13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

असफल हो रहे भारतीय एडटेक स्टार्टअप्स, चीन से सीखें कामयाबी के सबक

पिछले वर्ष शिक्षण तकनीकों से जुड़े कई नव-उद्यमों के असफल होने की खबरें आयी थीं इनमें खास बात यह थी कि जरूरतों के मुताबिक उत्पादों को तैयार न कर पाना, बिक्री चक्र का लंबा होना और हिस्सेदारों की संख्या ज्यादा होने जैसी दशाएं कॉमन थीं़ दरअसल, हमारे देश में एडटेक यानी एजुकेशन टेक्नोलॉजी से जुड़े […]

पिछले वर्ष शिक्षण तकनीकों से जुड़े कई नव-उद्यमों के असफल होने की खबरें आयी थीं इनमें खास बात यह थी कि जरूरतों के मुताबिक उत्पादों को तैयार न कर पाना, बिक्री चक्र का लंबा होना और हिस्सेदारों की संख्या ज्यादा होने जैसी दशाएं कॉमन थीं़ दरअसल, हमारे देश में एडटेक यानी एजुकेशन टेक्नोलॉजी से जुड़े नव-उद्यमों के सफल होने में कई रुकावटें हैं

इन तमाम चुनौतियों के बावजूद भारतीय एडटेक मार्केट के फैलने की पर्याप्त गुंजाइश भी है. दुनियाभर के अनेक देशों के में ये चुनौतियां बरकरार हैं, फिर भी एडटेक बिजनेस न केवल फैल रहा है, बल्कि लाखों लोगों की जरूरतों को पूरा करते हुए उन पर सकारात्मक प्रभाव भी छोड़ रहा है. भारतीय एडटेक बिजनेस को जिन चुनौतियाें का सामना करना पड़ता है, उससे उद्यमियों को कम-से-कम यह समझने का मौका तो मिलता ही है, जो बिजनेस को सफलता की ओर ले जा सके. एडटेक स्पेस में ट्रेंड्स का मूल्यांकन करते समय हम अक्सर पश्चिम की ओर ही देखते हैं. हमें इस नजरिये में बदलाव लाना होगा और इस लिहाज से अब चीन की ओर देखने की जरूरत है. एडटेक स्टार्टअप्स से जुड़े विविध पहलुओं और उम्मीदों पर केंद्रित है आज का यह स्टार्टअप पेज …

खर्च करने की क्षमता : भारत और चीन, इन दोनों देशों में शिक्षा पर निजी रूप से किया जानेवाला खर्च दुनिया में सबसे ज्यादा है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है. इन दोनों देशों में ऐसी शिक्षा व्यवस्था संचालित हो रही है, जो रोजगार बाजार को बढा रहा है, और जहां प्रतिष्ठित कॉलेजों में कर्मचारियों की जरूरतें बढी हैं.

अभिभावकों में ऐसे शिक्षण संस्थानों में अपने बच्चों का दाखिला कराने की प्रवृत्ति नियमित रूप से बढ रही है. बाजार को इसी तरह के शिक्षा उत्पाद संचालित करते हैं. इसमें जुटेंगएक्स जैसे व्यापक ओपन ऑनलाइन कोर्स शामिल हैं, जो यूजर्स को उच्च-गुणवत्तावाले डिग्री कोर्सेज और विकीपिड्स जैसे लैंग्वेज सीखने वाले प्लेटफॉर्म्स तक पहुंच सुनिश्चित करते हैं. ये सभी चीन के बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी ट्यूटर मुहैया कराते हैं और चेंजिंगेदू जैसे स्टार्टअप स्कूल के बाद ट्यूशन प्लेटफॉर्म्स प्रदान करते हैं.

भारतीय एडटेक उद्यमियों को यह समझना होगा कि चीनी कंपनियां किस तरह शिक्षा के प्रति लोगों को अपनी इच्छा से खर्च करने की ओर प्रेरित करने में कामयाब हो पायी हैं.

