पराजितों और अभिशापितों की कथा

साहित्य सोपान के आज के अंक में हम आपके लिए लेकर आये हैं विविध विषयों को समेटती कुछ किताबें. महाभारत को हम सब पांडवों के नजरिये से देखते-पढ़ते आये हैं. इस अंक में हम दो ऐसी पुस्तकों का जिक्र कर रहे हैं, जो कौरवों के नजरिये से लिखी गयी है. वैदिक काल से तीसरी सदी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 20, 2017 6:16 AM
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साहित्य सोपान के आज के अंक में हम आपके लिए लेकर आये हैं विविध विषयों को समेटती कुछ किताबें. महाभारत को हम सब पांडवों के नजरिये से देखते-पढ़ते आये हैं. इस अंक में हम दो ऐसी पुस्तकों का जिक्र कर रहे हैं, जो कौरवों के नजरिये से लिखी गयी है. वैदिक काल से तीसरी सदी ईसा पूर्व तक की शिक्षा व्यवस्था, जीवन के अनुभव संसार की कहानियां और कविताएं आज के संकलन का सार हैं.
अजेय : दुर्योधन की महाभारत
अजेय एक ऐसा प्रयास है, जिसमें युद्ध में परास्त होनेवाले पक्ष के दृष्टिकोण को सामने रखने का प्रयत्न किया गया है. दुर्योधन के नाम का एक अर्थ यह भी निकलता है कि ‘ऐसा ‌व्यक्ति जिसपर विजय प्राप्त करना कठिन हो,’ दूसरे शब्दों में ऐसा व्यक्ति अजेय(जिसे जीता न जा सके) कहलाता है. यद्यपि उसका नाम सुयोधन था, परंतु पांडवों ने उसे नीचा दिखाने के लिए उसके नाम के आगे ‘सु’ के स्थान पर ‘दु’ शब्द का प्रयोग करना आरंभ कर दिया अर्थात ऐसा व्यक्ति जिसे अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करना नहीं आता. दुर्योधन की इस कथा में कर्ण, अश्वत्थामा, एकलव्य, भीष्म, द्रोण, शकुनि तथा और भी अनेक पात्र सम्मिलित हैं.
यह उन सबकी भी कथा है- जो पराजित, अपमानित व कुचले हुए थे- जो किसी भी दैवीय मध्यस्थता की अपेक्षा के बिना लड़े, सदा अपने काज एवं उद्देश्य के न्याय पर ही विश्वास किया. यह जानना रोचक होगा कि केरल के कोल्लम जिले के कुन्नातूर तालुका के पोरूवज्जी ग्राम के मालंद मंदिर के इष्ट देव और कोई नहीं अपितु भारतीय पौराणिक गाथाओं का सर्वाधिक धिक्कारा जानेवाला खलनायक दुर्योधन है. इस मंदिर में दुर्योधन के अतिरिक्त उसकी पत्नी भानुमती, माता गांधारी व मित्र कर्ण को भी उपदेवों के रूप में पूजा जाता है. साधारण रूप से मान्यता यही है कि वहां दुर्योधन की आत्मा का वास है जो दरिद्रों और निर्बलों की रक्षा करती है. वह निराश्रितों की प्रार्थनाओं का उत्तर देता है. रोगी, निर्धन या अपने से किसी बलशाली द्वारा सताये गये व्यक्ति भी अपनी प्रार्थनाओं का फल पाते हैं. यह मूल अंगरेजी से अनुवादित है. इसका अनुवाद रचना भोला ‘यामिनी’ ने किया है.
यह पुस्तक कौरव वंश की महागाथा का पहला भाग है. पुस्तक रचना की प्रेरणा के बारे में लेखक आनंद लिखते हैं- “ मुझे अनुभव हुआ कि मैं पराजित और अभिशापितों की कथाएं सनाने के लिए प्रेरित हो रहा था, मुझे ऐसा लगा मानो मुझे उन सभी मूक नायकों को अपना स्वर देना था, जो हमारे महाकाव्यों के पारंपरिक लेखन की अविवेकपूर्ण स्वीकृति के कारण उपेक्षित रहे हैं.” यह पुस्तक इस मामले में विशिष्ट है कि किसी भी अन्य लेखक ने हस्तिनापुर के राजकुमार दुर्योधन के प्रति सहानुभूतिपूर्वक दृष्टिकोण नहींं अपनाया है. महाभारत को एक महान महाकाव्य के रूप में चित्रित किया जाता रहा है. सभी रचनाएं पांडवों के प्रति सहानुभूति रखते हुए लिखी गयी हैं, मगर प्रस्तुत पुस्तक इस बनी-बनायी लीक से अलग हट कर लिखी गयी है.
