बैंकिंग टेक
आनेवाले समय में आप बैंकिंग संबंधी ज्यादातर काम इंटरेक्टिव टेलर मशीन यानी आइटीएम के जरिये निपटा सकेंगे. यह एटीएम का नवीनतम वर्जन है. विदेशों में आइटीएम के बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए उम्मीद जतायी जा रही है कि भारत में मौजूदा बैंक शाखा का करीब 40 फीसदी कार्य इसके जरिये हो सकता है. इससे बैंक को आर्थिक व मानव संसाधन के मोरचे पर राहत मिल सकती है. क्या है आइटीएम और कितना बदलाव होगा इससे बैंकिंग कार्यप्रणाली में समेत आम आदमी को कितनी सुविधा होगी इसके इस्तेमाल से, इन्हीं मसलों पर केंद्रित है आज का साइंस टेक्नोलॉजी पेज …
सतीश सिंह
ब दलते तकनीकी दौर में बैंकिंग सिस्टम में भी बदलाव आ रहा है. ग्राहक अब खुद बैंकिंग संबंधी अनेक कार्यों को निपटाने में सक्षम हो रहे हैं. नयी तकनीकों ने बैंक कर्मचारियों पर ग्राहकों की निर्भरता कम की है और इसमें दिन-ब-दिन कमी आ रही है. उम्मीद जतायी जा रही है कि आइटीएम नामक एक तकनीक के आने से ज्यादातर कार्य ग्राहक खुद कर पायेंगे. आइटीएम एक तरीके से टेली सर्विस ब्रांच ट्रांजेक्शन तकनीक पर काम करता है अर्थात इसके जरिये ग्राहक वीडियो काॅलिंग की मदद से बैंककर्मी से संवाद करते हुए अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा कर सकेंगे. परिचालन खर्च में कमी आने से बैंक ग्राहक को और भी बेहतर सुविधाएं देने की तरफ अपना ध्यान केंद्रित कर पायेगा. आइटीएम के स्वरूप को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह ग्राहक सेवा केंद्र या बैंक शाखा के लघु शाखा की तरह कार्य करेगा.
आइटीएम की कार्यप्रणाली को समझने के लिए इसके मौजूदा वर्जन को समझना जरूरी है. ऑटोमेटेड या ऑटोमेटिक टेलर मशीन (एटीएम), जिसे ऑटोमेटेड बैंकिंग मशीन (एबीएम), कैश मशीन, कैश प्वॉइंट, कैश लाइन आदि भी कहते हैं, एक ऐसा इलेक्ट्रिक टेलिकम्यूनिकेशन डिवाइस है, जिससे ग्राहक डेबिट सह एटीएम कार्ड की मदद से नकदी की निकासी के साथ दूसरी वित्तीय जरूरतों को पूरा करते हैं. डेबिट कार्ड अमूमन प्लास्टिक से बना मैग्नेटिक स्ट्रिप कोटेड या फिर चिप युक्त स्मार्ट कार्ड होता है, जिसमें यूनिक कार्ड नंबर, सुरक्षा से जुड़े सवाल जैसे- खाते से जुड़ी सूचनाएं, कार्ड की समाप्ति तिथि, सीवीवी आदि दर्ज होते हैं.
एटीएम की विकास यात्रा
एटीएम की शुरुआत विदेशों में सबसे पहले ब्रिटेन में बार्कलज बैंक ने जून, 1967 में की. पहले एटीएम का निर्माण बर्रो कंपनी ने प्रथम नकदी संवितरक यंत्र (कैश डिस्पेंसर मशीन) के रूप में किया था. बाद में नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक भी चब कंपनी द्वारा निर्मित मशीन की स्थापना करके इस दौड़ में शामिल हो गया. एटीएम की विकास यात्रा को मोटे तौर पर पांच चरणों में बांटा जा सकता है.
