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रेल टेक : कोहरे में कम नहीं होगी ट्रेन की स्पीड त्रि-नेत्र कायम रखेगा रफ्तार
कोहरे के दौरान उत्तरी और पूर्वी भारत के ज्यादातर हिस्साें में रेलगाड़ियां काफी देरी से चलती हैं. ऐसे मौसम में ट्रेन के लोको पायलट को ट्रैक पर ज्यादा दूरी तक दिखाई नहीं देता.ट्रेन चलाते वक्त सिगनल दूर से नहीं दिखने के कारण वे ट्रेन को ज्यादा स्पीड से नहीं चला पाते हैं. रेड सिगनल होने […]
कोहरे के दौरान उत्तरी और पूर्वी भारत के ज्यादातर हिस्साें में रेलगाड़ियां काफी देरी से चलती हैं. ऐसे मौसम में ट्रेन के लोको पायलट को ट्रैक पर ज्यादा दूरी तक दिखाई नहीं देता.ट्रेन चलाते वक्त सिगनल दूर से नहीं दिखने के कारण वे ट्रेन को ज्यादा स्पीड से नहीं चला पाते हैं. रेड सिगनल होने की दशा में तेज गति से चल रही ट्रेन में ब्रेक लगाने पर वह काफी दूर जाकर रुकेगी, जिससे दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है. ट्रेन की स्पीड कम रहेगी, तो दुर्घटना को टाला जा सकता है. हालांकि, भारतीय रेल पिछले करीब एक दशक से इस समस्या का निदान करने में जुटी है, लेकिन अब तक इसका मुकम्मल समाधान नहीं हो पाया है. तकनीकों की मदद से कुछ हद तक इस समस्या से निपटने की उम्मीद जगी है़ भारतीय रेलवे ‘त्रि-नेत्र’ नाम की इस खास तकनीक का परीक्षण कर रहा है. कोहरे की दशा में ट्रेनों के निर्बाध संचालन को सुचारु बनानेवाली और दुर्घटना के अग्रिम संकेतक के रूप में इस्तेमाल होनेवाली इस तकनीक के बारे में जानिये विस्तार से …
कोहरे के मौसम में ट्रेन चलाते वक्त लोको पायलट बेहतर तरीके से सामने देख सकें, रेलवे इसके लिए त्रि-नेत्र प्रणाली शुरू कर सकती है. त्रि-नेत्र (टेरैन इमेजिंग फॉर डीजल ड्राइवर्स इंफ्रा-रेड, इनहांस्ड ऑप्टिकल एंड राडार असिस्टेट सिस्टम) का अर्थ है- डीजल ड्राइवरों के इंफ्रा-रेड, बेहतर ऑप्टिकल एवं राडार समर्थित प्रणाली के लिए भू-भागीय छवि. त्रि-नेत्र प्रणाली उच्च रिजोलुशन ऑप्टिकल वीडियो कैमरा, उच्च संवेदनशील इंफ्रारेड वीडियो कैमरा से बनी होगी. इसके अलावा, इसमें एक राडार आधारित भू-भागीय मानचित्रण प्रणाली भी होगी. इस सिस्टम के तहत ये तीनों संघटक लोकोमोटिव पायलट के तीन नेत्रों (त्रि-नेत्र) के रूप में कार्य करेंगे.
वीडियो इमेज का निर्माण :
त्रि-नेत्र की रूपरेखा की उप-प्रणालियों द्वारा लिये गये इमेज के संयोजन के द्वारा खराब मौसम के दौरान चल रहे लोकोमोटिव से आगे के क्षेत्र को देखने तथा एक समग्र वीडियो इमेज का निर्माण करने के लिए बनायी गयी है. लोको पायलट के सामने लगे कंप्यूटर मॉनीटर पर इस वीडियो को डिस्प्ले किया जायेगा, ताकि वह रेलवे ट्रैक पर निगाह बनाये रख सके.
