विकास को बरकरार रखनेवाला बजट

आलोक पुराणिक वाणिज्य प्राध्यापक, दिल्ली विश्वविद्यालय आम बजट को ‘कामचलाऊ’, ‘लोकलुभावन’ और ‘ऐतिहासिक’ जैसी संज्ञाएं दी जा रही हैं. लेकिन, इसे न तो पूरी तरह से लोगों के अलग-अलग तबकों को तुष्ट करने के इरादे से लाया गया है, और न ही इसमें आर्थिक सुधारों को गति देने की कोई ठोस पहल की गयी है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 2, 2017 7:18 AM
आलोक पुराणिक
वाणिज्य प्राध्यापक, दिल्ली विश्वविद्यालय
आम बजट को ‘कामचलाऊ’, ‘लोकलुभावन’ और ‘ऐतिहासिक’ जैसी संज्ञाएं दी जा रही हैं. लेकिन, इसे न तो पूरी तरह से लोगों के अलग-अलग तबकों को तुष्ट करने के इरादे से लाया गया है, और न ही इसमें आर्थिक सुधारों को गति देने की कोई ठोस पहल की गयी है. सरकार ने गांव और गरीब पर फोकस तो किया है, परऔर बेहतर की गुंजाइश बनी हुई है. बजट के विभिन्न आयामों के विश्लेषण पर आधारित आज की विशेष प्रस्तुति.बजट ठीक वैसा नहीं निकला, जैसा विपक्षी दल चाहते थे.
मतलब वह चाहते थे कि कुछ ऐसा करे बजट कि इस सरकार को सूट-बूट की सरकार साबित करने का मौका मिले, पर यह बजट गांव-खेत में इंटरनेट चलाता हुआ, डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ाता हुआ दिखा. आयकर के मामले में इस बजट ने राहत दी है. ढाई लाख से पांच लाख की इनकम पर पहले आय कर दस प्रतिशत होता था, जिसे घटा कर पांच प्रतिशत कर दिया गया है. इससे अंतत: अर्थव्यवस्था में कुछ खरीद क्षमता पैदा होगी. अर्थव्यवस्था में बड़ी समस्या यह है कि मांग कमजोर है. मांग मजबूत हो, तो उद्योगपति नये निवेश के लिए प्रेरित होंगे. नये रोजगार वहां पैदा हो सकते हैं.
ग्राम, कृषि और संबंधित क्षेत्रों में 1,87,223 करोड़ रुपये का प्रावधान यानी पिछले साल के मुकाबले 24 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के प्रति दो वजहों से ज्यादा संवेदनशील है, एक तो कई राज्यों में चुनाव हैं, दूसरे पांच सालों में किसानों की आय को दोगुना करने का इरादा है. यह आसान काम नहीं है. मनरेगा के लिए सरकार ने 48,000 करोड़ रुपये रखे हैं और सुनिश्चित किया है कि राहत अर्थव्यवस्था के उस तबके को मिले, जो संपन्नतम तबके में नहीं आता. किसानों की इनकम पांच सालों में दोगुनी हो जायेगी, यह बात मोदी सरकार लगातार कहती आयी है. बजट ने कहा है कि नाबार्ड के कंप्यूटराइजेशन पर ध्यान होगा, ताकि किसानों को आसानी से कर्ज दिया जा सके.
छोटा बनाम बड़ा कारोबार
वित्त मंत्री ने छोटी कंपनियों पर कर दायित्व कम कर दिया है. बजट के मुताबिक 50 लाख रुपये तक सालाना टर्नओवर वाली कंपनियों पर 30 प्रतिशत कर नहीं, 25 प्रतिशत रहेगा. बाकी कंपनियों पर कर दर तीस प्रतिशत ही रहेगी. बड़ी कंपनियों की मांग यह थी कि कर की दर में एक प्रतिशत बिंदु की कमी की जाये. पर, यह 25 प्रतिशत की दर अभी सिर्फ छोटी कंपनियों के लिए ही लायी गयी है, बड़ी कंपनियों को इसके लिए इंतजार करना होगा.
