साइंटिस्ट हैं. आपके पास यह दोनों चीजों के अलावा तीसरी सबसे महत्वपूर्ण चीज होती है इच्छाशक्ति. जीरो टॉलरेंस.

कोई चीज में कभी कोई समझौता नहीं. इसके अलावा हम जो प्रोडक्ट बनाते हैं. इतना ही नहीं, सारे प्रोडक्ट का इस्तेमाल भी मैं खुद करता हूं. दंत कांति से लेकर केशकांति और नूडल्स तक. पहले मैं अन्न नहीं खाता था, लेकिन अब मैं एक बार अन्न का भी सेवन करता हूं. इसीलिए नूडल्स से लेकर खाने-पीने की चीज का प्रयोग भी मैं पहले खुद करता हूं. जो चीज मैं अपने लिए प्रयोग नहीं कर सकता, वह दूसरों को प्रयोग करने के लिए नहीं कह सकता. यानी, पतंजलि के जो भी उत्पाद हैं, उनका प्रयोग पहले खुद पर करते हैं, उसके बाद वह बाजार में आता है? बड़े-बड़े कलाकार एक प्रोडक्ट का विज्ञापन करने के लिए करोड़ों रुपये लेते हैं, लेकिन उन्हें प्रोडक्ट के विषय में जानकारी नहीं होती है.

देश में स्वास्थ्य सुविधाओं तक लोगों की पहुंच सीमित है. क्या पतंजलि देश के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने की दिशा में किसी बड़ी योजना पर काम कर रहा है? पतंजलि का अगला लक्ष्य क्या है तथा कंपनी के लाभांश का उपयोग किन कामों में किया जाता है?

देखिये, अभी हमारे पांच हजार सेंटर्स है. शायद आगे बढ़कर यह पांच साल में 10 हजार से ज्यादा हो जायेंगे. तब तहसील स्तर तक हमारी पहुंच हो जायेगी, जिसमें आसपास के लोग भी वहां पर आ सके. आपको बता दूं कि पतंजलि का मुनाफा 100 प्रतिशत चैरिटी के लिए होता है.

पतंजलि क्या है? पतंजलि के तीन स्लोगन हैँ – लो प्राइस, एफोर्डेबल प्राइस और प्रोफिट से 100 प्रतिशत चैरिटी. चैरिटी के हमारे तीन बड़े पार्ट है. एक तो हम हरेक जिले में एक एजुकेशन सिस्टम बनाना चाहते हैं. यह बनायेंगे. हमारी कोशिश होगी कि 70 प्रतिशत एजुकेशन पर, 20 प्रतिशत जड़ी बुटियों और देसी गायों पर अनुसंधान में खर्च करें और 10 प्रतिशत गरीब और कमजोर वर्गों के उत्थान पर. योग और आयुर्वेद की सेवा जन-जन तक पहुंचे, इसके लिए हमारे हजारों वोलंटियर और हजारों वैद्य काम कर रहे हैं.

आप स्वदेशी आंदोलन के समर्थक और मल्टीनेशनल कंपनियों के खिलाफ रहे हैं. वर्तमान में यह मुहिम कितनी सार्थक होती दिख रही है?

यह पहले भी सार्थक था और आज भी है. यह पूरी दुनिया के लिए सार्थक है. आखिर स्वदेशी क्या है? यह सिर्फ भारत की बात नहीं है. स्वदेशी एक दर्शन है. स्वदेशी का दर्शनशास्त्र क्या है? समग्र, स्थायी, विकेंद्रीकृत, न्यायपूर्ण एवं सत्विक समृद्धि जिससे आये, वह व्यवसाय, उद्योग एवं आर्थिक गतिविधि स्वदेशी है. यह पूरी दुनिया के लिए है. यह सिर्फ भारत के लिए नहीं है. दूसरे देशों में भी यही लागू होता है. हमारा स्वदेशी पूरी दुनिया के लिए है.

हमने नेपाल में शुरू किया, तो कहा कि नेपाल का प्रॉफिट नेपाल में ही लगायेंगे, भारत में लेकर नहीं जायेंगे. यह बड़ा दर्शन है, इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए. इसके विपरीत क्या है? पूरी दुनिया की संपत्ति चंद लोगों के हाथ में केंद्रित हो जाये. सवा करोड़ की आबादी में सवा सौ लोगों के पास देश की ज्यादातर संपत्ति का हो जाना तो गलत है. मैं सामंतवाद, पूंजीवाद के खिलाफ हूं.

मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को आप किस तरह से देखते हैं? क्या इस फैसले से कालाधन पर रोक लगेगी?

यह बहुत ही साहसिक और ऐतिहासिक कदम है. इसके क्रियान्वयन को लेकर समस्याएं हैं लेकिन विमुद्रीकरण का निर्णय सही है. यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा कदम है. इससे आर्थिक अपराध रूकेंगे, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद रूकेगा. क्योंकि सारी शक्तियों का मूल है अर्थ शक्ति और अर्थ जब अनियंत्रित हो जाता है, तब अनर्थ होता है. तो यह भारत की अर्थ‍व्यवस्था के लिए संजीवनी का काम करेगा. जहां तक दो हजार रुपये के नये नोट लाने का सवाल है, तो इसका मैं समर्थन नहीं करता हूं. ये बड़े नोट नहीं आने चाहिए.

जहां तक काला धन का सवाल है, तो 85 प्रतिशत इस देश के आंतरिक अर्थव्यवस्था में काला धन है. करीब 10-15 प्रतिशत ही काला धन देश से बाहर गया है. अंदर का कालाधन तो इस नोटबंदी से नियंत्रित होगा. तीन संस्थाएं साथ दें, तो. बैंक, रिजर्व बैंक और कराधान के अधिकारी ठीक रहें, तो यह अभियान ठीक हो जायेगा. इन तीनों विभाग के अधिकारियों को संभालना होगा.

यदि ये तीनों ठीक रहें, तो यह अभियान सफल रहेगा.

सरकार की स्टार्ट अप इंडिया, स्कील इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम से आप कितना संतुष्ट है? इस तरह के प्रोग्राम में और क्या करने की जरूरत है ?

मोदी जी के जितने भी स्कीम है वह वोट बनाने वाले नहीं, बल्कि देश बनाने वाले स्कीम है. उन्होंने जितने भी अभियान चलाये हैं, वे बड़े सोच-समझकर चलाये हैं. लेकिन राजनीति में आदत पड़ी हुई है कि जो भी काम हो उसका परिणाम जल्द से जल्द मिले. जबकि मोदी जी चाहते हैं कि वैसा बीज बो दें जिससे राष्ट्र निर्माण की फसल अच्छी हो. सरकार द्वारा कुछ तात्कालिक और कुछ दीर्घगामी योजनाएं बनायी गयी हैं. चाहे वह जनधन हो, या फिर सब्सिडी को खाते में डालना. इससे बीच के बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी. मोदी सरकार ने जो भी योजनाएं शुरू की है, वे सभी देश को बनाने वाली हैं. सिर्फ नोटबंदी के क्रियान्वयन को लेकर समस्या हैं.

आपने अन्ना आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी. क्या आप मानते हैं कि जिन वजहों से अन्ना आंदोलन शुरू हुआ, उसमें कमी आयी है? भ्रष्टाचार कम हुआ है? यदि नहीं तो इसे दूर करने के लिए क्या कदम उठाने की जरूरत है और इसमें धर्मगुरुओं/ योगगुरुओं की क्या भूमिका हो सकती है?

देखिए, यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है. मोदी जी उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. आंदोलन किसी मुद्दे को उभारने के लिए होता है. मुद्दे को जमीन पर उतारने के लिए लंबा वक्त लगता है. आंदोलन तो 10 दिन में खड़ा हो जाता है. लेकिन काम करने में तो समय लगता है.

जहां तक मेरी भूमिका का सवाल है, तो देश में जहां भी रचनात्मक काम हो रहा है, उसमें सहयोग करना हमारा काम है. उसमें हम कर रहे हैं. मोदी जी के किसी भी बात का हम विरोध नहीं कर रहे हैं. चाहे वह काम जो भी करें. मोदी जी या फिर कोई भी देश बनाने के लिए काम करेगा, उनको मैं सहयोग करूंगा. उसमें सहयोग कर रहा हूं. राजनेता जितने भी हैं, जो भी देश बनाने का काम करेगा, उनका मैं सहयोग करूंगा.

प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं से आपके काफी अच्छे संबंध हैं. आप राजनीति में अच्छे व्यक्तियों के आने की हिमायती रहे हैं, फिर आप राजनीति में क्यों नहीं आ रहे हैं? क्या आप राजनीति में आने की इच्छा रखते हैं?