प्रथम चरण में एटीएम की सहायता से नकदी वितरण के अलावा बहुत ही सीमित मात्रा में दूसरी बैकिंग सुविधाएं एटीएम की मदद से प्रदान की जाती थी. बावजूद इसके अनेक राष्ट्रों- जैसे, जापान, इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में एटीएम स्थापित किये गये. 1972 में ब्रिटेन में लायड्स बैंक ने बैंकिंग प्रणाली से जुड़ा पहला ऑनलाइन एटीएम स्थापित किया. वर्ष 1970 से 1980 तक का वक्त एटीएम का दूसरा चरण माना जाता है. इस दौरान इसमें माइक्रो कंप्यूटर प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल होने लगा, जिससे एटीएम की कार्यप्रणाली में उल्लेखनीय सुधार हुआ. वर्ष 1980 को तीसरा चरण कहा जाता है, जिस दौरान माॅड्यूलर एटीएम का विकास किया गया. इसकी मदद से बैंक एटीएम को अपने जरूरत के मुताबिक अपग्रेड करने में समर्थ हुए. चौथे चरण में एटीएम को ऑपरेटिंग सिस्टम आधारित बनाते हुए इसकी क्षमता का विकास हुआ और यह विविध सेवाएं देने में सक्षम हो सका. इसके बाद विकसित देश के बैंकों ने अनिवार्य रूप से एटीएम स्थापित करना शुरू किया. एटीएम बैंक परिसर (ऑनसाइट) और बाहर (ऑफ साइट) लगाये जाने लगे. आज के दौर को एटीएम का पांचवां चरण कहा गया है. अभी वेब आधारित एटीएम की सुविधा ग्राहकों को दी जा रही है, जो प्रौद्योगिकी एवं सुविधा देने के मामले में सबसे बेहतर है.
छठा चरण होगा आइटीएम
आइटीएम प्रणाली को एटीएम का छठा चरण कहा जा सकता है, जिसके अंतर्गत ग्राहक बैंककर्मी से वीडियो काॅलिंग की मदद से अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा कर सकेंगे. माना जा रहा है कि भारत में यह एक मिनी बैंक शाखा की तरह कार्य करेगा. इस सेवा से जुड़े बैंककर्मी कॉलसेंटर की तर्ज पर कार्य करेंगे अर्थात उनकी ड्यूटी परिभाषित रहेगी. वे आठ घंटे की शिफ्ट में कार्य करेंगे. हालांकि, यह सेवा फिलहाल सुबह आठ बजे से रात के आठ बजे तक उपलब्ध रहने की संभावना है, लेकिन इसकी सफलता के सुनिश्चित होने के बाद इसे 24 घंटे में भी तब्दील किया जा सकता है. जाहिर है, नयी प्रणाली के आने से ग्राहकों को निर्धारित अवधि की बैंकिंग के बंधन से छुटकारा मिल जायेगा और वे अपनी जरूरत के मुताबिक ऑफिस या कार्यस्थल से बिना अवकाश लिए दिन में कभी भी अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा कर सकेंगे.
आइटीएम की कार्यप्रणाली
देखा जाये तो विदेशों में आइटीएम का अस्तित्व पूरी तरह से जुलाई, 2013 में आया. विदेशों में यह प्रणाली चलन में तो है, लेकिन अभी भी यह वहां खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रही है. भारत में भी आइटीएम प्रणाली का प्रवेश हो चुका है. प्रायोगिक तौर पर इंडसइंड बैंक की गुड़गांव शाखा में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. एटीएम की तरह आइटीएम में भी कार्ड रीडर, प्रिंटर, पेपर रोल, कैमरा आदि होंगे, लेकिन वीडियो कैमरा, हस्ताक्षर के लिए इलेक्ट्रॉनिक पैड, पहचान को स्थापित करने के लिए आइडेंटिफिकेशन स्कैनर, सिक्के वितरित करनेवाला डिस्पेंसर मशीन, बातचीत करने के लिए फोन हैंडसैट आदि इसे एटीएम से अलग और ज्यादा उन्नत बनाते हैं.