नौकरी बनाम रोजगार
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का लक्ष्य 2017-18 में दो लाख 44 करोड़ रुपये रखा गया, जो पिछले साल के मुकाबले दोगुना है. गौरतलब है कि नौकरियों की बढ़ोत्तरी की गति धीमी है. कांग्रेस ने आर्थिक सर्वेक्षण से पूर्व पेश अपने दस्तावेज में मोदी सरकार के सामने सवाल उठाया था कि रोजगार को लेकर मोदी के दावे क्या हुए. मुद्रा योजना के तहत खास तौर पर छोटे कारोबारियों का कर्ज दिया जाता है. यानी रोजगार के लिए कर्ज सरकार दिलाना चाहती है. रोजगार और नौकरी का फर्क साफ है, नौकरियां अगर ज्यादा पैदा नहीं हो रही हैं, तो लोगों को स्वरोजगार की सोचनी चाहिए. मुद्रा योजना के तहत 2017-18 में सरकार ज्यादा कर्ज देगी. आर्थिक सर्वेक्षण में भी रोजगार की अनिश्चितता की बात कही गयी थी.
सबको न्यूनतम आय यानी यूनिवर्सल बेसिक इनकम की वकालत करते हुए आर्थिक सर्वेक्षण ने कहा था कि सबको न्यूनतम आय से इस मसले पर कुछ राहत मिल सकती है. मुद्रा योजना के तहत छोटे कारोबार के संवर्धन के प्रयास संभव है. दरअसल यह बात सरकार को भी समझ में आ रही है कि रोजगार के अवसर पैदा करना संभव है, सबके लिए नौकरियां पैदा कर पाना संभव नहीं है. नयी परियोजनाओं के आने के बाद भी नौकरियां पैदा होने के अवसर ज्यादा नहीं बन रहे हैं.
कंस्ट्रक्शन को महत्व
इस बजट ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण घोषणा की है कि सस्ते मकानों के निर्माण को एक बुनियादी उद्योग का दर्जा दिया गया है. मोदी सरकार का लक्ष्य 2020 तक 2 करोड़ मकान बनाने का है. कंस्ट्रक्शन को बजट ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका दी है. हाउसिंग को जो महत्व दिया गया है, उसका सीधा और परोक्ष असर कंस्ट्रक्शन पर पड़ता है. कंस्ट्रक्शन में उछाल आता है, तो स्टील, सीमेंट समेत कई कारोबारों में बेहतरी आती है और कंस्ट्रक्शन वह उद्योग है, जहां कम अशिक्षित लोगों को भी रोजगार मिल सकता है. कंस्ट्रक्शन को बढ़ावा दरअसल एक साथ कई उद्योगों को, रोजगार को बढ़ावा देना है.
राजकोषीय घाटा
राजकोषीय घाटा 1917-18 में जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रहेगा, यानी कुल मिला कर राजकोषीय घाटे को लेकर चिंता की जरूरत नहीं है. गौरतलब है कि राजकोषीय घाटे को लेकर काफी चिंताएं थीं, क्योंकि इसका ताल्लुक क्रेडिट रेटिंग से होता है. अगर राजकोषीय घाटा ज्यादा हो जाये, तो क्रेडिट रेटिंग कम होने की आशंका हो जाती है. गौरतलब है कि भारत सरकार अपनी उन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से नाराज है, जो भारत की रेटिंग को बेहतर नहीं करती हैं. आर्थिक सर्वेक्षण दस्तावेज में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने साफ तौर पर क्रेडिट रेटिंग में पक्षपात का आरोप लगाया कि चीन के मुकाबले भारत की स्थिति बेहतर होने के बावजूद चीन की क्रेडिट रेटिंग इंडिया के मुकाबले बेहतर रखी गयी है.
