ग्रीनपीस इंडिया ने देश के 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की पर्यावरणीय स्थिति पर अपनी हालिया रिपोर्ट- ‘वायु प्रदूषण का फैलता जहर’ में कहा है कि देश के 168 शहरों में वायु प्रदूषण जहरीला हो गया है. इसमें भी शीर्ष बीस शहरों में दिल्ली पहले स्थान पर है. ऐसा माना गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रदूषण नियंत्रित करनेवाले मानकों का पालन नहीं किया गया है.
लेकिन, मेरा मानना यह है कि प्रदूषण नियंत्रण के मानकों का पालन तब किया जायेगा, जब प्रदूषण का अनुमापन हो. पहली बात तो यह है कि इस मामले में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कहीं पर भी इस अनुमापन के यंत्र विस्तृत या उचित संख्या में लगाये ही नहीं गये हैं. मसलन, बनारस जैसे भीड़-भाड़ वाले शहर में मात्र एक यंत्र लगाया गया है और नागपुर में दो लगाये गये हैं.
केवल दिल्ली ही एक ऐसा शहर है, जहां छह अनुमापन यंत्र तो केंद्रीय प्रदूषण मंडल द्वारा लगाये गये हैं और बाकी ग्यारह यंत्र दूसरी संस्थाओं द्वारा लगाये गये हैं, जो कुल मिला कर 17 अनुमापन यंत्र हो जाते हैं. यहां दूसरी बात यह भी है कि दिल्ली जैसे शहर के लिए ये 17 यंत्र बहुत कम हैं. दिल्ली में कम-से-कम डेढ़ सौ अनुमापन यंत्र लगाये जाने चाहिए. देशभर में अनुमापन यंत्रों के न लगाये जाने के कारण प्रदूषण की स्थिति का पता नहीं चल पाता है. दूसरी बात यह है कि ये यंत्र 24 घंटे का ही अनुमापन करते हैं, और 24 घंटे में हो सकता है कि कभी प्रदूषण का स्तर बढ़ जाये या कभी घट जाये. ऐसे में यह पता नहीं चल पाता है कि वायु प्रदूषण से कितना नुकसान हो रहा है.
शहर ही नहीं घाटियां भी प्रदूषित
तीसरी बात यह है कि प्रदूषण अब केवल एक जगह पर नहीं है, जैसा कि कहा गया है कि 168 शहरों में ज्यादा है. शहर क्या, अब तो पूरी-की-पूरी घाटियां भी प्रदूषित हो रही हैं. जिस तहर से प्रदूषित हवा बहती है, चाहे गंगा घाटी में हो या कावेरी-कृष्णा-गोदावरी की घाटियां हों, हर घाटी में यह प्रदूषण फैल रहा है. आप अगर हिमालय से उतरें और कालिका या देहरादून की तरफ देखें, तो एक धुंधला या गंदला कंबल जैसा आवरण नजर आयेगा, यह कंबल प्रदूषण का आवरण है.
अनुमापन का हो पालन
हमारी बड़ी दिक्कत यही है कि हम अनुमापन ही नहीं करते या करते भी हैं, तो बहुत कम करते हैं. और जब करते हैं, तो यह कह कर छोड़ देते हैं कि प्रदूषण बढ़ रहा है. दिल्ली की ही मिसाल अगर लें, तो पिछले बीस साल से हम कह रहे हैं कि शहर में प्रदूषण बढ़ रहा है, इसका अनुमापन हो और फिर उसके रोकथाम के उपाय किये जायें. जब तक कोई ठोस उपाय हम नहीं करेंगे, तब तक यह नियंत्रण में नहीं आनेवाला है. उपाय में सरकारें यही करती हैं कि बच्चों के स्कूल बंद कर देती हैं. लेकिन, बच्चे अगर अपने घर पर भी बैठे हैं, तो वे वहां भी वही प्रदूषित हवा ले रहे हैं. बस इतनी सी बात हमारी सरकारों को समझ में नहीं आती है.