कलि का उदय : दुर्योधन की महाभारत
जीवन, परिवार और समाज से जुड़ी कहानियों का संकलन है – चेहरे जाने पहचाने. यह चौबीस कहानियों का संकलन है. कहानीकार उषा शर्मा अपनी कहानियों के बारे में लिखती हैं-“ जीवन के पन्नों को पलटें तो अनेक स्मृतियां, अनेक अनुभव और न जाने कितने पात्र जीवंत हो उठते हैं. लमहों का चलचित्र-सा चल पड़ता है. कुछ लमहे मन को गुदगुदाते हैं तो कुछ मन को झकझोर देते हैं. इन सबके बीच कुछ चेहरे उभरते हैं. कुछ बिल्कुल जाने-पहचाने, तो कुछ थोड़े अनजाने-से.
स्मृतियों के इन झरोखों से कल्पना के सफर में बनती जाती हैं अनेक कथएं. इन्हीं जाने-पहचाने अनुभवों को शब्दों में पिरोने का प्रयास है मेरी पुस्तक. ” कहानियों के नाम हैं- एक छोटी-सी चाहत, जड़ें कितनी गंभीर, इस रिश्ते को क्या नाम दूं, घोंसला, वर दे वीणावादिनी, पत्थर की मेज, मंगलसूत्र, खुशबू गांव की मिट्टी की, किसको बताती, कइला, मेरा अपना परिवार-माई ओन फैमिली, नन्हें रखवाले मेरी बगिया के, शीलो, आपने मेरी गोदरेज क्यों देे दी, विद्रोहिणी, धोबन, सिनडी, सुरसती, माधोपुर, कोयले वाला, बैनर्जी आंटी, एक शिक्षक, नेम प्लेट और अजब तैयारी गजब सफर. वरिष्ठ साहित्यकार डॉ पूर्णिमा केडिया ‘अन्नपूर्णा’ पुस्तक के बारे में लिखती हैं- “ कहानियों के चरित्र बहुत सजीव हैं. हर पात्र के अपने गुण-दोष हैं. जैसे ‘मेरा अपना परिवार- माइ ओन फैमिली’ में मां और बेटी का चरित्र. “एक पंडितजी को भी तो ढूंढ़ना होगा. ” मां के इस कथन पर बेटी कहती है, “ठहरो, मैं अपने पंडितजी का पता करती हूं. वैसे वे अपने गांव जानेवाले थे, यदि नहीं गये होंगे तो मैं उन्हीं को बुलवा लूंगी, उनका फोन नंबर तो मेरे पास है. ” इन वाक्यों से चरित्रों की मानसिकता, उत्सुकता और जानकारी का पूरा विवरण मिल जाता है. साथ ही वे कथन संवादों की संक्षिप्तता और जानकारी पर बहुलता से प्रकाश डालते हैं. इन्हीं वाक्यों से भाषा शैल की सम्यकता और सजीवता भी मुखरित हो जाती है. हर कहानी में सदाशयता भरा कोई न कोई उद्देश्य भी छिपा है, जो कथा को प्राणवान बना देता है.”
यह पुस्तक कौरव वंश की महागाथा का दूसरा भाग है. लेखक कोचीन, केरल के रहनेवाले हैं. पेशे से इंजीनियर हैं, मगर उनकी प्रसिद्धि उनके द्वारा रचित उपन्यासों की वजह से है. वे अपने बारे में बताते हैं कि उन्हें पौराणिक गाथाओं ने हमेशा आकर्षित किया है. कौरवों के दृष्टिकोण से लिखे गये इस पुस्तक में पराजितों की दास्तान है. कौरवों के लिए कृष्ण शत्रु भले ही न रहे हों, किंतु एक प्रतिद्वंद्वी जरूर थे. पुस्तक के लेखकीय के अनुसार यदि कौरव कृष्ण की दिव्यता को स्वीकार कर लेते और उनके कहे अनुसार चलते, तो महाभारत का युद्ध ही न हुआ होता. यह जानना भी दिलचस्प होगा कि महर्षि वेदव्यास ने अपने मूल संस्करण ‘जय’ में कृष्ण को कभी देव या अवतार के रूप में चित्रित नहीं किया है.
बहुत बाद में उन्हें ‘महाभागवतम्’ में विष्णु के अवतार के रूप में दिखाया गया है. महाभारत में कृष्ण के प्रति निंदा के बहुत-से स्वर उठे है. शिशुपाल, सुयोधन, गांधारी और यहां तक कि कृष्ण के भाई बलराम ने भी कृष्ण पर कई व्यंग्यात्मक मौखिक प्रहार किये हैं. लेखक बताते हैं कि आलोचनात्मक चिंतन ही भारतीय दर्शन का आधार रहा है. हमारे यहां ईशनिंदा की कोई अवधारणा नहीं है. आलोचना के प्रति यह खुलापन ही हिंदू धर्म व इसकी परंपराओं को अनूठा बनाता है. व्यास कृष्ण की भूलों को नहीं छिपाते और न ही वाल्मीकि राम के दोषों के प्रति मौन रहे हैं. लेखक खुद स्वीकार करते हैं कि यह श्रेष्ठ भारतीय परंपरा वाद-विवाद को आधार बनाकर प्रस्तुत किया गया उपन्यास है.
महाभारत एक ऐसा उदाहरण है, जिसमें दोनों ही पक्ष यह मान रहे थे कि वे धर्म की ओर से युद्ध कर रहे हैं और धर्म उनके साथ था. कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र माना जाता है, यह एक ऐसा स्थान है, जहां धर्म की दो परिभाषाएं आमने-सामने हैं. लेखक का कहना है कि- “ मेरा प्रयास यही रहा है कि आपको हमारी कहानियों का वह दूसरा पक्ष भी दिखा सकूं, जो कि हमारी पारंपरिक कहानियों जितना ही प्रासंगिक और पारंपरिक है. मेरा मानना है कि ये कथाएं केवल प्रश्नों से जुड़ी होनी चाहिए, उत्तरों से नहीं. प्रत्येक उत्तर से सैकड़ों प्रश्न सामने आने चाहिए. ” पुस्तक के आखिर में उपसंहारस्वरूप धर्म की एक अतिसूक्ष्म अवधारणा पर विचार किया गया है. दुर्योधन के उस प्रश्न की चर्चा की गयी है, जिसमें उसने कृष्ण से प्रश्न किया था कि यदि अपने हृदय से परिभाषित स्वधर्म को अपनाना सबसे बड़ा धर्म है, तो क्या वह अपने उत्तराधिकार को बचाने की चेष्टा करते हुए अपना क्षत्रिय धर्म नहीं निभा रहा था?
सामान्य ज्ञान मंजूषा
प्रकाशक : मैकग्रॉ हिल एजूकेशन (इंडिया)
प्रा लि, नयी दिल्ली
सामान्य ज्ञान मंजूषा का यह संशोधित और परिवर्द्धित संस्करण है. नये कलेवर में है. पुस्तक के इस संस्करण को अद्यतन बनाने की कोशिश की गयी है. सामान्य विज्ञान और अद्यतन घटनाक्रम को और अधिक परीक्षापयोगी बनाने का प्रयास किया गया है. अद्यतन घटनाक्रम में सामान्य बजट और रेल बजट के साथ-साथ पूर्व वर्ष की आर्थिक समीक्षा भी दी गयी है. भारतीय राजव्यवस्था एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में एनडीए सरकार की नवीनतम नीतियों एवं योजनाओं को उचित स्थान दिया गया है. इस पुस्तक को कुल 11 भागों में बांटा गया है-
1. इतिहास(विश्व इतिहास एवं भारतीय इतिहास),
2. भूगोल (विश्व भूगोल एवं भारतीय भूगोल),
3. सामान्य विज्ञान(भौतिकी, रसायन शास्त्र , जीव विज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान),
4. भारतीय राजव्यवस्था, 5. भारतीय अर्थव्यवस्था, 6. सामान्य ज्ञान(विश्व का सामान्य ज्ञान एवं भारत का सामान्य ज्ञान), 7. खेल परिदृश्य, 8. बिजनेस जीके, 9. दुर्लभ तथ्य, 10. भारत के हिंदीभाषी राज्य और 11. अद्यतन घटनाक्रम.
भीतर का गूंजता आकाश
प्रस्तुत पुस्तक 69 कविताओंं का संकलन है. कवयित्री जीवन में परस्पर सक्रिय समझ की हिमायती हैं. उन्होंने जीवन को गहराई से समझा है, भोगा है, इसीलिए कम शब्दों में उस अनुभव को शब्दांकित करती गयी हैं. इन कविताओं की अनन्यता व्यक्ति-जीवन की अनभूतियों में है. अपने आत्मकथ्य में लिखती हैं-“ एक संघातक घटना जिसने विकृत शोर के साथ जीवन को बेधती हुई उच्छिन्नता का दर्दनाक शिलालेख लिख दिया उसी को सहेजने का प्रयास है यह कविता संग्रह. ये कविताएं मेरी अंतर्तड़प का प्रसार हैं और मेरी चेतना के प्रवाह का भिन्न-भिन्न अंग हैं जो उद्दाम रूपाकार ग्रहण कर कविता-धारा के रूप में प्रवाहित हैं.” कवयित्री मानती हैं कि जब साफगोई की सारी दिशाएं अवरुद्ध हो जाती हैं तब कविता का मार्ग खुलता है.
