Loading election data...

बजट 2016-17, उम्मीदें और संभावनाएं : सरकार को पॉपुलिस्ट होने से बचना होगा

गुरचरण दास लेखक एवं अर्थशास्त्री नोटबंदी के बाद क्रय-विक्रय की गति मंद पड़ने से बाजार और अंतत: अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है. ऐसे में केंद्रीय बजट का जोर अर्थव्यवस्था को गति देने पर भी होगा, ऐसी संभावना है. इसके अलावा निजी पूंजी निवेश के लिए नये सेक्टरों पर फोकस भी करना होगा, ताकि रोजगार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 31, 2017 6:23 AM
गुरचरण दास
लेखक एवं अर्थशास्त्री
नोटबंदी के बाद क्रय-विक्रय की गति मंद पड़ने से बाजार और अंतत: अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है. ऐसे में केंद्रीय बजट का जोर अर्थव्यवस्था को गति देने पर भी होगा, ऐसी संभावना है. इसके अलावा निजी पूंजी निवेश के लिए नये सेक्टरों पर फोकस भी करना होगा, ताकि रोजगार का सृजन हो सके. आज पढ़िए तीसरी किस्त.
जिस तरह से बीते कुछ वर्षों में नौकरियों में कमी देखी गयी है, उसे देखते हुए इस बार बजट से उम्मीदें बढ़ जाती हैं. हम इस बात की उम्मीद कर सकते हैं कि इस बजट में नौकरियों के सृजन पर सरकार का फोकस होगा, ताकि देश से बेरोजगारी को कम करने में कुछ कामयाबी मिल सके. यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारी जॉब ग्रोथ कमजोर है और हमारी अर्थव्यवस्था फिलहाल सिर्फ एक ‘सिलेंडर’ से चल रही है और वह है- कंजम्पशन (उपभोग). वस्तुओं का उपभोग करने के लिए जब लोग खरीदारी करते हैं, तो क्रय-विक्रय की प्रक्रिया से अर्थव्यवस्था चलायमान रहती है. लेकिन, नोटबंदी के बाद से यह खरीदारी भी मंद पड़ गयी है, जिसके चलते मार्केट प्रभावित हुआ है. हालांकि, यह तात्कालिक स्थिति है. लेकिन, यह पता नहीं है कि इस स्थिति में सुधार कब आयेगा, शायद छह महीने या साल भर में. नोटबंदी की गलती से देश पर जो असर पड़ा है, ऐसा लगता है यह बजट पर भी असर डालेगा. इसलिए सरकार को चाहिए कि इस बजट से कोई रास्ता निकाले, जिससे कि अर्थव्यवस्था को गति मिल सके. कंजम्पशन का सिलेंडर भी तभी ठहर सकता है, जब ज्यादा से ज्यादा लोगों को नौकरियां मिलें.
अर्थव्यवस्था के दूसरे सिलेंडर हैं- निजी पूंजी निवेश और निर्यात, इनमें बीते वर्षों में कमी आयी है. बजट में इसका ध्यान होना चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक्स, ईज ऑफ डुइंग बिजनेस और सेक्टोरल प्लान्स आदि पर सरकार फोकस करे. यह कोई नयी बात नहीं है, बल्कि ‘फोकस ऑन फंडामेंटल्स’ की बात है. इन क्षेत्रों पर ध्यान देकर ही जॉब ग्रोथ को बढ़ाया जा सकता है.
इस वक्त हमें कोई भी नयी योजना नहीं चाहिए, बल्कि ‘फोकस ऑन फंडामेंटल्स’ पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. सरकार को इस बजट में एक भी नयी योजना की घोषणा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे डर यह है कि यह सरकार पॉपुलिस्ट (लोकलुभावन योजनाएं लानेवाली सरकार) बन जायेगी और फिर यह भूल जायेगी कि जॉब ग्रोथ होगा कि नहीं. यह चुनावों के लिहाज से भी फायदेमंद है, क्योंकि पिछले दस साल के राज्यों के चुनावों से संबंधित हालिया शोध को देखें, तो यही पता चलता है कि राज्यों में वही पार्टियां जीतीं, जिन्होंने दीर्घावधि विकास के लिए काम किया है.
पॉपुलिस्ट पार्टियों को लोगों ने वोट नहीं दिये. इसलिए इस बजट से सरकार के पास मौका है कि वह पॉपुलिस्ट होने से खुद को बचाये और बिना किसी नयी योजना लाने के, अर्थव्यवस्था के मूलभूत क्षेत्रों को मजबूती पर अपना ध्यान केंद्रित करे. टैक्स स्लैब को ढाई लाख से बढ़ा कर चार लाख की बात हो रही है.
शायद इस बार बजट में ऐसी कोई घोषणा हो. लेकिन, मेरे ख्याल में यह ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि इससे देश के राजस्व में कमी आयेगी. टैक्स स्लैब बढ़ाने से बहुत से लोग, जो इनकम टैक्स के दायरे में आते हैं, वे बाहर हो जायेंगे और राजस्व कम होने लगेगा. यह अच्छी बात नहीं है. सरकार कोई दूसरा रास्ता भी अपना सकती है, क्योंकि हर व्यक्ति को कुछ न कुछ टैक्स जरूर देना चाहिए, यह देश के लिए फायदेमंद होता है. इसका एक उपाय यह हो सकता है कि मान लीजिए कोई व्यक्ति बीस प्रतिशत टैक्स दे रहा है, तो उसे सिर्फ दस प्रतिशत ही टैक्स देना पड़े, लेकिन वह टैक्स जरूर दे.
सरकार यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम की बातें कर रही है, इसका मतलब है कि देश के गरीब नागरिकों को कुछ पैसे सीधे उनके बैंक खाते में मिलेंगे. यह विचार ठीक है अौर सब्सिडी देने से कहीं बेहतर है, लेकिन अब भी बहुत लोगों के पास बैंक खाते नहीं हैं. यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम लाने से पहले देश से सारी सब्सिडी को हटाना पड़ेगा, तभी यह सफल हो जायेगा.
नौकरियों के सृजन में थोड़ा वक्त लग सकता है, इसलिए सरकार को इस बजट में कृषि उत्पादन बढ़ानेवाली योजनाओं में सुधार लाना चाहिए. कृषि उत्पादन बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्रों में खुशी लायी जा सकती है और वे शहर की तरफ नहीं जायेंगे. कृषि क्षेत्र में जीएम फसलों को बढ़ावा देना होगा. यही दूसरी हरित क्रांति के लिए जरूरी कदम हो सकता है, जिस पर सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

Next Article

Exit mobile version