चेत कर उपाय की ओर ठोस कदम
अगर हम सही में इस प्रदूषण को समझना चाहते हैं, तो अनुमापन के साथ ही हमें प्रदूषण के असर की ओर ध्यान देना होगा कि इससे किस तरह कितने लोग प्रभावित हो रहे हैं. सांस की बीमारियां फैल रही हैं, अस्थमा फैल रहा है. अगर हम इन बीमारियों का मापन करने लगें कि इन बीमारियाें के पीछे प्रदूषण का कितना हाथ है, तो शायद लोगों को यह एहसास होगा कि यह सिर्फ उस प्रदूषित हवा की गलती नहीं है, बल्कि उसे हम अपने शरीर में जानबूझ कर ले रहे हैं, जिसका हमारे शरीर पर आघात हो रहा है. तब कहीं जाकर सरकारें कुछ कदम उठायेंगी. दरअसल, देश में जब तक कोई बड़ी दुर्घटना नहीं घटती है, तब तक हम नहीं चेतते हैं. भोपाल गैस कांड जैसी दुर्घटना हुई, तब हल्ला मचना शुरू हुआ कि पर्यावरण का कुछ करना चाहिए, तब जाकर कानून बना. चेतने के लिए यह जरूरी है कि प्रदूषण के आंकड़ों को फैलाने के बजाय यह फैलाया जाये कि प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है, कितने बच्चों में अस्थमा पाया जा रहा है, कितनों के दिल व फेफड़ों पर आघात हो रहा है, तब लोग समझेंगे और प्रदूषण पर काबू पाने के बारे में सोचेंगे.
न हो आंकड़ों की बाजीगरी
अक्सर सरकारें यह आंकड़ा जारी करती हैं कि प्रदूषण से देश में हर साल कितने लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. यह आंकड़ा अंधेरे में तीर मारनेवाला आंकड़ा है, क्योंकि यह एक अनुमान पर आधारित होता है. किसी भी अस्पताल में अगर हम किसी की मृत्यु का प्रमाणपत्र लेने जायेंगे, तो डॉक्टर यह कभी नहीं लिखेगा कि उसकी मृत्यु प्रदूषण से हुई है. ऐसे में यह कहना कि प्रदूषण से इतने लोग हर साल मरते हैं, इसके पीछे का कोई ठोस मापन नहीं है. मैं समझता हूं कि इस तरह के आंकड़ों को फैलाने से बेहतर होगा कि इसके पीछे के कारणों को चिह्नित किया जाये. मौत पर अक्सर लोग यह कह कर चुप हो जाते हैं कि एक दिन सबको मरना तो है ही. लेकिन, अगर लोगों को यह पता चलने लगे कि प्रदूषण के कारण ही वे ज्यादातर बीमार पड़ रहे हैं, तो वे जरूर चेतेंगे.
प्रदूषण का बच्चों पर असर
वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा असर हमारे बच्चों पर पड़ता है. बच्चों का शरीर नाजुक होता है और अस्थमा जैसी बीमारी अपने चपेटे में ले लेती है. अगर प्रदूषण से बच्चों पर होनेवाले स्वास्थ्य खतरों के आंकड़ों को जारी किया जाये, इसका मापन किया जाये, तब लोगों को समझ में आयेगा कि यह तो हमारे बच्चों के लिए बहुत खतरनाक है और अगर हम अभी से कोई ठोस कदम नहीं उठायेंगे, प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकार के ऊपर दबाव नहीं डालेंगे, तो बच्चों का भविष्य अस्वास्थ्यकर हो जायेगा.
