बिंजल शाह
चेन्नई निवासी 71 वर्षीय सुरेश ने एक असाधारण आशियाना बनाया है. एक ऐसा मकान, जो हवा, पानी, भोजन और गैस तक की सारी जरूरतें पूरी करता है. वह मानते हैं कि सरकार से हर समस्या का समाधान पाने की अपेक्षा करने से बेहतर है कि समाधान खोज कर सरकार और देश दोनों की मदद की जाये. पढ़िए एक प्रेरक रिपोर्ट.
रिटायरमेंट के बाद भी चेन्नई के डी सुरेश के मन में कुछ अलग करने का, समाज के लिए कुछ बेहतर काम करने का जुनून बना रहा. उनके मन में वर्षों तक यह ख्याल छाया रहा कि एक ऐसा घर बनाया जाये, जो स्वनिर्भर हो. जब वे बरसों पहले जर्मनी यात्रा पर गये थे, तभी यह विचार उनके मन में आ गया था. वह अपने इस आइडिया के बारे में बताते हैं -“ यह सही-सही याद कर पाना मुश्किल है, कि कब मेरे मन में स्वनिर्भर घर बनाने का विचार आया, लेकिन जहां तक मुझे याद है कि इस सोच को पंख 20 साल पहले मेरी जर्मनी यात्रा के दौरान लग गये थे. जब मैंने जर्मनी में छतों पर लगे सौर ऊर्जा संयंत्र देखे, तो मैंने सोचा कि जब जर्मनी जैसा कम धूप वाला देश इन्हें लगा सकता है, तो भारत क्यों नहीं, जहां सौर ऊर्जा प्रचुरता में है.” और सुरेश के इस आइडिया ने उन्हें आगे बढ़ने और बिजली बनाने के लिए छत पर एक सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए विक्रेता खोजने को प्रेरित किया.
सुरेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने वाले उचित विक्रेता की खोज और सौर ऊर्जा इनवर्टर लगाने की. वे कहते हैं, कि टाटा बीपी सोलर, सू कैम और कई बड़े नामों ने उनके काम में कोई दिलचस्पी और प्रोत्साहन नहीं दिखाया. फिर अपने घर के लिए सौर ऊर्जा संयंत्र डिजाइन करने और बनाने के लिए उन्होंने एक साल तक कड़ी मेहनत की. जनवरी, 2012 तक सुरेश ने अपना एक किलोवॉट का संयंत्र लगा लिया था और छत पर सौर विद्युत उत्पन्न करना आधिकारिक तौर पर शुरू कर दिया. संयंत्र लगाने के लिए मात्र एक छायामुक्त जगह चाहिए थी, यानी कि प्रति किलोवॉट के लिए 80 वर्गफुट, जिसके लिए छत बेहतर विकल्प थी और उन्होंने छत पर ही अपने सपनों को आकार देना शुरू कर दिया. कई विशेषज्ञ और तमिलनाडु ऊर्जा विकास प्राधिकरण के चेयरमैन जैसे वरिष्ठ सरकारी अधिकारी सुरेश के संयंत्र को काम करता देखने के लिए आये.
सुरेश की मेहनत और लगन ने कमाल कर दिया, जिस काम को करने में काफी लंबा समय बीता, उसी काम को करने में अब सिर्फ एक दिन का समय लगता है.
सुरेश के अनुसार मेंटेनेंस पैनल्स की हर तीन महीने में सफाई जरूरी है. इस संयंत्र की सबसे खास बात ये है कि ये हल्की बारिश के दौरान भी बिजली पैदा करता है, क्योंकि यह पैनलों पर पड़ने वाली यूवी किरणों पर आधारित है न कि गर्मी या प्रकाश की तेजी पर. तेज बारिश के समय (जोकि चेन्नई में कम ही होती है) लोड बैटरी द्वारा उठाया जाता है, जिसे चार्ज करने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है, न कि ग्रिड का. अप्रैल, 2015 तक सुरेश ने अपनी सौर बिजली को तीन किलोवॉट तक बढ़ा दिया और अब यह 11 पंखे, 25 लाइटें, एक फ्रिज, दो कंप्यूटर, एक वॉटर पंप, दो टीवी, एक मिक्सर-ग्राइंडर, एक वॉशिंग मशीन और एक इन्वर्टर एसी को ऊर्जा देता है.
सुरेश कहते हैं-“ एक ऐसे शहर में रहने के बावजूद जो, कि बिजली की समस्या के लिए बदनाम है, उस शहर में मैंने पिछले चार वर्ष से एक मिनट भी बिजली गुल नहीं देखी है. मैं हर दिन 12 से 16 यूनिट उत्पादन कर बिजली का खर्च बचाता हूं. यह एक टिकाऊ, वहनीय, व्यवहार्य परियोजना है, जो कि वर्तमान में बैटरी के बदलने सहित छह प्रतिशत कर-मुक्त मुनाफा दे रही है.
सुरेश ने प्रतिदिन लगभग 10 किलोग्राम जैविक कचरे का इस्तेमाल करके और 20 किलोग्राम गैस हर महीने उत्पादित करने के लिए एक घरेलू बायोगैस संयंत्र लगाकर अपनी बाहरी गैस की आवश्यकताओं का समाधान करने का निर्णय किया है. उन्होंने यह सिद्ध करके इस मिथक को भी तोड़ा है, कि कोई बदबू उत्पन्न होती है. संयंत्र में पका और बिन पका भोजन, खराब भोजन, सब्जियां और फलों के छिलके आदि डाले जाते हैं. इन सबके बीच सिर्फ एक ही बात याद रखने की है, कि इसमें साइट्रस फल जैसे नीबू, संतरा, और प्याज, अंडे के छिलके, हड्डियां या साधारण पत्तियां इसमें नहीं डालनी चाहिए. इस संयंत्र से दो उपयोगी संसाधन उत्पन्न होते हैं, कुकिंग गैस और जैविक खाद. सुरेश ने अपने आसपास में कुछ ऐसे सब्जी विक्रेताओं को खोज निकाला है, जिन्हें अपने कचरे के निस्तारण के लिए धन खर्च करना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होता, क्योंकि अब वे अपना कचरा सुरेश के बायोगैस संयंत्र पर छोड़ देते हैं. बायोगैस एक सुरक्षित गैस है. यह प्रदूषणकारी भी नहीं है और खनिज इंधन पर निर्भरता को कम करके यह देश के लिए विदेशी मुद्रा भी बचाती है.
सुरेश ने अपना रेनवॉटर हार्वेस्टिंग संयंत्र 20 वर्ष पहले लगाया था. इसके बारे में चर्चा करते हुए वह कहते हैं, कि “इसमें भी दैनिक मेंटेनेंस की जरूरत नहीं है, सिर्फ छत की आवश्यकता होती है. संयंत्र को सिर्फ मॉनसून से पहले साफ करना होता है.”
इन्हीं सबके साथ सुरेश ने मोटे बांस के पेड़ों की बाड़ और लताओं से अपने घर को घेरकर एक जंगल जैसा रूप प्रदान किया है. उनकी छत ऐसी है, जिसे देखकर यह एहसास होता है, कि हम किसी जंगल में खड़े हैं, जोकि भीड़ भरे शहर की आपाधापी का हिस्सा नहीं है. सुरेश का घरेलू जंगल बेहद प्रशंसनीय और अदभुत है. इस गार्डन की शुरूआत हुई तो भिंडी और टमाटर की खेती के साथ थी, लेकिन आज की तारीख में यह बाग हो गया है. अब सुरेश इनमें जैविक ढंग से 15 से 20 प्रकार की सब्जियां उगाते हैं. घर में होने वाली अधिकांश कुकिंग की जरूरतें उनके किचन-गार्डन से ही पूरी हो जाती हैं. (इनपुट: योर स्टोरी डॉट कॉम)