वीडियो कॉलिंग से होगा काम
इस नयी तकनीक से ग्राहक वीडियो काॅलिंग के जरिये बैंककर्मी से संवाद करते हुए नकदी निकासी व जमा, बैंक में जमा राशि का दूसरे खातों में अंतरण, कर्ज के खातों मसलन- ओवरड्राफ्ट, केसीसी आदि से नकदी की निकासी व अंतरण, बिल पेमेंट, मिनी स्टेटमेंट, मोबाइल रिचार्ज, संबंधित बैंकों द्वारा जारी क्रेडिट कार्ड के बिल का भुगतान आदि कर सकते हैं. साथ ही, चेक जारी करने के लिए आग्रह, कर्ज संबंधी पूछताछ, बीमा संबंधी जरूरतों आदि को भी इसकी मदद से पूरा किया जा सकता है.
इतना ही नहीं, एटीएम कार्ड गुम होने पर भी ग्राहक पहचान पत्र, पासबुक एवं इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर पैड पर हस्ताक्षर करके नकदी की निकासी एवं एटीएम कार्ड में दर्ज नकदी निकासी की सीमा से अधिक राशि का आहरण बैंककर्मी की अनुमति से कर सकता है.
एटीएम से सस्ती है आइटीएम तकनीक
एटीएम के रखरखाव पर हर महीने औसतन 80,000 रुपये खर्च होते हैं. इस खर्च की भरपाई तभी हो सकती है, जब एक एटीएम मशीन में प्रतिदिन औसतन 200 ट्रांजेक्शन हो. लेकिन, अभी एटीएम में प्रतिदिन औसतन 125 से 130 ट्रांजेक्शन किये जा रहे हैं, जिससे बैंकों को नुकसान हो रहा है. एक अनुमान के मुताबिक आइटीएम की लागत मौजूदा एटीएम से लगभग 40 प्रतिशत तक कम हो सकती है, क्योंकि इससे मानव संसाधन की जरूरत कम होगी तथा अद्यतन तकनीक से लैस होने के कारण इसके रखरखाव की लागत एटीएम मशीन से कम होगी.
उपयोगी होने की वजह से ग्राहक इसका ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल करेंगे, जिससे इसके द्वारा किये जानेवाले ट्रांजेक्शन में भी इजाफा होगा. फिलहाल देश में दो लाख से भी अधिक एटीएम मशीन हैं. एक एटीएम मशीन की कीमत करीब 10 लाख रुपये है. आइटीएम की कीमत मौजूदा एटीएम मशीन से थोड़ी अधिक है, लेकिन इससे होनेवाले फायदों, मसलन- प्रति ट्रांजेक्शन की कम लागत, मानव संसाधन की संख्या में कटौती, ग्राहकों को मिलनेवाली बेहतर सुविधाओं आदि के कारण इसके खर्च में गुणात्मक कमी आने की संभावना है.
कहा जा सकता है कि आइटीएम एटीएम के विकास यात्रा में छठे चरण का वाहक है, जिससे ग्राहकों एवं बैंक को व्यापक पैमाने पर राहत व लाभ मिलने की संभावना है. चूंकि बैंकिंग तकनीक में सुधार का कार्य नियमित रूप से चल रहा है, इसलिए भविष्य में किसी नयी तकनीक से इस संदर्भ में और भी बेहतर सेवा मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
इन्हें भी जानें
भारत में एटीएम की शुरुआत
भारत में हांगकांग एंड शंघाई बैंकिंग कॉरपोरेशन ने वर्ष 1987 में पहला एटीएम कोलकाता में लगाया था. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में इंडियन बैंक ने पहला एटीएम लगाया. भारतीय स्टेट बैंक ने अपना पहला एटीएम 1993 में जमशेदपुर में स्थापित किया. वर्ष 1997 में भारतीय बैंक संघ ने मुंबई में ‘स्वधन’ नाम से एटीएम नेटवर्क प्रारंभ किया, जिसके तहत किसी भी सदस्य बैंक के एटीएम से नकदी निकाला जा सकता था, लेकिन यह नेटवर्क केवल ऑफलाइन सेवा प्रदान करता था. लिहाजा यह लोकप्रिय नहीं हो सका.
