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आम बजट में बिहार को मिले खास तरजीह

एक फरवरी को केंद्र सरकार नये वित्तीय वर्ष 2017-18 का बजट प्रस्तुत करने जा रही है. बिहार जैसे पिछड़े राज्यों को इस बजट से काफी उम्मीदें हैं. सबसे बड़ी उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार को 1.25 लाख करोड़ रुपये की विशेष सहायता की घोषणा के पूरे होने की […]

एक फरवरी को केंद्र सरकार नये वित्तीय वर्ष 2017-18 का बजट प्रस्तुत करने जा रही है. बिहार जैसे पिछड़े राज्यों को इस बजट से काफी उम्मीदें हैं. सबसे बड़ी उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार को 1.25 लाख करोड़ रुपये की विशेष सहायता की घोषणा के पूरे होने की है. साथ ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा व बीआरजीएफ की राशि मिलने की भी उम्मीद है. बिहार की अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि व खाद्य प्रसंस्करण पर आधारित है. इस दिशा में विकास के लिए बड़ी योजनाओं व अधिक पूंजी की जरूरत है. बिहार की अपेक्षा है कि इस सेक्टर मेें आवंटन बढ़ाया जाये. इसके अलावा केंद्र प्रायोजित योजनाओं में आवंटन इस साल बढ़ाने की जरूरत है. इस बजट में ‘सबका साथ सबका विकास’ के घोषित सरकारी लक्ष्य को पाने के लिए समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सुविधाओं की पहुंच के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क व असंगठित क्षेत्र के लिए रोजगार के अवसर जुटाने की जरूरत है. बजट को लेकर बिहार की अपेक्षाओं व उम्मीदों पर पेश है यह विशेष प्रस्तुति.

डॉ शैबाल गुप्ता

सदस्य सचिव, एशियाई विकास अनुसंधान संस्थान (आद्री), पटना

पिछले वर्षों के विपरीत केंद्रीय बजट इस बार लगभग एक महीना पहले प्रस्तुत किया जाने वाला है. आनेवाले बजट से कुछ कम उम्मीदें इसलिए भी हैं कि प्रधानमंत्री ने इससे मिलने वाले कई फायदों की घोषणा नये वर्ष की पूर्व संध्या पर ही कर दी है. आमतौर पर इसकी अपेक्षा केंद्रीय वित्त मंत्री से होती है. बावजूद बिहार को इस बजट से कई बड़ी अपेक्षाएं हैं.

सुधार के नाम पर न हो कर संरचना में बदलाव

1 सुधार के नाम पर कर संरचना में बदलाव नहीं किया जाना चाहिये. हमारा कर/जीडीपी अनुपात पहले से ही बहुत कम है. कर दर को कम करने से यह और भी कम होगा. यदि केंद्र सरकार का कर संग्रहण कम होगा तो उसमें से राज्यों को होने वाला हस्तांतरण खासकर बिहार जैसे गरीब राज्यों को और भी कम होगा.

2 नोटबंदी के कारण विकास दर के घटने की आशंका है. आरबीआइ, आइएमएफ और बहुत सी रेटिंग एजेंसियों का अनुमान है कि भारत की विकास दर कम होगी. इसका कर संग्रहण पर सीधा प्रभाव पड़ेगा. इस प्रक्रिया में बिहार सीधे तौर पर प्रभावित होगा. नौवें, 10वें और 11वें वित्त आयोग से बिहार को उसकी मांग से 12000 करोड़ रुपये कम मिले. 2004 से कर/जीडीपी अनुपात में वृद्धि हुई. वह 12वें वित्त आयोग का समय था और उस समय यूपीए-1 सत्ता में थी. इसलिए बिहार जैसे पिछड़े राज्यों के हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय आर्थिक प्रबंधन चुनौतीपूर्ण है.

