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संवाद का तरीका बदल रहा डिजिटल मीडिया

डिजी टेक भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में व्यापक आबादी डिजिटल टेक्नोलॉजी के जरिये सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती है. इसने संवाद का तरीका बिल्कुल बदल दिया है. हालांकि, सोशल नेटवर्किंग के इस्तेमाल की अनेक खूबियां सामने आयी हैं और लाेग उसका भरपूर लाभ उठा रहे हैं, लेकिन साथ ही नकारात्मक नतीजे भी दिखने […]

डिजी टेक
भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में व्यापक आबादी डिजिटल टेक्नोलॉजी के जरिये सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती है. इसने संवाद का तरीका बिल्कुल बदल दिया है. हालांकि, सोशल नेटवर्किंग के इस्तेमाल की अनेक खूबियां सामने आयी हैं और लाेग उसका भरपूर लाभ उठा रहे हैं, लेकिन साथ ही नकारात्मक नतीजे भी दिखने शुरू हो गये हैं. डिजिटल और सोशल मीडिया के जरिये कैसे बदल रहा है हमारे संवाद का तरीका, विविध देशों में लोगों की क्या सोच है इस बारे में और इससे संबंधित अनेक मसलों पर फोकस है आज का साइंट टेक्नोलॉजी पेज …
मीडिया, मनाेरंजन और इन्फोर्मेशन के साथ किस तरह हमारा जुड़ाव तेजी से बढ़ रहा है, तकनीकी इनोवेशन इसे अधिकतम रूप से प्रभावित कर रहे हैं. लोग किस तरह से एक-दूसरे से संपर्क कायम करते हैं और सामूहिक रूप से बातचीत करते हैं, इसे भी वह प्रभावित कर रहा है. बड़ी बात यह कि इसकी अगुवाई नयी पीढ़ी कर रही है. इसे व्यापक सांस्कृतिक नतीजों के तौर पर महसूस किया जाने लगा है. सामाजिक परियोजनाओं के लिए डिजिटल मीडिया के भविष्य का अनुमान लगाना अब अपने तीसरे चरण में है, जिससे समाज में नये मीडिया प्लेटफॉर्म्स, सर्विसेज और कंटेंट के बढ़ते इस्तेमाल से पैदा हो रही चुनौतियों से निबटने में मदद मिल सकती है.
इनमें से एक बड़ी चुनौती है- विभिन्न समुदायों में उन्नत डिजिटल मीडिया साक्षरता या डिजिटल इंटेलिजेंसी (डीक्यू) की जरूरत. उच्च डीक्यू ने इस प्लेटफॉर्म पर ज्यादा सक्रिय और स्वयं-जागरूक डिजिटल व्यस्तता के नतीजे को साबित किया है और इस बात के प्रति भरोसा पैदा किया है कि ये आखिरी उपभोक्ता अपने-अाप में सर्विस प्रोवाइडर्स और ब्रांड्स बन चुके हैं.
इसके अलावा, उन्नत डीक्यू सूचना को बढाने और कंटेंट की सत्यता साबित करने में योगदान दे सकते हैं. इससे ट्रॉलिंग, बुलिंग और अतिवादी विचारों को प्रसारित करने जैसे नुकसान पहुंचानेवाले साइबर व्यवहारों में कमी आयेगी. साथ ही पर्सनल डाटा मैनेजमेंट और प्राइवेसी को ज्यादा-से-ज्यादा उन्नत किया जा सकता है. आज जरूरत इस बात की है कि शिक्षा और ट्रेनिंग कार्यक्रमों में डीक्यू स्पेशलाइज्ड पाठ्यक्रमों को शामिल करते हुए समाज और उद्योग को इसका लाभ लेना चाहिए.
उद्देश्य
सूचना और मनोरंजन प्रणाली के दायरे में आनेवाले इस तरह के बदलाव लानेवालों को प्रोत्साहित व उनका समर्थन करना चाहिए, ताकि ज्यादा-से-ज्यादा लोगों तक तथ्यात्मक रूप से विश्वसनीय और प्रासंगिक कंटेंट का प्रवाह बनाया जा सके, जिससे नागरिकों को उन्नत संसाधन मुहैया कराते हुए उन्हें इस लिहाज से दक्ष बनाया जा सकेगा.
