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स्कूली शिक्षा में मामूली सुधार के संकेत पर स्थिति चिंताजनक

विद्यालयों की दशा देशव्यापी स्तर पर स्कूलों में सभी आयु वर्ग के नामांकन में बीते दो सालों में बढ़ोतरी हुई है, पर शैक्षणिक स्तर पर प्रगति असंतोषजनक है. बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में छह से 15 साल के 11.1 करोड़ बच्चों के पढ़ने की क्षमता खराब बनी हुई है. पूरे देश में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 25, 2017 5:52 AM
विद्यालयों की दशा
देशव्यापी स्तर पर स्कूलों में सभी आयु वर्ग के नामांकन में बीते दो सालों में बढ़ोतरी हुई है, पर शैक्षणिक स्तर पर प्रगति असंतोषजनक है. बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में छह से 15 साल के 11.1 करोड़ बच्चों के पढ़ने की क्षमता खराब बनी हुई है. पूरे देश में स्कूली बच्चों की संख्या 25.2 करोड़ है. अगर इन चार राज्यों में शिक्षा में बेहतरी नहीं होगी, तो देश 2020 में 86.9 करोड़ की संभावित कामकाजी आबादी होने के लाभ से वंचित रह जायेगा. असर रिपोर्ट, 2016 के अध्ययन और सूचनाओं के आलोक में देश में स्कूली शिक्षा की हालत पर एक नजर…
असर, 2016 की रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
नामांकन में बढ़ोतरी
– वर्ष 2009 से लेकर अभी तक 6-14 आयु वर्ग के बच्चों के नामांकन का आंकड़ा 96 फीसदी या अधिक रहा है. यह अनुपात 2014 के 96.7 फीसदी से बढ़ कर 2016 में 96.9 फीसदीहो गया है.
– आयु वर्ग 15-16 वर्ष के लड़के और लड़कियों के नामांकन में भी सुधार हुआ है. यह अनुपात 2014 में 83.4 फीसदी था, जो 2016 में 84.7 फीसदी हो गया है.
– लेकिन कुछ राज्यों में 2014 से 2016 के बीच विद्यालय न जानेवाले बच्चों (आयु वर्ग 6-14 वर्ष) की संख्या में वृद्धि हुई है. मध्य प्रदेश में 3.4 से 4.4 फीसदी, छत्तीसगढ़ में दो से 2.8 फीसदी तथा उत्तर प्रदेश में 4.9 से 5.3 फीसदी का इजाफा हुआ है.
– कुछ राज्यों में विद्यालय से बाहर लड़कियों (आयु वर्ग 11-14 वर्ष) का अनुपात 2016 में भी आठ फीसदी से अधिक है. ये राज्य राजस्थान (9.7 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (9.9 फीसदी) हैं. वर्ष 2016 में मध्य प्रदेश भी 8.5 फीसदी के साथ इन राज्यों की सूची में शामिल हो गया है.
– बीते दो सालों में निजी विद्यालयों में नामांकन में वृद्धि नहीं.
– राष्ट्रीय स्तर निजी स्कूलों में छह से 14 वर्ष के बच्चों के नामांकन का प्रतिशत 2014 में 30.8 फीसदी था, जो 2016 में 30.5 फीसदी
हो गया है.
– आयु वर्ग 7-10 वर्ष और 11-14 वर्ष के बच्चों के नामांकन में लिंग-भेद में कुछ कमी आयी है. वर्ष 2014 में इस आयु वर्ग में निजी स्कूलों में नामांकित लड़कों और लड़कियों की संख्या में 7.6 फीसदी का अंतर था, जो कि 2016 में घट कर 6.9 फीसदी हो गया.
– वर्ष 2014 के आंकड़ों की तुलना में 2016 में दो राज्यों में सरकारी विद्यालयों में नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. केरल में 11-14 वर्ष के बच्चों के सरकारी स्कूलों में नामांकन का अनुपात 2014 में 40.6 फीसदी था, जो 2016 में 49.9 फीसदी हो गया. गुजरात में यह अनुपात 79.2 फीसदी से बढ़ कर 86 फीसदी हो गया है.
– तीन राज्यों में बीते दो सालों में प्राथमिक विद्यालय जानेवाले बच्चों के निजी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है. यह बढ़ोतरी उत्तराखंड में 37.5 फीसदी से 41.6 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 24.4 फीसदी से बढ़ कर 29.5 फीसदी और असम में 17.3 फीसदी से बढ़ कर 22 फीसदी हो गयी है.
विद्यालय की सुविधाओं में निरंतर सुधार
– वर्ष 2010 से लेकर में वर्तमान में उपलब्ध और प्रयोग योग्य शौचालयों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है. राष्ट्रीय स्तर पर 68.7 प्रतिशत विद्यालयों में प्रयोग योग्य शौचालय उपलब्ध था. वर्ष 2010 में यह संख्या 47.2 प्रतिशत थी. वर्ष 2016 में 3.5 प्रतिशत विद्यालयों में शौचालय की सुविधा नहीं पायी गयी.
– वर्ष 2010 में केवल 32.9 प्रतिशत विद्यालयों में लड़कियों के प्रयोग योग्य शौचालय उपलब्ध थे, 2014 में यह संख्या 55.7 प्रतिशत और 2016 में 61.9 प्रतिशत हो गयी. चार राज्यों गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के 80 प्रतिशत विद्यालयों में लड़कियों के प्रयोग लायक शौचालय उपलब्ध थे.
– वर्ष 2014 में अवलोकन के दिन 75.6 प्रतिशत विद्यालयों में पीने का पानी उपलब्ध था. यह संख्या 2016 में कम होकर 74.1 प्रतिशत रह गयी. चार राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में 85 प्रतिशत से ज्यादा विद्यालयों में पीने का पानी उपलब्ध था.
– वर्ष 2014 में विद्यालयों में उपलब्ध कंप्यूटर की संख्या 19.6 प्रतिशत थी, जो कि 2016 में 20 प्रतिशत हो गयी. केरल में अवलोकन किये गये विद्यालयों में 89 प्रतिशत विद्यालयों में कंप्यूटर उपलब्ध था. यह संख्या गुजरात में 75.2 प्रतिशत महाराष्ट्र में 55.1 प्रतिशत और तमिलनाडु में 57.3 प्रतिशत थी.
– वर्ष 2014 में 78.1 प्रतिशत ऐसे विद्यालय थे, जहां पुस्तकालय उपलब्ध था. वर्ष 2016 में यह संख्या गिर कर 75.5 प्रतिशत हो गयी है, लेकिन 2016 में अधिक विद्यालयों में बच्चे पुस्तकालय की किताबों का प्रयोग करते हुए मिले. अवलोकन किये गये विद्यालयों में से 42.6 प्रतिशत विद्यालयों के बच्चे पुस्तकालय की किताब का प्रयोग करते दिखे, यह संख्या 2014 में 40.7 प्रतिशत थी.
क्या है असर रिपोर्ट : ग्रामीण भारत में स्कूलों में बच्चों के नामांकन और उनकी शैक्षणिक प्रगति पर किया जानेवाला देश का सबसे बड़ा वार्षिक सर्वेक्षण है. स्वयंसेवी संस्था प्रथम के सहयोग से यह सर्वेक्षण जिला स्तर पर स्थानीय संस्थाओं से जुड़े कार्यकर्ताओं के जरिये भारत के तकरीबन सभी जिलों में होता है. वर्ष 2016 की जनवरी में जारी ताजा रिपोर्ट 589 ग्रामीण जिलों में हुए सर्वेक्षणों पर आधारित है. इस सर्वेक्षण में 17,473 गांवों के 3,50,232 घरों में तीन साल से 16 वर्ष आयु के 5,62,305 बच्चों की सूचनाएं जुटायी गयी हैं. सर्वेक्षण करनेवाले कार्यकर्ता ग्रामीण इलाकों में स्थित 15,630 सरकारी विद्यालयों में गये तथा शिक्षा के स्तर और संसाधनों की उपलब्धता का जायजा लिया.
सरकारी विद्यालयों की प्रारंभिक कक्षाओं में पढ़ने की योग्यता में सुधार
– तीसरी कक्षा के ऐसे बच्चों के अनुपात में वृद्धि हुई है, जो पहली कक्षा के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं. वर्ष 2014 में यह अनुपात 40.2 फीसदी था, जो 2016 में 42.5 फीसदी हो गया है. यह वृद्धि पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना में दर्ज की गयी. इन सभी राज्यों में पिछले दो सालों में सात प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है.
– वर्ष 2011 से 2016 तक पांचवीं कक्षा के बच्चों की पढ़ने की क्षमता लगभग समान रही है. लेकिन बीते दो वर्षों में गुजरात, महाराष्ट्र, नागालैंड, त्रिपुरा और राजस्थान में पांचवीं कक्षा के ऐसे विद्यार्थियों की संख्या पांच फीसदी से अधिक बढ़ी है, जो दूसरी कक्षा के पाठ पढ़ पाने में सक्षम हैं. इसका मतलब यह है कि इन राज्यों में शैक्षणिक स्तर पर सुधार हुआ है.
– वर्ष 2014 से 2016 तक आठवीं कक्षा के बच्चों की पढ़ने की योग्यता में 74.7 फीसदी के मुकाबले 73.1 फीसदी की मामूली गिरावट आयी है. दोनों वर्षों में आठवीं कक्षा में नामांकित हर चार में से तीन बच्चे दूसरी कक्षा के पाठ पढ़ने में सफल रहे. मणिपुर, राजस्थान, महाराष्ट्र और तमिलनाडु को छोड़ दें, तो अन्य राज्यों में इस संदर्भ में कोई खास सुधार नहीं हुआ है.
– देशभर में गणित के क्षेत्र में रुझान बढ़ा है और क्षमता भी कुछ बेहतर हुई है. वर्ष 2016 में तीसरी कक्षा के 27.7 फीसदी बच्चे दो अंकों के घटाव के सवाल करने में सफल रहे, जबकि दो साल पहले यह आंकड़ा 25.4 फीसदी था.
– जिन राज्यों में पांच या उससे अधिक की वृद्धि हुई है, वे हैं- हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड.
– आठवीं कक्षा के छात्रों में गणित में दक्षता का आंकड़ा नीचे आया है. यह गिरावट वर्ष 2010 से ही देखी जा रही है. वर्ष 2010 में आठवीं कक्षा के 68.4 फीसदी विद्यार्थी तीन अंक का एक अंक से भाग के सवाल को हल करने में समर्थ थे. वर्ष 2014 में यह संख्या घटकर 44.2 फीसदी और 2016 में 43.3 फीसदी हो गयी. सिर्फ मणिपुर, कर्नाटक और तेलंगाना के बच्चों में इस मामले में बढ़ोतरी पांच फीसदी या उससे अधिक रही है.
प्राथमिक विद्यालय क्षेत्र में ‘छोटे विद्यालयों’ के अनुपात में हो रही बढ़ोतरी
– वर्ष 2016 में सरकारी विद्यालयों में लगभग 40 प्रतिशत ‘छोटे विद्यालय’ थे, जहां 60 या कम बच्चे नामांकित थे. उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 8.9 प्रतिशत विद्यालयों में 60 या कम बच्चे थे.
– वर्ष 2009 में अवलोकित सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में 26.1 प्रतिशत ‘छोटे विद्यालय’ थे, उच्च प्राथमिक विद्यालयों में यह संख्या 4.5 प्रतिशत थी.
– वर्ष 2010 में प्राथमिक विद्यालय के कक्षा-2 के 55.2 प्रतिशत बच्चे अन्य कक्षा के बच्चों के साथ बैठते थे. वर्ष 2016 में यह संख्या बढ़ कर 63.7 प्रतिशत हो गयी. कक्षा-4 के बच्चों का अनुपात 2010 की तुलना में 2016 में 49 प्रतिशत से बढ़ कर 58 प्रतिशत हो गया.
विद्यालय अवलोकन
– असर-2016 में कुल 15,630 सरकारी विद्यालयों का अवलोकन किया गया, जिसमें प्राथमिक कक्षाएं भी संचालित हो रही थीं. इन विद्यालयों में 9,644 प्राथमिक विद्यालय तथा 5,986 उच्च प्राथमिक विद्यालय थे. वर्ष 2014 में उपस्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है.
– असर-2016 के सर्वेक्षण के दिन प्राथमिक विद्यालय में 71.4 प्रतिशत बच्चे और उच्च प्राथमिक विद्यालय में 73.3 प्रतिशत बच्चे विद्यालय में उपस्थित थे. वर्ष 2014 में यह संख्या क्रमश: 71.3 प्रतिशत और 71.1 प्रतिशत थी.
– विद्यालय में उपस्थिति के अांकड़ों में काफी अंतर देखने को मिला है. हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु में विद्यालयों में उपस्थिति के आंकड़े 80 प्रतिशत से ऊपर रहे, तो दूसरी ओर बिहार, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में बच्चों की उपस्थिति 50 से 60 प्रतिशत के बीच दर्ज की गयी.
– वर्ष 2009 में प्राथमिक विद्यालय के आंकड़े 74.3 प्रतिशत और 2016 में 71.4 प्रतिशत थे. उच्च प्राथमिक विद्यालय के यह आंकड़े 2009 में 77 प्रतिशत से 2016 में 73.2 प्रतिशत हो गये.
प्रारंभिक कक्षाओं में अंगरेजी पढ़ने की क्षमता में बदलाव नहीं
– तीसरी कक्षा के बच्चों में अंगरेजी पढ़ने की योग्यता में कुछ सुधार हुआ है, परंतु पांचवी कक्षा में स्थिति पहले जैसी ही है. वर्ष 2009 में तीसरी कक्षा के 28.5 फीसदी बच्चे अंगरेजी भाषा के सामान्य शब्द पढ़ सकते थे. वर्ष 2016 में यह संख्या 32 फीसदी पहुंच गयी है.
– पिछले साल पांचवीं कक्षा के 24.5 फीसदी बच्चे अंगरेजी के सामान्य वाक्य पढ़ सकते थे. वर्ष 2009 के बाद से इस आंकड़े में खास बदलाव नहीं हुआ है. हालांकि, 2014 में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र और केरल में सरकारी स्कूलों के पांचवीं कक्षा के बच्चों में बेहतरी दिखी थी. हिमाचल प्रदेश, पंजाब, असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के निजी विद्यालयों में भी सुधार परिलक्षित हुए हैं.
– आठवीं कक्षा के 60.2 फीसदी बच्चे 2009 में अंगरेजी के सामान्य वाक्य पढ़ सकते थे. वर्ष 2014 और 2016 के सर्वेक्षण में यह संख्या घट कर 46.7 और 45.2 फीसदी रह गयी.
– वर्ष 2016 में पढ़ने में समर्थ करीब 60 फीसदी बच्चे (किसी भी कक्षा के) शब्दों के अर्थ भी बता सकते थे. पांचवीं कक्षा के बच्चों में यह आंकड़ा 62.4 फीसदी रहा है. वर्ष 2014 की तुलना में इसमें अधिक बदलाव नहीं हुआ है.
शिक्षा लक्ष्यों को हासिल करने में 50 साल पीछे रह जायेगा भारत
– पिछले साल सितंबर में आयी यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर वर्तमान गति से चलते रहे, तो वैश्विक शिक्षा प्रतिबद्धता को हासिल करने में भारत आधी सदी पीछे रह जायेगा. भारत को 2030 के सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए देश की शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी बदलाव करने की जरूरत है.
– यूनेस्को की वैश्विक शिक्षा निगरानी (जीइएम) रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान चलन के आधार पर दक्षिण एशिया में सार्वभौम प्राथमिक शिक्षा लक्ष्यों को 2051 तक हासिल किया जा सकेगा, जबकि निम्न माध्यमिक स्तर पर लक्ष्यों को 2062 तक और उच्च माध्यमिक लक्ष्यों को 2087 तक हासिल किया जा सकेगा. भारत में सार्वभौम प्राथमिक शिक्षा लक्ष्यों को 2050 तक, सार्वभौम माध्यमिक शिक्षा लक्ष्यों को 2060 तक और सार्वभौम उच्च माध्यमिक शिक्षा लक्ष्यों को 2085 तक हासिल किया जा सकेगा. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका अर्थ हुआ कि यह इलाका साल 2030 के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में आधी सदी से अधिक पीछे रह जायेगा.
– रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षा क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ने की जरूरत है और इसमें मानवता एवं पृथ्वी के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों से निपटने और क्षमता हासिल करने के लिए समुचित परिवर्तन करने की बड़ीआवश्यकता है.

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