बाजार का आकार : चीन में एजुकेशन प्रोडक्ट्स के लिए जितने बडे आकार का बाजार बनने का मौका सृजित हुआ है, उसके समानांतर केवल भारत में ही हो सकता है. ये दोनों देश दुनिया में दो बडी शिक्षा व्यवस्था हैं. दोनों ही देशों में उच्च शिक्षा में 2.5 करोड. से 3.5 करोड. लोग सालाना नामांकन कराते हैं. चीन में इनमें से करीब एक करोड वोकेशनल स्किलिंग संबंधी नॉन-डिग्री अवॉर्डिंग प्रोग्राम्स से जुडे होते हैं. भारत या चीन में एडटेक बिजनेस की कामयाबी के लिए यह जरूरी है कि वे शिक्षा व्यवस्स्था में मौजूद इतने बडे बाजार काे प्रभावी तरीके से इस्तेमाल में लायें.

बाजार में मौजूद आकर्षक फैक्टर्स का ही नतीजा कहा जायेगा कि वैश्विक फंडिंग के मुकाबले चीन की एडटेक कंपनियों में वर्ष 2014 में महज 17 फीसदी तक का ही निवेश हुआ था, जो वर्ष 2015 में बढ कर 37 फीसदी तक पहुंच गया. हालांकि, भारत में इस क्षेत्र में निवेश का स्तर यहां तक नहीं पहुंच पाया है, लिहाजा भारतीय एडटेक कंपनियों को मिलने वाले निवेश में बढोतरी की पूरी गुंजाइश है. इसके लिए भारतीय एडटेक कंपनियों को यह समझना होगा की चीन की कंपनियां वाकई में क्या नया कर रही हैं.

चीन का हुजियांग है बेहतरीन उदाहरण

हुजियांग चीन का सबसे बडा व्यापक ओपन ऑनलाइन कोर्स प्रोवाइडर है, जिसका यूजर बेस करीब 1.1 करोड तक अनुमानित है. यह दर्शाता है कि ऐसी दशाओं में बाजार में ग्रोथ की कितनी संभावनाएं मौजूद हैं.

हुजियांग ने किस तरह से यह उपलब्धि हासिल की, जानते हैं संक्षेप में :

गुणवत्ता : पहला फोकस कंटेंट की गुणवत्ता पर दिया गया. इस कंपनी ने शिक्षा को बतौर सर्विस इंडस्ट्री अपनाया और गुणवत्तापूर्ण सेवा मुहैया कराते हुए ब्रांड बनाया. अपनी तरक्की की राह में हुजियांग ने यह सुनिश्चित किया था कि बाजार में वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस और कोर्सेरा सरीखे कंटेंट मुहैया करायेगा.

पॉजिटिव यूनिट इकोनॉमिक्स : भारत में ज्यादातर एडटेक बिजनेस इसलिए संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि वे निगेटिव यूनिट इकोनॉमिक्स का नजरिया अपनाते हैं, जिसमें बिक्री का लंबा चक्र अपनाया जाता है और यूजर्स की संख्या बढाने पर ज्यादा जोर दिया जाता है. इस बिजनेस के नाकामयाब होने की यही सबसे बडी वजह बतायी गयी है. यह समझना कि हुजियांग द्वारा अपनाया जा रहा तरीका भारत में प्रभावी होगा या नहीं, मुश्किल नहीं है. भारत में इ-लर्निंग प्लेटफॉर्म बाइजू ने पिछले वर्षों के दौरान अच्छा निवेश हासिल किया है. यह कंपनी क्वालिटी प्रोडक्ट के जरिये प्रभावी शैक्षिक टूल मुहैया कराता है.

विखंडित बाजार : चीन का प्राइवेट एजुकेशन मार्केट अब भी व्यापक तौर पर विखंडित है. यदि के12 सेक्टर यानी नर्सरी से 12वीं तक की शिक्षा की बात की जाये, तो एक फीसदी से ज्यादा बाजार पर इस कंपनी का कब्जा है और पांच बडी कंपनियों का मूल्यांकन दर्शाता है कि इस पूरे सेक्टर में उनकी हिस्सेदारी केवल पांच फीसदी तक ही सीमित है. यानी इस क्षेत्र में विस्तार के लिए व्यापक अवसर मौजूद हैं.

तकनीकी रूप से दक्ष आबादी : एडटेक कंपनियों की ज्यादातर ग्रोथ ऑनलाइन लर्निंग सोलुशंस तक लोगों की पहुंच कामय करने से संबंधित है. चीन में इंटरनेट यूजर्स की संख्या नियमित रूप से बढ रही है. ऑनलाइन लर्निंग के लिहाज से यह ज्यादा महत्वपूर्ण है. ताओबाओ क्लासमेट ने पहले ही साल में 10 लाख से ज्यादा यूजर्स रजिस्टर कराये. इस कंपनी ने बी2सी यानी बिजनेस टू कंज्यूमर ऑनलाइन लर्निंग मार्केट में मजबूती से ग्रोथ हासिल की है.

