गांवों तक इंटरनेट
शहरी क्षेत्रों में भले ही सभी लोगों तक आसानी से इंटरनेट पहुंच गया है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अब भी यह चुनौती बनी हुई है. डिजिटल विलेज के जरिये केंद्र सरकार गांवों तक इंटरनेट पहुंचाने में जुटी है और इसमें काफी हद तक कामयाबी भी मिली है.
आरंभिक चरण में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसके लिए भले ही 1,000 गांवों को चुना गया है, लेकिन इसका विस्तार तेजी से हो रहा है. कैसे साकार हो रहा है गांवों तक इंटरनेट पहुंचने का सपना और किस तरह अन्य संगठन भी दे रहे हैं इसमें अपना योगदान समेत इससे संबंधित अनेक पहलुओं को रेखांकित कर रहा है आज का यह साइंस टेक्नोलॉजी पेज …
देश के ग्रामीण इलाकों तक इंटरनेट की पहुंच कायम करने के मकसद से भारत सरकार वाइ-फाइ सेवाओं पर जाेर दे रही है. ‘सीएनएन मनी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार एक ऐसी योजना बना रही है, जिसके जरिये देशभर में 1,000 से ज्यादा गांवों तक फ्री वायरलेस इंटरनेट की सुविधा मुहैया करायी जायेगी. इस पायलट प्रोजेक्ट को ‘डिजिटल विलेज’ नाम दिया गया है.
सरकार इन गांवों में खास टावरों का निर्माण करते हुए वाइ-फाइ हॉटस्पॉट्स का सेटअप तैयार कर रही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट का विस्तार देशभर में करने के लिए कई भारतीय और वैश्विक इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियाें ने संबंधित विभाग को आवेदन दे रखा है और सरकार से मंजूरी मिलने की प्रतीक्षा में हैं. हालांकि, सरकार की योजना इसे पूरे देश में लागू करने की है, लेकिन फिलहाल आरंभिक चरण के तहत उसने 400 करोड रुपये जारी किया है.
ग्रामीण इलाकों में होगा कॉमन सर्विस सेंटर का इस्तेमाल
इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार का उद्देश्य डिजिटल टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से ग्रामीण इलाकों तक मूलभूत सेवाओं को पहुंचाना है. इस प्रोजेक्ट के तहत इंटरेक्टिव एजुकेशन का इंतजाम किया जायेगा.
संबंधित मंत्रालय के एक प्रमुख अधिकारी के हवाले से ‘द इकॉनोमिक टाइम्स’ की एक रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि यह प्रोजेक्ट पीपीपी मॉडल यानी पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप आधारित है और इसे ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे सीएससी यानी कॉमन सर्विस सेंटरों के माध्यम से संचालित किया जायेगा. उल्लेखनीय है कि ग्रामीण इलाकों में ऑनलाइन फॉर्म जमा करने और डिजिटल पेमेंट समेत अनेक कार्यों के लिए कॉमन सर्विस सेंटर का इस्तेमाल करते हैं.
भारत नेट प्रोजेक्ट
भारत नेट प्रोजेक्ट केंद्र सरकार की एक महती योजना है, जिसके जरिये देशभर के गांवों में लोगों को इंटरनेट की सुविधा मुहैया करायी जायेगी. इसके तहत देश के सभी गांवों को ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है. केंद्र सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि वर्ष 2017-18 के अंत तक सरकार हाइस्पीड ब्रॉडबैंड से ग्राम पंचायतों में वाइ-फाइ और हॉट स्पॉट की सुविधा मुहैया करायेगी.
भारत नेट कार्यक्रम का नाम पहले नेशनल ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क (एनओएफएन) था. बाद में अप्रैल, 2015 में केंद्र सरकार ने इस योजना का नाम बदल दिया. एक अंगरेजी वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत नेट कार्यक्रम बीएसएनएल की साझेदारी में शुरू किया जा रहा है. भारत नेट कार्यक्रम को यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड के तहत शुरू किया गया था. वर्ष 2012 में शुरू किये गये इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण इलाकों में लोगों को कम दरों पर संचार सेवाएं मुहैया करायी जाती हैं.
गूगल से मिलेगा सहयोग
दुनियाभर में इंटरनेट के क्षेत्र में अगुआ कंपनी गूगल ने भारत के 100 प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर फ्री वाइ-फाइ सेवाएं मुहैया कराने के लिए बुनियादी स्तर पर काम शुरू कर दिया है. गूगल एक अन्य महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘लून’ को भी भारत में लॉन्च करने की तैयारी में जुटा है. रिपोर्टों के मुताबिक, भारत के अनेक इलाकों में आबादी तक इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने के लिए यह कंपनी भारत सरकार के संबंधित विभागों और विभिन्न टेलीकॉम कंपनियों के साथ बातचीत कर रही है. उम्मीद है कि आगामी कुछ महीनों में यह सेवा भारत में शुरू हो सकती है.
सस्ती होगी इंटरनेट सेवा
इस प्रोजेक्ट में ऊंचाई पर उड़ते गुब्बारों की मदद से दूर-दराज के इलाकों में इंटरनेट की सुविधा पहुंचाने का लक्ष्य है. यह सेवा बहुत सस्ती होगी, ताकि अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें. भारत में इस सेवा का मुख्य लक्ष्य ग्रामीण भारत में इंटरनेट का विस्तार करना है. लून बैलून सेवा ग्रामीण भारत में इंटरनेट की पहुंच को सुनिश्चित करने की दिशा में वरदान साबित हो सकती है.
