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सेल्फ हेल्प ग्रुप : राजनीतिक और सामाजिक सशक्तीकरण का उपकरण एम अंसारी जब महिलाएं आर्थिक तौर पर भी सशक्त हो पायेंगी, तभी स्वावलंबी बनकर समाज का नेतृत्व कर पायेंगी. देश भर में स्वयंसहायता समूह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं. पढ़िए एक रिपोर्ट. माधुरी सिंह को 1997-98 में उत्तर प्रदेश […]
सेल्फ हेल्प ग्रुप : राजनीतिक और सामाजिक
सशक्तीकरण का उपकरण
एम अंसारी
जब महिलाएं आर्थिक तौर पर भी सशक्त हो पायेंगी, तभी स्वावलंबी बनकर समाज का नेतृत्व कर पायेंगी. देश भर में स्वयंसहायता समूह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं. पढ़िए एक रिपोर्ट.
माधुरी सिंह को 1997-98 में उत्तर प्रदेश में वाराणसी के शंकरपुर गांव में परिवार नियोजन का काम करते हुए सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाने का विचार आया. माधुरी कहती हैं, “जब मैं परिवार नियोजन के काम के लिए महिलाओं के बीच जाती थी तो मुझे पता चला कि गांव की महिलाएं 500 से लेकर 5000 रुपये तक के कर्ज में डूबी हुई हैं.
साहूकार उन महिलाओं से 10 फीसदी की दर से ब्याज लेते. एक ऐसी ही महिला मुझे मिली, जिसने महाजन से प्रसव के लिए 500 रुपये का कर्ज लिया था. वह महिला अगले सात साल तक मूल रकम ही नहीं चुका पायी. महिला का 500 रुपये का कर्ज करीब सात हजार रुपये से अधिक पहुंच गया था.” यह सब देख माधुरी ने उसी गांव की 10-12 महिलाओं को इकट्ठा किया और सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाया. उस समय किसी महिला को समूह के बारे में जरा भी समझ नहीं थी.
एक मुट्ठी चावल की कीमत : माधुरी ने 10-12 महिलाओं का एक समूह बनाया और हफ्ते में पांच रुपये जमा करने को कहा. महिलाएं इतनी गरीब थीं कि उनसे पास पांच रुपये तक नहीं जुट पाते थे. तब माधुरी ने कहा कि रोज खाना बनाते वक्त एक मुट्ठी चावल कम बनाये और एक आलू को बचा ले. इस तरह से सातवें दिन उस बचे हुए चावल और आलू का इस्तेमाल करें और हफ्ते में एक दिन का आलू और चावल का पैसा बचने लगा.
पांच रुपये से इस रकम को बढ़ा कर 20 रुपये किया गया. महिलाओं के ही बीच में से किसी एक महिला को खाते की देखभाल की जिम्मेदारी गयी. समूह में जमा रुपये समूह की सदस्य महिला को बतौर कर्ज दिया जाता. इस कर्ज का इस्तेमाल महिलाएं पशुपालन, मुर्गी पालन, खेती, बागवानी के काम में करती और आर्थिक तौर पर सशक्त होती गयीं. महिलाएं किराये पर खेत लेती और उस पर अनाज और सब्जी उगातीं.
एक समूह की सफलता ने माधुरी सिंह को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. उन्होंने धीरे-धीरे ह्यूमन वेल्फेयर एसोसिएशन के तहत काम करते हुए सेल्फ हेल्प ग्रुप को बढ़ाते हुए 40 गांव में करीब 300 समूहों का गठन किया. इन समूहों की शीर्ष संस्था का नाम ‘महिला शक्ति’ है.
आज करीब 3750 महिलाएं आर्थिक तौर सशक्त हैं और किसी ना किसी समूह से जुड़ी हैं. सेल्फ हेल्प ग्रुप की खास बात ये है कि इनसे जुड़ी महिलाओं के घर में सभी बच्चे पढ़े लिखे हैं और अच्छी जगह नौकरी करते हैं. सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ी महिलाओं के बच्चे कभी बाल मजदूरी नहीं करते.
एक सेल्फ हेल्प ग्रुप की इतनी शक्ति और माधुरी की इच्छाशक्ति ने बहुत सी महिलाओं के स्वावलंबन के सपने को साकार किया. समाज की आखिरी पंक्ति में खड़ी महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाया और वित्तीय आजादी दिलायी.
माधुरी सिंह को ये सब करने की प्रेरणा ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी डॉ रजनीकांत से मिली. माधुरी सिंह शुरू में परिवार नियोजन का काम डॉ रजनीकांत के साथ करती थीं.
डॉ रजनीकांत इन खास ग्रुप के बारे में बताते हैं कि, “ सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ी महिलाएं 70 फीसदी से अधिक लोन आजीविका के लिए लेती हैं और 10 फीसदी का लोन रोजमर्रा की जरूरतों के लिए लिया जाता है. सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़े लोगों की बस्तियों में बाल मजदूरी नहीं है, बच्चों और गर्भवती महिलाओं का 100 फीसदी टीकाकरण है. सेल्फ हेल्प ग्रुप न केवल लोगों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करता है बल्कि राजनीतिक और सामाजिक सशक्तिकरण के भी काम करता है.”
जब महिला अधिकारों की बात होती है तो उनके सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों की भी बात होनी चाहिए तभी जाकर महिलाएं आर्थिक तौर पर भी सशक्त हो पायेंगी और तब बराबरी करके और स्वावलंबी बनकर समाज का नेतृत्व कर पायेंगी.
(डीडब्ल्यू डॉट कॉम से साभार)
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