आइटीएम व एटीएम के बीच फर्क
देखा जाये तो एटीएम की तकनीक में सुधार का दौर लगातार जारी है. शुरुआती दिनों में एटीएम से ग्राहक केवल जहां उनका खाता है, वहीं से नकदी की निकासी कर सकते थे. बाद में इसका इस्तेमाल बैंक के सभी एटीएम मशीनों में किया जाने लगा. फिर इसका दायरा बढ़ कर सभी बैंकों के एटीएम मशीनों के जद में आ गया. बीते सालों तक नंबर कीबोर्ड के जरिये एटीएम मशीन से केवल नकदी की निकासी की जाती थी. अब स्मार्ट फोन की तरह टच या उंगलियों की मदद से पैसों का अंतरण, बिल का भुगतान, जमा व निकासी आदि कार्य एटीएम से किये जा रहे हैं.
ग्राहक को इससे दूसरे फायदे भी हैं, मसलन- 365 दिन और 24 घंटे बैंकिंग सुविधा मिलने की गारंटी, समय एवं पैसों की बचत, देश-विदेश में नकदी निकासी का विकल्प, खाते का प्रबंधन, सामाजिक अपराधों जैसे- चोरी, डकैती आदि को कम करने में सहायक, टेक्नोसेवी, वित्तीय समावेशन को लागू कराने में सहायक, वित्तीय अनुशासन विकसित करने में मददगार आदि. आइटीएम प्रणाली के आने के बाद भी एटीएम से मिलनेवाली सुविधाएं तो मिलती ही रहेंगी, साथ ही वीडियो काॅलिंग की मदद से अब तक बैंक शाखा में मिलनेवाली सुविधाएं बिना बैंक शाखा परिसर में गये ग्राहकों को मिल सकेगी.
बैंक शाखाओं से कम होगा दबाव
एटीएम का आविष्कार मूल रूप से ग्राहकों को बैंक परिसर के बाहर बैंकिंग सुविधा देने के मकसद से किया गया था, क्योंकि बैंक शाखा में ट्रांजेक्शन करना बैंक के लिए घाटे का सौदा था.
कुछ साल पहले ग्राहक आम तौर पर रकम निकालने व ट्रांसफर करने, खाते संबंधी पूछताछ, स्टेटमेंट आदि के लिये बैंक जाते थे. ग्राहकों द्वारा बैंक परिसर में ट्रांजेक्शन करने के कारण बैंक कर्मचारी कार्यालय अवधि में सिर्फ रोजाना के कार्य कर पाते थे, जिस कारण बैंक के दूसरे महत्वपूर्ण कार्यों, जैसे- बीमा व म्यूचुअल फंड, शुल्क आधारित अन्य सेवा, लोन की मार्केटिंग, कर्ज की वसूली आदि सुचारु रूप से नहीं किये जा रहे थे. एटीएम के आगाज को इन समस्याओं के समाधान के रूप में देखा गया. जाहिर है आइटीएम प्रणाली के आने से बैंकिंग के वैकल्पिक माध्यम का फलक और भी अधिक व्यापक होगा. कहा जा रहा है कि फिलवक्त बैंक शाखा में किया जाने वाला लगभग 40 प्रतिशत कार्य आइटीएम के जरिये होने लगेगा, क्योंकि आइटीएम एक बैंक शाखा की तरह कार्य करेगा.
वित्तीय समावेशन में सहायक होगा आइटीएम
वित्तीय समावेशन वह प्रक्रिया है, जिसकी मदद से सरकार अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर सकती है. वर्तमान में गरीबों के कल्याण के लिए सरकार अनेक योजनाएं चला रही है, लेकिन भ्रष्टाचार के कारण उसका लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है. सभी को बैंक से जोड़ने पर गरीबों को सरकारी योजना का लाभ सीधे तौर पर बिना बिचौलिये के हस्तक्षेप के मिल सकता है. ऐसे लोगों को सरकार ऋण सुविधा उपलब्ध करा कर आर्थिक रूप से सबल बना सकती है, लेकिन पूंजी एवं मानव संसाधन के मामले में सरकार और बैंकों की स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण सभी को बैंक से जोड़ना संभव नहीं है.
आइटीएम की मदद से इस मकसद को पूरा किया जा सकता है. ऐसे में ग्रामीण व सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा वित्तीय समावेशन की दिशा में किया जा रहा कार्य और भी ज्यादा प्रभावशाली हो सकेगा.