3 नोटबंदी के बाद से इलेक्ट्रॉनिक भुगतान और हस्तांतरण सर्व प्रचलित होता जा रहा है. दुर्भाग्य से बिहार में कई ऐसे प्रखंड हैं, जहां एक भी व्यावसायिक बैंक नहीं हैं. केंद्रीय बजट को सुनिश्चित करना चाहिए कि बिहार व्यावसायिक बैंकों से शत-प्रतिशत आच्छादित हो. बिहार में तेज आर्थिक विकास के बावजूद आर्थिक लेन-देन का एक बड़ा हिस्सा वस्तु विनिमय प्रणाली से संचालित हो रहा है. इस कमी को दूर करने के लिए बिहार को बड़ा इलेक्ट्राॅनिक आधारभूत संरचना प्रदान किया जाना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण से होने वाला लाभ वह भी ले सके.

4 आदरणीय प्रधानमंत्री ने विधानसभा चुनावों से पहले बिहार के लिए एक बड़े पैकेज की घोषणा की. लेकिन लगता है कि अब यह प्रधानमंत्री के एजेंडा से बाहर चला गया है. जब तक बिहार को यह विशेष दर्जा नहीं दिया जाता, इसके पिछड़ेपन को तेजी से और पूरी तरह से खत्म करना बहुत मुश्किल होगा.

5 भाड़ा समानीकरण के कारण बिहार को नुकसान हुआ. बिहार के इस ऐतिहासिक अन्याय को कुछ हद तक कम किया जा सकता है यदि राज्य को विशेष दर्जा दे दिया जाता है. राज्य के द्वारा लगाये जानेवाले करों को कम करने से बाहर से आनेवाले निवेश के प्रोत्साहित होने की संभावना बनती है. विशेष दर्जा देने से कुछ हद तक बिहार को होने वाले नुकसान की भरपाई हो सकेगी.

6 सामान्य सोच से अलग होकर देखें तो 14वें वित्त आयोग का आवंटन बिहार के लिए बहुत फायदेमंद नहीं है. सब मिला कर केंद्र सरकार के द्वारा दिया जानेवाला आवंटन भी घटा है. जब तक केंद्र सरकार का हिस्सा नहीं बढ़ता है, राज्य सरकार को नुकसान होता रहेगा.

7 आशंका है कि लंबे समय से स्थापित सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रम जैसे मनरेगा को केंद्रीय बजट में समाप्त कर दिया जायेगा. यदि ऐसा हुआ तो यह कदम आत्मघाती होगा. गरीबों को दिये जाने वाले अनुदान को कम करने का प्रयास किया जा रहा है. इसके विपरीत अमीरों को दी जाने वाली सब्सिडी से परहेज नहीं है. इस बात की आशंका है कि बजट में वैश्विक आधारभूत आय (यूनिवर्सल बेसिक इनकम)का किसी न किसी रूप में जिक्र होगा. यह एक स्वागतयोग्य कदम होगा लेकिन दूसरे सामाजिक कल्याण कार्यक्रम भी जारी रहने चाहिए.

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे केंद्र

अब्दुल बारी

िसद्दीकी

िवत्त मंत्री, िबहार सरकार

कें द्र के बजट से बिहारवासियों को बहुत उम्मीद है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना आवश्यक है. इसके अलावा बीआरजीएफ और प्रधानमंत्री की विभिन्न योजनाओं के लिए घोषित की गयी राशि मिलने की भी उम्मीद है. केंद्रीय वित्त मंत्री से ब्लैकमनी के फ्लो या भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ठोस कार्रवाई करने की भी मांग की गयी है. नोटबंदी के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की रेटिंग लगातार कम हो रही है. डॉलर की तुलना में रुपये में गिरावट आ रही है. इसकी वजह से आर्थिक मंदी आ गयी है, जिसका असर रोजगार, आमलोगों के रहन-सहन और राज्यों की टैक्स उगाही पर गंभीर रूप से पड़ा है. सातवें वेतन आयोग की अनुशंसा से केंद्र एवं राज्य सरकार के स्थापना व्यय में बढ़ोतरी हुई है. 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान बीआरजीएफ के तहत राज्य को पांच हजार 483 करोड़ रुपये मिलने थे, लेकिन इसमें महज 200 करोड़ ही मिले हैं. शेष राशि वित्तीय वर्ष 2017-18 के बजट में उपलब्ध कराने की मांग की गयी है.