कभी राजनीतिक पार्टी बनाऊंगा, इसका प्रश्न ही नहीं है. स्वयं राजनीति में भागीदारी हमारी जिंदगी का न सपना था, न आज है और न कल होगा. हम योगस्थ रहकर तटस्थ रहकर मूल धर्म अपना योग धर्म निभायेंगे और आपद धर्म के रूप में राज धर्म और राष्ट्र धर्म निभायेंगे. देश के ऊपर जब संकट आता है, तो फिर देश से बड़ा कुछ भी नहीं होता है. बीच में एक पॉलिटिकल क्राइसिस आया, तो देश में लोगों को जागरूक किया, लामबंद किया. बाकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है. देश के लिए काम करना हमारी महत्वाकांक्षा है.

बहुत सारे लोग आपको भिन्न-भिन्न रूप में मानते हैं. कोई संन्यासी, कोई योगगुरु, कोई उद्यमी कोई कुछ…… इनमें से आप खुद को किसके करीब ज्यादा पाते हैं?

मानव के रूप में भगवान की रचना ही ऐसी है जिसका बहुआयामी व्यक्तित्व होता है, रूप होता है. ‘एकम सत्य विप्रा बहुधा वदंति’. एक सत्य के अनेक रूपों में विश्वास करते हैं. मूलत: मैं योगी हूं, निष्काम कर्मयोगी हूं और राष्ट्र के लिए उपयोगी हूं. बाकी तो जिसको जितना विवेक है वह उतनी बातें करेंगे, उससे मुझे कोई आपत्ति नहीं है. इतना काफी है.

कई बार आप पर कई तरह के आरोप भी लगे हैं, खासकर ब्रांडिंग को लेकर कोई कहता है मिसलीडिंग है, कोई कहता है कुछ और है.

वर्ष 2012 से हमारे ऊपर करीब एक हजार मुकदमे किये गये हैं. उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार है. एक मुख्यमंत्री बोलेगा, तो एक अफसर की क्या मजाल. उस पर मिसलीडिंग लिख दिया गया.

हमने उस पर आरोग्य लिख दिया. क्या मिसलीडिंग था? एक एसडीएम से आदेश करवा दिया. ये सब बकवास बातें हैं. हम हाईकोर्ट में जायेंगे. वहां नहीं टिकेगा? सत्ता का दुरुपयोग करके आप कुछ भी लिखवा देंगें, ऐसा नहीं हो सकता है.

देश में सामाजिक-आर्थिक, शैक्षणिक बदलाव के लिए क्या किये जाने की आवश्यकता है और इसके लिए क्या कदम उठाये जाने की जरूरत है?

सब बदलावों का मूल है शिक्षा में बदलाव. हम भारतीय शिक्षा बोर्ड इस देश में जल्दी बने, इसके लिए सरकार के साथ संपर्क में है. मुझे विश्वास है कि जल्द ही भारतीय शिक्षा बोर्ड की मंजूरी मिल जायेगी.

यह शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा परिवर्तन का कदम होगा. सारी व्यवस्था के परिवर्तन की जो जड़ है, वह शिक्षा में परिवर्तन है. शिक्षा और संस्कार जब इस देश के बदलेंगे, तो विचार बदलेंगे, संस्कार बदलेंगे, मानयताएं बदलेगी, विचारधारा बदलेगी, दिव्यता आयेगी, उसके बाद डिवाइन ट्रांसफॉर्मेशन आयेगा. एक होता है रिफॉर्म, दूसरा चेंज और तीसरा ट्रांसफार्मेशन, ट्रांसफार्मेशन सबसे बड़ा है, जो शिक्षा में बदलाव से आयेगा.

हम देशभक्त नागरिकों से आह्वान करते हैं कि सबलोग स्वदेशी को अपनाएं. क्योंकि इस्ट इंडिया कंपनी से लेकर जितनी भी विदेशी कंपनियां आयीं, सभी ने रॉयल्टी और प्रॉफिट के नाम पर हर साल लाखों-करोड़ों रुपया यहां से लेकर गये. पतंजलि का संकल्प है कि देश का पैसा देश में रहे और उस पैसे से देश का विकास हो. पतंजलि किसी व्यक्ति का ब्रांड नहीं है, यह देश के सवा सौ करोड़ लोगों को ब्रांड है.

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