खेत पर नेट
भारत नेट योजना के लिए सरकार ने 10,000 करोड़ रुपये रखे हैं, इसके तहत हाइ-स्पीड ब्राॅड-बैंड इंटरनेट की व्यवस्था की जायेगी. डिजिटल इकोनॉमी की दिशा में यह बड़ा कदम है. कैशलेस इकोनॉमी के लिए तेज गति का इंटरनेट जरूरी है. टेक इंडिया हमारा अगले साल का एजेंडा- ऐसा वित्त मंत्री ने कहा. पारदर्शिता के लिए डिजिटल इकोनॉमी पर जोर दिया गया है. नाबार्ड के कंप्यूटराइजेशन पर ध्यान दिया है, ताकि किसानों को आसानी से कर्ज दिया जा सके. इंटरनेट अब सिर्फ संवाद का नहीं, आर्थिक गतिविधि का भी केंद्र है.
चुनौतियां आगे हैं
इस बजट को बजट का भाग एक माना जाना चाहिए. बजट का दूसरा भाग जुलाई में या इसके बाद तब आ सकता है, जब जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स की व्यवस्था ठोस शक्ल लेगी. तब आय के क्या इंतजाम किये जायेंगे, साफ होगा. अभी माना जाना चाहिए कि सरकार खर्च और आय के नये आंकड़े भी पेश कर सकती है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भावों का रुख लगातार ऊपर जा रहा है. गौरतलब है कि बरसों से वित्त मंत्री जेटली को कच्चे तेल के गिरते भावों का फायदा मिलता रहा है, पर अब वह फायदा मिलना संभव नहीं है. इसलिए आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कुछ समय बाद बजट का भाग दो भी दिखायी पड़े.
मध्यवर्ग को जरा-सी राहत
प्रो मुनीर आलम
प्रोफेसर, आइइजी, दिल्ली
यह बजट कोई चौंकानेवाला बजट नहीं रहा, खासतौर पर इनकम टैक्स को लेकर जब हम बजट से पहले चर्चा कर रहे थे, तो लोग यही सोच रहे थे कि आयकर छूट की सीमा ढाई लाख से बढ़ा कर चार लाख तक हो सकती है. जबकि, मैंने कहा था कि यह सीमा तीन लाख के आस-पास रहेगी, और इस बजट में यही सीमा निर्धारित की गयी. अगर आयकर छूट सीमा चार लाख से ऊपर हुआ होता, तो मध्यवर्ग को इससे ज्यादा खुश हुआ होता. हालांकि, ढाई से पांच लाख तक की आय पर सिर्फ पांच प्रतिशत टैक्स देना होगा, जो अब तक दस प्रतिशत देना होता था, इससे वेतनभोगी मध्यवर्ग को कुछ राहत जरूर मिलेगी. इसकी चर्चा बहुत दिनों से हो भी रही थी, इसलिए इसे तो होना ही था.
ऐसे में यह सोचने की जरूरत नहीं है कि इस बजट में कोई बहुत नयी बात सामने आयी है. हालांकि, मुझे इस बात की उम्मीद थी कि दस लाख तक की आय वाले लोगों को सरकार कुछ राहत देती, ताकि लोग सही-सही अपनी आय बताते, क्योंकि लोग आय को छुपाते-फिरते हैं. सरकार को छिपे स्रोतों से ही अंदाजा लगाना पड़ता है कि भारत में लोगों की आय क्या है.
जब भी मध्यवर्ग की बात होती है, तो हम सिर्फ टैक्स पर आकर ठहर जाते हैं कि बजट में मध्यवर्ग को टैक्स में कितनी छूट मिली. बाकी सारी चीजों को हम छोड़ देते हैं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य या फिर दूसरे क्षेत्रों में सरकार ने क्या कुछ दिया है. मध्यवर्ग के लिए इन सभी चीजों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. मध्यवर्ग एक ऐसा वर्ग है, जो सबसे ज्यादा खरीदारी करता है और यही वजह है कि कंजम्पशन भी बढ़ रहा है. मध्यवर्ग की जीवनशैली कुछ खर्चीली होती है, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात है. लेकिन, यहां एक बुनियादी चीज नजर आती है कि मध्यवर्ग की आय के आंकड़े और उसके उपभोग के आंकड़े में अंतर है.