कैसे कार्य करेगा प्रोजेक्ट लून
इस प्रोजेक्ट के तहत आकाश में बड़े-बड़े गुब्बारे छोड़े जायेंगे, जो धरती की सतह से करीब 20 किमी ऊपर समताप-मंडल में रहेंगे. समताप-मंडल में बहने वाली हवाएं स्तरीकृत (स्ट्रेटिस्फाइड) होती हैं और इन हवाओं के प्रत्येक लेयर गति और दिशा के मामले में भिन्न होते हैं. इन बैलूनों को किस ओर जाना है, इसके निर्धारण के लिए प्रोजेक्ट लून के तहत सॉफ्टवेयर एल्गोरिथम का इस्तेमाल किया गया है. इसके बाद ही ये बैलून हवा के स्तर में अपनी सही दिशा तय करेंगे. हवा की धारा के साथ बहते हुए ये बैलून एक बड़े कम्युनिकेशन नेटवर्क के दायरे में खुद को व्यवस्थित रखने में सक्षम हो सकते हैं.
प्रत्येक 10 में से सात इंटरनेट यूजर्स होंगे ग्रामीण क्षेत्रों से
इंटरनेट की पहुंच का दायरा बढ़ने के कारण देश के ग्रामीण इलाकों में इसके यूजर्स की संख्या लगातार बढ़ रही है. ‘नैसकॉम’ और ‘अकामाइ टेक्नोलॉजी’ की एक संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेट के करीब 10 नये यूजर्स में से सात का संबंध ग्रामीण क्षेत्रों से होगा. पिछले वर्ष देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या करीब 40 करोड़ थी, लेकिन अगले 30 करोड़ नये यूजर्स में से 75 फीसदी ग्रामीण भारत से जुड़े होंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि स्मार्टफोन में अनेक खासियतों, मसलन स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल की सुविधा मिलने से ग्रामीण क्षेत्रों में इसके यूजर्स की संख्या तेजी से बढेगी.
दूसरी ओर, अमेरिका की मैनेजमेंट और बिजनेस कंसल्टेंसी फर्म बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 तक भारत में ग्रामीण इंटरनेट यूजर्स की संख्या बढ़ कर 31.5 करोड़ हो जायेगी. बीसीजी ने भारत के ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट उपयोग के पैटर्न को समझने के लिए 14 भारतीय शहरों के 27 गांवों में 4,000 ग्रामीण उपभोक्ताओं के बीच सर्वे किया और यह रिपोर्ट
तैयार की.
ऑनलाइन शॉपिंग में पीछे है ग्रामीण भारत
गांवों में ऑनलाइन शॉपिंग ज्यादा लोकप्रिय नहीं है. इसका मुख्य कारण निम्न क्रय क्षमता और खराब कनेक्टीविटी माना जाता है. बीसीजी का अनुमान है कि सुविधा और डिस्काउंट के कारण वर्ष 2015 से 2016 के बीच ग्रामीण भारत में ऑनलाइन खरीदारी में करीब 10 फीसदी का इजाफा होने का अनुमान है.
अकोदरा : देश का पहला डिजिटल विलेज
गुजरात के साबरकांठा जिले के अकोदरा गांव को हाल ही में भारत के पहले डिजिटल विलेज की पहचान मिली है. इस गांव में करीब 250 परिवार हैं और यहां की आबादी करीब 1,191 है. इस गांव में लोग वस्तुओं और सेवाओं के इस्तेमाल के बदले विविध कैशलेस तरीकों से भुगतान करते हैं. नेट-बैंकिंग और डेबिट कार्ड्स सरीखे विभिन्न डिजिटल माध्यमों से इस गांव में लोग आपस में लेन-देन करते हैं.
धसई : महाराष्ट्र का पहला कैशलेस गांव
थाणे से करीब 70 किमी दूर और मुंबई से करीब 140 किमी दूर धसई महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव है, जो इस राज्य का पहला कैशलेस गांव का दर्जा प्राप्त कर चुका है. अन्य गांवों की तरह नोटबंदी के बाद इस गांव में भी लोगों को मुश्किलों का सामना करना पडा, लेकिन दस हजार से भी कम आबादी वाले इस गांव में लोगों ने डिजिटल माध्यम से लेन-देन पर जोर दिया और यह गांव कैशलेस की श्रेणी में आ गया.
सुरखपुर : दिल्ली का पहला डिजिटल विलेज
दिल्ली के दक्षिण-पश्चिमी इलाके में स्थित सुरखपुर गांव को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का पहला पूर्णतया डिजिटल पेमेंट आधारित क्षमता का गांव घोषित कर दिया गया है. जिला प्रशासन के हवाले से इंडियाटुडे की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस गांव में 113 परिवारों में कम-से-कम एक आदमी के बैंक खाते को आधार नंबर से लिंक कर दिया गया है. इस प्रकार यह गांव पूरी तरह से डिजिटल पेमेंट की सुविधा से लैस राजधानी का पहला गांव बन चुका है.
प्रस्तुति
– कन्हैया झा