पहला चरण
पहले चरण में इस पहल के तहत सूचना, मनोरंजन और मीडिया प्लेटफॉर्म्स के साथ हमारे बदलते संबंधों के व्यापक विचारों का सृजन हुआ है. इससे यह भी निर्धारित हो रहा है कि यह हमारी आबादी की निजी और पेशेवर जिंदगी को किस तरह से प्रभावित कर रहा है. इसने नागरिकों समेत प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर्स के लिए नींव डालने का काम किया है, जो निगेटिव परिणामों से सक्षम तरीके से निपटते समय हाइपरकनेक्टिविटी के सकारात्मक नतीजों को प्रोत्साहित करने की तरह काम करता है.
दूसरा चरण
दूसरे चरण के तहत मुख्य रूप से दो महत्वपूर्ण चीजों पर फोकस किया गया है :
(क) सामान्य ऑनलाइन आबादी का मानदंड तय करते समय प्रमुख व्यक्तिगत आंकडों और प्राइवेसी कॉन्सेप्ट की समझ और
(ख) प्लेटफॉर्म्स और सर्विसेज मुहैया करानेवालों के साथ व्यक्तिगत रूप से संबंध कायम करने के लिए व्यक्तिगत आंकड़ों और प्राइवेसी लिटरेसी को आपस में लिंक करना.
नागरिकों में डिजिटल इंटेलिजेंस को उन्नत करने के लिए इन सभी प्रमुख संसाधनों के बीच आपसी भरोसे को उभारना सबसे जरूरी फैक्टर है.
सोशल मीडिया यूजर्स से संबंधित कुछ तथ्य 20 करोड़ से ज्यादा सोशल मीडिया एक्टिव यूजर्स हैं भारत में.
– 6 से 10 बजे के बीच, संध्याकाल में ज्यादातर भारतीय भारतीय यूजर सक्रिय रहते हैं सोशल नेटवर्किंग पर.
– मुंबई और दिल्ली से सबसे ज्यादा आता है सोशल नेटवर्किंग ट्रैफिक.
– भारत में सोशल नेटवर्किंग पर सबसे ज्यादा लोग फेसबुक पर सक्रिय हैं.
85 फीसदी फेसबुक यूजर्स मोबाइल फोन से कनेक्टेड हैं.
– 17 से 24 वर्ष उम्र समूह के हैं सबसे ज्यादा एक्टिव यूजर्स.
– फेसबुक यूजर्स दिन में औसतन तीन बार इस साइट का अवलोकन करते हैं.
60 फीसदी से ज्यादा एक्टिव सोशल मीडिया यूजर्स कॉलेज के छात्र हैं.
– 77 फीसदी ऑनलाइन उत्पाद खरीदनेवाले इन उत्पादों तक सोशल मीडिया के जरिये पहुंचते हैं.
2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था भारत में इ-कॉमर्स का कारोबार वर्ष 2016 में.
4 लाख करोड़ रुपये तक होने का अनुमान लगाया गया है भारत में इ-कॉमर्स का कारोबार वर्ष 2017 के दौरान. (स्रोत : विविध वेबसाइट)
भारत में डिजिटल आबादी
सक्रिय इंटरनेट यूजर्स 46.21 करोड
सक्रिय मोबाइल इंटरनेट
यूजर्स 44.27 करोड
सक्रिय सोशल मीडिया यूजर्स 19.1 करोड
सक्रिय मोबाइल सोशल मीडिया
यूजर्स 16.7 करोड
(स्रोत : स्टेटिस्टा डॉट कॉम) (आंकड़े जनवरी, 2017 तक)
व्यक्तियों, संगठनों और समाज पर डिजिटल मीडिया का असर
डिजिटल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल से आम इनसान की रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव आ रहा है. अपने कामकाज, सिविल सोसायटी और व्यापक सामाजिक संदर्भों के दायरे में एक आम अादमी किस तरह से संपर्क और संयोजन का काम करता है, इसमें भी काफी परिवर्तन आया है.
