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मैथिली कहानियों को बचाने का मंच है..सगर राति दीप जरय

सगर राति दीप जरय.. के माध्यम से मैथिली कहानियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. यह स्वत: स्फूर्त कार्यक्रम है. इसमें शामिल होनेवाले साहित्यकारों को किसी तरह का पारिश्रमिक आदि नहीं दिया जाता है, बल्कि खुद खर्च करके लोग आयोजन में पहुंचते हैं, जहां आयोजन होता है. शैलेंद्रमुजफ्फरपुर: यह मैथिली संस्कृति और साहित्य […]

सगर राति दीप जरय.. के माध्यम से मैथिली कहानियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. यह स्वत: स्फूर्त कार्यक्रम है. इसमें शामिल होनेवाले साहित्यकारों को किसी तरह का पारिश्रमिक आदि नहीं दिया जाता है, बल्कि खुद खर्च करके लोग आयोजन में पहुंचते हैं, जहां आयोजन होता है.
शैलेंद्र
मुजफ्फरपुर: यह मैथिली संस्कृति और साहित्य को बचाये रखने का प्रयास है, जिसकी प्रेरणा भले ही पंजाब से ली गयी है, लेकिन..सगर राति दीप जरय..का कारवां लगातार बढ़ता जा रहा है. मैथिली लोक संस्कृति में रची बसी कहानियों का यह मंच साहित्य के कई पुरोधाओं को निखार चुका है, जिनमें इस बार के साहित्य अकादमी विजेता श्याम दरिहरे भी शामिल हैं. ये सिलसिला आगे भी जारी रहनेवाला है, क्योंकि नयी पीढ़ी के साहित्यकार इसमें रुचि लेने लगी है.
ऐसे पड़ी नींव : 1990 के आसपास कई स्थानीय समाचार – पत्रिकाओं के बंद होने का सिलसिला शुरू हुआ था. मैथिली की भोर पत्रिका का प्रकाशन भी रुक गया था. ऐसे में मैथिली साहित्यकारों के सामने अपनी कथा-कहानियों और रचनाओं को लोगों के बीच पहुंचाने का संकट था. कह सकते हैं कि ये मैथिली साहित्यकारों के लिए संकट का काल था. 24 दिसंबर, 1989 को मधुबनी के लोहना गांव में साहित्यकार कांचीनाथ झा के जयंती समारोह था, जिसमें आये साहित्यकारों के बीच सारिका में छपे पंजाब में होनेवाले आयोजन. दिवा वले सारी राति..की रिपोर्ट ने सबका ध्यान खीचा व उसी समय नींव पड़ी..सगर राति दीप जरय..की.
सहरसा में होना था पहला आयोजन : 1989 के जयंती समारोह में साहित्यकार अशोक कुमार झा शामिल थे. वह बताते हैं कि तब मैं सहरसा में को-ऑपरेटिव अफसर था. मेरे यहां पहला कार्यक्रम तय हुआ. अचानक मेरी बहन का निधन हो गया, जिसकी वजह से आयोजन नहीं हो सका. कार्यक्रम की रूपरेखा साहित्यकार शिवशंकर श्रीनिवास ने तैयार की थी और सबको पंसद थी, तब प्रभात कुमार चौधरी ने इसका जिम्मा लिया. तब वे मुजफ्फरपुर में एलआइसी के पदाधिकारी थे. उन्हीं के नेतृत्व में पहला कार्यक्रम हुआ, जिसमेंलगभग 15 साहित्यकार जुटे थे. इसके बाद से ये सिलसिला चल निकला.
पटना में हुआ 75वां आयोजन: अशोक कुमार झा बताते हैं कि सगर राति दीप जरय का 25वां आयोजन कोलकाता, 50वां दरभंगा और 75 पटना में हुआ. इसके जरिये कई प्रतिभावान कथाकार सामने आये, जिन्होंने मैथिली साहित्य को आगे बढ़ाया. आयोजन से जुड़े अजीत आजाद बताते हैं कि काठमांडू और दिल्ली जैसे शहरों में भी इसका आयोजन हो चुका है, लेकिन जैसा कि शुरुआत में तय हुआ था, उसके मुताबिक हम लोग ज्यादातर आयोजन मिथिला के ग्रामीण इलाकों में ही करने की कोशिश करते हैं, ताकि यहां के लोगों के बीच साहित्यिक जागृति आये.