इस बात को मानने का कोई कारण नहीं है कि चीन में जिस तरह से बी2सी सेल्स अप्रोच कामयाब हुआ है, वह भारत में कामयाब नहीं हो सकता. दोनों ही देशों में शिक्षा के प्रति खर्च करने के प्रति लोगों का रवैया समान देखा गया है और समान रूप से शिक्षा का बाजार भी विखंडित है. शायद बी2सी की सफलता इंटरनेट तक पहुंच की दर पर भी निर्भर होगी, जिस लिहाज से भारत अब चीन से महज 18 फीसदी पीछे रह गया है और उम्मीद जतायी जा रही है कि आनेवाले बहुत कम दिनों में भारत इसमें काफी प्रगति करेगा. लिहाजा, चीन की तर्ज पर यह बिजनेस मॉडल भारत में भी कामयाब होने की पूरी गुंजाइश है.

टेक स्टार्टअप्स के ग्रोथ के लिए मौजूद हैं भरपूर मौके

रोजाना नयी मार्केटिंग टेक्नोलॉजी कंपनियां उभर रही हैं और इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए. इनावेेशन के जरिये मार्केटिंग इंडस्ट्री परिपक्व हो रही है. संभावना जतायी जा रही है कि टीवी पर डिजिटल एडवर्टाइजिंग का कब्जा हो जायेगा और ब्रांड के प्रचार का यह व्यापक जरिया हो जायेगा. बाजार में रोजाना ज्यादा-से-ज्यादा इनवेंटरी के सामने आने के कारण एडटेक स्टार्टअप्स को उन तरीकों की तलाश करनी होगी, जिसके जरिये वे ज्यादा बेहतर सेवाएं मुहैया करा सकें. पिछले एकाध सालों के दौरान देखने में आ रहा है कि नये स्टार्टअप्स के लिए कामयाबी के मौके सिमट रहे हैं. ऐसे में उद्यमिता और तकनीक के मिश्रित अनुभव से ग्राहकों को संतुष्ट करते हुए इस सेक्टर में कामयाबी हासिल की जा सकती है. इसलिए इन चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है :

वास्तव में कठिन समस्या को सुलझाना : बाजार में अपनी जगह बनाने के लिए आपको यह पता करना होगा कि अन्य कंपनियां ग्राहकों के लिए क्या कर रही हैं. क्या ग्राहकों की कोई समस्या है, जिसका अभी तक कम खर्च या सरलता से समाधान नहीं हो पाया है. इसी में आपके कारोबार की कामयाबी छिपी है. आपको अपने प्रोडक्ट या सर्विस के जरिये ग्राहकों की वास्तविक रूप से कठिन समस्याओं को सुलझाना होगा. और यदि आप इस दिशा में सफल रहे, तो फिर बाजार में अनेक कंपनियों के बीच आप कामयाबी की ओर बढ़ते जायेंगे.

ग्राहक सेवा पर जोर : ज्यादातर स्टार्टअप संचालनकर्ता उद्यम की शुरुआत करते ही निवेश हासिल करने पर जोर देने लगते हैं. जबकि सबसे पहले ग्राहक सेवा पर ध्यान देना चाहिए. यदि ग्राहक आपके प्रोडक्ट या सर्विस से संतुष्ट होंगे और निवेशकों को उसका फिडबैक अच्छा मिलेगा, तो वे खुद आपके स्टार्टअप में निवेश करना चाहेंगे. यदि आप ऐसा करने में कामयाब नहीं रहे, तो निवेशक आकर्षित नहीं होंगे.

अपने डोमेन में विशेषज्ञता : आपको पूरे डोमेन का मास्टर होना चाहिए. इसके लिए आपको बाजार की पूरी समझ होना सबसे जरूरी फैक्टर है. आपके पास केवल इमेल मार्केटिंग एक्सपर्ट नहीं होने चाहिए, बल्कि आपको यह तय करना होगा कि आपकी टीम के लोग पेड सोशल एडवर्टाइजिंग से लेकर मीडिया रिलेशंस तक के मास्टर्स होने चाहिए, ताकि वहां मौजूद संभावनाओं काे अपने हित में भुना सकें.