‘वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसके व्यापक इस्तेमाल का नतीजा देखने में आया है कि इससे व्यक्ति और समाज, दोनों ही को इसका फायदा हो रहा है. समय, स्थान और सामाजिक संदर्भों की सीमाओं को लांघते हुए इसने कम्युनिकेशन, सोशल इंटरेक्शन और कम्युनिटी बिल्डिंग का अनोखा स्तर कायम किया है. काम करने के अनेक तरीकों की तरह, सीखने की अनेक विधियां संभावित हैं, जो दुनियाभर में वंचित समुदायों और क्षेत्रों में लोगों को बेहतर अवसर मुहैया करा रहे हैं.
सभी नतीजे नहीं होते सकारात्मक
विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल मीडिया के इस्तेमाल के सभी नतीजे सकारात्मक नहीं पाये गये हैं. इस संबंध में किये गये अनेक शोध रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि इनसान जब डिजिटल मीडिया का अत्यधिक इस्तेमाल करने लगता है, तो इससे उसके संज्ञानात्मक और व्यावहारिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. यहां तक कि इससे उसका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है. हाइपरकनेक्टिविटी, लोगों और वस्तुओं के बढ़ते डिजिटल इंटरकनेक्शन में सोशल इंटरेक्शन के पैटर्न को बदलने में सक्षम रहे हैं. जैसे फेस-टू-फेस बातचीत को ऑनलाइन इंटरेक्क्शन ने पूरी तरह से बदल दिया है.
इसके अलावा, कार्य का वृहत्त तकनीकी समर्थकारी जॉब्स की सुरक्षा की चुनौती पैदा कर सकता है, जिसे पारंपरिक रूप से विकसित दुनिया में स्किल्ड के रूप में समझा जाता है.
अलग-अलग देशवासियों का पृथक-पृथक नजरिया
डिजिटल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल का किसी व्यक्ति विशेष पर सकारात्मक असर पड़ता है या नकारात्मक, यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि वह अपनी जिंदगी किस तरह से जीता है.
डिजिटल मीडिया सर्वे का निहितार्थ यह दर्शाता है कि जर्मनी और अमेरिका से इस संबंध में केवल एक-चाैथाई लोग यह सोचते हैं कि डिजिटल मीडिया के योगदान से उनके सामाजिक जीवन, प्रोफेशनल समेत संपूर्ण जीवन में गुणात्मक रूप से बदलाव आया है. इससे कुछ हद तक आगे ब़ढते हुए, इस सर्वे में हिस्सा लेनेवाले ब्राजील और चीन के करीब दो-तिहाई लोगों ने इस हकीकत को स्वीकार किया है.
कुछ लोगों के जीवन में उन्नति लाने के बावजूद उनकी घट रही दिलचस्पी
ब्राजील और चीन में इस संबंध में एक दिलचस्प तथ्य यह भी उभर कर सामने आया है कि इन देशों में ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि डिजिटल मीडिया ने उनके जीवन को उन्नत बनाया है, इसके बावजूद वे कहते हैं कि इसका इस्तेमाल कम होना चाहिए. हालांकि, जर्मनी और अमेरिका के लोगों में इस बारे में मत-भिन्नता है.
जर्मनी के केवल 20 फीसदी और अमेरिका के करीब 25 फीसदी लोग ही यह सोचते हैं कि उन्हें डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल कम करना चाहिए. अपनेआप में यह बेहद महत्वपूर्ण है कि डिजिटल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल से संबंधित जोखिमों और अवसरों को समझा जाये, ताकि इंडस्ट्री और यूजर्स, दोनों ही यह सीख सकें कि इसके फायदों को कैसे विस्तार दिया जा सके और इसके नकारात्मक नतीजों को कैसे कम किया जा सके.
कन्हैया झा

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