उत्कृष्ट शिक्षा व्यवस्था
प्राचीन काल में भी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना अनिवार्य था. अपने घर में ही अध्यापक विद्यार्थियों को शिक्षा देते थे. उत्तरवैदिक काल में पाठशालाओं के प्रमाण मिलते हैं. अथर्ववेद से हमें तत्कालीन शिक्षा पद्धति का कुछ आभास मिलता है. सर्वप्रथम उपनयन संस्कार होता था और तभी आचार्य विद्यार्थी को एक दूसरे जीवन मेें प्रविष्ट करवाता था. यह विद्यार्थी का दूसरा जन्म होता था. गुरु का आश्रम आबादी से दूर होता था. यह एक आवासीय विद्यालय की तरह होता था. विद्यार्थी को नि:शुल्क भोजन तथा ठहरने की व्यवस्था होती थी. यहां वेद, पुराण, इतिहास, दर्शनशास्त्र, वेदांग, तर्कशास्त्र, गणित, कालक्रमगणना, सैन्यविज्ञान और नैतिकशास्त्र की पढ़ाई होती थी. विद्यार्थी अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी हो जानेे पर गुरु को दक्षिणा देते थे. प्रस्तुत पुस्तक में वैदिक काल से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक की शिक्षा व्यवस्था का वर्णन किया गया है. इसे तैयार करने में वेद, उपनिषद, धर्मशास्त्र, धर्मसूत्र, आरण्यक, ब्राह्मणग्रंथ, महाकाव्य, बौद्धग्रंथ, जैनग्रंथ और आधुनिक इतिहासकारों के ग्रंंथों का सहयोग लिया गया है.
विश्व का इतिहास
इस पुस्तक के अध्ययन से न केवल एक नवीन दृष्टि का विकास होगा, बल्कि विश्व इतिहास की समझ भी पैदा होगी. सिविल सेवा परीक्षा के पाठ्यक्रम में इस विषय का उल्लेख यद्यपि पृष्ठभूमि के तौर पर किया गया है तथापि संघ और राज्य लोक सेवाओं की परीक्षा के दृष्टिकोण से वह काफी महत्वपूर्ण है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इससे नियमित तौर पर प्रश्न पूछे जाते रहे हैं. इस नजरिये से भी यह पुस्तक महत्वपूर्ण है. इस पुस्तक के प्रत्येक अध्याय में विगत वर्षों में पूछे गये प्रश्नों को शामिल किया गया है, जिसके विश्लेषणात्मक विवेचन को संबधित अध्याय में दिया गया है. पुस्तक के प्रत्येक अध्याय में मॉडल प्रश्नोत्तर को समाहित किया गया है. तथ्यों की प्रामाणिकता पर खास ध्यान दिया गया है. मानचित्र को आधार बनाकर संबंधित अध्याय को समझाने का प्रयास किया गया है. इस पुस्तक में िवभिन्न भारतीय िवश्वविद्यालयों से संबंधित पाठ्यक्रमों का भी ध्यान रखा गया है. पुस्तक की भाषा सरल और सहज रखने की कोशिश की गयी है.
बेेटी मैं अपराधी हूं
इस पुस्तक के माध्यम से शासनतंत्र की विसंगतियों को चिह्नित किया गया है. यह पुस्तक अपने नाम के अनुरूप मलाला युसूफजई के साथ-साथ भारत की उन लाचार बेटियों को समर्पित किया गया है, जो मनुष्य के कुकर्मों का शिकार हुई हैं या समाज के हाथों प्रताड़ित हुई हैं. बेटियों की दुर्दशा को केंद्र में रख कर शिक्षा, संस्कार, न्याय-व्यवस्था, जीवनशैैली, राजनीति, विरासत, गांव, विकास और जवाबदेही पर चर्चा की गयी है. लेखक चाहते हैं कि देश के लोग कागजों से इतर ऐसी ‍ व्यवस्था खड़ी करना चाहते हैं कि हमारी विधि व्यवस्था सुचारू रूप से काम करे. हमारी बेटियों के लिए समाज में अच्छी जगह बने.
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