पेड़ों या बोल्डरों आदि के कारण पटरी पर पैदा होनेवाले किसी व्यवधान को कोहरे, भारी बारिश और रात के वक्त लोकोमोटिव पायलटों के लिए जान पाना आसान नहीं होता. तेज गति से चल रही ट्रेन के लोको पायलट को स्पीड को इस प्रकार समायोजित करना पड़ता है, जिससे कि वह बाधा को देखने के बाद गाड़ी को रोक पाने में सक्षम हो सके. साफ मौसम या दिन के समय इस प्रकार की समस्या नहीं आती, क्योंकि लोको पायलट आगे की पटरी को साफ तौर पर देख सकता है. लेकिन, बेहद कम दृश्यता में उसे स्पीड को उपयुक्त तरीके से कम करना पड़ता है, ताकि अचानक कोई बाधा सामने दिखने पर ट्रेन को रोकने के लिए समय पर ब्रेक लगाया जा सके.
त्रि-नेत्र प्रणाली इसी दिशा में उपयोगी साबित होगी और न्यूनतम दृश्यता की स्थितियों में आगे की पटरी को साफ तरीके से देखने में लोकोमोटिव पायलट की मदद करेगी, जिससे कि वह सही समय पर ब्रेक लगा सके. इसके विपरीत यदि त्रि-नेत्र प्रणाली से यह प्रदर्शित होता है कि आगे की पटरी पर कोई बाधा नहीं है, तो वह न्यूनतम दृश्यता में भी ट्रेन की स्पीड को बढ़ा सकता है. यह प्रणाली रेल ट्रैक के आगे के हिस्से की मैपिंग भी कर सकती है, ताकि चालक यह जान सके कि वह किसी स्टेशन या सिगनल के पास पहुंच रहा है.
सेना द्वारा इस्तेमाल की गयी तकनीकों पर आधारित
त्रि-नेत्र की संकल्पना रेलवे बोर्ड के सदस्य मैकेनिकल के दिशा-निर्देश के तहत विकास प्रकोष्ठ द्वारा लड़ाकू विमानों द्वारा बादलों में देख सकने तथा घुप्प अंधेरे में संचालन करने और नौ-सेना के जहाजों द्वारा अंधेरे में यात्रा कर सकने और समुद्र की सतह की मैपिंग करने में इस्तेमाल की जा रही तकनीक के विकसित करने पर चर्चा के दौरान की गयी थी. ‘इंडियन रेलवे नॉलेज पोर्टल ब्लॉग’ में यह दावा किया गया है कि ऐसी ‘समर्थित दृश्यता’ प्रणाली मौजूदा समय में किसी भी उन्नत रेलवे प्रणाली में सहजता से उपलब्ध नहीं है.
बताया गया है कि रक्षा के लिए ऐसी प्रणालियों को विकसित करने में जुटे प्रौद्योगिकी प्रतिभागी इस संकल्पना को लेकर बेहद उत्साहित हैं. लड़ाकू विमानों के लिए ऐसी प्रणालियां विकसित करनेवाले एक विदेशी विशेषज्ञ का कहना है कि ऐसी प्रणालियों का उपयोग शांति काल के दौरान प्रयोगों में नहीं किया गया है और वे इस बात को लेकर बेहद उत्साहित हैं कि भारतीय रेल ने इस दिशा में एक चुनौती पेश की है.
ट्रैक में आयी दरार को समय रहते सूचित करेगा यूबीआरटी सिस्टम
पिछले दिनों ज्यादातर ट्रेन दुर्घटनाएं डिरेल होने यानी पटरी से उतरने के कारण देखी गयी है. पटरी से ट्रेन उतरने की घटनाओं के पीछे सबसे बड़ी वजह होती है- रेल की पटरी में दरार आना या इसमें टूट-फूट होना. देशभर में रेल पटरियों की खामियों का पता लगाने की जिम्मेवारी गैंगमैन पर होती है, जो पटरी पर खुद पैदल चलते हुए उसकी जांच करते हैं.
