12.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

इलाज के तरीकों को सुगम बनायेंगी 10 एडवांस हेल्थकेयर तकनीकें

टेक्नोलॉजी इनोवेशन के नतीजों से रोजाना नये बदलाव सामने आ रहे हैं. हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी से जुड़े तमाम संगठन ऐसी तकनीकों को विकसित करने में जुटे हैं, जिससे गुणवत्ता-आधारित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करायी जा सकें इस वर्ष ऐसी नयी तकनीकें और उपकरण आ रहे हैं, जिनसे मरीजों की देखभाल का स्तर सुधारा जा सकेगा और कई […]

टेक्नोलॉजी इनोवेशन के नतीजों से रोजाना नये बदलाव सामने आ रहे हैं. हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी से जुड़े तमाम संगठन ऐसी तकनीकों को विकसित करने में जुटे हैं, जिससे गुणवत्ता-आधारित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करायी जा सकें
इस वर्ष ऐसी नयी तकनीकें और उपकरण आ रहे हैं, जिनसे मरीजों की देखभाल का स्तर सुधारा जा सकेगा और कई मामलों में ऑपरेशन की लागत में कमी आयेगी. इसीआरआइ इंस्टीट्यूट के एप्लाइड सोलुशंस के डायरेक्टर रॉबर्ट मैलिफ का कहना है कि नयी तकनीकों को इस्तेमाल में लाना बड़ी चुनौती है. इलाज को सटीक और ज्यादा-से-ज्यादा कारगर, आसान और गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने में जुटे इसीआरआइ के शोधकर्ता, इंजीनियर, स्पेशलिस्ट्स, प्लानर्स और कंसल्टेंट आदि ने मिल कर कुछ ऐसी तकनीकों और उपकरणों पर जोर दिया है, जो इस वर्ष सबसे प्रभावी होंगे. आज के मेडिकल हेल्थ आलेख में जानते हैं, इन्हीं में से प्रमुख 10 तकनीकों के बारे में …
लिक्विड बायोप्सी : जेनेटिक टेस्टिंग का तरीका
लिक्विड बायोप्सी एक तरीके का जेनेटिक टेस्टिंग मेकेनिजम है, जिसके तहत मरीज के बायोप्सिड ऊतकों के बजाय उसके रक्त, प्लाज्मा, सीरम या यूरीन का इस्तेमाल किया जाता है.
नमूने के तौर पर इन्हें हासिल करना अपेक्षाकृत आसान होता है और मरीज के लिए कम जोखिमभरा होता है. मौजूदा समय में अमेरिका में तकरीबन 40 कंपनियां लिक्विड बायोप्सीज का विकास और मार्केटिंग करने में जुटी हैं. जून, 2016 में अमेरिका की संबंधित एजेंसी एफडीए ने पहली बार कैंसर के लिए की जानेवाली लिक्विड बायोप्सी को मंजूरी प्रदान कर दी है.
बायोसेंसर्स से जोखिम की पहचान
जेनेटिक परीक्षण के जरिये शोधकर्ताओं ने मरीज के भीतर ऑपियोड एडिक्शन के लिए सबसे बडे जोखिम की पहचान की है. मौजूदा टेस्ट का इस्तेमाल व्यापक तौर पर नहीं किया जा सकता. नयी तकनीक के तहत बनाया जा रहा बायोसेंसर्स घडी की तरह कलाई पर पहना जा सकता है, जो त्वचा का तापमान, इलेक्ट्रोडर्मल एक्टिविटी और मूवमेंट के इस्तेमाल से ऑपियोड एडिक्ट्स के लक्षणों की पहचान करने में सक्षम हो सकता है.
डिसइन्फेक्शन के लिए अल्ट्रावॉयलेट-सी एलइडी
खास किस्म के एलइडी का यह विकल्प कई खंडों में आता है और व्यापक कीटाणुनाशक प्रभाव के साथ अल्ट्रावॉयलेट-सी लाइट उत्सर्जित करता है. यह ऊर्जा की खपत को कम करता है और पावर आउटपुट को स्थिर रखने के साथ उसे ज्यादा टिकाऊ बनाता है. साथ ही यह समूचे प्रभावित हिस्से को कीटाणुओं से मुक्त करता है. शोधकर्ता इस दिशा में सेनिटाइजिंग पर काम कर रहे हैं और चलते-फिरते डिवाइसों का विकास करने में जुटे हैं, जो प्रभावित हिस्सों को कीटाणुओं से मुक्त कर सके.
