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जानवरों के लिए मोबाइल एंबुलेंस

जितना हक इस धरती पर इनसानों का, उतना ही हक जानवरों का इनसानों का पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम तो पुराना है, मगर तब भी पशु-पक्षियों की देखभाल के लिए पर्याप्त इंतजाम मौजूद नहीं हैं. आवारा या जंगली जानवरों की देखरेख के लिए बहुत ही कम संस्थान या संसाधन हैं. जानवरों को चिकित्सकीय सहायता पहुंचाने के […]

जितना हक इस धरती पर इनसानों का, उतना ही हक जानवरों का

इनसानों का पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम तो पुराना है, मगर तब भी पशु-पक्षियों की देखभाल के लिए पर्याप्त इंतजाम मौजूद नहीं हैं. आवारा या जंगली जानवरों की देखरेख के लिए बहुत ही कम संस्थान या संसाधन हैं. जानवरों को चिकित्सकीय सहायता पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था करना निश्चय ही अनूठा काम है. पढ़िएएक रिपोर्ट.

जितना हक इस धरती पर इनसानों का है, उतना ही हक जानवरों का है. जानवरों की सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है जितनी इनसानों की. यह मानना है ‘पीपल्स फॉर एनिमल्स ट्रस्ट’(पीएफए) के संस्थापक रवि दुबे का. रवि की संस्था फरीदाबाद और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के इलाके में पशु कल्याण का काम करती है. पीएफए जंगली और पालतू दोनों ही किस्मों के जानवरों की देखभाल करता है.

पीएफए जानवरों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए अपने को प्रतिबद्ध मानता है. इसके लिए वह कई किस्म के अभियान भी चलाता है. पीएफए इसके लिए एक हेल्पलाइन चलाता है. इसका काम खतरे में पड़े जानवरों को तुरंत राहत पहुंचाना है. इस काम को बेहतर अंजाम देने के लिए फरीदाबाद, पलवल और होडल के इलाके में घायल और बीमार जानवरों को राहत पहुंचाने के लिए दो एंबुलेंस की सेवा उपलब्ध करायी जा रही है. रवि बताते हैं कि ट्रैफिक एक्सीडेंट में घायल जानवरों की मदद के लिए हमारी हेल्पलाइन कार्यरत है.

अगर कोई भी जानवर किसी भी किस्म के खतरे का सामना कर रहा है और हमें सूचना मिलती है तो हम उसकी मदद के लिए निकल पड़ते हैं. बल्लभगढ़ में ‘आस्था शेल्टर होम’ के नाम से जानवरों के लिए एक आश्रयगृह भी संचालित होता है. इस आशियाने में जानवर तब तक रहते हैं, जब तक कि वे स्वस्थ न हो जाएं या उनको अपने वास्तविक रहवास में पहुंचा न दिया जाये.

इस संगठन के काम को एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने काफी सराहा है. यह वर्ल्ड सोसायटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ एनिमल्स-यूके का सदस्य भी है. पीएफए का सबसे चर्चित काम है- समर लाइफलाइन प्रोजेक्ट. वर्ष 2015 में इस काम की तब शुरुआत हुई, जब गरमी बेतहाशा पड़ रही थी और पानी की कमी हो गयी थी, नतीजतन जानवर मरने लगे थे. पीएफए ने जानवरों के पानी पीने के लिए जगह-जगह सीमेंट का वाटर टब बनवाया. गरमी के दिन में पानी की तलाश में जानवर जंगल से बाहर निकल कर सड़क पर आ जाते हैं. गरमी के मौसम में फरीदाबाद और गुड़गांव की सड़कों पर कुत्ते, बारहसिंगे, गधे, गाय-बैल, बंदर आदि अक्सर देखे जाते हैं. तेज प्यास के कारण इधर-उधर भागते हैं. बदहवासी में वे अक्सर दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं. समर लाइफलाइन प्रोजेक्ट के तहत 200 लीटर पानी की क्षमता वाले 150 सीमेंट वाटर बनाये गये हैं.

इतना ही नहीं, संस्था ने वाटर टैंकर भी किये हैं, ताकि पूरे गरमी के मौसम में जानवरों के लिए पानी उपलब्ध हो सके.

ऐसे तो संस्था ने जानवरों की जान बचाने के कई काम किये हैं. मगर एक घटना का जिक्र करते हुए रवि बताते हैं- “ वर्ष 2015 की बात है. हमें सूचना मिली कि एक बिल्ली फरीदाबाद मेट्रो के एक पिलर में दो दिनों से फंसी पड़ी है. हमलोगों ने उसके बचाव का काम शुरू किया. उस बिल्ली को बचाने के दौरान हमारा एक कार्यकर्ता 40 फीट की ऊंचाई से नीचे गिर कर बुरी तरह जख्मी हो गया था.”

संस्था को आर्थिक मोरचे पर परेशानी तो झेलनी ही पड़ती है, नैतिक समर्थन भी उतना नहीं मिलता है, जो उन्हें प्रोत्साहित करे. वजह साफ है कि अभी भी लोग पशु कल्याण का महत्व नहीं समझते हैं. संस्था के पास स्वयंसेवक भी बहुत ज्यादा तो नहीं हैं, फिर भी इनका प्रयास सराहनीय रहा है. रवि बताते हैं कि संस्था में हर उम्र के और हर क्षेत्र के लोग हैं. कॉलेज के छात्र और रिटायर्ड लोग भी संस्था के काम में मदद करते हैं.

बीमार और घायल जानवरों के उपचार के अलावा पीएफए स्कूलों-कालेजों में वर्कशॉप आयोजित करता है, ताकि जानवरों के कल्याण के प्रति जागरूकता बढ़े. आवारा जानवरों के प्रति भी नरमी से पेश आयें. रेबीज नियंत्रण के लिए समय-समय पर एंटी रेबीज कैंपेन भी चलाया जाता है. पिछले नौ साल में अबतक 5,000 जानवरों की मदद की जा चुकी है.

(इनपुट: योरस्टोरी डॉट कॉम)

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