प्रधानमंत्री ने बिहार के लिए जो एक लाख 25 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी, इस राशि का भी प्रबंधन आगामी बजट में करने की गुजारिश की गयी है. इसके अलावा ऋण अधिसीमा निर्धारित करने के लिए भी पहल की जाये. राज्य ने यह भी मांग की है कि केंद्रीय बजट में कितनी राशि केंद्रीय सहायता के तहत राज्य को मिलनी है, इसकी जानकारी पहले दे दी जाये. ताकि इससे आधार पर राज्य अपना बजट और खर्च निर्धारित कर सके. केंद्रीय योजनाओं में पूरी राशि केंद्र को देना चाहिए, लेकिन इसमें स्टेट के साथ शेयरिंग की व्यवस्था कर दी गयी है. इसे समाप्त करने की जरूरत है. नोटबंदी के बाद 50 दिनों में राज्य के पिछड़े जिले और ग्रामीण इलाकों में लोगों को पैसे के लिए काफी परेशानी हुई. इसका मुख्य कारण बैंक शाखाओं और एटीएम की संख्या कम होना.

रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों को वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान 1640 नयी शाखाएं खोलने का लक्ष्य दिया था, लेकिन महज 78 शाखाएं ही खुली हैं. बिहार का साख-जमा अनुपात राष्ट्रीय औसत से भी काफी कम 43.95 प्रतिशत है. नोटबंदी से ऑटोमोबाइल, पर्यटन, दुकानदार का करोबार, इस्पात उद्योग, गारमेंट्स, सीमेंट उद्योगों में गिरावट आयेगी.

बिहार के कृषि रोड मैप को मिले सही दिशा

प्रोफेसर डीएम दिवाकर

अर्थशास्त्री

बाढ़ और सुखाड़ की मार झेल रहे बिहार में सिंचाई एवं कुशल जल प्रबंधन तथा खेती का समुचित विकास अत्यंत जरूरी है. अत: खेती के लिए आवश्यक धनराशि का प्रावधान इस बजट में होना चाहिए.शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और बिजली जैसी आधारभूत संरचना के विकास के लिए बिहार को विशेष वित्तीय आवंटन की जरूरत है.

हिन्दुस्तान का संविधान, बिना किसी भेदभाव के सामाजिक न्याय के साथ विकास के लिए सबको समान अवसर की गारंटी देता है. देश की सरकार बजट में सालाना आमदनी और खर्च का लेखा-जोखा की स्वीकृति के लिए संसद में पेश करती है. इस प्रकार बजट से सामान्यत: देश के विकास की दिशा परिलक्षित होती है. यद्यपि पिछले कई वर्षों से अधिकतर आमद-खर्च का नीतिगत निर्णय बजट पूर्व ही हो जाता है और रस्म अदायगी संसद में हो जाती है, जो लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है.

आदर्श स्थिति में हिन्दुस्तान का वर्तमान केंद्रीय बजट ‘सतत समावेशी विकास’ या ‘सबका साथ सबका विकास’ – के घोषित सरकारी लक्ष्य को पाने के लिए होना चाहिए, जिससे समाज के अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुंच सके. आजादी के बाद विगत सात दशक में हमने विकास के कई पड़ाव हासिल किये हैं, लेकिन हिंदुस्तान की अधिकतर आबादी आज भी गरीबी, बेरोजगाारी, अशिक्षा, अस्वच्छता, कुपोषण आदि का शिकार है.