तकनीकी दक्षता हासिल हो : इसके अलावा, आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपकी टीम के सभी सदस्य तकनीकी रूप से दक्ष होने के साथ नये बदलावों को तत्काल स्वीकारते हुए उसके अनुरूप कार्य में ढाल सकें. आपको हमेशा अपने आस-पास ऐसे ही लोगों को रखना चाहिए, जो कार्यकुशल हों और आपको बेहतर सलाह दे सकें.

भारत में बेशुमार मौके

भारत में इसके लिए बेशुमार मौके उपलब्ध है. बडी आबादी, शिक्षा पर खर्च करने की लोगों की इच्छाशक्ति और फंडिंग की उपलब्धता को देखते हुए चीन और भारत, दोनों ही देशों में एडटेक स्टार्टअप्स के लिए अपार अवसर मौजूद हैं. शिक्षा के क्षेत्र में सेवाएं मुहैया कराते हुए चीन में उद्यमियों ने बाजार में मौजूद इन खासियतों का फायदा उठाया है और अपने कारोबार को अरबों डॉलर के टर्नओवर तक ले जाने में कामयाबी पायी है. इसके लिए इन उद्यमियों ने मुख्य रूप से इन रणनीतियों का इस्तेमाल किया :

– उच्च गुणवत्तायुक्त कंटेंट.

– पॉजिटिव यूनिट इकोनॉमिक्स.

– बी2सी के जरिये प्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों तक सेवा मुहैया कराना.

हालांकि, चीन और भारत के एडटेक मार्केट में कुछ हद तक असमानताएं भी हैं, लेकिन अनेक ऐसे फैक्टर मौजूद हैं, जिनके माध्यम से भारतीय उद्यमी इस दिशा में अपनी राह आसान बना सकते हैं. चूंकि चीन में संबंधित बाजार की दशाएं कमोबेश भारत की तरह हैं, लिहाजा चीन का बिजनेस मॉडल इस दिशा में उनके लिए पथप्रदर्शक हो सकता है.

स्रोत : टेक इन एशियाप्रस्तुति

– कन्हैया झा

स्टार्टअप क्लास

फास्ट फूड चेन के लिए फ्रेंचाइजी देने से बेहतर है खुद आगे बढ़ाना

दिव्येंदु शेखर

स्टार्टअप, इ-कॉमर्स एवं फाइनेंशियल प्लानिंग के विशेषज्ञ

– मैं रांची में एक फास्ट फूड चेन चलाता हूं, जिसकी चार शाखाएं हैं. मैं अब व्यापार बढ़ाना चाहता हूं. मेरी इच्छा है कि नये शहरों में जाऊं और कुछ फ्रेंचाइजी भी बांटूं. साथ में पूंजी भी जुटाना चाहता हूं.

कृपया सलाह दें.

अरूण कुमार, रांची

देखिये, फास्ट फूड मुनाफे वाला धंधा है और इसे खड़ा करने में पूंजी भी ज्यादा नहीं लगती है. यदि आपकी जगह मैं होता, तो फ्रेंचाइजी नहीं बांटता और खुद ही पूंजी जुटा कर काम बड़ा करता. इसके दो प्रमुख कारण हैं:

(क) फ्रेंचाइजी पर आपकी पकड़ : ज्यादातर मामलों में फ्रेंचाइजी उन शहरों में होते हैं, जहां आपकी मौजूदगी नहीं होती या फिर वहां तक आप की पहुंच दूर होती है. इस कारण कई बार देखा गया है कि फ्रेंचाइजी आपके ब्रांड का गलत इस्तेमाल कर कुछ और ही बेचने लगते हैं. साथ ही आपके साथ उनका अनुबंध एक या दो दुकानों का होगा, लेकिन वे आपकी जानकारी के बिना ही कुछ और दुकानें खोल देंगे, जिसके मुनाफे में से आपको कुछ नहीं मिलेगा. साथ ही उनकी सुविधाएं आपकी इच्छा के मुताबिक नहीं होतीं, जिस कारण अगर ग्राहकों की नाराजगी हुई, तो आपको उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. कितनी बार यह भी देखा गया है कि अनुबंध समाप्त होने के बाद भी वे आपके ब्रांड का इस्तेमाल करते रहते हैं, जिस कारण कानूनी अड़चनें भी आती हैं. मैक्डोनाल्ड्स का उत्तर भारतीय फ्रेंचाइजी का मामला काफी चर्चित रहा, जिस कारण पूरे पांच साल तक कंपनी को अदालती कार्यवाही में फंसना पड़ा और व्यापार में नुकसान भी उठाना पड़ा.

