बजट 2016-17 : आर्थिक सर्वे के आंकड़े वास्तविकता से परे

अरुण कुमार अर्थशास्त्री संसद में मंगलवार को पेश आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट से जाहिर है कि रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था को मंदी के दौर से उबारना सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती है. ऐसे में वर्ष 2017-18 के आम बजट में सरकार के लिए विकल्प काफी कम होगा. पढ़िए एक विश्लेषण. वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2017 2:32 AM
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अरुण कुमार
अर्थशास्त्री
संसद में मंगलवार को पेश आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट से जाहिर है कि रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था को मंदी के दौर से उबारना सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती है. ऐसे में वर्ष 2017-18 के आम बजट में सरकार के लिए विकल्प काफी कम होगा. पढ़िए एक विश्लेषण.
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पेश आर्थिक सर्वे के आंकड़े वास्तविकता से मेल नहीं खा रहे हैं. सरकार का कहना है कि मौजूदा वित्त वर्ष में विकास दर 6.8 फीसदी रहेगी और आनेवाले समय में यह 7.1 फीसदी हो जायेगी. लेकिन हकीकत में नोटबंदी के बाद विकास दर निगेटिव रहा है.
हालांकि अब नकदी की समस्या कम हुई है, लेकिन थाेक बाजारों में अभी भी पहले की तुलना में व्यापार 20-30 फीसदी कम है. इसके कारण बाजार में मंदी का दौर अा गया है. मौजूदा समय में सरकार के लिए नकदी की समस्या नहीं, बल्कि मंदी की है. इन आंकड़ों को देख कर कहा जा सकता है कि बजट में सरकार के लिए विकल्प काफी कम हैं. सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, नोटबंदी से आर्थिक विकास दर की रफ्तार 0.25 से 0.50 फीसदी कम होने का अनुमान है, लेकिन, दीर्घ अवधि में नोटबंदी का असर सकरात्मक होगा. नोटबंदी से कृषि क्षेत्र पर पड़ने वाले असर का जिक्र किया गया है.
लेकिन, सरकार का मानना है कि डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के कारण आनेवाले समय में आर्थिक विकास दर बढ़ेगी. लेकिन, नोटबंदी से किसानों, छोटे कारोबारियों को काफी नुकसान हुआ है. आर्थिक सर्वे के बाद देखने वाली बात होगी कि सरकार बजट में क्या नीतियां अपनाती है. सर्वे में कहा गया कि वित्तीय नीति में खास बदलाव नहीं होगा. मंदी से निकलने के लिए सरकार को खर्च बढ़ाना होगा. खर्च बढ़ने से सरकार का घाटा बढ़ेगा. वित्तीय घाटा बढ़ने से वैश्विक रेटिंग एजेंसियां भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रेडिंग कम कर देंगी. ऐसा होने से निवेश प्रभावित होगा. ऐसे हालत में सरकार के लिए काफी कठिन समस्या है कि मंदी से कैसे निबटा जाये.
आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों से लगता है कि सरकार आर्थिक सेहत को लेकर असलियत नहीं बता रही है.नोटबंदी के कारण रोजगार के अवसर भी कम हुए हैं. ऐसे में आर्थिक सर्वेक्षण को देख कर भविष्य में रोजगार के अवसर बढ़ाने की बड़ी चुनौती है. नोटबंदी के कारण असंगठित क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार कम हुए है. भारत में हर साल 1.2 करोड़ युवा श्रम बाजार में आते हैं और सिर्फ 5-6 लाख लोगों को ही संगठित क्षेत्र में नौकरी मिलती है और बाकी असंगठित क्षेत्र और छोटे काम करने को मजबूर हैं. रोजगार की कम होती संख्या की वजह मशीनीकरण का होना है.
सरकार पूंजी निवेश को प्राथमिकता देती है, लेकिन पूंजी निवेश से सीमित संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं. ऐसे में सरकार को छोटे उद्योगों में निवेश को प्राेत्साहित करना चाहिए, इससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे. सरकार को रोजगार, निवेश और मशीनीकरण के बीच समावेश बनाना होगा, तभी रोजगार के नये अवसर सामने आयेंगे. आर्थिक सर्वे के आंकड़े रोजगार सृजन के लिहाज से सकारात्मक नहीं लग रहा है. देश में रोजगार का सबसे बड़ा क्षेत्र कृषि की हालत नाजुक है.
कृषि क्षेत्र के अलावा मैन्युफैक्चरिंग, औद्योगिक विकास के आंकड़े देश की आर्थिक स्थिति के लिए उत्साहजनक नहीं है. सरकार ने यह नहीं बताया है कि आर्थिक विकास दर का अनुमान पूरे साल के आंकड़े के आधार पर होगा या सिर्फ दो तीन महीनों के आंकड़ों के आधार पर. सर्वे से साफ जाहिर होता है कि सरकार अपनी नाकामियों को छिपा रही है और प्रोपेगेंडा कर बेहतर आर्थिक तसवीर पेश कर रही है. कुल मिलाकर यह बजट के लिए कठिनाई का दौर है.
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