अगले वित्तीय वर्ष के बजट में वंचित समाज और वंचित क्षेत्र को प्राथमिकता के आधार पर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए बुनियादी ढांचा के विस्तार और गुणात्मक विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. बिहार जैसे पिछड़े राज्यों के विकास के लिए जीविका की प्राथमिकताओं को रेखांकित करना आावश्यक है. यद्यपि एक दशक से बिहार का सकल घरेलू उत्पाद लगभग 10 फीसदी की दर से बढ़ रहा है, लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा आधारभूत संरचना के विकास का है. खेती के क्षेत्र में भी बिहार एक दशक में लगभग 6 फीसदी की दर से बढ़ा है, किंतु इस विकास दर को बनाये रखने के लिए केंद्रीय बजट में कृषि रोड मैप को लागू करने के लिए आवश्यक संसाधनों की चुनौतियां हैं.

बेरोजगारी दूर करने के लिए केंद्र सरकार कौशल विकास केंद्र की स्थापना और सुदृढ़ीकरण के लिए बिहार जैसे गरीब राज्यों को प्राथमिकता देकर समावेशी विकास के अवसर का विस्तार कर सकती है. बिहार में औद्योगीकरण को बल देने के लिए खेतीजन्य और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विस्तार की प्रबल संभावना है. केंद्रीय बजट में असंगठित क्षेत्र में रोजगार सृजन को बल देकर क्षेत्रीय असंतुलन को कम किया जा सकता है.

नोटबंदी के कारण देश में बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कारोबारी और मजदूर के कारोबार और रोजगार खत्म हो गये हैं. बिहार भी बड़े पैमाने पर यह दंश झेल रहा है. वित्त मंत्री महोदय ने नोटबंदी से कर उगाही में उल्लेखनीय बढ़ोतरी का दावा भी किया है. ऐसे में बिहार और पूरे देश के कारोबारी और कामगार यह उम्मीद करते हैं कि उस कर उगाही का महत्वपूर्ण हिस्से से इस बजट में उनकी क्षतिपूर्ति की जाये. लेकिन निजीकरण को तवज्जो देनेवाली यह केंद्र सरकार कल्याणकारी नारों तक सीमित रहकर उद्योगपतियों के व्यापक लाभ के लिए काम करे, तो अचरज नहीं होगा.

बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और बिजली जैसे आधारभूत संरचना के विकास के लिए बिहार को विशेष वित्तीय आवंटन की जरूरत है. शिक्षा के क्षेत्र में सर्व शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा अभियानों के अंतर्गत शिक्षकों की नियुक्ति, विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयोंं, शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों की स्थापना और सुदृढ़ीकरण गुणवत्तापूर्ण विद्यालयी शिक्षा के लिए केंद्रीय बजट में पर्याप्त संसाधनों का प्रावधान जरूरी है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना, चिकित्सकों की नियुक्ति, जच्चा-बच्चा केंद्र और वंचित समाज के लिए विशेष सुविधा सुनिश्चित करने के लिए बजट में विशेष प्रबंध के साथ स्वच्छता अभियान के अंतर्गत बिहार खुले में शौच से मुक्त हो, इसके लिए इस बजट में पर्याप्त धनराशि आवंटित हो.

स्मरणीय है कि प्रधानमंत्री जी ने पिछले चुनाव के दौरान बिहार को 1.25 लाख करोड़ रुपये की विशेष सहायता देने की घेाषणा की थी. बिहार की अपेक्षा रहेगी कि इस बजट में वह आश्वासन फलीभूत हो. प्रकाश पर्व में प्रधानमंत्री जी ने शराबबंदी की प्रशंसा की है, जिससे उम्मीद है कि बिहार के विकास के लिए इस बजट में विशेष प्रावधान होगा. संभव है कि यह बजट पांच राज्यों में हो रहे चुनाव के कारण लोक लुभावन हो, लेकिन पिछले अनुभवों के आधार पर यह बिहार के लिए भी सार्थक और फलीभूत हो, यह आवश्यक नहीं.

कृषि और खाद्य प्रसंस्करण पर हो जोर

एक फरवरी को केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया जाने वाला है. समय नजदीक आने के साथ ही अटकलें शुरू हो गयी हैं कि बिहार को इस बार के बजट से कितना कुछ मिलेगा. बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है. बिहार बंटवारे के बाद से राज्य के विकास का एकमात्र जरिया कृषि और उस पर आधारित खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का विकास है. ऐसे में बिहार के लोगों को केंद्रीय बजट से कई अपेक्षाएं हैं. पेश है अनुपम कुमार की रिपोर्ट.

