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क्या ट्रंप के निशाने पर होगा भारत!

ट्रंप द्वारा अमेरिकी प्रशासन की कमान संभालने के बाद अमेरिका बड़े स्तर पर नीतिगत बदलावों के दौर से गुजर रहा है. दरअसल, राष्ट्रपति निर्वाचित होने से पूर्व ट्रंप की खतरनाक बयानबाजी अब मूर्तरूप लेते दिख रही है. जिस प्रकार से उन्होंने टीपीपी से हटने का फैसला किया और नाफ्टा समझौते एवं अप्रवासियों के मुद्दे पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 15, 2017 7:00 AM
ट्रंप द्वारा अमेरिकी प्रशासन की कमान संभालने के बाद अमेरिका बड़े स्तर पर नीतिगत बदलावों के दौर से गुजर रहा है. दरअसल, राष्ट्रपति निर्वाचित होने से पूर्व ट्रंप की खतरनाक बयानबाजी अब मूर्तरूप लेते दिख रही है. जिस प्रकार से उन्होंने टीपीपी से हटने का फैसला किया और नाफ्टा समझौते एवं अप्रवासियों के मुद्दे पर मुखरता दिखायी है, ऐसे में प्रतिद्वंद्वी देश ही नहीं, बल्कि अमेरिका के सहयोगी देश भी द्विपक्षीय संबंधों को लेकर आशंकित हैं. पिछले एक दशक में मजबूत हुए भारत-अमेरिका संबंधों की दिशा अब क्या होगी और नये प्रशासन के साथ संबंधों और संभावनाओं पर केंद्रित है आज का ‘इन डेप्थ’…
सत्ता संभालते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस प्रकार 12 देशों के साथ बने ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) समझौते से हटने का फैसला किया और जापान, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे अहम सहयोगी देशों की व्यापारिक नीतियों की आलोचना की, उससे स्पष्ट हो गया है कि व्यापारिक मोर्चे पर अमेरिका अब नयी राह पकड़ चुका है. दरअसल, ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के समय चीन और अन्य देशों पर अमेरिकी मुद्रा के साथ धोखेबाजी करने और गलत व्यापार नीतियों से अमेरिका को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था. हालांकि, भारत के साथ संबंधों को लेकर अब तक ट्रंप का रुख सकारात्मक रहा है. लेकिन, ट्रंप ने जिस प्रकार नयी नीतियों को लागू करने का वादा अमेरिकी जनता से किया है और जिस तरीके से वे फैसले ले रहे हैं, उसका प्रभाव भारत पर पड़ना स्वाभाविक है.
संरक्षणवादी नीतियों का कितना होगा असर
ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी कर सुधारों और वस्तुओं के आयात पर करारोपण के मुद्दे पर काफी मुखर रही है. खास कर जिन देशों के साथ अमेरिका व्यापार घाटे की स्थिति में है, उन पर इस व्यवस्था को लागू के लिए ट्रंप प्रशासन चेतावनी जारी करता रहा है. यदि अमेरिका अपनी संरक्षणवादी नीतियों बड़े स्तर पर लागू करता है, तो निश्चित ही मेक्सिको, जर्मनी के अलावा चीन और जापान समेत कई एशियाई देश प्रभावित होंगे. यूएस ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक एनालिसिस के अनुसार नवंबर 2016 तक भारत के साथ अमेरिका व्यापार घाटा मात्र 1.8 बिलियन डॉलर है, जबकि चीन और जापान के साथ यह क्रमश: 28.4 और 5.7 बिलियन डॉलर का है. विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों से भारत के प्रभावित होने की संभावनाएं कम हैं. हालांकि, सेवा व्यापार के क्षेत्र में भारत की चिंताएं बढ़ सकती हैं, क्योंकि भारत अपने 60 फीसदी सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट के लिए अमेरिका और कनाडा पर निर्भर है. एच1बी वीजा में कमी और नियमों में बदलाव से भारतीय आइटी कंपनियों की चिंता बढ़ सकती है.
बदलावों का करना होगा इंतजार
ट्रंप प्रशासन द्वारा व्यापार और अप्रवासन नीतियों के संदर्भ में किये जा रहे फैसलों के बावजूद भारत-अमेरिका संबंध बड़े स्तर पर अप्रभावित रहेंगे. पिछले दो राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंधों को अभूतपूर्व तरीकों से मजूबती मिली है. अमेरिका में रहनेवाले भारतीय पेशेवरों और एफडीआइ जैसे कुछेक मुद्दों को छोड़ कर ट्रंप प्रशासन के किसी फैसले का सीधा असर पड़ने की संभावना कम ही है. हालांकि, व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सुरक्षा के अप्रत्यक्ष प्रभावों की निगरानी के लिए तैयार रहना होगा. तमाम अनिश्चितताओं के बीच भारत को अपने आर्थिक और विकास के लक्ष्यों के लिए दूरगामी कदम उठाने होंगे.
‘अमेरिका फर्स्ट’ का प्रभाव
अप्रवासियों को रोकने और अमेरिकी पेशेवरों के लिए रोजगार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वीजा नियमों में बदलाव करने से भारतीय पेशेवरों के लिए चिंता का बढ़ना स्वाभाविक है. इससे दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों में कटुता बढ़ सकती है. ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में अमेरिकी पेशेवरों के लिए रोजगार में कमी की वजह वर्क वीजा को बताया था. कुशल पेशेवरों को लिए जारी किया जानेवाला एच1बी वीजा भारतीय आइटी पेशेवरों के लिए सबसे बड़ी उम्मीद है. एच1बी में कमी और नियमों में बदलाव से भारतीय आइटी उद्योग और भारतीय पेशेवरों के लिए दबाव बढ़ना स्वाभाविक है. नयी संरक्षणवादी नीति ‘अमेरिका फर्स्ट’ का भारत-अमेरिका संबंधों पर कितना प्रभाव पड़ेगा, इसका जल्दबाजी में मूल्यांकन करने के बजाय भारत को परस्पर द्विपक्षीय व्यापार और द्विपक्षीय सहयोग को बेहतर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए.
मोदी और ट्रंप के बीच बेहतर तालमेल की उम्मीद
जिस प्रकार पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाया है, ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दोनों देश दूरगामी प्रभावों और पारस्परिक हितों के साथ संबंधों को आगे बढ़ायेंगे. अपने शपथ के बाद ट्रंप ने भारतीय प्रधानमंत्री से बातचीत की थी. मोदी ऐसे पांचवें विश्व राजनेता थे, जिससे ट्रंप ने संपर्क किया था.
– ब्रह्मानंद िमश्र
भारत को तैयार रहने की जरूरत
शशांक
पूर्व विदेश सचिव
अमेरिका बारह देशों के ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) समझौते से बाहर हो चुका है और अब उसकी रणनीति है कि अलग-अलग देशों के साथ वह अलग-अलग व्यापारिक नीतियों को बढ़ावा दे. ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की प्राथमिकता यह बन रही है कि अमेरिका में ही वस्तुआें का उत्पादन हो और बाहर से आयातित वस्तुओं पर ज्यादा टैक्स लगे.
हालांकि, टीपीपी में भारत का सीधे तौर पर जुड़ाव नहीं था, लेकिन आनेवाले दिनों में यह मसला जरूर आयेगा कि भारत और अमेरिका अपने व्यापारिक रिश्तों को किस तरह से मजबूत रखें. इसलिए भारत को अभी से तैयार रहना चाहिए. भारत को अब यह सोचना पड़ेगा कि अगर अमेरिका सचमुच अपनी संरक्षणवादी नीतियों पर उतर आया, तो भारत किन-किन ऐसी चीजों के निर्यात के बारे में सोचे, जो भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों को मजबूत बनाये.
विभिन्न देशों के बीच हमारा व्यापारिक विस्तार जितना ही बढ़ता जायेगा, उतना ही हमारे लिए अच्छा होगा, क्योंकि इससे ज्यादा से ज्यादा रोजगार उत्पन्न होगा और एच1बी वीजा से उपजनेवाली समस्याओं से आसानी से सामना किया जा सकेगा. इसलिए भारत को यूरोपीय और कॉमनवेल्थ देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते बढ़ाने की जरूरत है. सिर्फ अमेरिका ही क्यों, दुनियाभर में अब कई ऐसे देश हैं, जहां हम अपना व्यापारिक विस्तार कर सकते हैं. तकनीकी तौर पर हमारा समय हमेशा बदल रहा है, इसलिए हमें कुछ देशों पर निर्भरता के बजाय, बाकी देशों को भी निर्यात बढ़ाने की नीति बनानी चाहिए. वैसे भी, किसी देश का सत्ता-प्रशासन बदलने से उसकी कुछ पॉलिसी बदल जाती है, जिससे व्यापारिक रिश्तों पर असर पड़ता है. यहां हमें चीन से सीखना चाहिए, जो अपने दो-तिहाई उत्पादन को अपने ही देश में इस्तेमाल में ला रहा है.
एशियाई देश अमेरिकी कंपनियों के लिए जिन चीजों को बनाते हैं, उससे सीधे तौर पर ट्रंप को यह लग रहा है कि अमेरिकियों को नौकरियां कम मिल रही हैं. लेकिन, भारत के साथ ऐसा पूरी तरह से नहीं है.
क्योंकि, भारत के लोगों को एच1बी वीजा के तहत नौकरियां तभी मिलती हैं, जब अमेरिका में उस काम को करने के लिए कुशल लोग न हों. ऐसे में अगर अमेरिका यह सोचे कि भारत के लोगों को वीजा न देकर नौकरियों को बंद कर दे तो उसे फायदा होगा, मैं समझता हूं कि अमेरिका के लिए ऐसा सोचना गलत है. मसला यह है कि अब ट्रंप को समझाये कौन! ऐसे में समझाने का तरीका यही है कि अमेरिकी कंपनियों को ही यह बताना होगा कि भारत के लोग इसलिए यहां आकर काम करते हैं, क्योंकि अमेरिकी इस काम के लिए उपलब्ध नहीं हैं. यह अमेरिकी कंपनियों की जिम्मेवारी है कि वे ट्रंप को यह बतायें कि सॉफ्टवेयर तकनीकी स्तर पर भारतीय श्रमशक्ति का होना बहुत जरूरी है, नहीं तो दुनियाभर से मिले माल के ऑर्डर पर सीधा असर पड़ेगा और इससे अमेरिका को ही नुकसान होगा. अगर ऐसा करना ही है, तो यह काम धीरे-धीरे हो सकता है, एकदम से अचानक नहीं.
द्विपक्षीय व्यापार की मौजूदा स्थिति
अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है, तो भारत अमेरिका का 11वां सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है. वर्ष 2015 में अमेरिका ने भारत को 21.5 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया और 44.8 बिलियन डॉलर के भारतीय सामान का आयात किया. वहीं भारत से सूचना तकनीक सेवाएं, वस्त्र, मशीनरी, रत्न व हीरे, रसायन, लौह व इस्पात उत्पाद, कॉफी, चाय और अन्य खाद्य उत्पादों जैसी प्रमुख वस्तुओं का आयात किया गया. भारत ने अमेरिका से एयरक्राफ्ट, उर्वरक, कंप्यूटर हार्डवेयर, स्क्रैप धातु और मेडिकल उपकरण आदि वस्तुओं का आयात किया.
– नौ बिलियन डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (कुल विदेशी निवेश का नौ प्रतिशत) के साथ अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निवेश साझीदार भी है.
वर्ष 2015 में अमेरिका ने भारत से 46.6 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुओं का या कुल आयात का 2 प्रतिशत आयात किया और भारत के कुल निर्यात का 15.3 प्रतिशत निर्यात किया. भारत द्वारा अमेरिका को निर्यात की जाने वाली 10 प्रमुख वस्तुएं थीं :
– रत्न, मूल्यवान धातु व सिक्के (9.5 बिलियन डॉलर)
– दवा (6.1 बिलियन डॉलर) – तेल (2.8 बिलियन डॉलर) – मशीनरी (2.5 बिलियन डॉलर)
– अन्य वस्त्र, वोर्न क्लॉथिंग (2.5 बिलियन डॉलर)
– कपड़े (बिना बुना हुआ या क्रोशिए का काम किया हुआ) (2.2 बिलियन डॉलर) – कार्बनिक रसायन (2.1 बिलियन डॉलर) – बुना हुआ या क्रोशिए का काम किया हुआ कपड़ा (1.7 बिलियन डॉलर)
– वाहन (1.4 बिलियन डॉलर) – लौह या इस्पात उत्पाद (1.3 बिलियन डॉलर)
– वर्ष 2015 में अमेरिका ने भारत को 20.5 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुएं या कुल निर्यात का 5.2 प्रतिशत निर्यात किया. यूएस द्वारा भारत में निर्यात होनेवाली 10 प्रमुख वस्तुएं थीं :
– रत्न, मूल्यवान धातु व सिक्के (3.4 बिलियन डॉलर) – मशीनरी (तीन बिलियन डॉलर)
– इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (1.6 बिलियन डॉलर)
– चिकित्सा, तकनीकी उपकरण (1.4 बिलियन डॉलर) – तेल (1.3 बिलियन डॉलर)
– एयरक्रॉफ्ट, स्पेसक्रॉफ्ट (1.1 बिलियन डॉलर)
– प्लास्टिक (815.9 मिलियन डॉलर)
– कार्बनिक रसायन (799.4 मिलियन डॉलर)
– अन्य रसायनिक सामान (769.1 मिलियन डॉलर)
– फल, नट्स (684.7 मिलियन डॉलर)
जुलाई, 2005 में अमेरिकी राष्ट्रपति बुश और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ‘ट्रेड पॉलिसी फोरम’ तैयार किया था. इस प्रोग्राम का उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार और निवेश प्रवाह को बढ़ावा देना है.
– कृषि व्यापार समूह के तीन मुख्य लक्ष्य हैं : उन नियमों पर सहमत होना, जो भारत को अमेरिका में आम निर्यात की मंजूरी देगा, भारत के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीइडीए) को यूएस के कृषि विभाग द्वारा तय मानकों के आधार पर भारतीय उत्पादों को प्रमाणित करने का अधिकार देगा और फल पर खाने योग्य मोम (एडिबल वैक्स) लगाने की स्वीकृति के लिए नियमन प्रक्रिया काे कार्यान्वित करेगा.
– टैरिफ और नॉन-टैरिफ बैरियर्स ग्रुप द्वारा तय लक्ष्य के तहत यूएस कंपनियों द्वारा निर्मित कीटनाशकों को पूरे भारत में बिक्री की स्वीकृति देना शामिल है. कार्बोनेटेड ड्रिंक, कई रोगनाशक दवाइयाें के व्यापार पर विशेष नियंत्रण में कटौती और वैसी वस्तुएं जो खेती से जुड़ी हुई नहीं हैं, उनके आयात पर नियंत्रण में कमी को लेकर भी भारत ने सहमति जतायी थी.
दोनों देश आभूषण, कंप्यूटर पार्ट्स, मोटरसाइकिल, उर्वरक के व्यापार पर भारतीय नियंत्रण के उन्नत पक्ष अौर वैसे टैरिफ जो अमेरिका द्वारा बोरिक एसिड के निर्यात को प्रभावित करते हैं, पर चर्चा करने पर सहमत हुए थे. इस समूह ने अकाउंटिंग मार्केट में कैरियर बनाने को इच्छुक लोगों के बारे में, भारतीय कंपनियों द्वारा दूरसंचार उद्योग के लिए लाइसेंस प्राप्त करने और भारतीय मीडिया और प्रसारण बाजार के लिए नीति तय करने जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की. इसके अलावा विभिन्न पेशेवर सेवाओं के माध्यम से मूल्यवान सूचनाओं के आदान-प्रदान को मान्यता देने, विकासशील उद्योगों में लोगों के जाने और वहां पर उनकी स्थिति पर चर्चा करने, वित्तीय सेवा बाजार पर बातचीत जारी रखने, इक्विटी की सीमा, बीमा, खुदरा, कृषि प्रसंस्करण व परिवहन उद्योग में संयुक्त उद्यम और छोटे व्यवसायों के लिए पहल करने आदि इस चर्चा के अन्य केंद्र बिंदु थे.

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