इस बजट से एक चीज जरूर देखने को मिली कि सरकार के पास बहुत-कुछ देने के लिए था ही नहीं, इसलिए अपनी सीमाओं में रह कर ही वह जितना कर सकती थी, उसने किया है. लेकिन, इसके बावजूद बजट की तीन बातें महत्वपूर्ण हैं. पहला, भाजपा की सरकार होते हुए भी यह कॉरपोरेट सेंट्रिक बजट नहीं लग रहा है. इस बजट में ग्रामीण क्षेत्र में आय बढ़ाने की ओर ध्यान दिया गया है. यानी बजट की दिशा जो अक्सर कॉरपोरेट की ओर रहा करती थी, वह इस बार नहीं देखने को मिली.
दूसरी बात, सरकार ने राजनीतिक फंडिंग में टैक्स डिक्लरेशन के लिए जो दो हजार रुपये की सीमा की बात की है, वह काबिले-तारीफ है. हालांकि, खुद राजनीतिक पार्टियां इस पर कितना खरा उतरती हैं, यह तो देखनेवाली बात होगी. इससे यह तो सिद्ध होता है कि सरकार भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर है.
तीसरी जो मुख्य बात यह है कि इस बजट कृषि क्षेत्र में ध्यान देने की बात की गयी है और सरकार ने पांच साल में किसानों की आय दोगुना करने की प्रतिबद्धता दोहरायी है. दरअसल, कुछ समय से निजी निवेश में कमी देखी गयी है, इसलिए उस गैप को भरने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आय को बढ़ाने का प्रयास किया जाये, ताकि गरीबी उन्मूलन में मदद मिल सके. इसलिए सरकार ने सरकारी व्यय (पब्लिक एक्सपेंडिचर) के जरिये इस दिशा में कदम बढ़ाने की कोशिश की है. यह भारत के लिए बहुत जरूरी भी है, क्योंकि हमारी ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहती है.
खेती को उद्योग से जोड़ना जरूरी
ब्रजेश झा
अर्थशास्त्री, इंस्टीट्यूट ऑफ इकॉनोमिक ग्रोथ
आम बजट में सबसे अच्छी बात यह हुई है कि लघु सिंचाई पर काफी जाेर दिया गया है. शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि बजट में सरकार ने आउटले यानी खर्चों के साथ आउटकम यानी नतीजों की भी बात की है. यानी अब सरकार कह रही है कि इतने हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा मुहैया करायी जायेगी, जबकि पहले महज आबंटित धनराशि के बारे में बताया जाता था.
आउटकम पर फोकस करना गवर्नेंस के लिहाज से अच्छी बात है. रोजाना 100 किमी से अधिक ग्रामीण सडकों का निर्माण इस लिहाज से अच्छा है, क्योंकि पहले आम तौर पर इस मद में बजट आबंटन पर चर्चा होती थी. पहले सरकार कहती थी कि इस मद में बीते वर्ष इतना खर्च किया गया और इस वर्ष इतना खर्च किया जायेगा़
फसल बीमा का दायरा सरकार भले ही व्यापक कर रही है, लेकिन किसानों के नजरिये से देखा जाये, तो यह व्यावहारिक नहीं है. इससे किसानों को उतना फायदा नहीं मिल रहा है, जितना सरकार इस मद में खर्च कर रही है. दरअसल, इस मद में सरकार जितनी वित्तीय मदद किसानों के लिए आबंटित करती है, उन तक उतना पहुंच नहीं पाता है. इससे बेहतर यह होगा कि किसानों को लागत के हिसाब से बेहतर दाम मिलने चाहिए. इसलिए फसल बीमा पर ज्यादा जोर देना ठीक नहीं है. किसानों को उनकी उपज का ज्यादा दाम मिले और उन्हें फायदा पहुंचे, इसके लिए सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में भंडारण क्षमता बढ़ानी चाहिए. यूनीफाइड एग्री मार्केट की संख्या बढ़ाने से ज्यादा-से-ज्यादा किसानों को उसका फायदा मिल सकेगा.