रोबोटिक सर्जरी
विविध प्रकार की जटिल सर्जरी में सर्जिकल रोबोट मॉडल का इस्तेमाल किया जाता है. खास तरीके से डिजाइन किये गये इस रोबोट में कई हाथ होते हैं, जिनके जरिये मरीज के ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता है. हालांकि, रोबोटिक सर्जरी फिलहाल महंगी प्रक्रिया है, लेकिन भविष्य में इसकी लागत कम होगी. नये प्रकार के ओआर टेबल के माध्यम से यह संवाद करता है, जो इसे विभिन्न हालातों में ऑटोमेटिक तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करने में मदद करते हैं. इससे ऑपरेशन के समय खून का बहाव बेहद कम होता है और मरीज का संबंधित घाव भरने में भी समय बहुत कम लगता है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
स्वास्थ्य क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका बढ रही है. ह्यूमेनॉयड रोबोट इनसान के बॉडी लैंग्वेज और उसकी भावनाओं को समझ सकता है और उसकी व्याख्या कर सकता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये यह जाना जा सकता है कि किसी खास समय में मरीज की प्रतिक्रिया किस तरह की होती है. इसके जरिये अस्पतालों में नर्सिंग संबंधी कार्यों को अंजाम दिया जा सकता है. इनकी बडी खासियत यह होगी कि ये रोबोट इनसानों की तरह थकेंगे नहीं और इनसे गलती की गुंजाइश भी बेहद कम होगी. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ जायेगी.
पेट की सर्जरी होगी आसान
आम तौर पर पेट की सर्जरी को सबसे जोखिमभरा माना जाता है. नयी तकनीक के तहत विकसित किये गये सिस्टम में वेब-आधारित पेट की सर्जरी को शामिल किया गया है, जिसमें अलगोरिथम के माध्यम से जोखिम का मूल्यांकन किया जा सकेगा. इसकी लागत अपेक्षाकृत कम होगी, लिहाजा मरीजों के लिए बडी राहत की बात होगी.
एंडोस्कोपिक इमेजिंग
एंडोस्कोपी के दौरान इंडोक्राइनिन ग्रीन इमेजिंग नुकसान पहुंचानेवाले ऊतकों को खास तौर पर रेखांकित करता है. आम तौर पर सामान्य लाइट के तहत इनकी पहचान नहीं हो पाती है. इसकी मदद से फिजिशियन को स्वस्थ ऊतकों और नुकसान पहुंचानेवाले ऊतकों के बीच फर्क समझने में आसानी होती है.
टाइप 1 डायबिटीज वैक्सिन
अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने हाल ही में कहा है कि वह टाइप 1 डायबिटीज के वैक्सिन का विकास करने के आखिरी दौर में है. इस वैक्सिन का नाम बैसिलस कैलमेटे-गुएरिन है. डायबिटीज का सबसे घातक प्रकार टाइप 1 डायबिटीज माना जाता है.
आम तौर पर यह बीमारी बचपन में ही हो जाती है और अब तक इसका इलाज बहुत मुश्किल रहा है. कई मरीजों में तो अब तक यह भी जानना मुश्किल रहा है कि उनमें इस बीमारी का कारण क्या है. 1970 के दशक में वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि यह ऑटोइम्यून प्रक्रिया के कारण होता है.
1980 के दशक में शोधकर्ताओं ने पाया कि इम्यून सिस्टम को धीमा करने से इस बीमारी को बढने से रोका जा सकता है. फिलहाल इसके लिए दो प्रकार के वैक्सिन का विकास किया गया है. पहला, थेरोप्यूटिक वैक्सिन है, जो इंसुलिन उत्पादन करनेवाली आइलेट कोशिकाओं पर होनेवाले ऑटोइम्यून हमले को रोकेगा या कम करेगा. दूसरा, प्रिवेंटिव वैक्सिन है, जो बच्चों में आइलेट कोशिकाओं के प्रति इम्यून टोलेरेंस पैदा करता है और उन्हें इस बीमारी के बढते जेनेटिक जोखिम से बचाव करता है.
इम्यूनोथेरेपी
एक बायोटेक्नोलॉजी कंपनी पर्सनलाइज्ड सेल इम्यूनोथेरेपीज जैसे इनोवेटिव सोलुशन का विकास कर रही है, जिसके तहत गंभीर इनफ्लेमेटरी और ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज के लिए रेगुलेटरी टी-सेल्स का इस्तेमाल किया जायेगा. ‘बिजनेस वायर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, टीएक्ससेल द्वारा विकसित किये गये एक खास उत्पाद को इसके लिए लाइसेंस दिया जा रहा है, जिसे ‘ओवेसेव’ नाम दिया गया है. टीएक्ससेल ने अब ओवेसेव के नाम से कारोबारी राइट हथिया लिया है.
हालांकि, फिलहाल यह परीक्षण के दौर से गुजर रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह उत्पादन गंभीर बीमारियों के इलाज में कारगर साबित हो सकता है. दूसरी ओर, स्टेम सेल ट्रीटमेंट की दो विधियों का विकास किया जा रहा है. पहली विधि के तहत अंबिलिकल कोर्ड ब्लड यानी नाभिरज्जु के रक्त का और दूसरी विधि के तहत शरीर के बाहर से कल्चर्ड किये गये स्टेम सेल्स का इस्तेमाल किया जाता है.
होराइजन स्कैनर्स
होराइजन स्कैनिंग तकनीक के जरिये मौजूदा चुनौतियों और जोखिम के सिस्टेमेटिक परीक्षण के माध्यम से उल्लेखनीय रूप से विकसित हो रहे आरंभिक लक्षणों को पहचाना जा सकता है. इस मैथॉड के तहत यह जाना जाता है कि कौन-सी चीज स्थिर है, किस चीज में बदलाव हो रहा है और परिवर्तन की दर क्या है. यह आदर्श और गैर-जरूरी, सभी किस्म के ऊतकों की जांच करता है.
होराइजन स्कैनिंग हमेशा डेस्क रिसर्च आधारित होता है, जो परीक्षण किये जा रहे ऊतकों की बडी तसवीरों को विकसित करने में मदद करता है. डेस्क रिसर्च में व्यापक संसाधन शामिल होते हैं, जैसे- इंटरनेट, सरकारी मंत्रालय और एजेंसियां, गैर-सरकारी संगठन, अंतरराष्ट्रीय संगठन व कंपनियां, रिसर्च समुदाय और ऑनलाइन व ऑफलाइन डाटाबेस व जर्नल्स.
लंबी उम्र के लिए सोशल होना जरूरी
फ्रेंच अमेच्योर साइकिलिस्ट 105 वर्षीय रॉबर्ट मार्कंड ने इसी वर्ष जनवरी में एक घंटे में 14 मील साइकिल चला कर इतिहास रच दिया. इससे पहले वर्ष 2014 में 102 साल की उम्र में एक घंटे में 16.73 मील साइकिल चलाने का रिकॉर्ड रॉबर्ट के नाम दर्ज है. रॉबर्ट आज भी किसी 50 वर्ष के व्यक्ति से कहीं ज्यादा एरोबिकली फिट हैं. एक अध्ययन के मुताबिक, उम्र बढ़ने के साथ रॉबर्ट के फिटनेस का स्तर भी बढ़ता जा रहा है. फ्रांस के एवरीवाल डीएस्सोने यूनिवर्सिटी के एक्सरसाइज साइंस के प्रोफेसर डॉ वेरोनिक बिल्लैट रॉबर्ट फिटनेस के संबंध में कहते हैं कि वे बेहद आशावादी और सामाजिक हैं और उनके कई सारे दोस्त हैं.
वर्ष 2005 में किये गये एक अध्ययन से यह सामने आया कि जिन बुजुर्गों के दोस्तों की संख्या ज्यादा होती है, उनके उन बुजुर्गों के मुकाबले, जिनके दोस्तों की संख्या कम होती है, मृत्यु का खतरा 22 प्रतिशत तक कम होता है. 2007 में किये गये एक अन्य अध्ययन से यह बात सामने आयी कि बहुत ज्यादा अकेलापान सेल्युलर लेवल पर बीमारी को जन्म देता है. इतना ही नहीं, रॉबर्ट का आहार भी बेहद सादा है. वे रात के भोजन में मुख्य तौर पर दही, सूप, चीज, चिकन और एक ग्लास रेड वाइन लेते हैं. इसके अलावा, रॉबर्ट एक्सरसाइज के तौर पर साइकिलिंग भी करते हैं, जिससे उनका शरीर ऑक्सीजन का बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर पाता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें