तमिलनाडु में सत्ता के लिए खींचतान
तमिलनाडु का राजनीतिक इतिहास आज भी फिर उसी रास्ते पर खड़ा है, जहां अपनों के बीच उभरे टकराव राज्य की राजनीति की दिशा बदलते रहे हैं. मतभेदों और गतिरोधों से मचे खींचतान ने कभी किसी को उठाया, तो किसी के राजनीतिक कैरियर को इतिहास में समेट दिया. कभी कांग्रेस से अलग होकर इवी रामास्वामी ने […]
तमिलनाडु का राजनीतिक इतिहास आज भी फिर उसी रास्ते पर खड़ा है, जहां अपनों के बीच उभरे टकराव राज्य की राजनीति की दिशा बदलते रहे हैं. मतभेदों और गतिरोधों से मचे खींचतान ने कभी किसी को उठाया, तो किसी के राजनीतिक कैरियर को इतिहास में समेट दिया. कभी कांग्रेस से अलग होकर इवी रामास्वामी ने द्रविड़ आंदोलन डीके (द्रविड़ कषगम) की नींव रखी थी. फिर अन्नादुरई की डीएमके और उसके बाद एमजीआर की एआइएडीएमके राज्य की राजनीति पर हावी हुई. एमजीआर के निधन के बाद जानकी रामचंद्रन और जयललिता आमने-सामने थीं, तो आज जयललिता के जाने बाद उनके सहयोगी रहे पन्नीरसेल्वम और शशिकला नटराजन के बीच पार्टी व राज्य का मुखिया बनने के लिए खींचतान मची है. राज्य में उत्पन्न मौजूदा राजनीतिक संकट के संदर्भ में तमाम आशंकाओं के साथ खड़े हो रहे सवालों और विशेषज्ञों के कयासों के साथ प्रस्तुत है इन दिनों…
राजनीतिक अनिश्चितता में तमिलनाडु
आर राजगोपालन, वरिष्ठ पत्रकार
तमिलनाडु में एक बहुत बड़ा राजनीतिक संकट जारी है. पन्नीरसेल्वम और शशिकला खेमों के द्वारा नाटक चल रहा है. राज्यपाल का रवैया बहुत धीमा है. कहानी आगे नहीं बढ़ रही है. इसका परिणाम यह है कि राज्य में पिछले 10-12 दिनों से कोई सरकार नहीं है और प्रशासन थम गया है. कानून व्यवस्था की हालत बिगड़ रही है. आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में शशिकला के ऊपर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पहले राज्यपाल विद्यासागर राव किसी तरीके के कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं. तब तक राव चुप बैठे रहेंगे. हालांकि, वे निवर्तमान और संभावित मुख्यमंत्रियों से मुलाकात कर यह जरूर दिखा रहे हैं कि वे संकट का राजनीतिक हल तलाशने की कोशिश में हैं.
अन्ना द्रमुक विभाजित है. करुणानिधि की बीमारी के बाद द्रमुक कमजोर हुआ है. द्रविड़ आंदोलन का शीर्ष नेतृत्व कहां है? खासकर हाल में जलीकट्टू को लेकर मरीना बीच पर हुए छात्रों के आंदोलन के बाद क्या आम आदमी पार्टी जैसा और अरविंद केजरीवाल की कोई नकल तमिलनाडु में उभर सकेगा? तमिलनाडु में राजनीति निहायत निचले स्तर पर पहुंच चुकी है और अब इसमें किसी बेहतरी की कोई गुंजाइश नहीं है. उदाहरण के लिए, राज्य में कांग्रेस के पास आठ विधायक हैं, जो द्रमुक के समर्थन से निर्वाचित हुए हैं. लेकिन कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष का कहना है कि इन विधायकों को शशिकला का समर्थन करना चाहिए. यह 2016 के विधानसभा चुनाव में द्रमुक और कांग्रेस को मिले व्यापक जन-समर्थन के बिल्कुल उलट है. इस तरीके का विरोधाभास वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के जेहन में बैठ चुका है. पी चिदंबरम नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस के विधायक शशिकला को समर्थन दें. तमिलनाडु में कांग्रेस विभाजित है. उधर द्रमुक के नेता एमके स्टालिन ने कहा है कि अगर विधानसभा में विश्वास मत की स्थिति आती है, तो उनकी पार्टी पन्नीरसेल्वम का समर्थन करेगी.
इस उहा-पोह की स्थिति में जो दूरगामी घटनाएं आकार ले रही हैं, वे बहुत डरावनी हैं. क्या इसका मतलब यह है कि तमिलनाडु में भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के लिए कोई जगह नहीं होगी? अपने जीवन काल में जयललिता ने भाजपा के मुख्य मुद्दे- अयोध्या में राममंदिर का निर्माण- का समर्थन किया था. पिछले साल के चुनाव के घोषणापत्र में भी अन्ना द्रमुक ने साफ लिखा था कि पार्टी राममंदिर बनाये जाने का समर्थन करती है. तमिलनाडु के मौजूदा हालात में उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु के राज्यपाल स्थायी रूप से नियुक्त नहीं हैं. वे कार्यकारी हैं. मुख्यमंत्री भी कार्यकारी हैं. शशिकला पद ग्रहण करने का इंतजार कर रही हैं. जिस राज्य ने सी राजगोपालाचारी, कामराज, सी सुब्रह्मण्यम, सीएन अन्नादुरई जैसे बड़े नेताओं को जन्म दिया है, आज वह एक नेता पाने के लिए संघर्षरत है.
तमिलनाडु के संकट के कई पहलू हैं- कानूनी लड़ाईयां, जिनमें जयललिता के 75 दिनों तक अस्पताल में जुड़ा हुआ है और अब यह राजनीतिक घटनाक्रम. अभी यहां आठ राज्यस्तरीय पार्टियां, चार राष्ट्रीय पार्टियां, और अनेक जिला स्तर के जाति आधारित राजनीतिक संगठन हैं. क्षेत्रीय समूहों के अलावा सांस्कृतिक और पारंपरिक तमिल स्वैच्छिक संगठन भी सक्रिय रहते हैं, जिन्हें प्रतिबंधित उग्रवादी गुटों का समर्थन प्राप्त है. ये सारी बातें यही संकेत कर रही हैं कि तमिलनाडु को राजनीतिक स्थिरता के लिए एक बड़े नेता की जरूरत है.
शशिकला के शपथ में देरी ठीक नहीं
प्रो फैजान मुस्तफा वाइस चांसलर, नलसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ
तमिलनाडु में राजनीतिक संकट की स्थिति में राज्यपाल की भूमिका एक बार फिर महत्वपूर्ण हो गयी है. तमिलनाडु में मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल गैरजरूरी देरी कर रहे हैं. हमारा अनुभव यह इंगित करता है कि आजाद भारत में राज्यपालों के कृत्यों से संघीय ढांचे और संवैधानिक मानदंडों को लगातार नुकसान हुआ है. अरुणाचल प्रदेश के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसी टिप्पणी की थी. इस लिहाज से भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल कांग्रेस की पूर्व सरकारों द्वारा नियुक्त राज्यपालों से भिन्न नहीं है. संविधान सभा में कहा गया था कि राज्यपाल को राज्य के लोग ही चुनेंगे, लेकिन मौजूदा वक्त में राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रति निष्ठावान हैं और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगे हैं. इसलिए आज जरूरत इस बात की है कि संविधान सभा के उस प्रस्ताव को स्थापित किया जाये.
महाराष्ट्र के राज्यपाल सी विद्यासागर राव पिछले छह महीने से तमिलनाडु के राज्यपाल की जिम्मेवारी भी संभाल रहे हैं. यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि करीब आठ करोड़ की आबादी के राज्य में नियमित राज्यपाल क्यों नहीं है. तमिलनाडु के मसले पर विचार करते हुए मुख्यमंत्री की नियुक्ति के बारे में संविधान में उल्लिखित प्रावधानों पर नजर डालना जरूरी है. अनुच्छेद 164(1) में कहा गया है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेगा, लेकिन उसमें यह स्पष्ट नहीं कहा गया है कि बहुमत प्राप्त पार्टी का नेता ही मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया जायेगा. त्रिशंकु विधानसभा या दल-बदल से मुख्यमंत्री का बहुमत खोने की स्थिति में राज्यपाल के पास अपने स्तर पर कुछ करने का मौका मिलता है. लेकिन, स्थापित परंपरा यह है कि इस मामले में राज्यपाल को असीमित विशेषाधिकार नहीं हैं. विशेषाधिकार का अर्थ अनियंत्रित या मनमानी ताकत नहीं होता है. राज्यपाल के पास बहुमत प्राप्त दल के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के अलावा कोई चारा नहीं है. इस तरह की संवैधानिक परंपराएं उतनी ही महत्वपूर्ण या पवित्र हैं, जितनी कि संविधान में लिखी बातें.
मुख्यमंत्री का इस्तीफा कोई साधारण इस्तीफा नहीं होता है, जैसे कि कोई अधिकारी इस्तीफा दे दे, तो उसे नामंजूर कर दिया जाता है. अगर किसी मुख्यमंत्री ने एक बार इस्तीफा दे दिया, तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता. चार फरवरी को अन्ना द्रमुक विधायक दल ने वीके शशिकला को नेता चुना था. शशिकला का नाम निवर्तमान मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम ने प्रस्तावित किया था, जिन्होंने उनका रास्ता साफ करने के लिए इस्तीफा भी दे दिया. जयललिता की मृत्यु के कुछ ही घंटे बाद मौजूदा राज्यपाल ने ही पन्नीरसेल्वम को शपथ दिला दी थी. इससे साफ होता है कि राज्यपाल जान-बूझ कर शशिकला को शपथ दिलाने में देरी कर रहे हैं, जबकि शशिकला के पास पर्याप्त संख्या में विधायकों का समर्थन है. अब उम्मीद यही है कि राज्यपाल कोई राजनीति खेले बिना अपना संवैधानिक दायित्व पूरा करेंगे. बहुमत के अलावा किसी और आधार पर निर्णय में देरी बेमानी है.
पन्नीरसेल्वम : चाय की दुकान से चीफमिनिस्टर तक
< दक्षिण भारत की थेवर जाति से आनेवाले ओ पन्नीरसेल्वम का राजनीतिक कैरियर तमाम संघर्षों से भरा रहा है.
< ओपीएस नाम से मशहूर पन्नीरसेल्वम के बचपन का नाम पेचीमुथी था, बाद में उन्होंने अपना नाम परिवर्तित कर लिया. पन्नीरसेल्वम आठ भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं.
< उनके पिता ओट्टकारा थेवर और मां पजानिअम्मा उपजाऊ जमीन की तलाश में कभी पेरियाकुलम पहुंचे थे और खेती-किसानी के लिए यहीं बस गये. बाद में थेवर ने साहूकार के रूप में स्थानीय समुदायों के बीच अपनी पहचान कायम की.
< पारिवारिक विरासतों से मिले लाभ से पन्नीरसेल्वम ने 80 के दशक में तेजी से तरक्की की. हालांकि, इस दौर में उन्होंने चाय की दुकान चलायी और बाद में डेयरी उद्योग शुरू किया.
< अस्सी के दशक में पिता के निधन के बाद एमजीआर से प्रभावित होकर पन्नीरसेल्वम ने अपना रुख राजनीति की तरफ कर लिया. बाद में पन्नीरसेल्वम एआइएडीएमके में शामिल होकर पूर्णकालिक राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की.
< राजनीति में आने के बाद एआइएडीएमके में ओपीएस का कद बढ़ता गया. लेकिन, 2001 के बाद से वह जयललिता के कैबिनेट में महत्वपूर्ण पदों पर रहे. पार्टी के प्रति निष्ठा ही उन्हें वित्त, लोक निर्माण विभाग जैसे बेहद महत्वपूर्ण पदों पर काबिज होने में मदद की.
< ओपीएस ने कभी पेरियाकुलम नगर निगम का चेयरमैन बनने का सपना देखा था, लेकिन भाग्य ने उनको इससे कहीं अधिक दिया. वर्ष 1996 में उनका सपना पूरा हुआ और वह न केवल कैबिनेट स्तर तक पहुंचे, बल्कि राज्य के मुख्यमंत्री भी बने.
< एमजी रामचंद्रन के निधन के बाद 1987 में एआइएडीएमके दो फाड़ हो गयी. शुरू में ओपीएस एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन के नेतृत्व वाले धड़े में शामिल हो गये. हालांकि, बाद में जयललिता के उभार और उनकी बढ़ती लोकप्रियता से प्रभावित होकर वह जयललिता के धड़े में शामिल हुए और खुद को पार्टी और जयललिता के लिए पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया.
< वर्ष 2001 में वह राज्य विधानसभा के लिए चुने गये और उन्हें कैबिनेट में राजस्व विभाग सौंपा गया. जयललिता सरकार में वित्त और लोक निर्माण विभाग का भी कार्य बखूबी निभाया.
< जयललिता के जेल जाने के दौरान उन्होंने दो बार मुख्यमंत्री पद संभाला.
< अक्तूबर, 2016 में जयललिता के अपोलो अस्पताल में भरती होने के बाद एक बार फिर वह राज्य के
मुखिया बने.
शशिकला : वीडियो पार्लर से सत्ता की चौखट पर
जयललिता के निधन के बाद शशिकला नटराजन को एआइडीएमके का जनरल सेक्रेटरी नियुक्त किया गया. शशिकला के तमिलनाडु की राजनीति में सबसे ताकतवर महिला रहीं जयललिता की सहयोगी बनने कहानी बड़ी दिलचस्प है. लगभग तीन दशकों तक जयललिता की दैनिक जीवन का हिस्सा रहीं शशिकला पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच ‘चिनम्मा’ (छोटी मां) नाम से प्रसिद्ध हैं. हालांकि, जयललिता के रहते शशिकला राजनीतिक भूमिका से दूर ही रहीं, लेकिन जयललिता के निधन ने शशिकला को एक मौका दे दिया है.
< तंजौर के एक मध्य वर्गीय परिवार में जन्मीं शशिकला का विवाह एम नटराजन से हुआ. एम नटराजन राज्य सरकार में जनसंपर्क अधिकारी थे.
< वर्ष 1975 के आपातकाल में पति के नौकरी गंवा देने के बाद शशिकला ने के लिए किराये पर वीडियो का बिजनेस शुरू किया.
< इसी दौरान एक अधिकारी के माध्यम से शशिकला नटराजन की मुलाकात जयललिता से हुई. दोनों के बीच ग्राहक-उपभोक्ता के रूप में शुरू हुई दोस्ती मजबूत संबंधों में तब्दील होती गयी.
< एआइडीएमके संस्थापक एमजी रामचंद्रन के निधन के बाद अस्सी के दशक में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से जूझ रही जयललिता की मदद के लिए शशिकला उनके आवास में रहने लगीं.
< वर्ष 1991 से 1996 के बीच जयललिता के पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उनका पारिवारिक संबंध कहीं ज्यादा प्रगाढ़ हो गया. इस बीच शशिकला पर जयललिता के करीबी होने का फायदा उठाने का आरोप लगा.
< शशिकला के भतीजे वीएन सुधाकरण को जयललिता ने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लिया. सुधाकरण की शाही शादी में राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े हुए. इसका खामियाजा जयललिता को 1996 के चुनावों में भुगतना पड़ा.
< सितंबर, 2014 में ट्रायल कोर्ट ने दोनों को भ्रष्टाचार का दोषी पाया था, हालांकि, 2015 कर्नाटक हाइकोर्ट ने दोनों को राहत दी, जिससे जयललिता सत्ता में वापसी कर सकीं. फिलहाल, मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
< बढ़ती समस्याओं के बीच जयललिता ने शशिकला के परिवार से दूरी बनानी शुरू कर दी और पूरे परिवार से अपना घर खाली करा दिया.
< शशिकला को एआइडीएमके में परदे के पीछे की प्रमुख रणनीतिकार रही हैं. माना जा रहा है कि वह जिस पिछड़े समुदाय मुक्कुलेथोर से आती हैं, उसका अब प्रभाव बढ़ेगा.
< फिलहाल, शशिकला का राजनीतिक और प्रशासनिक शैली से हर कोई अनजान है. ऐसे पार्टी की आगे की दिशा अभी स्पष्ट नहीं है.