मौजूदा केंद्र सरकार ने एक बार फिर इस बजट में किसानों की आय को पांच वर्षों में दोगुना करने के लिए प्रतिबद्धता जतायी है, लेकिन इसे हासिल कर पाना आसान नहीं है. यदि हम पिछले दशक के ही आंकड़ों को देखें, तो भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2002-3 से 2012-13 यानी 10 वर्षों के दौरान किसानों की अामदनी में केवल दो ही राज्यों (हरियाणा और राजस्थान) में 60 फीसदी तक की वृद्धि हो पायी है. हालांकि, सरकार अपनी ओर से इस दिशा में काम कर रही है, लेकिन मेरा मानना है कि आगामी पांच वर्षों में इस लक्ष्य को हासिल कर पाना वाकई में बेहद मुश्किल लक्ष्य है.
बजट में ग्रामीण विद्युतीकरण पर जोर दिया गया है, जिससे निश्चित रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा. किसानों को मुहैया कराये जानेवाले कर्ज की रकम भी बढ़ायी गयी है, जो उनके हित में होगा.
लेकिन, सबसे बड़ी चीज है किसानों को उसके फसल की उचित कीमत मिलना. इस नजरिये से एक बड़ी चीज है फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री का विस्तार, जिस पर इस बजट में ज्यादा जोर नहीं दिया गया है. यह ऐसी इंडस्ट्री है, जो रुरबन क्लस्टर (रूरल और अरबन का मिश्रण यानी कस्बाई इलाकों) में आसानी से शुरू की जा सकती है. इससे आसपास के गांवों में किसानों को आमदनी बढ़ाने का बड़ा जरिया मिल जाता है.
इसके अलावा, सेल्फ-हेल्प ग्रुप को प्रोमोट करना होगा. इसके लिए उन्हें मल्टी-लाइवलीहुड की ओर ले जाना होगा. इसके जरिये सभी सदस्यों को उद्योगों से जोड़ना होगा. तय मानिये कि उद्योगों से जोड़े बिना किसानों की आमदनी को बढ़ाना बहुत मुश्किल है. तभी जाकर किसानों की आमदनी बढ़ायी जा सकती है. माइक्रो-क्रेडिट का दायरा बढ़ा कर ज्यादा-से-ज्यादा किसानों तक ले जाना होगा.
(बातचीत : कन्हैया झा)
जानिए क्या है आम बजट
– भारतीय संविधान के अनुच्छेद-112 के तहत हर वर्ष वित्तीय विवरण के रूप में आम बजट प्रस्तुत किया जाता है. राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित तिथि पर (बजट सत्र हर वर्ष फरवरी से मई के बीच) केंद्रीय वित्त मंत्री बजट को
पेश करते हैं.
– बजट में किसी वित्त वर्ष (1 अप्रैल-31 मार्च) में सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय को शामिल किया जाता है.
– संसद के दोनों सदनों द्वारा बजट पास करने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिलती है और इसके बाद यह 1 अप्रैल से प्रभावी हो जाता है.
इस बार बजट में बदलाव
– इस वर्ष से आम बजट को फरवरी माह के पहले कार्यदिवस पर प्रस्तुत करने की परंपरा शुरू की गयी है. इससे पहले आम बजट फरवरी माह के अंतिम कार्यदिवस पर बजट पेश किया जाता था.
– बजट प्रस्तुत करने के समय में बदलाव के पीछे सरकार तर्क है कि अप्रैल माह में शुरू होनेवाले नये वित्त वर्ष से नये सुधारों और कार्ययोजनाओं को लागू करने में समय और सहूलियत मिलेगी.
– 92 वर्षों में पहली बार आम बजट के साथ रेल बजट को शामिल करते हुए प्रस्तुत किया गया है. इससे पहले रेल मंत्रालय द्वारा रेलवे के आय-व्यय का विवरण रेल बजट के रूप में प्रस्तुत किया जाता था.
बजट के प्रमुख घटक
आम बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री के बजट भाषण के साथ 14 प्रमुख दस्तावेजों को शामिल किया जाता है.
– वार्षिक वित्तीय विवरण
– अनुदान मांगें
– विनियोग विधेयक
– वित्त विधेयक
– वित्त विधेयक, संबंधित वर्ष में किये गये उपबंधों का व्याख्यात्मक ज्ञापन
– संबद्ध वित्त वर्ष के लिए वृहत-आर्थिक रूपरेखा विवरण
– वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय नीतिगत कार्ययोजना का विवरण
– मध्यावधि राजकोषीय नीतिगत विवरण
– व्यय बजट खंड-1
– व्यय बजट खंड-2
– प्राप्ति बजट
– बजट एक नजर में
– बजट की मुख्य बातें
– वित्त मंत्री के पिछले वित्त वर्ष के बजट भाषण में की गयी घोषणाओं का कार्यान्वयन विवरण.
– बजट में शामिल वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक के 1 अप्रैल से लागू होने से पहले इनका लोकसभा और राज्यसभा में पास होना अनिवार्य है.
बजट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
– मौजूदा राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी अपने राजनीतिक कैरियर में वित्त मंत्री के रूप में सात बार आम बजट प्रस्तुत कर चुके हैं.
– पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने वित्त मंत्री रहते हुए रिकॉर्ड 10 बार बजट प्रस्तुत किया है, जिसमें वर्ष 1959 और 1964 का अंतरिम बजट भी शामिल है.
– बजट से पहले दस्तावेज तैयार करने में शामिल अधिकारियों और कर्मचारियों को एक समारोह के तहत हलवा परोसा जाता है.
– बजट प्रस्तुत किये जाने से लगभग एक हफ्ता पहले कर्मचारियों को घर-परिवार से दूर पूर्ण रूप से वित्त मंत्रालय के अधीन तत्पर होना पड़ता है.
– वर्ष 1973-74 में पेश किये गये बजट को ‘काला बजट’ कहा जाता है, क्यों उस समय देश 550 करोड़ रुपये के घाटे में था.
– देश का पहला आम बजट 1947 में तत्कालीन वित्त मंत्री आरके शानुखम चेट्टी द्वारा प्रस्तुत किया गया था.
नोटबंदी के प्रभावों को कम करने की कोशिश
अभिजीत मुखोपाध्याय
अर्थशास्त्री
आम बजट में आये प्रस्तावों और घोषणाओं से स्पष्ट है कि सरकार ने ग्रामीण जनता और मध्य वर्ग को खुश करने का प्रयास किया है. सरकार को लगभग तीन साल होने जा रहे हैं. वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर विशेष रूप से फोकस किया था. इसके लिए मेक इन इंडिया जैसे कुछ बड़े कार्यक्रम भी लांच किये गये. इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए भी निवेश पर फोकस किया गया. इसके अलावा, एक्सपोर्ट बढ़ाने और एफडीआइ लाने के लिए सरकार ने तेजी से प्रयास किये. लेकिन, दुर्भाग्य से अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं आये. इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के लिए तो हर साल कुछ न कुछ बजट आवंटन हो रहा है. इसमें दो बाते हैं, एक तो इसमें अपेक्षित तेजी नहीं आयी, दूसरा बहुत सारे प्रोजेक्ट को पीपीपी मॉडल में डाला गया. लेकिन, इसके परिणामों पर बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है. इस बजट में इन बातों पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत थी.
वित्त मंत्री कह रहे हैं कि ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लिए 2.41 लाख रुपये और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के लिए 3.69 लाख दे दिया. यदि आवंटन बढ़ता है, तो अच्छी बात है, लेकिन अच्छा परिणाम अच्छा आना जरूरी है. इससे तो आपके इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में बदलाव तो नहीं हुआ. गौर करनेवाली बात यह है कि ग्रामीण और कृषि क्षेत्र में सरकार की जो पहल दिख रही है, दरअसल वह नोटबंदी के प्रभावों को कम करने की दिशा में उठाया गया कदम है. सरकार मान रही है ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा परेशानी हुई है, इसलिए इन्हें कुछ राहत दे दी जाये.
बजट नोटबंदी के प्रभावों के इर्द-गिर्द घूम रहा है. बजट से उम्मीदें बहुत थीं, कुछ नया सोचने की जरूरत थी. अगर आपको लगता है कि नोटबंदी से लोग नाराज होकर वोट नहीं देंगे और यूपी, पंजाब में हार जायेंगे. ऐसे में बचने के लिए आप कदम उठा रहे हैं, तो यह सही नहीं है. सरकार ने पंचायतों में इंटरनेट सुविधा के लिए 10,000 करोड़ देने की बात कही है. यदि 10,000 करोड़ से पंचायतें वाइ-फाइ हब बन जाती हैं, तो सवाल खड़ा होता है कि क्या सबके पास स्मार्टफोन खरीदने के लिए पैसा है? दरअसल, विमुद्रीकरण को सही साबित करने के लिए यह सब करना पड़ रहा है. जहां तक रोजगार की बात है तो सरकार इस मोर्चे पर लगभग विफल रही है. यदि सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं तलाश रही है, तो इसको भी छह महीना, साल भर करके देख सकते हैं.
हालांकि, ग्राम सड़क योजना जैसी कुछ प्रमुख योजनाओं में ठीक-ठाक काम हुआ है. यदि आप आवास योजना और ग्राम सड़क योजना पर विशेष रूप से फोकस कर रहे हैं, तो आप नयी स्कीम लाकर ग्रामीण क्षेत्रों में कम आय वालों को सब्सिडी रेट पर कर्ज देने का प्रावधान कर सकते थे. बजट में नया और बहुत परिवर्तनकारी नहीं दिख रहा है. पहले के बजट को नये रूप में पेश किया गया है. रेल बजट को इसमें जोड़ दिया गया और इसमें कुछ नहीं किया गया. यात्री भाड़े की जो हालत है, उससे अब सस्ती फ्लाइट से इसकी तुलना करना आसान हो गया है. इससे स्पष्ट है कि आपकी मंशा प्राइवेट एयरवेज की तरफ यात्रियों को प्रोत्साहित करना है. कुल मिला कर रेलवे में जनता को निराशा हाथ लगी है.
बातचीत : ब्रह्मानंद मिश्र
स्टैंड-अप इंडिया इनिशिएटिव के तहत ढ़ाई लाख से अधिक अनुसूचित जाति, जनजाति और महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने की सरकार की पहल सराहनीय है. आदिवासियों को सशक्त बनाने के लिए वनबंधु कल्याण योजना के तहत चौदह विभिन्न क्षेत्रों की पहचान की गयी है. उम्मीद है कि इससे महिलाएं लाभान्वित होंगी. वहीं, मनरेगा में महिलाओं की भागदारी बढ़ा कर 55 प्रतिशत तक कर दी गयी है.
इससे ग्रामीण क्षेत्र के विकास में मदद मिलेगी. इस बजट में महिला कौशल विकास के लिए आवंटित राशि को बढ़ाकर 1.84 लाख करोड़ रुपये करने के साथ ही 100 भारत-अंतरराष्ट्रीय कौशल केंद्र की स्थापना करने का प्रावधान भी किया गया है. इससे महिलाओं के लिए कौशल विकास और रोजगार के अवसर को बढ़ावा मिलेगा. महिलाओं और बच्चों के लिए इस बजट में 1,84,632 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. आशा है कि इससे गरीबी उन्मूलन और पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के लक्ष्य में मदद मिलेगी.
विनिता बिंभेट, फिक्की महिला संगठन की अध्यक्ष
यह एक विकासोन्मुखी बजट है, जिसमें निवेश के लिए काफी मात्रा में सार्वजनिक निधियों (पब्लिक फंड) का आवंटन किया गया है. विकासोन्मुखी बजट पेश करने के साथ ही वित्त मंत्री ने आर्थिक अनुशासन (फिस्कल डिसिप्लीन) की दिशा को भी बनाये रखा है मेरा मानना है कि इस बजट में ग्रामीण क्षेत्र में निवेश, डिजिटल, युवा, कौशल विकास पर खास तौर से ध्यान केंद्रित करने के साथ ही आर्थिक अनुशासन की दिशा को भी बनाये रखा गया है.
चंदा कोचर, एमडी व सीइओ,
आइसीआइसीआइ बैंक
विकास दर की वापसी तक आर्थिक घाटे में नाममात्र की वृद्धि (मार्जिनल इंक्रीज) संतोषजनक है. लगभग 3.2 प्रतिशत के आर्थिक घाटे के लक्ष्य से मैं बहुत ज्यादा चिंतित नहीं हूं.
दीपक पारेख, अध्यक्ष, एचडीएफसी
सरकार ने अगले वर्ष के लिए एक व्यावहारिक और यथार्थवादी बजट पेश किया है, आर्थिक दृढ़ता पर जोर देने के साथ ही 0.5 प्रतिशत अनुमानित घाटे से उलट जीडीपी के घाटे में आ रही गिरावट को 0.3 प्रतिशत कम किया गया है. कृषि क्षेत्र, ग्रामीण विद्युतीकरण, ग्रामीण आवास योजना, मनरेगा आवंटन, सिंचाई योजना और फसल बीमा के क्षेत्र में व्यय कर ग्रामीण विकास और संरचना को मजबूती प्रदान की गयी है.
राधिका राव, अर्थशास्त्री, डीबीएस बैंक
जहां तक अप्रत्यक्ष कर की बात है तो यहां कोई प्रमुख बदलाव नहीं किये गये है. सरकार का यह कदम जीएसटी को जल्द से जल्द लागू करने की प्रतिबद्धता को दुहराता है. सेवा कर की दर में वृद्धि नहीं होने से आम आदमी खुश है. शुल्क संरचना को युक्तिसंगत बना कर घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देने की कोशिश की गयी है. कर प्रशासन पर ज्यादा जोर देना भी स्वागत योग्य कदम है.
प्रतीक पी जैन, पार्टनर व लीडर, अप्रत्यक्ष कर – पीडब्ल्यूसी
यह एक तर्कसंगत व व्यावहारिक बजट है और पूर्व के दोनों बजट की तरह ही आर्थिक प्रशासन को बनाये रखनेवाला बजट है. बजट से पता चलता है कि सरकार का उद्देश्य वृहत् पैमाने पर सुधार करना है.वित्त वर्ष 2018 के लिए आर्थिक घाटे का लक्ष्य 3.2 फीसदी रखा गया है, जो अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक होना चाहिए.
दिनेश ठक्कर, अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक, एंजेल ब्रोकिंग
बजट में पूंजीगत व्यय पर ध्यान दिया गया है और वित्त मंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि निजी पूंजीगत व्यय कुछ समय ले रहा है. इस समय की जरूरत सरकार द्वारा खर्च करना था- सरकारी पूंजीगत व्यय पिछले वर्ष की तुलना में 24 प्रतिशत अधिक है, जो कि सराहनीय है.
सुनील सिंघानिया, सीआइओ-इक्विटी इंवेस्टमेंट्स, रिलायंस एमएफ

Next Article

Exit mobile version