केंद्रीय बजट में कृषि के विकास के लिए अधिक राशि आवंटित करने की जरूरत है ताकि राज्य को भी इस मद में पिछले वर्ष की अपेक्षा अधिक बड़ी राशि मिल सके. चालू बजट(2016-17) में कृषि और किसान कल्याण के लिए 35,984 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, इसे बढ़़ाया जाना चाहिए. केंद्र सरकार को अपनी सीरा नीति में भी बदलाव लाने की जरूरत है ताकि राज्य में गन्ना आधारित उद्योग का विकास हो सके.

किसानों को ऋण मिलने में परेशानी होती है. इसके कारण बिहार में महाजनी लेन देन और सूदखोरी खत्म नहीं हो पा रही है. खासकर ग्रामीण इलाके इससे बुरी तरह प्रभावित हैं. बिहार में बैंकों का नेटवर्क बढ़ाने की जरूरत है. इसके लिए नबार्ड के माध्यम से राष्ट्रीयकृत व्यवसायिक बैंकों को प्रोत्साहित करने की योजना शुरू की जाने चाहिए और इस मद में आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए.

प्रदेश में किसानों का एक वर्ग ऐसा भी है जो बैंकों से कृषि कार्य के लिए कर्ज ले चुका है. लेकिन, अच्छी पैदावर नहीं होने या फसल का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण ऋण की किस्तें नहीं चुका पा रहा है. ऐसे किसानों पर ऋण के बोझ को कम करने और उन्हें ऋण आदायगी में सुविधा देने के लिए केंद्रीय बजट 2016-17 में 15000 करोड़ रुपये दिये गये हैं. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. इन्हें और बढ़ाने की जरूरत है ताकि बढ़ी हुई राशि का एक बड़ा अंश बिहार के किसानों को भी मिल सके.

बाढ़ और सूखा बिहार की सबसे बड़ी समस्या है. प्रदेश का उत्तरी हिस्सा हर वर्ष बाढ़ से प्रभावित होता है. कमला, कोसी, गंडक आदि नदियों के पानी से हजारों एकड़ में लगी हुई फसल बरबाद हो जाती है. इसके विपरीत मध्य और दक्षिण बिहार का एक बड़ा क्षेत्र अनावृष्टि से प्रभावित है. हर वर्ष यहां की फसलें सूखे के कारण बरबाद होती हैं क्योंकि सिंचाई के साधन ठीक तरह से विकसित नहीं हैं. बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई का मामला बड़ा है. इसमें अधिक निवेश वाले बड़े प्रोजेक्ट की जरूरत पड़ती है, जिसके कारण प्रदेश केंद्रीय मदद पर पूरी तरह निर्भर है. एक फरवरी को प्रस्तुत किये जानेवाले केंद्रीय बजट से अपेक्षा है कि उसमें इस विषय पर आवंटित राशि को बढ़ायाजायेगा और बिहार से संबंधित कुछ नयी योजनाओं की घोषणा भी की जायेगी.

किसानों को फौरी राहत देने के लिए फसल बीमा योजना को भी बढ़ाने की जरूरत है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए चालू वित्तीय बजट में 5500 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गयी है. वित्तीय वर्ष 2017-18 में इसे भी बढ़ाने की जरूरत है.

डेरी परियोजनाओं के विकास पर चालू बजट में 850 करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं. इस राशि को बढ़ाने और पशुपालन के विकास के लिए कुछ नयी योजनाएं बनाने की जरूरत है. इसका एक बड़ा अंश बिहार के किसानों को मिलेगा, तभी यहां पशुपालन का ठीक ढंग से विकास हो सकेगा.

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2016-17 में आवंटन 19000 करोड़ रुपये किया गया है. 2019 तक इसके अंतर्गत पूरे देश में 6500 छोटी बस्तियों को सड़कों से जोड़े जाने की योजना है, जिसमें बिहार की भी कई बस्तियां और ग्रामीण टोले शामिल हैं. चालू वित्तीय वर्ष में आवंटित राशि से इस विशाल लक्ष्य को पाना मुश्किल है. इसलिए इस मद में बजटीय समर्थन को बढ़ाने की जरूरत है.

केंद्र सरकार से समय पर राशि मिलने की आस

कौशिक रंजन, पटना

राज्य में नये वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए बजट तैयार करने की कवायद तेज हो गयी है. नये बजट में स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्योग के अलावा जैविक कृषि, उद्योग, सिंचाई, कृषि आधारित उद्योगों को विकसित करने पर खास तौर से फोकस किया जायेगा. सरकार के सात निश्चय कार्यक्रमों के लिए भी आवश्यक प्रावधान किये गये हैं. लगातार बेहतर हो रही बिजली की स्थिति के बाद अब कृषि और उद्योग को सुदृढ़ करने पर आगामी बजट में खास तैयारी चल रही है. हालांकि केंद्र से समय पर पैसा मिलने की आस बरकरार है.

चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 का बजट कई मायने में बेहद चुनौतीपूर्ण रहा. नोटबंदी के अलावा केंद्र स्तर पर योजनाओं में आवंटन और शेयरिंग पैटर्न में बदलाव करने का सीधा प्रभाव राज्य के योजना आकार पर पड़ा. मौजूदा योजना आकार 71 हजार 500 करोड़ के मुताबिक संसाधन नहीं जुटने के कारण यह पूरी तरह से खर्च का आंकड़ा निर्धारित योजना आकार तक नहीं पहुंच पायेगा.

हालांकि उपलब्ध राशि को खर्च करने में यहां के विभागों की रफ्तार बेहद धीमी रहना भी एक प्रमुख कारण है. अब तक सभी 41 विभागों ने कुल योजना आकार का महज 47.59 प्रतिशत रुपये ही खर्च किया है. केंद्र प्रायोजित योजनाएं के आवंटन में इस बार पिछले वर्षों की तुलना में ज्यादा कटौती की गयी है. साथ ही शराबबंदी के कारण पहले से ही करीब साढ़े चार हजार करोड़ का नुकसान झेल रहे सूबे को नोटबंदी के कारण निबंधन और वाणिज्य कर के भी टैक्स संग्रह में बड़े स्तर पर कटौती का सामना करना पड़ रहा है. दूसरी तरफ केंद्र की तरफ से सेंट्रल टैक्स पूल के तहत राज्य को मिलने वाली हिस्सेदारी में भी अभी तक पैसे कम आये हैं. चालू वित्तीय वर्ष में केंद्रीय टैक्स पूल से बिहार को 55 हजार 233 करोड़ रुपये मिलना निर्धारित किया गया था, लेकिन अभी तक 40 हजार 945 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए हैं. विभागीय अधिकारी यह संभावना व्यक्त कर रहे हैं कि इस मद में राज्य को पूरे रुपये मिल सकते हैं.

सीएसएस में कटौती सबसे बड़ी समस्या

राज्य को जिस सबसे बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है, वह है केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) में केंद्र से मिलने वाले केंद्रीय अनुदान में बड़े स्तर पर कटौती होना. 2016-17 में सीएसएस के तहत 28 हजार 777 करोड़ रुपये केंद्र को देना था. बाद में इसे संशोधित करके 32 हजार 805 करोड़ रुपये कर दिया गया. इसमें अभी तक महज 15 हजार 611 करोड़ रुपये ही आये हैं, जो मूल उदव्यय का 54 फीसदी और संशोधित उदव्यय का 48 फीसदी ही है. इस कटौती का सीधा प्रभाव राज्य के योजना आकार पर पड़ा है. कई बड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन पर इसका सीधा प्रभाव पड़ा है. इसके अलावा चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान केंद्र ने सीएसएस के क्रियान्वयन का फॉर्मूला बदल दिया है.

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