(ख) मुनाफे पर पकड़ : ज्यादातर फ्रेंचाइजी उस केस में बांटे जाते हैं, जहां मुनाफे का प्रतिशत कम हो और दुकानें खड़ी करने की लागत ज्यादा आती हो. चूंकि फास्ट फूड में मुनाफा ज्यादा है और दुकान खड़ी करने की लागत कम, लिहाजा आप मुनाफा किसी और के साथ क्यों बांटना चाहते हैं.

आप दो अन्य तरीकों से भी पूंजी जुटा सकते हैं :

(क) निवेशक : चूंकि आप आप चार अच्छे चल रहे रेस्टोरेंट के मालिक हैं, तो कई निवेशक आपके यहां निवेश करने के इच्छुक होंगे. आप वेंचर कैपिटल फंड से बात कर के देखें. आजकल उनका ध्यान खान-पान वाली कंपनियों में ज्यादा है. वे आपके यहां निवेश कर सकते हैं.

(ख) बैंक : चूंकि आपका कारोबार अच्छा चल रहा है, जो मेरे हिसाब से मुनाफा भी कमाती होगी, तो ऐसे में बैंक आपको लोन देने में पीछे नहीं हटेंगे. आपको अपना बिजनेस प्लान अच्छे से बना कर उनके पास जाना होगा. गिरवी के तौर पर आप अपने मौजूदा दुकानों के माल-असबाब को रख सकते हैं. चूंकि अभी ब्याज दरें नीची हैं, इसीलिए आपको सस्ता लोन मिल जायेगा.

पटना में रहते हुए भी शुरू

कर सकते हैं एनीमेशन का काम

– मैं एनीमेशन की डिग्री ले कर आया हूं और किसी कारण से मैं पटना से बाहर काम नहीं कर सकता. मैं यहां एनीमेशन स्टूडियो खोल सकता हूं क्या? िववेक, रांची

देखिये एनीमेशन एक अच्छा बिजनेस है, जो आजकल काफी डिमांड में भी है. आप पटना में बैठे-बैठे बाहर से भी काम ले सकते हैं. जानते हैं कौन-कौन से लोग इसका इस्तेमाल करते हैं:

(क) फिल्म और टीवी स्टूडियो : आजकल फिल्म और टीवी में काफी स्पेशल इफेक्ट्स डाले जाते हैं और साथ ही एनीमेशन के द्वारा शुरुआती ग्राफिक्स भी बनते हैं. चूंकि आप पटना में हैं, जहां लोकल चैनल और लोकल फिल्म इंडस्ट्री है, लिहाजा आपको शुरुआती काम वहीं मिल सकता है. धीरे-धीरे आप बड़े शहरों से भी काम ले सकते हैं.

(ख) एडवरटाइजिंग : काफी सारे ब्रांड्स भी एनिमेटेड एडवरटाइजिंग करते हैं, क्योंकि यह कम खर्च में हो जाती है. आप स्थानीय एडवरटाइजिंग एजेंसी से बात करके देखें. आपको काफी काम मिल जायेगा.

(ग) पब्लिशर : आजकल स्कूल बड़े पैमाने पर इ-लर्निंग का काम कर रहे हैं, जहां छोटे बच्चों को एनीमेशन के द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती है. हालांकि, इन कोर्स को बनाने का काम अभी भी पब्लिशर ही करते हैं. आपको वहां से भी काफी काम मिल सकता है.

(घ) सरकारी विभाग : अनेक सरकारी विभाग काफी छोटे-मोटे एनीमेशन फिल्में बनवाते रहते हैं.

इसका मुख्य कारण सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार होता है. लेकिन ऐसा काम करने के लिए आपको पहले प्राइवेट कंपनियों के साथ काम करने का अनुभव होना चाहिए. इसीलिए मेरी सलाह है कि आप पहले छोटा-मोटा काम उठाएं और आगे बढ़ें. धीरे-धीरे आपको खुद ही बड़े काम मिलने लगेंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें