संघर्षं और सफलताएं
एक ओर वर्ष 2016 अपने आखिरी मुकाम की ओर है. वहीं, उल्लास, उमंग और नये सपनों के बीच वर्ष 2017 दस्तक दे रहा है. बीत रहे वर्ष ने कई यादों को रास्ते पर छोड़ा, तो कई घटनाओं को इतिहास का दस्तावेज बनाया. बीते वर्ष की कई ऐसी यादें, जो गुनगुनाती हैं, गुदगुदाती हैं. सफलता की […]
एक ओर वर्ष 2016 अपने आखिरी मुकाम की ओर है. वहीं, उल्लास, उमंग और नये सपनों के बीच वर्ष 2017 दस्तक दे रहा है. बीत रहे वर्ष ने कई यादों को रास्ते पर छोड़ा, तो कई घटनाओं को इतिहास का दस्तावेज बनाया. बीते वर्ष की कई ऐसी यादें, जो गुनगुनाती हैं, गुदगुदाती हैं. सफलता की कहानी कहती हैं, तो कुछ कड़वे अनुभव भी सुनाती है. झारखंड के लिए भी गुजर रहे वर्ष के कई आयाम हैं. ऐसे में ‘प्रभात खबर’ ने राज्य के कुछ नामचीन लोगों के यादों के झरोखे से झांकने का प्रयास किया है. अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखनेवाले लोगों की नजर से वर्ष 2016 को याद करने का प्रयास किया है.
बोले पूर्व न्यायाधीश
प्रयोगों से पूर्ण रहा वर्ष 2016
वर्ष 2016 को मैं प्रयोगों से पूर्ण वर्ष मानता हूं. स्थानीयता, सीएनटी एक्ट में संशोधन तथा नोटबंटी का असर सकारात्मक रहा. बिहार की शराबबंदी से दूसरे राज्य के लोग भी प्रेरित हुए. सीएनटी एक्ट को लेकर विवाद हुआ, लेेकिन इसके फलाफल की जांच कुछ समय के बाद करके इसमें यथोचित संशोधन किये जा सकते हैं. हालांकि, नोटबंदी से जनता को परेशानी हुई अौर हो रही है.
पर मुख्य सचिव जैसे शीर्षस्थ प्रशासक व डॉ अडवाणी जैसे सुविख्यात चिकित्सक के यहां छापा (रेड) से बरामद संपत्ति देख जहां जनता भौंचक हुई, वहीं एक आशा भी जगी कि शायद यह प्रयोग अच्छी तरह सफल हो. क्रिकेट के क्षेत्र में विश्व कप के हाथ से निकलने से निराशा हुई, पर बैडमिंटन और क्रिकेट में विराट की विजय शृंखला से वह निराशा कम हो गयी. अच्छी वर्षा से धान की फसल अच्छी हुई. सीमा और कश्मीर में हालत तो सुधरे, लेकिन जवानों की बढ़ती शहादत से देश विचलित हुआ.
हां, शिक्षा के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं दिखी पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है. उधर, अमेरिका में ट्रंप की जीत से उपजी संभावनाएं व आशंकाएं दोनों अभी बरकरार हैं. प्राकृतिक आपदाएं बहुत विनाशकारी सिद्ध नहीं हुई, लेकिन महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध ने हमें फिर से झकझोर दिया. महिला सुरक्षा, भ्रष्टाचार उन्मूलन जैसी समस्याओं का उत्तर 2017 देगा, ऐसी आशा है. महाश्वेता देवी जैसी साहित्यकार के निधन से साहित्य जगत कुछ अकिंचन हुआ.
बोले डीजीपी
डीके पांडेय
झारखंड में नक्सली कमजोर हुए
झारखंड में नक्सली कमजोर हुए हैं. इसे खत्म करने की चुनौती है. वर्ष 2017 में झारखंड पुलिस नक्सलियों और अन्य दूसरे उग्रवादी संगठनों को खत्म करने की रणनीति का संकल्प लेकर काम करेगी. राज्य में बड़े पैमाने पर निवेश आने वाला है. इसके लिए सुरक्षा का माहौल होना जरूरी है.
हम इस पर काम कर रहे हैं. महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का लाभ पुलिस को मिलेगा. एक तिहाई थाना क्षेत्रों की जवाबदेही महिलाओं को मिलेगी. उम्मीद है कि इसके बाद निश्चित रूप से माहौल बदलेगा. वर्ष 2016 की बात करें, तो इस साल विकास को बाधित करनेवाली ताकतें कमजोर हुई हैं. सुदूर इलाकों में सुरक्षा का वातावरण तैयार हुआ है और व्यवसायिक गतिविधियां भी बढ़ी हैं. सरेंडर पॉलिसी को और आकर्षक बनाया गया. सरेंडर करने वाले नक्सलियों को मिलने वाला हर लाभ दिया जा रहा है.
इससे नक्सलियों पर मुख्यधारा में लौटने का पारिवारिक दबाव बढ़ा है. वर्ष 2016 के शुरुआत में पलामू में एक घटना हुई. हमारे सात जवान शहीद हुए. पर आज उन इलाकों में नक्सली नहीं आ पा रहे हैं. संगठित अपराध पर रोक लगाने के लिए सीआइडी ने आपराधिक गिरोहों को आय के श्रोत पर चोट करना शुरू किया है. हमने भ्रष्टाचार मुक्त पुलिस व्यवस्था कायम करने की कोशिश की है. कुछ सफलता मिली है. आगे और सफल होंगे. पुलिस में अनुसंधान करनेवाले पदाधिकारियों का पद बढ़ाया गया है.
पहले 6000 अनुसंधानक थे, अब 13 हजार. अनुसंधानकों को ट्रेनिंग देने के लिए इंवेस्टीगेशन ट्रेनिंग स्कूल खोला गया. आतंकी गतिविधियों से निपटने के लिए एटीएस का गठन किया गया. साइबर सुरक्षा के लिए पहली बार साइबर थाना खोला गया.
बोले पद्मश्री
सिमोन उरांव
पानी की समस्या पर गंभीर हों
बीता साल मेरे लिए काफी व्यस्त रहा है. गांव में आसपास के क्षेत्रों में अौर यहां तक कि ओड़िशा से भी बुलावा आता है. मेरा काम किसानों के लिए है. किसानों का भला होना चाहिए. पिछले कई साल से लगातार कोशिश करने के बाद मेरे गांव अौर बेड़ो के कई इलाकों में खेतों में संतोषजनक पानी मिल पा रहा है. अब धान की खेती के अलावा किसान सब्जियों की खेती भी कर पा रहे हैं. हफ्ते में एक दिन गांव में बैठता हूं अौर लोगों से बात करता हूं. बात करने से कई विवाद ऐसे ही दूर हो जाते हैं. लड़कों को भी निर्देश देता हूं कि क्या करना है. आजकल पानी का समस्या हो रहा है. जितने भी पुराने तालाब हैं, सभी को अौर गहरा करना होगा, तब उसमें पानी टिकेगा. बेड़ो क्षेत्र में कई जगह पर यह काम किया गया है, बाकी जगह भी करना होगा. रांची में देखिये क्या स्थिति है हरमू नदी, स्वर्णरेखा नदी सब खाली है. नदी में जगह-जगह छोटे बांध बनाने होंगे, तब पानी टिकेगा. किसान को मेहनत के बाद भी ठीक दाम नहीं मिलता है. इसको ठीक करना होगा. हम जितना कर पाते हैं, उसके लिए भगवान को धन्यवाद करते हैं.
बोली हॉकी िखलाड़ी
िनक्की प्रधान
मेरे लिए सबसे खास रहा ये साल
रियो ओलिंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम की मेंबर रही निक्की प्रधान के लिए ये साल सबसे खास रहा. निक्की प्रधान का कहना है कि साल 2016 मेरे हॉकी कैरियर में बहुत बदलाव लेकर आया. जहां एक ओर 2015 में मुझे सीनियर कैंप में जगह नहीं मिली थी.
वहीं, इसके बाद मुझे इस साल कैंप में भी जगह मिली और रियो ओलिंपिक के लिए टीम में मेरा चयन भी किया गया. सीनियर कैंप के दौरान भी मैंने बहुत कुछ सीखा और सीनियर खिलाड़ियों ने मेरा हौसला बढ़ाया, जिसकी वजह से मैं रियो तक का सफर पूरा कर सकी.
ये साल इसलिए भी मेरे लिए यादगार रहेगा, क्योंकि मैंने इसी साल ओलिंपिक खेला जो हर खिलाड़ी का सपना होता है. ओलिंपियन बनना सबसे बड़ा तोहफा मेरे लिए इस साल मेरे लिए रहा. जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता. इस दौरान झारखंड से लेकर दिल्ली तक सभी का साथ मिला जिसकी वजह से मैं झारखंड का नाम रोशन कर सकी. वहीं, 2016 में मुझे छह से सात इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेलने का मौका भी मिला. जनवरी से लेकर दिसंबर तक आस्ट्रेलिया के साथ कई देशों में खेलने का मौका मिला.
बोले पूर्व मुख्यमंत्री
हेमंत सोरेन
उम्मीदों व सपनों के बीच गुजरा साल
राजनीति जीवन में सक्रिय रहने के कारण गुजरे वर्ष का मूल्यांकन अपनी परिधि से बाहर निकल कर राज्य के परिदृश्य में करता हूं. कहना गलत नहीं होगा कि वर्ष 2016 उम्मीदों और सपनों के बीच ही गुजर गया. उससे कहीं ज्यादा सपनों और परंपराओं पर हमले हुए. इस वर्ष पुरखों की याद ज्यादा आयी. जिस संघर्ष और शहादत के बाद सीएनटी-एसपीटी जैसे कानून बने थे. आदिवासियों और मूलवासियों को रक्षा कवच मिला था, सरकार ने उसे ही रौंद दिया. इस रूप में वर्ष 2016 कचोटता रहेगा. विधायिका की गरिमा भी गिरी.
सरकार ने सीएनटी-एसपीटी बिल को पास करने के लिए लोकतंत्र के मंदिर का ही मान नहीं रखा. स्थानीय नीति के नाम पर सरकार ने यहां के लोगों के साथ खिलवाड़ किया. झारखंडियों को जमीन जाने का खतरा सता रहा है. वर्ष 2016 में ऐसा कुछ नहीं हुआ, जो राज्य के मेहनतकश लोग उन अरमानों के साथ आगे बढ़े. अपराध और नक्सलियों के चंगुल में रहा. राजधानी सहित पूरे राज्य में अपराधियों ने तांडव मचाया. वर्ष बीत ही रहा था कि गोड्डा के घटना ने सबको मर्माहत कर दिया. गरीब मजदूर कोयला की खान धंसने से दफन हो गये. प्रबंधन की लापहरवाही से घटना घटी. ऐसे हालात में मैं ऐसी कामना करता हूं कि आने वाले वर्षों में हम अपनी नीयत और नीति को बेहतर कर झारखंड को शहीदों के सपनों का राज्य बनायेंगे. आनेवाले दिनों में हम उस संघर्ष का शखंनाद भी करेंगे.
बोले चिकित्सक
डॉ केके सिन्हा
नोटबंदी से सभी परेशान हुए
मेडिकल साइंस में कई नये प्रयोग हुए है. नये शोध हुए हैं, जिससे इलाज
अासान हुआ है. तकनीक में बढ़ोतरी होने से मरीजों का लाभ मिला है, लेकिन इस साल की सबसे बड़ी परेशानी नोटबंदी है. अचानक
नोटबंदी से हर वर्ग परेशान हुआ है. जब नोटबंदी करनी ही थी तो चोरों
की तरह क्यों? सरकार को अपना फैसला लोगों को बता कर
करना चाहिए था. जो टैक्स की चोरी करते हैं, वह उस समय भी पकड़े जाते. विदेशाें में भी नोटबंदी जैसे निर्णय लिये गये है, लेकिन इस तरह नहीं. कई देशों में तो कई बार नोट बंद करने के निर्णय हुए है.
यह अच्छी बात है, लेकिन हमारी सरकार का फैसला लोगों को परेशान करनेवाला रहा है. आम आदमी सबसे ज्यादा परेशान रहा है. दिहाड़ी मजदूर और कामगार लोग काम छोड़ कर नोट बदलने के लिए घंटों
लाइन में खड़े रहे हैं. नोट बदलने के लिए कई दैनिक मजदूरों को अपना काम छोड़ना पड़ा है. उनके घरों में चूल्हे नहीं जले. आप यह सोच कर देखें कि सुदूर क्षेत्र जहां कई गांवों पर एक बैंक है, वहां के लोगों की क्या हालात हुई होगी. लोग अपने ही पैसा को लेने एवं बदलने के लिए परेशान रहें होंगे. हम सरकार के निर्णय का सम्मान करते हैं, यह अच्छा निर्णय है. इससे ब्लैक मनी रुकेगी, लेकिन योजनाबद्ध तरीके से यह फैसला लेना चाहिए था.
बोले साहित्यकार
डॉ निर्मल मिंज
संशोधन होना चािहए गंभीर मंथन
उम्र ढल रही है और बाहरी दुनिया से संपर्क कम हो रहा है. पत्र-पत्रिकाओं से ही पता चलता है कि क्या कुछ चल रहा है. सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का लोग विरोध कर रहे हैं, लेकिन अखबारों से लगता है कि इन विरोधों का कोई असर नहीं हो रहा. अब यह राज्यपाल के पास है. उनसे अनुरोध है कि एक आदिवासी होने के नाते वे किसी ऐसे संशोधन का अनुमोदन न करें, जिससे आदिवासियों का अहित हो. जनजातीय परामर्शदातृ परिषद में गहराई नहीं है.
मुख्यमंत्री रघुवर दास स्वयं इसके अध्यक्ष हैं, शायद इसलिए सदस्य विरोध नहीं कर सकते. किसी आदिवासी को इसका अध्यक्ष होना चाहिए. ऐसा लगा कि मुंडारी क्षेत्र में कुछ अच्छा होगा, लेकिन पर वहां जिस तरह की गतिविधियां चल रही हैं, उससे लगता है कि इसमें कुछ कमजोरी आयी है. इसे लोग समझ नहीं पा रहे हैं. संताल परगना में सोरेन परिवार कुछ करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन पूरे झारखंड में उनका प्रभाव नहीं. जमीनी स्तर पर काम कम हो रहे हैं, जबकि यही जरूरी है. गांवों की हालत काफी खराब है. गोस्सनर कॉलेज में यदि नौ भाषाओं की पढ़ायी शुरू नहीं होती, तो शायद ये भाषाएं गौण हो जातीं.
अब ये सशक्त हैं. जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ायी अब कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में होने लगी है. हरेक भाषा के अलग विभाग करने की बात भी चल रही हैं, देखते हैं क्या होता है. भाषाओं के संरक्षण-संवर्द्धन के लिए हरेक समूह को खड़ा होना होगा. बलिदान देना होगा. इसमें सरकार का सहयोग भी अपेक्षित है. कुड़ुख के मानकीकरण के लिए 2011 में जो सेमिनार हुआ था, उसके अच्छे परिणाम आये हैं. डॉ नारायण उरांव अच्छा काम कर रहे हैं.
उनकी तर्ज पर और लोगों को भी आगे आने की जरूरत है. संघर्ष से ही सफलता मिलती है. हर भाषा की अपनी पत्रिका होनी चाहिए. कुड़ुख में लेखकों की कमी है. बहुत कम किताबें छप रही हैं. कुड़ुख भाषा लट्रिरी सोसाइटी इस दिशा में काम कर रही है. मुंडारी की अधिक जानकारी नहीं, पर संताली में कई हैं. पत्रिकाएं निकलनी चाहिए और गांव गांव तक पहुुंचनी चाहिए.
बोले िक्रकेटर
विवेकानंद तिवारी
एशिया कप विजेता बनना सुखद
एशिया कप विजेता भारतीय अंडर-19 टीम के सदस्य रहे रांची के विवेकानंद तिवारी के लिए ये साल खुशियां लेकर आया. इनका कहना है कि मेरे लिए ये साल सबसे खास रहा.
हालांकि, क्रिकेट कैरियर में कई उतार चढ़ाव भी मुझे देखने को मिला. इसके साथ ही मुझे एक बार निराशा भी हाथ लगी. लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और अपना प्रयास जारी रखा. सबसे पहले झारखंड अंडर-19 टीम में खेलने का मौका मिला. हालांकि, टीम के लिए बेहतर बॉलिंग नहीं कर पाया.
मैंने अपनी बॉलिंग में सुधार किया और ईस्ट जोन में खेलने का मौका मिला. मुझे इसके बाद इंडिया बी टीम के साथ चैलेंजर ट्रॉफी खेलने का मौका मिला. इसके बाद अंडर-19 टीम में मेरा चयन हुआ. ये साल इसलिए भी मेरे लिए खास है, क्योंकि अंडर-19 टीम के साथ मैच खेलने के दौरान राहुल द्रविड़ सर से मुझे कई टिप्स मिले और बहुत कुछ सीखने को भी मिला. मुझे इससे बहुत फायदा हुआ और मेरे खेल का स्तर भी बढ़ा. श्रीलंका में मैच के दौरान बहुत अच्छा अनुभव रहा. इसलिए मेरे लिए ये साल सबसे खास है और हमेशा मेरी लाइफ का यादगार साल 2016 ही रहेगा.
बोले पूर्व मुख्यमंत्री
बाबूलाल मरांडी
सुखद संस्मरणवाला नहीं रहा 2016
वर्ष 2014 में विधानसभा चुनाव हुए. हमारी पार्टी राजनीतिक कुचक्र का शिकार हुई और हमारी पार्टी के विधायक 2015 में दूसरे दलों में चले गये. राजनीति में धनबल का प्रभाव देख कर लोग दुखी थे, लेकिन हमारे लोगों ने वर्ष 2016 को संघर्ष का वर्ष तय किया.
जनता के बीच रहे, संघर्ष किया और हमने एक मुकाम हासिल किया. हालांकि, सरकार के स्तर पर गुजरा वर्ष राज्य के लिए सुखद संस्मरणों वाला नहीं रहा. राज्य की जनता के हक-अधिकार पर चोट की गयी. ऐसी नीतियां बनी, जो राज्य की जनता को स्वीकार्य नहीं थी. गरीबों को राशन नहीं मिला, वृद्धा अवस्था पेंशन नहीं दे पाये. गरीबों के आवास के लिए ईंट नहीं जोड़ पाये. इंदिरा अावास योजना पूरी तरह विफल रही. किसान और मजदूरों ने भी धोखा खाया. किसानों ने कड़ी मेहनत कर फसल उगाये, लेकिन सरकार ने धान का क्रय केंद्र समय पर नहीं खोला. किसान बिचौलियों को धान बेचने के लिए मजबूर हुए. सरकार ने स्थानीय नीति घोषित की, लेकिन यह जनता के हित में नहीं था.
स्थानीय नीति में झारखंड के लोगों को दरकिनार किया गया. पूरा वर्ष विधि-व्यवस्था के मोरचे पर याद करने योग्य नहीं है. राजधानी और झारखंड के दूसरे जिले में अपराधियों का तांडव रहा. कोर्ट परिसर में हत्या हुई. राजधानी में इंजीनियरिंग की छात्रा के साथ दुष्कर्म हुआ और पुलिस अपराधियों तक पहुंच नहीं पायी. राज्य में सांप्रदायिक दंगे हुए.
बोले वीसी, रांची विवि
डॉ रमेश कुमार पांडेय
उपलब्धियोंवाला रहा पिछला वर्ष
छात्र संघ चुनाव उनकी प्राथमिकता थी. वर्ष 2016 में इसे पूरा किया गया. योगदान करने के बाद ही छात्र संघ चुनाव कराने की बात कही थी. शिक्षकों की नियुक्ति के लिए रोस्टर क्लियर करने सहित वेकैंसी की स्थिति सरकार को भेजी गयी. पीजी व कॉलेजों में दो पालियों में पढ़ाई सुनिश्चित की गयी.
यह भी बड़ी उपलब्धि रही. कर्मचारियों की चिर प्रतिक्षित लंबित मांगों में उन्हें प्रोन्नति देने, विवि व कॉलेजों में कर्मचारियों की रिक्ति आदि की स्थित का पता लगाया गया, जो काफी संतोषप्रद है. वहीं रांची कॉलेज को विवि का दर्जा दिलाया गया, जबकि रांची वीमेंस कॉलेज को भी विवि का दर्जा दिलाने का प्रस्ताव दिया गया. शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिए बायोमेट्रिक्स पद्धति के आधार पर वेतन भुगतान की प्रक्रिया शुरू करायी गयी. कुल मिला कर वर्ष 2016 उपलब्धियों वाला वर्ष रहा. कुछ कठिनाइयों के बावजूद कई लोगों का साथ मिला, जिससे यह संभव हो पाया.
विवि में नैक से निरीक्षण कराने के लिए इसे सूचीबद्ध करा दिया गया है. 2017 में नैक से निरीक्षण हो जाने की संभावना है. वर्ष 2017 में विवि के विकास के लिए कई योजनाएं आरंभ करनी है. कर्मचारियों को एसीपी, एमएसीपी सहित विवि व कॉलेजों को कैशलेस बनाने की योजना है. महिला कॉलेजों में मार्शल आर्ट सीखना अनिवार्य किया जा रहा है, ताकि छात्राएं स्वयं सुरक्षित रह सकें.
सरकार के साथ कौशल विकास के लिए भी योजनाएं आरंभ की जा रही हैं. विद्यार्थियों के लिए भी कई योजनाएं आरंभ की जायेंगी.
बोले कवि
महादेव टोप्पो
हड़बड़ी में लिए गये कई फैसले
वर्ष 2016 कई कारणों से मुझे अच्छा लगा, तो बुरा भी. पहले बात करते हैं अच्छे की, तो सबसे अच्छी खबर मुझे यह लगी के साल के जाते-जाते भारत जूनियर वर्ल्ड हॉकी चैंपियन बना. इसके अलावे नीरज चोपड़ा का जेवलिन थ्रो में जूनियर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना भी बड़ी खबर रही.
इसी तरह हॉकी में एशियाई चैंपियन बनना भी महत्वपूर्ण था. झारखंड की महिला हॉकी खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने में सफलता पायी. खेल के अलावा झारखंड के साहत्यिकि प्रतिभाओं की बात करें तो यह सुखद रहा. हांसदा शौवेंद्र शेखर के उपन्यास ‘मस्टिीरियस एलमेंट ऑफ रूपी बास्के’ को साहत्यि अकादमी का युवा पुरस्कार मिला. इसके अलावा उनके कहानी संग्रह ‘दि अदिवासी विल नॉट डांस’ (हिंदी में ‘आदिवासी नहीं नाचेंगे’) आया. झारखंड में स्थानीय नीति, सीएनटी एक्ट व एसपीटी एक्ट संशोधन में हड़बड़ी दिखाई गई और यही हड़बड़ी नोटबंटी में भी नजर आयी.भाषा, कला, साहत्यि, संस्कृति के लिए अनुकूल वातावरण बने लेकिन आनेवाले वर्षों के लिए हमें जल, जंगल, जमीन, जीन और जमीर की रक्षा के लिए और गंभीर बनने की आवश्यकता है.
हांसदा शौवेंद्र द हिंदू लिटेररी अवार्ड के टॉप फाइव में लगातार दो साल नामित होनेवाले झारखंड के अकेले साहत्यिकार बने. जसिंता केरकेट्टा का कविता-संग्रह ‘अंगोर’ हिंदी, जर्मन और अंग्रेजी तीन भाषाओं में प्रकाशित होना एक बड़ी साहत्यिकि घटना है. वहीं, संतोष किड़ो का पहला उपन्यास ‘द इटर्नल म्ट्रिरी’ भी चर्चा का विषय रहा. रोज केरकेट्टा का कहानी संग्रह ‘बिरवार गमछा’ भी प्रकाशित हुई.
बीजू टोप्पो की डॉक्यूमेंट्री ‘द हंट’ को त्रिवेंद्रम व शिमला में तीन पुरस्कार मिले. वहीं, निरंजन कुमार कुजूर की लघु फीचर फल्मि ‘एड़पा काना’ (गोइंग होम) को भी राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ मुंबई और त्रिवेंद्रम फल्मि समारोहों में पुरस्कार से नवाजा गया. 90 वर्षीय बिशप डॉ नर्मिल मिंज को कुड़ुख के विकास में योगदान के लिए साहत्यि अकादमी का भाषा सम्मान मिलना भी झारखंडी भाषा-भाषियों के लिए प्रेरक और उत्साहवर्द्धक समाचार बना.
बोले कलाकार
अलीशा सिंह
इमोशन भरा रहा 2016
2016 मेरे लिए काफी अहम रहा है. काफी मिक्स इमोशन भरा साल रहा है. एक वर्ष में मैंने काफी उतार-चढ़ाव देखे. इस वर्ष जहां ऊंचाई का सामना करना पड़ा, वहीं गिरावट का भी. उतार-चढ़ाव के बीच मुझे कई नये अनुभव हुए. कह सकते हैं कि इस वर्ष से मुझे काफी कुछ सीखने और समझने को मिला. 2016 की बात करें तो एक असिस्टेंट कोरियोग्राफर के रूप में मुझे कई बड़े प्रोडेक्शन हाउस में जाने का मौका मिला. बड़े सेलेब्रिटी जैसे कि सलमान खान, जैकी चैन, अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, सोनाक्षी सिन्हा, अनुष्का शर्मा, ऋतिक रोशन के साथ काम करने का मौका भी मिला. कई फिल्में की.
सबसे बड़ी बात तो टीवी शो झलक दिखला जा भी करने का मौका मिला. सबसे बड़ी खुशी की बात है कि इस शो में अब मैं फाइनल में आ चुकी हूं. झलक दिखला जा का ग्रैंड फिनाले जनवरी 2017 में होने वाला है. मेरी तो आशा है कि नये वर्ष की शुरुआत मेरी जीत से हो. झलक के शो फिनाले जीतने की तमन्ना नये वर्ष से जुड़ी है.कह सकती हूं कि 2016 कुछ खट्टा, कुछ मीठा तो कुछ प्यारी यादों के साथ विदा हो रहा है और नया वर्ष नया सवेरा, उम्मीद और नयी उड़ान लेकर आ रहा है.
बोले प्रधान सचिव
संजय कुमार
जनता और सरकार के बीच में मजबूत हुआ विश्वास का रिश्ता
गुजरा साल मेरे लिए निजी रूप से मिला-जुला रहा है. मैं अपने पिता को बहुत चाहता था. इस साल मैंने उनको खो दिया. उनके जाने से मुझे अपूरणीय क्षति हुई है. ज्यादा दुख इस बात का रहा है कि मां के जाने के बाद संतोष था कि कम से कम पापा साथ हैं. पर, अब बिल्कुल अकेला महसूस कर रहा हूं. अभी उससे उबर रहा हूं. खैर, साल में अच्छी बात यह रही कि मेरे इकलौते बेटे को अमेरिका के उसके मनपसंद विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया.
बेटे के कैरियर को लेकर अब चिंतामुक्त हो गया हूं. वह वहां पॉलिटिकल साइंस विद इंटरनेशनल रिलेशन्स पढ़ रहा है. अब बात राज्य के नजरिये से. 2016 झारखंड के लिए एक अच्छा साल रहा है. जनता और सरकार के बीच में विश्वास का रिश्ता मजबूत हुआ है. लोगों की शिकायतों पर अमल किया गया है. लोगों ने भी सरकार पर विश्वास कर अपनी बातों को रखा है. इस साल सरकार ने राज्य के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला स्थानीयता के बिंदु पर किया. राज्य बनने के बाद से ही इस पर रहे विवाद की वजह से फैसला नहीं हो सका था. जिसके कारण नियुक्तियां प्रभावित थी.
सरकार ने स्थानीय की परिभाषा निर्धारित करते समय स्थानीय लोगों का पूरा ध्यान रखा. शिड्यूल एरिया के 13 जिलों में शत-प्रतिशत नियुक्तियां स्थानीय लोगों की ही होंगी. मंत्री सरयू राय की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने भी झारखंड फ्लेवर को केंद्र में रख कर नियम बनाये. राज्य लोक सेवा आयोग और अन्य नियुक्तियों के लिए कमेटी द्वारा तय किये गये मानकों से भी स्थानीयता को बल मिल रहा है. कमेटी ने आगे के वर्षों में नियुक्तियों का मार्ग प्रशस्त किया है. नियुक्तियां राज्य के डिलिवरी सिस्टम की क्षमता से जुड़ी हैं.
नियुक्तियां होंगी, तभी सरकार का सर्विस डिलिवरी सिस्टम बेहतर होगा. बीते दिनों में राज्य के औद्योगिकीकरण पर नयी सोच बनी है. सरकार नयी औद्योगिक नीति के साथ स्टार्ट अप और आइटी पॉलिसी भी लायी है. 2017 में होनेवाले ग्लोबल इंनवेस्टमेंट समिट के लिए देश और विदेश में किये गये रोश शो के जरिये झारखंड की ब्रांडिंग हुई है. विश्व भर में यह संदेश गया है कि हम निवेश के लिए तैयार हैं. सरकार में आंतरिक रूप से भी मेहनत की गयी है. लेबर रिफार्म में राज्य लगातार दूसरी बार देश में दूसरे नंबर पर रहा. भले ही इज ऑफ डूइंग बिजनेस में झारखंड पिछले साल दूसरे और इस वर्ष सातवें नंबर पर रहा, पर प्रक्रिया बेहतर हुई है.
रैकिंग में एक और सात नंबर के बीच आंकड़ों का फासला केवल दो प्रतिशत का है. कौशल विकास पर राज्य सरकार ने ध्यान दिया है. राज्य में होने वाले निवेश से स्थानीय लोगों को तभी रोजगार मिलेगा, जब उनमें कौशल और हुनर होगा. अब बात अफसोस की. राज्य सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद अभी भी जिस गति से राज्य को चलना चाहिए, वह गति नहीं मिल पा रही है. दरअसल, राज्य गठन के बाद गुजरे डेढ़ दशक में सिस्टम की क्षमता विकसित नहीं हो सकी है. सर्विस डिलिवरी सिस्टम में बेहतर नहीं बन पाया है.
सिस्टम बेहतर नहीं होगा, तो इरादों के बावजूद विकास में अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाती है. पर, राज्य सरकार सिस्टम को सिंपलीफाई करने का प्रयास कर रही है. झारखंड देश का पहला राज्य बना, जहां प्रशासनिक सुधार हुए हैं. राज्य सरकार के 41 विभागों को कम कर 30 किया गया. ऐसा देश के किसी राज्य ने नहीं किया है. प्रशासनिक सुधार के लिए झारखंड को देश में मॉडल के रूप में प्रचारित किया गया है.