जयंती पर विशेष : औरतों को सैन्य नेतृत्व व सेक्यूलर सरकार का गठन

सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण आयाम क्रांतिकारी, नेतृत्वकर्ता, राष्ट्रप्रेमी और दूरदर्शी सुभाषचंद्र बोस की आज जयंती है. देश को आजादी दिलाने के लिए बोस ने जो राह चुनी, वह उनके सफल नेतृत्व को दरशाता है. आइए जानते हैं, उनके व्यक्तित्व के कई अनछुए पहलू को. प्रो. रिजवान कैसर इतिहास विभाग, जामिया मिलिया इस्लामिया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2017 6:03 AM
सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण आयाम
क्रांतिकारी, नेतृत्वकर्ता, राष्ट्रप्रेमी और दूरदर्शी सुभाषचंद्र बोस की आज जयंती है. देश को आजादी दिलाने के लिए बोस ने जो राह चुनी, वह उनके सफल नेतृत्व को दरशाता है. आइए जानते हैं, उनके व्यक्तित्व के कई अनछुए पहलू को.
प्रो. रिजवान कैसर
इतिहास विभाग, जामिया मिलिया इस्लामिया
सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व के कुछ ऐसे महत्वपूर्ण आयाम हैं, जिन्हें पूरे हिंदुस्तान को हमेशा याद रखना चाहिए. पहला आयाम उनकी विचारधारा का आयाम है, जिसे आगे बढ़ाते हुए उन्होंने वे चाहते थे कि समाज के ढांचे में, खासतौर से आर्थिक व्यवस्था के ढांचे में और उस वक्त के जमींदाराना माहौल में परिवर्तन आने चाहिए. 1938-39 की उनकी प्रेसिडेंसी में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को आगे ले जाने की उन्होंने पूरी कोशिश की थी और तब के वर्गात्मक मुद्दों के आधार पर भी उन्होंने यह देखना चाहा था कि देश-समाज में क्या-क्या परिवर्तन लाये जा सकते थे. दूसरा आयाम उनके नेतृत्व का है और वह यह है कि जब बोस को लगा कि उनकी वैचारिकता के आधार पर भारतीय कांग्रेस के अंदर उनके लिए उतनी जमीन नहीं बची रही, तब उन्होंने एक नये सफर की राह पकड़ी और दक्षिण-पूर्व एशिया चले गये.
जिस तरह से आजाद हिंद फौज (आइएनए) का गठन किया गया और आगे चल कर जिसका सुभाष बोस ने नेतृत्व किया, उसके मद्देनजर यह देखा जा सकता है कि कांग्रेस की नीतियों से बाहर आकर के, अंगरेजों को देश से बाहर निकालने के लिए जहां अस्त्र-शस्त्र का भी इस्तेमाल किया जा सके, उन्होंने यह राह भी निकाली की जरूरत पड़ने पर हम यह भी कर सकते हैं. मेरे ख्याल में उनके इस नेतृत्व को यह कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता संग्राम में सैन्य पैमाने पर अस्त्र-शस्त्र की मदद से आजादी हासिल करने को लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने देश को एक नया आयाम दिया.
तीसरा आयाम है सुभाष चंद्र बोस द्वारा ‘ए गवर्नमेंट इन एग्जाइल’ (आजाद हिंद सरकार) बनाया जाना, जिसका अर्थ है कि एक बड़ी सैन्य ताकत के दम पर भारत को अंगरेजों से आजाद कराना था. मुझे ऐसा लगता है कि स्वतंत्रता संग्राम में धर्मनिरपेक्षता के आधार पर यह एक चमकता हुआ नमूना है, जहां उनकी सरकार में हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई और पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण से हर वर्ग-समुदाय के लोग शामिल थे. एक तरह से यह एक ‘मिनी भारत’ था, जो देश से बाहर रह कर देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष कर रहा था. यह आजादी की चाह रखनेवाले हमारे देश के लिए एक बेहतरीन आयाम है.
चौथा आयाम सांस्कृति आधार वाला है. इस आधार पर मुझे लगता है कि इससे बड़ी सेक्यूलर सरकार (आजाद हिंद सरकार) आजादी से पहले कहीं भी देखने को नहीं मिली, जहां उन्होंने धर्म के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं रखा. यहां तक कि उन्होंने उस वक्त सरकार की भाषा के बारे में यह कहा कि वह हिंदुस्तानी भाषा होगी, जिसमें हिंदी और उर्दू का पुट होगा और उसकी लिपि रोमन होगी. किसी भी लड़ाई को लड़ने के लिए भाषा का जो योगदान होता है, उस स्तर पर नेताजी की सोच बहुत ही प्रभावित करनेवाली थी.
पांचवां आयाम है औरतों के हक का है. नेताजी की सेना में औरतें भी थीं. यह विडंबना है कि आजादी के इतने साल बाद भी आज तक हम इस बात के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि औरतों को सेना में जगह दे पायेंगे कि नहीं दे पायेंगे. लेकिन, यह सुभाष चंद्र बोस की शख्सीयत ही थी कि उन्होंने 1942, 1943 व 1944 के समय में औरतों को सैन्य नेतृत्व देकर एक अलहदा आयाम स्थापित किया. कैप्टन सहगल हमारे सामने एक मिसाल हैं, लेकिन अनेकों ऐसी मिसालें हैं, जिनके बारे में हमें जानना चाहिए, ताकि नेताजी की शख्सीयत को और भी अच्छी तरह से समझा जा सके.
कुल मिला कर देखें, तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अपने देश के लिए बहुत बड़ा योगदान है और इस एतबार से उनका गहरी श्रद्धा से नमन करना चाहिए. उन्हें इस रूप में हमेशा याद रखा जाना चाहिए कि भारत की एकता और अखंडता में गहराई से यकीन रखते हुए हिंदुस्तान को आजाद कराने में उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. लेकिन, आज विडंबना यह है कि जो लोग यह चाहते हैं कि नेताजी की विरासत को साथ लेकर चलें, वे लोग ही नेताजी के रास्ते पर नहीं हैं. नेताजी में किसी तरह का कोई राजनीतिक अंतर्विरोध नहीं था, जबकि आज के नेताओं में काफी अंतर्विरोध देखने को मिलता है. पूरा हिंदुस्तान एक है, इसके लिए नेताजी ने एक वैचारिक माहौल तैयार कर रखा था, इसी को आधार बना कर वे आगे बढ़ते गये थे. उन्हें दिल की गहराई से नमन!

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