लवानी में जुटे कहानीकार : बीते 31 दिसंबर को इसका 92वां आयोजन मधुबनी के लवानी गांव में हुआ, जिसकी अध्यक्षता मैथिली अकादमी के पूर्व चेयरमैन रघुवीर मोती ने की. टैगोर पुरस्कार से सम्मानित जगदीश मंडल जैसी हस्तियां इसमें मौजूद थीं. अजीत बताते हैं कि लगभग एक सौ लोगों ने इसमें भाग लिया, जिसमें 22 साहित्यकारों ने अपनी कहानियां पढ़ीं, जिनकी समीक्षा भी की गयी.
टूटीं कई मान्यताएं : इस बार के आयोजन की विशेषता ये रही कि मैथिली की परंपरागत वजर्नाएं इसमें टूटी हैं. बड़ी संख्या में युवा साहित्कार इस आयोजन में आये, जिन्हें पहले यह डर सताता था कि अगर वो आयोजन में जायेंगे, तो उनकी आलोचना होगी, लेकिन इस बार ये डर नहीं दिखा. सबने अपनी कहानियां पढ़ीं. इनमें लिव-इन रिलेशनशिप, बाल मनोविज्ञान व प्रेम के बदलते रूप जैसे सामाजिक मुद्दों से संबंधित कहानियां भी थीं, जिन्हें सराहा गया. युवा साहित्यकारों में आनंद मोहन झा, प्रीतम निषाद, मलय नाथ, उमेश मंडल, दुर्गानंद मंडल, संजीव समां, आनंद कुमार आदि शामिल थे.
खुद आते हैं कहानीकार : सगर राति दीप जरय..स्वत: स्फूर्त कार्यक्रम है. इसमें शामिल होनेवाले साहित्यकारों को किसी तरह का पारिश्रमिक आदि नहीं दिया जाता है, बल्कि खुद खर्च करके लोग आयोजन में पहुंचते हैं, जहां आयोजन होता है. वहां पर रहने, खाने व नाश्ते का इंतजाम आयोजक की ओर से किया जाता है. इसके बावजूद इसमें शामिल होने के लिए विभिन्न महानगरों से साहित्यकार सुदूर गांवों में आते हैं. आयोजन के दौरान ही ये तय हो जाता है कि अगला कार्यक्रम कहां होगा. इसके लिए साहित्यकारों की ओर से पहल की जाती है.
निर्मली में होगी अगला आयोजन : सगर राति दीप जरय का अगला आयोजन निर्मली में होगा, लेकिन अभी इसकी तारीख तय नहीं हुई है. ये ज्यादातर शनिवार को होता है. इसकी वजह अगले दिन रविवार का होना है, ताकि रात भर जागने के बाद इसमें शामिल होनेवाले साहित्यकारों को आराम करने का मौका मिले. सारी रात चलनेवाला ये साहित्यिक आयोजन अपने आप में अलग है और मैथिल साहित्य को आगे बढ़ाने में योगदान दे रहा है.
आयी ढाई हजार कहानियां : सगर राति दीप जरय..के जरिये अब तक ढाई हजार कहानियां आ चुकी हैं. दो से ज्यादा कहानीकारों ने इसमें शामिल होकर अपनी रचनाओं को नयी ऊंचाई दी है. इस आयोजन से संबंधित एक दर्जन से ज्यादा कहानी संग्रह आ चुके हैं. साहित्य की रचना करनेवालों के लिए ये एक ऐसा मंच साबित हुआ था, जिनकी रचनाओं की तत्काल समीक्षा होती है. उसकी अच्छाई व खराबियों के बारे में बताया जाता है, जिससे उन्हें अपनी रचनाओं को निखारने का मौका मिलता है.
भरि राति भोर..का आया कहानी संग्रह : अशोक कुमार झा बताते हैं कि हम लोगों ने इस आयोजन का नाम..भरि राति भोर..रखने का फैसला लिया था, लेकिन जब पहला आयोजन हुआ, तो पंजाब के दिवा वले सारी राति..की तर्ज पर..सगर राति दीप जरय..नाम से कार्यक्रम हुआ. इसके बाद इसी नाम से आयोजन होता रहा. हम लोगों ने जो नाम तय किया था, उस पर कहानी संग्रह आया, जिसका संपादन प्रदीप बिहारी ने किया, जो मूलत: मधुबनी के रहनेवाले हैं, लेकिन बेगूसराय में बस गये हैं.

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