हालांकि, इस प्रक्रिया के तहत इस बात के पूरे इंतजाम किये गये हैं कि किसी भी प्रकार की खामी का समय रहते पता चल जाता है, लेकिन इसमें मानवीय भूल रह जाना आम बात है. इसी तरह की मानवीय भूल की दशा में चूक हो जाती है और दुर्घटना को आमंत्रित कर जाती है. खासकर मौसम के बदलने के दौरान जाड़े या गरमी की शुरुआत के दिनों में पटरियां सबसे ज्यादा चटकती हैं. लिहाजा हजारों किमी लंबी रेल पटरियों को ऑटोमेटिक तरीके से जांचने-परखने के लिए भारतीय रेलवे मौजूदा समय में दक्षिण अफ्रीका के ‘अल्ट्रासोनिक ब्रोकन रेल डिटेक्शन सिस्टम’ का परीक्षण कर रही है.
मुरादाबाद-सहारनपुर और इलाहाबाद-कानपुर के बीच परीक्षण
अल्ट्रासोनिक ब्रोकन रेल डिटेक्शन सिस्टम दक्षिण अफ्रीका के रक्षा विभाग द्वारा तैयार की गयी वह तकनीक है, जिसमें अल्ट्रासोनिक तरंगों का इस्तेमाल करते हुए रेल पटरियों के फ्रैक्चर को समय रहते जाना जा सकता है. फिलहाल इस तकनीक का परीक्षण मुरादाबाद-सहारनपुर रेल सेक्शन पर रुड़की और हिंडन केबिन के बीच में किया जा रहा है. इस तकनीक का दूसरा परीक्षण इलाहाबाद-कानपुर रेल सेक्शन के बीच में बमरौली और भरवारी के बीच किया जा रहा है. परीक्षण के दौरान कुछ हद तक उपलब्धि भी हासिल हुई है.
मुरादाबाद-सहारनपुर रेल सेक्शन पर इस आधुनिक तकनीक के जरिये रेल पटरी में छह जगहों पर रेल फ्रेक्चर होने से पहले ही उसे ठीक कर लिया गया. रेलवे के संबंधित अधिकारियों ने इस तकनीक के अब तक के परीक्षण नतीजों से संतुष्टि जतायी है. उनका कहना है कि यह तकनीक कारगर होती हुई दिख रही है, लेकिन अभी अगले कुछ माह तक लगातार परीक्षण किया जायेगा. रेल मंत्रालय के खास संगठन रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन के तहत इस परीक्षण को अंजाम दिया जा रहा है.
क्या है तकनीक और कैसे करता है काम
अल्ट्रासोनिक ब्रोकन रेल डिटेक्शन सिस्टम में अल्ट्रासोनिक तरंगों की गाइडेड तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक के तहत करीब एक किलोमीटर लंबी रेल की पटरी में जोड़ों के आसपास अल्ट्रासाउंड तरंगों का इस्तेमाल करके प्रत्येक मिनट के अंतराल पर रेल पटरी की जांच की जाती है. पटरी में किसी तरह की टूट-फूट की संभावना दिखाई देने पर इस सिस्टम से जोड़ा गया अलार्म संबंधित रेल विभाग को सतर्क कर देता है. इस सिस्टम में रेल पटरियों के बीच में एक ओर रिसीवर लगाये जाते हैं, जबकि दूसरी ओर ट्रांसमीटर लगाये जाते हैं.
रिसीवर और ट्रांसमीटर आपस में एक दूसरे से संपर्क बनाये रखते हैं. अल्ट्रासोनिक तरंगों का विश्लेषण एक ऑटोमेटिक कंप्यूटर सिस्टम करता रहता है, इसमें जैसे ही कोई बाधा या व्यवधान नजर आता है, यह सूचना ऑटोमेटिक तरीके से सिस्टम में चली जाती है. इसके बाद सिस्टम अलार्म जारी कर देता है. इलेक्ट्रिक और बैट्री के जरिये 24 घंटे सक्रिय रहनेवाले इस सिस्टम से पटरी में मामूली दरार आने पर भी कंट्रोलर के पास लगे संबंधित बोर्ड पर अलर्ट जारी हो जायेगा.
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