प्रदूषण के कारण अनेक
ग्रीनपीस की रिपोर्ट में प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण केवल पेट्रोलियम पदार्थों को माना गया है. लेकिन, ऐसा नहीं है और न ही सिर्फ इंसान ही प्रदूषण से प्रभावित होते हैं. प्रदूषण के लिए दूसरे कई कारण भी हैं. हमारी वनस्पतियां और अन्य जीव भी इसकी चपेट में आते हैं. लेकिन, हमारा विज्ञान इन सबको एक साथ जोड़ कर नहीं देख पाता. मसलन, पेट्रोलियम पदार्थों और उसके जलने के बाद पैदा हुए कार्बन मोनोऑक्साइड के असर को भी जोड़ लें, तो प्रदूषण का प्रभाव गुणात्मक हो जाता है. इसलिए सिर्फ पेट्रोलियम पदार्थों को प्रदूषण का जिम्मेवार नहीं माना जा सकता है. प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए हमें मानव स्वास्थ्य को इसके साथ जोड़ कर अध्ययन करना होगा. अस्थमा, त्वचा की बीमारियां, दिल और फेफड़े की बीमारियाें से यह फौरन पता चल जाता है कि इसमें प्रदूषण का कितना हाथ है. आम का बौर सूखने लगता है, तो यह पता चल जाता है कि हवा प्रदूषित हो गयी है. इस तरह बीमारियों के कारणों की पड़ताल कर हम न सिर्फ अपने स्वास्थ्य को बचा सकते हैं, बल्कि प्रदूषण को बढ़ने से भी रोक सकते हैं.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
दुनू रॉय
निदेशक, हजार्ड सेंटर, दिल्ली
सख्त कदम से ही समाधान संभव
वायु प्रदूषण के विषय मैं जब भी कोई बात होती है, तो हमारा ध्यान सबसे पहले दिल्ली पर जाता है, क्योंकि अब तक सिर्फ दिल्ली ही हमारी चर्चा का हिस्सा होती रही है. हम वायु प्रदूषण एवं उससे होनेवाले दुष्प्रभावों पर बात करते हैं और उन्हें भली-भांति जानते एवं समझते भी हैं. लेकिन, क्या हमने यह भी सोचा है कि वायु प्रदूषण सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है और बहती हुई प्रदूषित वायु कभी भी किसी देश या राज्य की सीमा को नहीं पहचानती ?
यह सही है कि दिल्ली आज भी भारत के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में सबसे ऊपर है, किंतु ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि हाल ही में ग्रीनपीस इंडिया द्वारा की गयी रिपोर्ट में देश के लगभग 168 शहरों का वायु प्रदूषण का डाटा सुचना के अधिकार अधिनियम, विभिन्न रिपोर्टों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एकत्रित किया गया तथा यह पाया गया कि उनमें से कोई भी शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित मानकों की सीमा के भीतर नहीं है.
यह एक चिंता का विषय है कि भारत के न केवल बड़े-बड़े महानगर, बल्कि छोटे-छोटे शहर भी प्रदूषण की चपेट में हैं. देश की राजधानी दिल्ली के बाद कई प्रदूषित शहर उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में पाये गये हैं. इतना ही नहीं, दक्षिण भारत के भी बहुत सारे शहर प्रदूषण की चपेट में हैं. इस समस्या का समुचित समाधान निकालने के प्रयास की बात तो दूर की कौड़ी लगती है, दुखद यह है कि इन शहरों में तो अभी भी वायु प्रदूषण को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अभी भी हमारी सरकारें स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था पर इसके दुष्प्रभाव को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं.
किसी भी स्थान पर वायु प्रदूषण की मात्रा बहुत सारे पर्यावरणीय एवं मानव निर्मित कारकों पर आधारित होती है, लेकिन अगर वायु प्रदूषण के बढ़े हुए स्तर को गहराई से समझा जाये, तो हमें पता चलता है कि इसका सबसे प्रमुख कारण बीते कुछ दशकों में जीवाश्म इंधन (कोयला, गैस, पेट्रोल एवं डीजल इत्यादि) का अंधाधुंध प्रयोग एवं उत्सर्जन है. इसके साथ अलग-अलग स्थानों पर प्रदूषण के अन्य स्रोत भी हैं, जैसे- खेतों में फसल काटने के बाद बचे हुए हिस्से में आग लगाना, घरों एवं शहरों से निकलनेवाले कूड़े में आग लगा देना, बिना किसी देख-रेख, बचाव एवं समय सीमा के होते हुए निर्माण कार्य जारी रखना, जिसमें घरों, बड़ी इमारतों एवं पुलों इत्यादि का पर्यावरण के नियमों का उलंघन करते हुए निर्माण करना इत्यादि भी शामिल हैं.
अब सवाल यह उठता है कि अगर पूरा भारत प्रदूषण जैसी राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल का सामना कर रहा है, तो इससे निकलने का समाधान क्या है? इसका समाधान है दूर दृष्टि और ठोस कदम. आज से कुछ वर्ष पहले चीन का कुछ हिस्से भी हमारी तरह ही इन्हीं समस्याओं से ग्रस्त थे, किंतु 2011 बाद किये कुछ ठोस पहलों के चलते चीन में प्रदूषण की मात्रा कम होती जा रही है. इसका मुख्य कारण वहां पर वायु प्रदूषण को रोकने के लिए बनायी गयी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय नीतियां हैं, जिनमें वायु प्रदूषण को सिर्फ एक शहर की समस्या न देख कर, प्रदूषित शहर को प्रदूषण की नदी में एक बिंदु के रूप में देखा जाता है और यह माना जाता है कि अगर उस बिंदु को साफ करना है, तो उसके आस-पास के बहुत बड़े क्षेत्र को भी साफ करना होगा. जीवाश्म इंधन का प्रयोग कम-से-कम करके साफ ऊर्जा स्रोतों, जैसे- सौर ऊर्जा एवं पवन उर्जा की तरफ चीन तेजी से बढ़ा है. चीन ने यातायात के प्राइवेट साधनों के निजी इस्तेमाल पर नियंत्रण किया और सार्वजानिक यातायात के साधनों के इस्तेमाल पर जोर दिया. इस नीति ने भी चीन में प्रदूषण को कम करने में अहम भूमिका निभायी है.
आज भारत में भी दिल्ली एवं इसके बाहर के प्रदूषित स्थानों पर ध्यान केंद्रित करके हमें एक संपूर्ण, नियमबद्ध एवं स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करनेवाली नीति बनाने तथा उसका संपूर्णता में पालन करने की आवश्यकता है. नीति इस प्रकार से बने जो प्रदूषण का समाधान निकालनेवाली हो और जिसके जरिये हम प्रदूषण के हर स्रोत एवं हर प्रदूषित जगह को साफ करने में कामयाब हो सकें. हमारी नीति ऐसी हो कि हम शहरों को सिर्फ एक बिंदु की तरह देख कर साफ करने की कोशिश न करें, अपितु प्रदूषण की नदी, जो पंजाब एवं राजस्थान से लेकर गंगा के सतही मैदानों से होते हुए पश्चिम बंगाल तक फैली है, में आनेवाले सभी स्थानों को साफ करें. इसके लिए हमें थोड़े कदम शहरों के अंदर एवं ढेर सारे कदम शहरों से बहुत दूर यानी 300-500 किमी और शायद इससे भी दूर तक उठाने की जरूरत है. हमें बहुत तेजी से यातायात एवं ऊर्जा के लिए वर्तमान में होनेवाले साधनों को छोड़ कर साफ एवं प्रदूषण रहित स्रोतों- सौर एवं पवन ऊर्जा आदि- की तरफ बढ़ना होगा.
इस प्रक्रिया में ज्यादा प्रदूषण फैलानेवाले कारकों पर कठोर नियंत्रण की व्यवस्था बनाने को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. इसके अलावा सरकारों को यह कदम भी उठाना होगा कि हम सब देशवासियों तक यह जानकारी पहुंचायें कि हम कितनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं. साथ ही, लोगों को नियमित रूप से स्वास्थ्य-संबंधी निर्देश दिये जाने चाहिए.
सुनील दहिया
ग्रीनपीस कैंपेनर
वायु प्रदूषण ने ली रोजाना औसतन 3,283 भारतीयों की जान
व्यापक क्षेत्रीय और वैश्विक अनुसंधान कार्यक्रम ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज’ (जीबीडी) के अनुमान के मुताबिक, साल 2015 में रोजाना औसतन 3,283 भारतीयों की जान वायु प्रदूषण की वजह से गयी, यानी एक साल में इससे मरनेवालों की आंकड़ा 12 लाख के करीब पहुंच गया. वहीं विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि इससे भारतीय जीडीपी को तीन प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ा.
रोजाना की चुनौती है वायु प्रदूषण
बीते साल वायु प्रदूषण वर्ष भर मानव जीवन के सामने चुनौती बना रहा है. खास कर ठंड के महीनों में हवा में प्रदूषकों की सघनता अपेक्षाकृत अधिक दर्ज की गयी. साल 2015 में तो चीन को पीछे छोड़ते हुए हमारे देश की हवा में पीएम-2.5 यानी पार्टिकुलेट मैटर (अतिसूक्ष्म कण) की सघनता रिकॉर्ड स्तर पर रही है.
देश की राष्ट्रीय समस्या बन गयी है वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण की समस्या दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, बल्कि दक्षिण राज्यों में कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में तेजी बढ़ी है. पूरे देश में व्याप्त हो रही इस समस्या से निपटने के लिए ठोस कार्ययोजना को तय करना अनिवार्य हो चुका है. इससे स्वास्थ्य समस्याओं के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने का खतरा है. हर साल वायु प्रदूषण के लाखों लोग असमय मौत का शिकार हो रहे हैं.
पीएम-10 की सर्वाधिक संकेंद्रण वाले प्रमुख शहर
(2015 में साल भर में औसतन)
शहर संकेंद्रण
(माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर)
दिल्ली 268
गाजियाबाद 258
इलाहाबाद 250
बरेली 240
फरीदाबाद 240
झरिया 228
अलवर 227
रांची 216
कुसुंडा 216
बस्ताकोला 211
कानपुर 201
पटना 200
वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी प्रोग्राम (एनएएमपी) के तहत 10 माइक्रोन से छोटे तीन प्रकार के सूक्ष्म कणों सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर (10 माइक्रोन के बराबर या इस सूक्ष्म) को चिह्नित किया गया.
बिहार
वायु प्रदूषण के स्तर की जांच के दौरान साल 2015 में राज्य के दो प्रमुख शहरों पटना और मुजफ्फरपुर में पीएम-10 का स्तर क्रमश: 200 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर और 164 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया. यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तय किये गये सलाना मानक से तीन गुना अधिक और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किये गये मानक से आठ से दस गुना अधिक है.
प्रभाव : प्रदूषण का बढ़ता स्तर न केवल बेहद चिंताजनक स्तर है, बल्कि इस क्षेत्र के निवासियों के लिए हेल्थ इमरजेंसी का संकेतक भी है.
नवंबर से मार्च तक प्रदूषण का स्तर ज्यादा खतरनाक : पटना और मुजफ्फरपुर में प्रदूषकों की सघनता 2015 में पूरे साल खतरनाक स्तर पर रही, लेकिन नवंबर से लेकर मार्च महीने में पीएम-10 की सघनता 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के स्तर को भी पार कर गयी.
शहरों में पीएम-10 उत्सर्जन में प्रमुख कारक का प्रतिशत
परिवहन 13-22
सड़कों पर धूल 14-19
घरेलू कचरे 12-16
जेनरेटर सेट 5-6
खुले में कचरा जलाने से 9-11
उत्पादन उद्योग 5-10
ईंट-भट्ठा 11-29
निर्माण कार्यों से 8-13
वायु प्रदूषण से हजारों मौतें
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2012 में वृहत्तर पटना में वायु प्रदूषण की वजह से 2,600 असामयिक मौतें हुईं. इसके अलावा हवा में बढ़ते प्रदूषण की वजह से दो लाख अस्थमा और 1,100 हृदय संबंधित बीमारियों के मामले आये.